Fly Killar - 5 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

फ्लाई किल्लर - 5 - अंतिम भाग

फ्लाई किल्लर

एस. आर. हरनोट

(5)

वह चुपचाप कौवे की कथा सुन रहा था। हालांकि उसके मन में कई प्रश्न थे पर वह शांत बना रहा। कौवा बताए जा रहा था.........

अब समस्या यह थी जीवन कुमार कि इन सभी मुसीबतों से राजा को मुक्ति कैसे मिले.....? इन्हीं समस्याओं से निजात पाने के लिए उसने एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया जिसमें महज उसके बेहद विश्वसनीय तीन लोग थे। उन्हें इस काम के लिए पूरी छूट और सुविधाएं दी गईं।

इससे पूर्व उस राजा को किसी ने एक ऐसा सूट भेंट किया था जिसमें उस देश की पच्चास प्रतिशत जनता जितने राजा के नाम बहुत ही बारीक शब्दों में लिखे गए थे। राजा जहां भी उसे पहन कर जाता वाहीवाही हो जाती। उस सूट को पहन कर उसने जिस भी देश की यात्रा की, वही उसका दीवाना होने लगा। लेकिन करोड़ों रूपए के उस सूट ने राजा का जीना हराम कर दिया। देश के आमजन की नजरें उस पर थीं। सभी उसे शक से देखने लगे थे। समाचारों में अब केवल वह सूट ही था। हर आदमी की जुबान पर वह चढ़ गया था। परेशान होकर राजा ने उस सूट को निलामी के लिए एक उद्योगपति को दे दिया। वह जानता था कि राजा के इस कोट की करोड़ों की बोली लगेगी। परन्तु जो तीन लोगों की समिति राजा ने बनाई थी उन्होंने उस सूट की निलामी को रूकवा दिया था।

‘पर क्यों.......?‘

उसने थोड़ा रूक कर कौवे से पूछा था।

‘बताता हूं, बताता हूं......जल्दी भी क्या है......?‘

वे कई आलीशान रेस्तरां में जा कर मन्त्रणा करते कि इन समस्याओं से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है। एक दिन वे एक सात सितारा होटल के आलीशान रेस्तरां में उच्चकोटि की शराब और खाना ले रहे थे। हालांकि उन तीनों की पसन्द एक दूसरे से नहीं मिलती थीं पर सोच में वे एक समान थे। पहला केवल ‘पेनफोल्ड्स एम्पूल वाइन‘ पीता था जो पेन की शेप जैसी बाॅटल में आती थी और उसकी कीमत एक करोड़ ग्यारह लाख तक थी। दूसरा सदस्य उससे हल्की शराब का शैकीन था जिसका नाम ‘शैटियू डी क्यूम‘ था जो 85 लाख से ऊपर कीमत की थी। तीसरा शराब का ज्यादा शौकीन नहीं था पर उसे बीफ के साथ ‘द विंस्टन काॅकटेल‘ चाहिए होती जो नौ लाख से ज्यादा की कीमत की थी। अक्सर वह 80 हजार रूपए कीमत वाली ‘वियल बाॅन सीकाॅर्स ऐल‘ बीयर ही पीता था।

उन में से एक की नजर सामने लगी मक्खीमार मशीन पर चली गई। वह उठा और कई पल मशीन के पास खड़ा रहा। उसने होटल के मालिक से मशीन के निर्माता के बारे में पूछा और आदेश दिए कि उसे होटल में बुलाया जाए। आदेशों का तत्काल पालन हुआ। मशीन निर्माता कुछ पलों में वहां पहुंच गया। वह जानता था कि उसकी बैठक आज देश के तीन उच्च राजनेताओं से होने वाली है जो राजा के विशेष दूत हैं। उसने विनम्रता से अपने को उनके सामने प्रस्तुत कर दिया।

बातचीत शुरू हुई। यह अति गोपनीय मीटिंग जिस कमरे में हो रही थी वहां किसी को भी आने की अनुमति नहीं थी।

‘तो यह मक्खीमार मशीन आपने बनाई है ?‘

पहले सदस्य ने पूछा।

‘जी सर! यह हमारी कम्पनी की ही क्रिएशन है। हमने देश के हर छोटे बड़े रेस्तरां और होटलों के लिए यह मशीन सप्लाई की है। इसमें अब अत्याधुनिक किस्म के कई फीचर शामिल कर दिए गए हैं।‘

‘वैरी गुड, वैरी गुड।‘

दूसरे ने शराब की घूंट पीते हुए कम्पनी मालिक की पीठ थपथपाई।

‘तो इसमें मच्छर और मक्खियां ही मरती होंगी ?‘

तीसरे ने बीफ के टुकड़े को मुंह में ठूंसते हुए पूछा।

‘जी सर। पर इस मशीन की यह खासियत है कि यह दो फुट की दूरी पर से मक्खी और मच्छर को अपनी ओर घसीट कर मार देती है। साथ ही छिपकली जैसी कई चीजों को तो इनती फुर्ति से निगलती है कि सांप भी देखता रह जाए।‘

‘एक्सेलैंट जाब डन।‘

उसने सोने की डिबिया से दुनिया की सबसे मंहगी सिगरेट डनहिल ब्रांड निकाली और उसी डिब्बिया के किनारे लगे एक माइक्रो लाइटर से सुलगा दिया। उसके कश लेते हुए जब कई रंगों के धुंए निकलने लगे तो बाकि बैठे लोग थोड़ा हैरत में पड़ गए। उसने एक-एक सिगरेट सभी को थमा दी थी।

पहला सदस्य उठकर मशीन के पास चला गया। उसने कुछ दूरी पर अपना हाथ रखा तो उसे अजीब सी झनझनाहट महसूस हुई। उसने हाथ थोड़ा आगे किया तो ऐसा लगा कि उसके हाथ को कोई अदृश्य तरंगे चुम्बक की तरह अपनी ओर खींच रही हो। वह एकाएक हंस दिया। कई पल की उस हंसी में दोनों सदस्य और मशीन निर्माता भी शामिल हो गए। काफी देर ठहाके लगते रहे। लेकिन उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि पहला सदस्य हंस क्यों रहा है। इस हंसी के बीच सभी ने खूब शराब पी।

लड़खड़ाती आवाज में पहला सदस्य मशीन मालिक की ओर झुका,

‘एक्सेलैंट। मक्खीमार यानि फ्लाई किल्लर।‘

‘सुनो‘।

उसने मशीन निर्माता को पास खींचते हुए कहा,

‘देखो हम तुम्हें मुंह मांगी कीमत देंगे। पर इस मशीन को ‘फलाई किल्लर‘ से ‘वेस्ट किल्लर‘ में विकसित करना होगा।‘

‘वेस्ट किल्लर‘...?

‘मतलब बेकार की चीजों का खात्मा।‘

‘पर सर वो तो पहले से हमारी कम्पनी बना रही है। उन्हें कूड़ा सयन्त्र कहते हैं। जिसमें देश का कूड़ा खपाया और जलाया जाता है।‘

‘वही तो, वही तो। हम भी देश के बेकार हो रहे ‘जीवित कूड़े‘ को खपाना चाहते हैं और फ्लाई किल्लर से बेहतर विकल्प क्या हो सकता है ?‘

एक पल के लिए भीतर सन्नाटा छा गया।

दोनों सदस्यों के साथ मशीन मालिक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

चुप्पी देख कर पहले सदस्य ने फिर जोर के ठहाके लगाए। उसके साथ वे तीनों भी ठहाकों में लीन हो गए।

थोड़ी देर बाद पहले सदस्य ने समझाना शुरू किया,

‘ध्यान से सुनो। ये जो फ्लाई किल्लर मशीन है, आपको इसकी तकनीक बदलनी होगी। इसे आपको अत्याधुनिक रूप से विकसित करके जी-11 यानि ग्यारवीं जनरेशन तक पहुंचाना होगा। हम वैसे भी अब 4-जी से धीरे-धीरे वहीं पहुंच रहे हैं। यह एक मानव आकार में परिवर्तित होनी चाहिए। जिसमें विशेष प्रकाश की टयूबें लगाई जाएगी। उस मशीन में अत्याधुनिक कम्प्यूटर फिट होंगे जो तकरीबन सौ फीट से किसी भी अवांछित को अपनी गिरफ्त में लेकर पहले अदृश्य करेंगे और बाद में मक्खी की तरह चूस लेंगे, लेकिन उसमें कोई आवाज नहीं आनी चाहिए। वह साइलैंण्ट किल्लर की तरह काम करेगी।‘

‘क्यों नहीं सर, बिल्कुल हम बना देंगे। मेरे पास दुनिया के बेहतरीन साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। पर एक बात समझ नहीं आई कि वे अवांछित है कौन।‘

अब दोनों सदस्यों को पहले सदस्य की सोच समझ आ रही थी। तीनों मंद मंद मुस्करा दिए। पहले सदस्य ने ही कहना शुरू किया,

‘अवांछित‘ ?

सभी हंस दिए।

मशीन मालिक अभी भी खामोश था और विस्फारित आंखों से उन तीनों को देख रहा था।

‘अरे, अरे इतना मत सोचो। आपकी कम्पनी रातों-रात देश की सबसे बड़ी कम्पनी बन जाएगी। अरबों-खरबों की मशीने बिकेगीं। मान लो, आपके मजदूर किसी बात को लेकर हड़ताल कर दें तो पिटोगे न। अब तो वो लाल-लाल झण्डों वाले कुछ भी करने पर उतारू हैं। 80 प्रतिशत किसानों की आबादी वाले देश में 76 फीसदी किसान अपनी खेती छोड़ रहे हैं और जगह-जगह मजदूरी कर रहे हैं। ये कभी भी इस सरकार और देश की शक्ल बदल सकते हैं। फिर उनके साथ ये कलमें, पैन वाले, कैमरे और माइक वाले। उनके पीछे विपक्ष के लोलुप नेता लोग। कर्ज में डूबे हलईए। कौन कौन नहीं नारे लगाने आ जाएगा।‘

‘सर वो तो है। बहुत मुश्किल पैदा कर देते हैं ये लोग।‘

‘यही तो। यही तो। समझो। जब ये लोग ही नहीं रहेंगे, न बजेगा बांस न बजेगी बांसुरी। कहावत पुरानी है पर सटीक बैठती है।‘

‘जी.......जी.........जी।‘

‘पर सर इनका क्या करेंगे। कैसे करेंगे ?‘

‘फ्लाई किल्लर भई, उसी में जा मरेंगे सब।‘

कमरा ठहाकों से गूंज गया। इस बार मशीन मालिक इतने जोर से हंसा कि तीनों सदस्यों की हंसी उसके ठहाकों में दब गई।

‘मान गए सर आपका दिमाग। कम्प्यूटर से कहीं ज्यादा। मानो किसी दूसरी दुनिया से लाया हो।‘

‘वही तो, वही तो। हमारे राजा भी ऐसी दुनिया बनाना चाहते हैं जहां एक वर्ग हो। एक रंग हो। एक सोच हो। एक सरकार हो। एक राजा हो। एक धर्म हो। एक ड्रैस कोड हो। एक ही सोच की एलीट सोसाइटी हो। किसानों, मजदूरों का काम केवल रोबोट करें। इन रोज-रोज के झमेलों से तंग आ गए हैं हम। हम भी खुश और विपक्ष भी। सभी अपने-अपने स्वार्थों के लिए तो लड़ते हैं भाई। शुरूआत समाज सुधार से, फिर समाज जाए भाड़ में, अपना सुधार शुरू। आसानी से नहीं मिले तो खून-खराबा, दंगे फसाद, साजिशें, धर्म के नाम पर मारपीट, जाति के नाम पर वोट। ये सब अब पिछड़ों के मुद्दे रह गए हैं। हम एक सम्पन्न दुनिया बनाना चाहते हैं और वह तभी बनेगी भाई जब इन वांछितों का कुछ होगा।‘

मशीन मालिक थोड़ी देर चुप रहा। फिर कहने लगा,

‘वह तो ठीक है सर, पर उसकी जद में तो कोई भी आ सकता है।‘

‘भई हम आपको इतनी राशि एक मशीन के लिए क्यों दे रहे हैं। बोलो एक करोड़, दो करोड़, पांच करोड़, कितनी राशि चाहिए आपको। तकनीक ऐसी होनी चाहिए ताकि ये वांछित ही उस मशीन के शिकार हों। चुन-चुन कर।‘

‘एक बात है सर। हो जाएगा। हो जाएगा। पर आपको उस राजा का जो कोट है उसे हमें देना होगा।‘

‘पर किस लिए ?‘

‘आप नहीं जानते सर, उसमें राजा के उतने ही नाम हैं जो उनके अपने हैं, उनकी सोच के हैं और सम्पन्नता में हैं। अमीर हैं। उद्यौगपति हैं। यानि बुर्जुवा वर्ग। समझ रहे हैं न आप। इस देश की आधी आबादी जितने।‘

‘पर आपको कैसे पता ?‘

‘क्या सर, इतना भी नहीं जानते ? उसे हमने अपने राजा की विशुद्ध साम्राज्यवादी सोच के दृष्टिगत ही निर्मित किया था। वह पूरी तरह आधुनिक तकनीक के उच्चस्तरीय कम्प्यूटर से बना है। उसमें राजा के नाम विशेष चिप से गुने गए हैं। और हम उन्हीं चिपों को अपनी सोच के लोगों में वितरित कर देंगे। जिनके पास वह चिप होगी, वे उस मशीन की जद में आ ही नहीं पाएंगे।‘

‘पर उन्हें अपनी सोच के लोगों में बांटेंगे कैसे ?‘

‘वह हमारी कम्पनी पर छोड़िए सर। हमारे पास एलियन से ज्यादा दिमाग के इंजीनियर है। हम ऐसी तकनीक विकसित करेंगे जैसे एक ही बार एक ई-मेल या संदेश लाखों लोगों को जाता है। उसी तरह हम एक विशेष तकनीक से अपनी सोच के लोगों में वह चिप अति गोपनीयता से फिट कर दें। यानि हमारे कम्प्यूटर यह काम करेंगे। काम भी उनका, चयन भी उनका।

ऐसा कहते ही फिर कमरा ठहाकों से गूंज गया।

बहुत देर बाद जीवन कुमार ने अचम्भित होकर कौवे से पूछा,

‘हमारे पास भी तो चिप नहीं है ?‘

‘अब तुम इस दुनिया के नहीं हो न। आत्मा हो। जो अभी मरी नहीं। सुप्त अवस्था में है। तुम जानते हो, मैं भी आत्मा हूं। कोई भी आत्मा मेरे बिना अधूरी है। यानि उसकी गति नहीं है मेरे सिवा। तुमने शास्त्र तो पढ़े होंगे। और हम तो किसी को दिखते भी नहीं न।‘

‘वह तो है।‘

कौवा आगे बताता चला गया।

‘........और इस तरह लाखों फ्लाई किल्लर मशीनें जगह-जगह लगा दी गईं। और आहिस्ता-आहिस्ता बिना चिप के लोग उसमें मक्खियों की तरह गुम होते चले गए। बहुत कम समय में उन वांछितों का खात्मा हो गया। राजा के लिए कोई समस्या नहीं रही। मनचाही योजनाएं बनी। हर तरफ एक सामंती स्वामित्व तथा प्रत्यक्ष उत्पादकों के शोषण की ऐसी सामंती प्रभुओं वाली संरचना होने लगी कि सब कुछ राजा की सोच के मुताबिक होता चला गया। राजा ने अपनी सोच के मुताबिक दुनिया बना ली। कोई विपक्ष नहीं, कोई बोलने वाला नहीं। कोई लिखने वाला नहीं। कोई विरोध करने वाला नहीं। कोई चीखने चिल्लाने वाला नहीं। पर उसके बाद भी...............?‘

‘उसके बाद क्या........?‘

जीवन कुमार ने उत्सुकता से पूछा था।

‘तीन लोग हैं जो पकड़े नहीं गए हैं। उनके पीछे राजा ने अपनी तमाम फौजें, पुलिस और सुरक्षा एजंैसियां लगा रखी हैं। लेकिन वे नहीं मिल रहे, न ही वे उस मशीन की जद में आते हैं।‘

‘पर वे कौन लोग हैं। ?‘

कौवा उसके कन्धे से उतर कर एक सुन्दर पेड़ पर बैठ गया। उसने पेड़ के नीचे लगी एक बैंच पर जीवन कुमार को बैठने का इशारा किया। यह कोई ऊंची जगह थी जहां से बहुत दूर-दूर तक देखा जा सकता था।

कौवा जीवन कुमार को उन तीनों के बारे में बताने लगा था।

‘एक के पास हल है, दूसरे के पास कलम और तीसरे के पास हथोड़ा है। राजा को यह समझ नहीं आ रहा है कि इन तीनों के लिए कौन सी मशीन विकसित की जाए जिसकी जद में वे जहां भी हो तुरन्त आ जाएं।‘

कौवा अभी यह बता ही रहा था कि सामने से राजा की फौजें आती दिखी। जीवन कुमार भूल गया कि वे उसे नहीं देख सकते। वह आतंकित हो गया। भागा, जितना भी भाग सकता था और एक अंधेरी खाई में गिर गया। होश आया तो अपने को बदहवास सा चिनार के नीचे बैंच पर बैठे पाया। उसे दांयी तरफ के कन्धें में कुछ खिंचाव सा महसूस हुआ। गर्दन घुमाई तो देखा कि बगल में लटके बैग के भीतर एक गाय मुंह घुसाए कुछ चबा रही है। उसने जैसे ही अपने बैग को छुड़ाया, गाय के मुंह में वही पुराने नोटों की गठ्ठी थी जो अब आधी-अधूरी झाक के बीच दिख रही थी। वह बौखलाया सा जैसे ही उसके मुंह से उन नोटों को छुड़ाने उठा सामने वही विशेष पट्टे वाले लोग खड़े थे।

‘क्यों अंकल! आज दूसरा धन्धा शुरू। गाय को बेचने ले जा रहे हो.....?‘

बोलने वाला वही व्यक्ति था, जिसने उस मासूम लड़की के चक्कर में उसका कालर पकड़ लिया था।

यह सुनकर उसका मुंह खुले का खुला रह गया। तभी अचानक उसको याद आई कि वह जिस दुनिया से लौटकर आया है वहां का राजा अभी तक भी उन तीन लोगों को पकड़ने में असमर्थ हैं। उन परिदृश्यों को याद करते हुए सिर उठा कर उसने चिनार के पेड़ की तरफ देखा जिस पर चैत्र-बैशाख अपने शाही अंदाज से बैठ रहे थे। .................और इसी के साथ वहां से निकलते हुए इतनी जोर से ठहाका लगाया कि पास के पेड़ पर बैठे पक्षी भी उड़ गए।

वे विशेष पट्टे वाले लोग किंकर्तव्यविमूढ़ से दूर तक जीवन कुमार को जाते देखते रहे।

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एस. आर. हरनोट

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