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मन की बात


फूलचंद नाम का एक किसान था,उसके दो बेटे थे, रमेश और महेश।
महेश की उमर १३ साल और रमेश की ३ साल थी
फूलचंद की पत्नी का नाम पार्वती था, वो अक्सर बीमार रहा करती थी ।
इसलिए महेश को पढ़ाई के साथ साथ घर का कम काज जैसे खाना बनाना और अपने पिता के साथ खेत के कम मे हाथ बताना भी पड़ता था ।
बड़ा होनहार और नेक लड़का था महेश, पढ़ाई मे भी अच्छा था, अक्सर उसके विद्यालय के अध्यापक उसके पिता फूलचंद से महेश की तारीफ करते थे ।

दिन गुज़रता गया, अचानक से एक रात फूलचंद की पत्नी का तबीयत खराब हुई, और वो स्वर्ग सिधर गई।
पत्नी के निधन हो जाने से फूलचंद बड़ा उदास रहने लगा,
लेकिन क्या कर सकते हैं होनी तो होकर रहती है।

दिन गुजरते गये एक दिन फूलचंद खेत मे हल चला रहा था, तभी एक सर्प ने उसे डस लिया और उसकी मृत्यु हो गई ।

पिता के मृत्यु के बाद घर और छोटे भाई की परवरिश का जिम्मा महेश के उपर आ गया ।
माँ तो पहले ही स्वर्ग सीधार गई थी और अब पिता भी नहीं रहे, महेश अंदर से टूट सा गया ।
दोनो भाइयों मे महेश बड़ा था, तब रमेश की उम्र तकरीबन ५ साल की थी और महेश की १५ साल।

ज़िम्मेदारियों के बोझ तले महेश को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, और छोटे भाई की परवरिश और खेत के काम मे लग गया ।
थोड़े बहुत घर के खेत थे,उसी मे लगन से खेती करता,

पड़ोस के ही एक चाचा ने महेश की शादी पास के गाँव मे ही करा दी।
महेश की पत्नी का नाम शीला था वो बहुत ही अच्छे ब्यवहार और संस्कारी थी, जब महेश की शादी हुई तब सुरेश 8 साल का था,

दस साल बाद

महेश की शादी हो चुकी थी ,दो बच्चे भी हो चुके थे,

रमेश भी अब १८ साल का हो चुका था, रमेश भी पढ़ाई मे तेज तरार था।
महेश की जान पहचान अच्छे लोगो से थी, उसने सिफारिश लगा के रमेश को फौज मे भर्ती करा दिया।
तब सुरेश को फौज मे भर्ती कराने के लिए, महेश ने गाँव के ही एक लाला से क़र्ज़ लिए थे, सोचा भाई जब भर्ती हो जाएगा तो पैसे चुका देंगे, हालाँकि सुरेश ने उस लाला से उधार पहले भी बहुत सारे रुपये लिए थे, रमेश की पढ़ाई के लिए खेत गिरवी रखकर ।

मगर महेश ने क़र्ज़ वाली बात रमेश को नहीं बताया था

रमेश को सरकारी नौकरी लग गई, शादी के लिए अच्छे-अच्छे घरों से रिश्ते आने लगे।
महेश ने एक प्रतिष्ठित परिवार मे रमेश की शादी कर दी, लड़की अच्छी थी और पढ़ी लिखी थी।

शादी के कुछ दिनों बाद ही रमेश अपनी पत्नी को लेकर चला गया, जहाँ उसकी पोस्टिंग थी।
उसके बाद ३ साल तक रमेश और उसकी पत्नी गाँव वापस नहीं आए, और ना ही गाँव पर भाई को खर्च भेजता।
फोन पर ही कभी कभार भाई और भाभी का हाल पूछ लिया करता था ।



३ साल बाद


"ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो" रमेश के मोबाइल मे लगा रिंग टोन बजा

रमेश :- "हेल्लो" कौन



"रमेश मैं महेश बोल रहा हूँ",

हाँ भैया, कहिए कैसे हैं, सब ठीक तो है न सुना है, भाभी की तबियत खराब है। हाँ रमेश तबियत बहुत खराब है, अस्पताल में भर्ती किए हैं, वो ..........अभी महेश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि रमेश ने उसकी बात काटते हुए कहा।

"अरे हाँ भैया अगर कोई बात हो तो बता दीजिएगा, मैं अभी तो बीजी हूँ, बाद में बात करता हूँ।" इतना कह कर ,

फ़ोन कट कर के रख दिया।
पास में ही बैठे रमेश के दोस्त ने रमेश पूछा,
अरे कौन था?" रे रमेश। "अरे उ भैया थे, भाभी की तबियत", "अरे तू क्या करेगा जान के चल तू पैग बना।"

कुछ दिनों बाद रमेश के गाँव से ही किसी ने फोन कर के रमेश को बताया की तुम्हारा भाई महेश अपनी और तुम्हारे हिस्से की खेत लाला को बेच दिया है, ये सुनते ही रमेश गुस्से मे आग बाबूला हो गया और दो दिनों के बाद ही अपनी पत्नी को लेकर गाँव पहुच गया।

घर पहुचते ही रमेश महेश को भला बुरा कहने लगा ।
के तुम होते कोन हो मेरे हिस्से का खेत बेचने वाले तुम अपने हिस्से का बेचते, तुमने मेरे साथ बेईमानी की है, तुम बड़े बेईमान हो।


महेश चुप-चाप खड़ा उसकी बातें सुन रहा था, एक शब्द नहीं बोल रहा था।

पास में ही खड़ी महेश की पत्नी भी रमेश की बातें सुन रही थी, महेश के कुछ न बोलने पर, वो बोली...



"रमेश तुम्हें तो पता ही है, हमारी स्थिति, खेतों मे इस साल फसल भी अच्छा नहीं हुआ, तुम्हारे भैया को कोई काम भी नहीं मिलता, उनकी भी तबियत आज-कल खराब ही रहती है ।
तुम और तुम्हारी पत्नी हमारी परिस्थिति को भली-भांति जानते हो उस दिन तुम्हारे भैया ने पैसे के लिए ही तो तुम्हारे पास फ़ोन किया था। जब उन्हे पता चला के मेरी तबियत खराब है इसका तुम्हें पहले से पता था, फिर भी तुमने फ़ोन करके मेरा हाल तक नहीं पूछा और तो और जब उन्होने फ़ोन किया तो तुमने कहा के कोई बात हो तो मुझे बता दीजिएगा, सब जानते हुए भी के हम किस स्थिति से गुज़र रहे हैं, फिर तुम कह रहे हो के कोई बात हो तो बता दीजिएगा, ये कह कर तुमने फ़ोन काट दिया। फिर दोबारा पूछे भी नही के भैया पैसे का इंतज़ाम हुआ भी या नहीं।"



रमेश "जब तुम्हारे भैया के साथ मेरी शादी हुई थी, तब तुम 8 साल के थे।

मैं आज भी तुम्हें देवर नहीं, अपना बेटा समझती हूँ। जब तुम छोटे थे, तुम्हारे भैया अनपढ़ होते हुए भी मेहनत मज़दूरी करके तुम्हें पढ़ाया, खुद पुराने कपड़े पहनते रहे पर तुम्हारे लिए नये सिलवाते थे, तब तुमने अपने भैया से कहा था के भैया मुझे पढ़ना है, भैया मुझे नये कपड़े ख़रीद दो नहीं न.....क्योंकि भैया तुम्हारी मन की बात समझते थे और अपना फ़र्ज़ निभाना चाहते थे।"

और हाँ एक बात और कई सालों से तुम्हारे भैया और मैने ये बात छुपा रखी थी कि तुम्हारे पढ़ाई और नौकरी के लिए ही तुम्हारे भैया ने लाला से क़र्ज़ लिया था,खेत गिरवी रख कर।

तुम्हारे भैया ने सोचा था जब तुम्हारी नौकरी लग जाएगी तब लाला का क़र्ज़ चुका देंगे और खेत छुड़ा लेंगे।

तुम्हारी नौकरी भी लग गई और शादी भी हो गई, शादी कर के तुम अपनी पत्नी को लेकर बाहर चले गये ।
फिर ३ साल तक न तुम वापस आए और ना ही तुमने हमें कोई खर्चा दिया।

"और उस दिन रमेश जब तुम्हारे भैया ने तुम्हे फ़ोन किया तो तुम उनकी मन की बात नहीं समझ पाए।"


समाप्त.........

©इंदर भोले नाथ