Koshish - ek maa ki aash books and stories free download online pdf in English

कोशिश - एक माँ की आस

"इन्सपेक्टर साहब, मेरे बेटे का कुछ पता चला क्या?"हर रोज की तरह ममता पुलिस स्टेशन में वही सवाल करने गई थी.
"नहीं माताजी, जब भी पता चलेगा आपको बता दिया जाएगा हम खुद आपको इनफॉर्म करेंग".
"इंस्पेक्टर साहब, 5 साल से यही सुनती आई हूं. ना जाने मेरा बेटा कहां होगा? कैसा होगा? किस हाल में होगा? आप उसे ढूंढते क्यों नहीं?"
"देखिए माताजी आपका बेटा दूसरे शहर से गायब हुआ है, फिर भी हम कोशिश कर रहे हैं. हमें तो लगता है कहीं उसने आत्महत्या ना की हो."
"मेरा बेटा पढ़ने में बहुत होशियार था हमेशा नंबर वन आता था वह आत्महत्या क्यों करेगा ना वो परेशान था ना उसको कोई कमी थी वो अपनी मर्जी से आगे पढ़ने गया था और बहुत खुश था. काश! आपने सही वक्त पर उसके seniors से कड़ी पूछताछ की होती"
"क्या हुआ पुलिस ने क्या कहा? अनिल के बापू ने पूछा."
"वही रोज का एक ही जवाब. आह भरते हुए ममता बोली.
"सुनो जी,कितना खुश था अनिल, कि उसे एक बार में 21इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया था. देढ़ बरस तक तो वो बराबर आता रहा और चिट्ठियां भी. फिर धीरे धीरे उसका आना भी कम हो गया और चिट्ठियां भी. हम सोचते रहे पढ़ाई ज्यादा कठिन है समय नहीं मिलता होगा. कहीं कुछ और बात तो नहीं थी ना? नहीं - नहीं! हमारा अनिल कुछ गलत कर ही नहीं सकता. मैं उसकी माँ हूं, मुझे पता है." उदास ममता ना जाने किस सोच में पड़ गई.
" मुझे ही कुछ करना होगा ". इतना कह कर अचानक से उठी और आती हूं कह कर बाहर निकल गई.
" रानी ओ रानी बिटिया "
"आई चाची".
"क्या हुआ चाची?"
"बिटिया, वो तुम बोल रही थी ना - वो मरा कमपूटर में सब मिल जाते हैं, देखो ना, मेरा अनिल मिलेगा क्या?" इतना कहते ही आंखे डबडबा आई. "
" ठीक है चाची, अब तुम मान गई हो तो मैं वो भी कर देती हूँ, अनिल मेरा अच्छा दोस्त था. उसके ના मिलने का दुख मुझे भी है." रानी भी उदास स्वर में बोली.
"अच्छा ठीक है, मैं ऐसा करती हूं कि facebook पर उसके नाम का एक पेज बनाती हूं और सभी दोस्तों को जोड़ती हूं और उनको कहूँगी वो भी औरों को जोड़े.. उसकी तस्वीर लगा कर रखेंगे, उसके बारे में लिखेंगे और फिर देखते ही देखते आग की तरह बात फैलेगी और क्या पता हमे हमारा अनिल मिल जाए."
हाँ! यही सही होगा, फिर एक कोशिश - इस बार रंग ले आए..!! इस बार ममता जी की आंखों में चमक और विश्वास था.
सलिल चल, मनोज ने सलिल के कंधे पर हाथ रखा तो सलिल चौक उठा.
बोला - "हां "
"क्या बात है? तू सुबह से परेशान लग रहा है"-मनोज बोला
"नहीं कुछ नहीं" - सलिल बोला
सुबह to office की परेशानी बोल कर और झूठी मुस्कान से पूर्वा को बहला आया था, पर ऐसा कब तब चलेगा? कभी ना कभी तो ये बात सामने आयेगी ही. जब जो होगा देखा जाएगा- खाते हुए सलिल ने सोचा.
"बरखा रानी जम के बरसो, हमारा अनिल शर्मा रहा है". ऐसा कह कर मैं और पूर्वा, सुबह से अनिल को परेशान कर रहे थे. 😝 कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की 'बरखा' ने खुद अनिल के notes जो मांगे थे. 😁. अनिल तो शर्मा ही गया था. बस इसीलिए हम दोनों अनिल को परेशान कर रहे थे. हम तीनों की तिकड़ी पूरे कॉलेज में मशहूर थी, मैं और अनिल दो जिस्म एक जान हुआ करते थे.
ये हमारा आखिरी साल था, और इसी वर्ष कॉलेज में इलेक्शन भी होने वाला था. जैसे जैसे इलेक्शन का वक़्त नजदीक आ रहा था, अनिल का झुकाव इलेक्शन की तरफ बढ़ने लगा था. मैंने उसे बहुत बार समझाया भी था कि ईन सब बातों से दूर रहे, ये सब अमीर और गुंडे लड़कों के बस का है. पर उसको कॉलेज की हर activity में बढ़ चढ़ कर भाग लेना पसंद था.
ऐसा नहीं था कि मैंने उसे समझाया नहीं था - बल्कि अनेकों बार बताया था कि ये शहर गुंडागर्दी के लिए प्रसिद्ध है. हमे इनसब से दूर रहकर पढ़ाई करके अच्छी नौकरी चाहिए बस ताकि अपने परिवार की माली हालत सुधार सके.
किन्तु न जाने उन अमीरजादों के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही थी कि उन लोगों ने अनिल को बहला कर अपने साथ शामिल कर लिया था.
अनिल एक अच्छा और पढ़ने में होशियार लड़का था. मैं नहीं चाहता था कि वो किसी और चीज में फंसे. पूर्वा ने भी उसको बहुत समझाने की कोशिश की पर न जाने क्यूँ उसे वो लोग भी सच्चे ही लगते थे.
धीरे धीरे वो उनलोगों की दोस्ती में आ ही गया. मुझे डर था कि अनिल भी कहीं उनकी बुरी आदतों का शिकार ना बन जाए, उसकी जिंदगी खराब हो जाएगी. बकरे की माँ कब तक खैर मनाती? अनिल ने थोड़ा बहुत पीना सीख ही लिया था.
"सलिल, खाना लग गया है." - की आवाज ने मुझे 5 साल पहले से वर्तमान में ला पटका.
"अब उन बातों को याद करके क्या होगा? मैंने सोचा.
पूर्वा ने फिर पूछा -" ऐसी क्या परेशानी है ऑफिस की, कि तुम मुस्कुराना ही भूल गए हो."
मैं उसे क्या बताता?
ये बात मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही है. कहूं भी तो किस से कहूं? जब से Facebook पर अनिल का page देखा है, मेरी परेशानी बढ़ गई है.
मैंने बिना कुछ कहे खाना खाया और सोने चला गया जबकि नींद आंखों से कोसों दूर थी. मैं बरबस, बार बार 5 वर्ष पीछे खिंचता चला जा रहा था.
आज भी याद नहीं करना चाहता उस दिन को, याद आते ही रोंगटे खड़े होने लगते हैं, सिहर जाता हूं.
"अनिल, तू भुलाए नहीं भूलता है. काश! तू मेरी बात मान लेता."
"अनिल, क्यूं जाना है पिकनिक? ईन सब में वक़्त बर्बाद करके क्या होगा? आखिरी साल है, नौकरी के इंटरव्यू की भी तैयारी करनी है."
पर अनिल नहीं माना, हार कर मैंने भी उसकी जिद के आगे घुटने टेक दिए थे.
काश! हम ना जाते!! मैं कहां सच्चा दोस्त साबित हुआ? कुछ नहीं कर पाया. तब भी कायर था, आज भी कायर ही हूँ.
सलिल, अचानक से हड़बड़ाहट में उठ बैठा. पूर्वा भी परेशान थी.
"तुम ठीक तो हो ना? इतनी ठंड में पसीना? कहो तो डॉक्टर साहब को दिखा आयें? - पूर्वा ने पूछा.
" तुम नाहक ही परेशान हो रही हो "- सलिल ने झल्लाते हुए कहा." कुछ समय के लिए मुझे अकेला छोड़ दो "
पूर्वा के आंखों के सामने 5 साल पहला सलिल आ गया, उस समय भी सलिल यही स्थिति में था, जब अनिल पढ़ाई छोड़ अचानकb से गाँव लौट गया था.
सुबह उठी तो, सलिल पहले से ही उठा हुआ था. उसने फिर एक बार बात करने की कोशिश की.
"सलिल, मैं तुम्हारी पत्नी हूं, पत्नी से भी पहले एक दोस्त हूं, बताओ तो सही बात क्या है? क्या पता हम दोनों मिल कर कोई हल निकाल लें." - पूर्वा ने कहा.
एक पल को सलिल को लगा कि पूर्वा को बता दूं, पर न जाने क्यूँ हिम्मत नहीं जुटा पाया.
"कुछ नहीं, मुझे जल्दी office जाना हैं" कहकर निकल गया.
"अरे, नाश्ता तो करके जाओ" - पूर्वा के हलक में शब्द अटक कर रह गए.
Office तो एक बहाना था. सलिल ध्यान केंद्र में शांति की तलाश में जा पहुँचा, जहां वो अक्सर जाया करता था. ध्यान लगने की जगह आज मन भटक रहा था और शांति का दूर दूर तक पता नहीं था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मन की व्यथा किसके साथ बाटूँ ?
आंखे बन्द करते ही 5 साल पुराना मंज़र आंखों के सामने घूमने लगा.
जब वो लोग पिकनिक की जगह पहुंचे तो समझ आया कि वो college की नहीं अमीरजादों की पिकनिक थी. ये अनिल का पहला और शायद आखिरी झूठ था, जो उसने मुझे बोला था.
अनिल मेरे चेहरे से समझ गया था कि मुझे ये सब पसंद नहीं आया, वो बोला - "मैं तुझे समझाता हूं ना बाद में, सच में बहुत मज़ा आने वाला है."
मुझे अनहोनी का पूर्वानुमान जैसे होने लगा था, मेरा दिल घबरा रहा था.
मेरे वापिस जाने की बात को अनिल पहले ही सिरे से नकार चुका था. मैंने फाइनल exams, project, interview सब बहाने बनाए पर अनिल नहीं माना.
वो मजे करने के मूड में आ गया था.
काश! मैं उसको वापिस ले गया होता.
वो सभी शराब पी रहे थे और मैं बस दूर से देख रहा था, कि अचानक विक्की बोला - "अनिल, इतनी महंगी शराब पी रहा है वो भी fukat में? चल मेरे जूते चाट. "
विक्की के साथ राहिल, फारुख, बंटी, मनोज, समर सभी जोर जोर से हंसने लगे.
अनिल को पहले तो मज़ाक लगा. फिर वो लोग उसको धक्का मारते हुए कहने लगे - "साले, अपनी औकात देखी है? हमारे साथ पिकनिक करेगा? कॉलेज में फर्स्ट आता है तो क्या खुदको हमारी बराबरी का समझने लगा है? वो तो election जीतने के लिए तेरी जरूरत थी, वर्ना तुझे मुँह भी कौन लगाता."
"ठीक है, मेरी औक़ात नहीं है तुम लोगों के आगे, पर मार क्यूँ रहे हो? तुमने बुलाया तभी मैं आया हूं " अनिल भी थोड़ा तैश में आकर बोला.
" साले, हमारे सामने ज़बान चलाता है, ऊंची आवाज में बोलता है, ऐसा सबक सिखाएँगे कि तेरा नामों-निशान नहीं बचेगा. " विक्की गुस्से में चिल्लाते हुए अनिल का कॉलर पकड़कर खींचने लगा,बाकी लोग उसको मारने लगे.
मैंने जितना बन पड़ा ये सब रोकने की बहुत कोशिश की पर...पर, ये क्या...??!!
तभी विक्की पलटा, मेरी ओर देखते हुए बोला - "ख़बरदार, जबान खोली तो, तेरा भी यही हश्र होगा."
मैं डर के मारे वहाँ से भाग गया, और परिवार की ख़ातिर अपनी सोच,अपनी ज़बान सब पर ताले लगा लिए.
मेरी आंख खुल गई और मैं कांपने लगा. आज इतने सालों बाद Facebook पर अनिल की माँ की पोस्ट ने मुझे 5 साल पीछे ले गई, जो मैंने बड़ी मुश्किल से भूलना सीखा था, वो सब फिर याद दिला दिया.
चलते चलते सलिल सोचने लगा - "हे भगवान! मैं क्या करूँ? क्या उनको सब बता दूं? नहीं! केस अभी बंद नहीं हुआ है, मेरा परिवार मुझसे चलता है, शादी के बाद नन्हा भी आने वाला है. मैं ये risk नहीं ले सकता. भले ज़माना मुझे कायर कहे, मैं अपनी बंद जुबां खोल नहीं सकता. मैं कोशिश करूंगा कि ये राज़ मेरे साथ ही रहे और मेरे साथ ही जाए. "
सच बोलने की कोशिश - सच छुपाने की कोशिश में बदल गई

©️ Vaisshali
" दिल की कलम से"
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