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एक कप शायरी...

प्रस्तावना:ये किताब मेरी कुछ रचनाओं का संकलन हे,ओर मुजे आसा हे की आप मेरी रचनाओं को पसंद करेंगे, मेरी प्रस्तावना
पढ़ कर ये मत सोचिएगा की मे कोइ पंडित नुमा लेखक हु। मे साहित्य में रुचि रखने वाला एक आम छात्र हु।साथ ही में मेरा ये अनुरोध हे की आप मेरी हीन्दी मे की जाने वाली गलतीयों को माफ करदे ,मे अभी सीख रहा हु!

अस्तु।

●मे पहले से ही प्रेम का कवि रहा हु, पर मेने जो पहली रचना पसंद कि हे वो थोड़ी अलग हे ,आप पढें ओर आनंद ले;

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कविता नंबर एक

किसी की आखरी कहानी अंधेरे में न गुजरे;
किसी बाप का बेटा कभी जवानी में ना गुजरें।

ऐसे भी दिन देखे हैं मेने मां को जब डर लगता था;
कहीं खिलौनेवाला हमारी गली से न गुजरे।

मैं ये कविताएं जिसके वास्ते हाथोंसे लिखता हूँ;
पैर कप-कपाने लगते हैं अगर वो सामने से गुजरे।

एक दिन सुबह उसने कहा वो मुजसे अब महोब्बत नही कर पाएगी;
उस दीन कुछ लोग मेरे घर के नीचे से उसका जनाजा लेकर गुझरे ।

मैंने बस्ती में एक लडके पूछा क्या देख रहे हो आसमान में;
उसने कहाँ राह तक रहा हूँ कब कोई फरीश्ता रोटियां ले कर गुजरे।

और हम जानते थे की सफर के आंत में कुछ नहीं मिलेगा राजकुमार;
तो हम वो रास्ता बने जिस पे न जाने कीतने मुसाफीर मंजिल की चाह मे गुजरे।

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●दुसरी रचना मे आपको मेरा मुल रुप दिखाई देगा, ओर सायद आप उसका आनंद भी ले पाए पर मेरी ये वींनती हे की आप कविता पढने के बाद मुजे ये न पुछे कि

"लेखक साहब किस पे लीखी हे ये कविता?"

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कविता नंबर दो

चाय के बागानों से निकलती खुशबू लगती हो;
ओ लडकी साडी पहेना करो अच्छी लगती हो।

आइने की नजर ना लगे तुमको;
क्या ईस लीये काली बिंदी करती हो।

मेरे कान खनक सुनने को तरसते हैं;
ओर तुम बस एक ही हाथ मे कंगन पहनती हो।

कहा से आता हैं इतना गहेरा रंग;
काजल कीस चीज से करती हो?

कभी जा कर सरहद पर मुस्कुरा देना;
तुम जंग होने से रोक सक्ति हो।

मैं दीनभर बस एक ही बात सोचा करता हूँ;
कि तुम मेरे बारे मे क्या सोचती हो?

तुमने कीरनो को उधार दे रखा है
तुम रोशनी को रोशन करती हो।

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●आगर आप मेरी पहेली दो रचना पढने के बाद भी अब तक मुजे पढ रहे हे तो इसका मतलब ये हुवा की आपको मेरी शायरी जच रही हे। तो इसी बात से खुश हो कर मे आपना कारवा आगे चला सक्ता हु।


कविता नंबर तीन

माना की तुजे हींचकीया आती है पर क्या करे,
तेरे बारे मे सोच के सोते हें तो ख्वाब बडे अच्छे आते है;

तु कभी अनजाने में अगर हाथ रख दे सीने पर तो,
कमीझ की सीलवटे क्या! दील के छाले भर आते हैं;

बस इसी जिद से मैं लिखता रहता हूँ की,
रकीबो को तुजे मनाने में मेरे शेर काम आते है;

तुने तोहफे भी कुछ इस तरह से दीये हें मुजको,
अमीर लोग जेसे भिखारी के काशे मे रुपीया फेंक के आते है;

मेरे अलावा इन्हें चैन नही पडता शायद कही पर,
रोज कुछ नए घाव बदन पे नीकल आते हैं;

मैं जीतना भी भटकु पर आखिर में तुज तक ही पहुँचता हूँ,
जेसे पालतु परिंदे शाम होने पे अपने पिंजरे में चले आते हैं;

अब तन्हाई से थक गये हैं तो जीस्म का सौदा तुजसे कर लेंगे,
लेकिन रूको हम शायरी की कीताब को आग लगा के आते हैं।

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●जी हा मे जानता हु के ये रचना थोडी भारी थी, तो मुजे कुछ शेर सुना कर आपनी किताब संतुलित करनी चाहिए।


कुछ शेर

1
मैं कविता लिखूँ और तुम उसको सरगम दो
कुछ ऐसे ही ख्वाब रातों को आंखों में सजाएं जाते हैं,

अजब नजर आता हैं वफा का माहौल
शायरो की शादी में उन्ही के लीखे गाने गाए जाते है।

2
ये मोताका संनाटा अभीतो ओर आएगा
एक लडकेने बोलाथा वो खुदाको सब बताएगा

तिनका भी अगर सुलगे तो उसे खबर होती है
ओर तुजे लगा तु बस्तीया जला कर बच जाएगा

(कोरोना वीसेस)

3
फकीर की दुवा पढना ओर बीछडे दीलो का मीलना ऐक जेसा है!
मेरी गझलो का फन ओर तेरा आंखों मे काजल करना ऐक जेसा है!

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●तो बस अब एक आखिर रचना ओर मे वीदा चाहुंगा मुजे कोमेन्ट मे मेरी रचनाओं के बारेमे आपके वीचार बताइये गा।


कविता नंबर चार

बिखरे बाल,गहरी आँखे उपर से ये उदास चहेरा तुम्हारा
मेने सिर्फ गज़ल लिखने को कहा था सचमुच में इश्क कर बैठे हो क्या?

मुज जेसे न जाने और कितने बेठे हैं तेरे ईन्तजार में,
सब को एक जेसा जुठ बोला था क्या?

उस किताब में जो सचमुच लीखा हैं वो क्युं नही बताते?
किसीने मुँह पे तुम्हारे नोट फेंक के मारे हैं क्या?

सूना हैं दिल की बात मान ली है तुमने,
ओ लडके फिरसे हलाल होना है क्या?

सालभर से बस रातों मे निंद नहीं आती मुजको,
प्यार मत दो पर एक-दो नींद की गोलीया मिलेगी क्या?

आजकल की महोब्बत बडी आसान हैं
तीन लफ्ज़ बोल देने हैं फकत और बोल देने में क्या?

सूना हैं मजनु हिज्र काटने जंगल मे चला गया था,
जंगल भी बचे नहीं अब तो मैं हीज्र काटने उसकी गलीमे चला जाऊँ क्या?

बस अब ओर कुछ नहीं कहुगा आसा रखता हूँ कि आपको यह प्रयास पसंद आया होगी।