chhat - prem ki nishani books and stories free download online pdf in Hindi

छत - प्रेम की निशानी


लता के चेहरे पर लाली छाई हुई थी,वो शरमा रही थी और लगातार मुस्कुरा रही थी. जब से किटी पार्टी से आई थी उसका मुस्कुराना थम नहीं रहा था. बच्चे भी सोच रहे थे आज क्या हो गया मम्मी गुनगुना रही है, मुस्कुरा रही है और काम किए जा रही है.
अनन्या अपनी मम्मी के कुछ ज्यादा ही करीब थी. किचन में आई और मां से बोली "मां क्या बात है? जब से किटी से आई हो, तब से कुछ अलग ही लग रही हो. आपका चेहरा लाल लाल हो रहा है और आपका मुस्कुराना थम ही नहीं रहा है.
नीता बोली "हट! पागल ऐसी कोई बात नहीं है. जा तू अपना काम कर."
अनन्या बोली "मां! छुपाओ नहीं, जरूर ऐसी कुछ बात हुई है आपकी किट्टी में. किसी ने कुछ ज्यादा तारीफ कर दी क्या? जरूर आंटी लोगों ने आपको छेड़ा होगा".
मीता बोली "नहीं-नहीं! ऐसी कोई बात नहीं. वह तो आज हम लोग सब, पुराने दिनों की बात कर रहे थे तो बस, उसी से ही कुछ पुरानी बातें याद आ गई".
अनन्या बोली "ओह, तो ये बात है. old Love Stories & all"
मीता झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली - "चल जा अपना काम कर, ईन सब फ़ालतू बातों में अपना सर मत खपा."
काम खत्म करके वो अपने कमरे में चली आयी.
पलंग पर बैठी मीता को सब पुराने दिन याद आने लगे.
बरस हो गए 30 साल, यूं गुजर गए जैसे कोई हवा का झोंका. ऐसा नहीं है कि जीवन में हमने उतार-चढ़ाव नहीं देखा पर हर उतार-चढ़ाव में हमने एक दूसरे का हाथ बहुत कस कर थामा हुआ था.
आज छत का जिक्र हुआ. तो मुझे अपने पुराने घर की छत याद आने लगी. छत मेरी पसंदीदा जगह हुआ करते थी. पढ़ाई की किताबें हो या साहित्यिक उपन्यास, सब मैं छत पर जाकर ही पढ़ा करती थी. ठंड की दोपहरी में छत ही मेरा कमरा हुआ करता थी और गर्मी की रातों में मेरा बिछौना छत पर ही लगा होता था.
मैं गली और मोहल्ला में जन्म लेने वाली लड़की थी और हमारे घरों में की छतें आपस में जुड़ी होती थी. कई बार तो हम पड़ोसियों के घर, छत- छत से ही चले जाया करते थे. अक्सर हम मोहल्ले वाले भी आपस में, छत पर ही खड़े खड़े बात कर लिया करते थे.
एक दिन मैं अपनी छत पर टहल रही थी तो यूं लगा कि जैसे कोई नजर मुझे लगातार घूर रही है. मैंने देखा कि सुनील भैया की छत पर कोई खड़ा हुआ मुझे ही देख रहा है. सुनील भैया तो यहां नहीं रहते फिर यह कौन हो सकता है? बात आई गई हो गई. मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. तभी माँ ने नीचे किसी काम से बुलाया और मैं नीचे चली गई.
शाम को जब मैं मोहल्ले में निकली तो सुनील भैया की मम्मी टकराई.
मैं बोली 'नमस्ते चाची जी". वह बोली" कैसी हो बेटा?".
मैं बोली "ठीक हूं! आप कैसे हो? सुनील भैया कैसे हैं?" तो आंटी बोली "सब ठीक है. वह तो शहर में ही है". तो मैं बोली "फिर आपकी छत पर आज कौन था?" तो आंटी बोली "अरे ! वह वह तो आकाश है, सुनील का मौसेरा भाई. अभी थोड़े दिनों के लिए आया है. कुछ काम है उसको. अच्छा, तुम्हारी मम्मी कहाँ है?" मैं बोली" घर पर ". 'ठीक है' वो बोली और चली गई.
रात में जब मैं टहलने छत पर पहुंची तो देखा, वह बंदा भी वहीं था. मैं सोचने लगी दोपहर से लेकर अब तक छत पर ही घूम रहा है? मैं हंसी और खुद से बोली, ऐसे तो हो गई उसकी पढ़ाई. थोड़ी देर टहल कर कर मैं नीचे आ गई.
उसके बाद 2 दिन तक छत पर जाना ही नहीं हुआ.
2 दिन बाद जब मैं छत पर पहुंची तो एक आवाज आई - "श् श् श्, hello". मैंने देखा पलट कर तो सुनील भैया की छत वाला लड़का था. वह बोला मेरा नाम आकाश है, आपका नाम? मैं जितनी सीधी दिखती थी उतनी थी नहीं. मैंने बोला "क्या करना है, मेरे नाम का?" तो सबपकाया और बोला "कुछ नहीं! ऐसे ही पूछ रहा हूं." मैंने तिरछी मुस्कान देकर कहा "चाची जी को बताऊं?" तो बेचारा झेंप गया और वहां से चला गया. मुझे बहुत मजा आया,उसको चिढ़ाने में .
शाम को जब नीचे उतरी और मोहल्ले में गई तो, फिर मिल गया बोला कुछ नहीं, बस घूर रहा था. मैं जोर से हंस दी तो, वो झेंप कर, पलट कर वापस घर को चला गया.
तभी चाची जी ने मुझे आवाज दी "मीता, इधर आओ. मैं बोली "क्या बात है चाचा जी?" तो वें बोली" बेटा! यह आकाश है, सुनील का मौसेरा भाई बताया था ना मैंने, इसको जरा बाजार दिखा लाना ना. अब मैं तो इसके साथ जा नहीं सकती, सुनील भी है नहीं और यह अकेले जाने को कतरा रहा है. इसको रास्ता भी नहीं मालूम है. तो क्या तुम इसे बाजार दिखा लाओगी? मैंने बोला" जी! दिखा लाऊंगी" और फिर मैं घर के अंदर गई. मैंने कहा "ओह! तो आपका नाम sky-sky है?" तो वह थोड़ा गुस्से से बोला "हां! है तो." मैं उसको बोली "चलिए जनाब, हम आज आपको अपने शहर की सैर करा लाते हैं." वह बोला "अचानक यूं ?" मैंने कहा "ओह! कोई गलतफहमी में मत रहना, वह तो चाची जी ने कहा है इसके लिए". "ओह! यह बात है. तभी मैं सोचूं , यह अक्कड़ु, इतनी सीधी कैसे हो गई?" मैंने एकदम गुस्से से पलटी और कहा "how dare you? तुमने मुझे अकडू कैसे कहा?" "कुछ नहीं! ऐसे ही ok sorry!". मैं बोली "ओ हो! आप सॉरी बोलना भी जानते हैं". तो वह बोला "बोलना पड़ा. अगर बाजार ले जाकर कहीं गली-गलीयारे में छोड़ आई तो?" मैं बोली तो "क्या तुम दूध पीते बच्चे हो, जो रास्ता खो जाओगे? नए हो तो क्या हुआ? एड्रेस तो पता है ना? अच्छा, खैर छोड़ो! चलो बाजार चलते हैं. और हम बाजार की ओर निकल गए. पूरे रास्ते हम बात करते रहे. वह उतना भी शर्मिला नहीं था, जितना कि दिखता था. पूरे रास्ते हमने ढेर सारी बातें की, एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जाना. एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ पूछा और इस तरह हमारी दोस्ती हो गई.
लौटकर जब हम घर जाने लगे तो मैंने उसे bye कहा तो उसने पूछा "रात को छत पर मिलोगी?" मैंने कहा "मैं अनजान लड़कों से छतों पर नहीं मिला करती". वह बोला "अनजान कैसे ? अब तो हम दोस्त हैं". मैं बोली "दोस्ती? मैं तो आपको सुनील भैया के रिश्तेदार होने के नाते घुमा लाई हूं. अच्छा चलो चलती हूं. Bye!". इतना बोल कर मैं अपने घर आ गई. बेचारा देखता रह गया और कुछ ना बोला. अगली दोपहर जब मैं छत पर पहुंची तो देखा, जनाब पहले से ही वहां इंतजार कर रहे हैं. और मुझे देखते ही जोर से बोल पड़े" मुझसे दोस्ती करोगी"? मैं बोली" जरा धीरे जनाब ! पूरा मोहल्ला सुन लेगा. आप क्या चाहते हो? मेरी पिटाई हो". वह बोला "तुम ऐसे लहजे में क्यों बात करती हो मुझसे? मेरी कोई बात तुम्हें बुरी लग रही है?". मैं बोली "नहीं ! यह तो मेरी आदत है, मैं ऐसे ही मस्ती करती हूं. अच्छा बताइए, क्या करना है, दोस्ती में?". तो वह बोला" आप ही बताइए, मैं तो बाहर से आया हूं. आपके शहर में क्या करते हैं दोस्ती में?"." हमारे यहां तो, बहुत तोहफे देने पड़ते हैं". तो बेचारा सकपकाया और बोला "अच्छा ठीक है! कोशिश करूंगा". मैं बोली" बुद्धू ! ऐसा कुछ नहीं है. फिर, उससे पूछा कि - छत कूदना आता है?". वह कुछ बोल पाता, इतनी देर में तो मैं खुद खुद कर सुनील भैया की छत पर जा पहुंची.
मैं वहां बैठी रही, कुछ देर हमने बहुत सारी बातें करी और मैं वापस आ गई.
इस तरह हम रोज, ढेरों बातें करते अक्सर बातों बातों में वह कोई ना कोई कविता जरूर कहता. तो उससे लगता था कि उसको कविताओं का बहुत शौक है, पर मुझे यह नहीं पता था कि वह यह कविताएं खुद लिखा करता है. मैं तो उपन्यास पढ़ा करती थी. इस तरह हम छत पर बैठकर घंटों बातें करते. वह अक्सर खजूर खाया करता था और उसकी गुठलियां, मेरे सर पर दे मारता. मैं नाराज हो जाती तो मुझे मनाता. इस तरह रूठना-मनाना, बातें करना. हां! करीब करीब हम एक दूसरे के बारे में सब कुछ जान चुके थे. वो रूठाता तो, मैं कभी नहीं मनाती, बल्कि उसको चढ़ाकर और परेशान करती और मजे लेती थी.
एक दिन वह बहुत कुछ कहने आया था और उसने शुरुआत ही की ये कहकर "मीता, आप बहुत खूबसूरत हो". मैंने तपाक से कह दिया कि "कोई नई बात बताओ, यह तो मुझे शहर का हर दूसरा लड़का कहता है". उसे अच्छा नहीं लगा और वह तुरंत पलट कर चला गया. अगले 2 दिन तक मैं उसका इंतजार करती रही और वह छत पर नहीं आया. इस बार मैं परेशान हो गई. 2 दिन बाद एक शाम,बहाने से, चाची जी के घर पहुंची ऊपर तक गई "चाची जी - चाची जी" आवाज लगाती रही तो लगा चाची जी नहीं है और आकाश सामने खड़ा है.
मैं बोली "ऐसा भी क्या रुठना आकाश?" वो बोला "मीता क्या तुम कभी संजीदा भी होती हो? या हर वक़्त ऐसे ही हंसी मजाक?" मैं असमंजस में पड़ गई और बोली "ऐसा क्यूँ कह रहे हो? हँसी मज़ाक तो जीवन का एक हिस्सा है और वो चलते रहना चाहिए."
उसने कहा कि "मैं संजीदा हूं. तुमको तो पता ही है कि मैंने competitive exams दी है, उसके results का इन्तज़ार कर रहा हूं. फिर interview की भी तैयारी करनी है. फिर मेरी नौकरी लग जाएगी."
मैंने खुशी जाहिर करते हुए कहा "हाँ! पता है. Congrats & best wishes".
उसने आव देखा ना ताव, मुझे पकडा और मेरे होंठों को चूम लिया. मेरे होश उड़ गये थे. ऐसा तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था.
मैंने उसे धक्का मारा और आगबबूला होते हुए बोली "तुम मुझे समझते क्या हो? मुझे कैसी लड़की समझ रखा है? आने दो चाची जी को, सब बताऊंगी". वो थोड़ा घबराया पर आत्मविश्वास से बोला "मीता, तुम मेरी बातों का गलत मतलब मत निकालो. मैं तुम्हें सचमुच बहुत प्यार करता हूं."
मीता बोली "ये क्या तरीका हुआ प्यार जताने का? ना कुछ बोला, ना कुछ पूछा और सीधे kiss. ये शहर नहीं है जनाब. अगर कल को तुम मुझे छोड़ कर चले जाओ, तब क्या मैं इसी guilt में जीती रहूं? मैंने कब कहा तुम्हें कि मैं तुमसे प्यार करती हूं? तुमने ऐसे कैसे सोच लिया?"
वो बोला "मीता, मैंने तुम्हारी आंखों में मेरे लिए प्यार देखा है. सच कहो, ये सच है ना?
मीता बोली "नहीं आकाश! ये सच नहीं है. तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है. मेरी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं है".
आकाश बोला "मेरे सर पर हाथ रखकर सच कहो मीता, क्या तुम मुझे मनाने नहीं आई थी? मुझे 2 दिन से देखे बिना, बात किए बिना बैचैन नहीं थी? मुझसे मिले बिना तुम्हारा मन नहीं लगता किसी भी काम में?"
मैं हाथ छुड़ाई और भाग कर अपने कमरे में आ गयी. सच ही तो कह रहा हैं आकाश, मेरे दिमाग में अब तक ये बात आई कैसे नहीं?
मैं सोचने लगी - "क्या सचमुच मुझे भी कहीं..? नहीं - नहीं, घर में पता चला तो हंगामा हो जाएगा..".
मीता, तुझे अपने आप को भावनाओ में बहने से रोकना ही होगा.
धीरे धीरे मैंने घर से निकालना कम कर दिया, छत पर जाना भी बंद कर दिया.
एक दिन माँ ने पूछा - "मीता, क्या बात है? आजकल छत पर नहीं जाती, ना मोहल्ले में निकलती है, ना ही वो नासपीटा रेडियो चलाती है. किसी ने कुछ कह दिया है क्या?"
मैं बोली - "नहीं ऐसा कुछ नहीं. परीक्षा नजदीक आ रही है. उसकी ही तैयारी में लगी हुई हूं."
माता - पिता को मुझ पर बहुत विश्वास था. वैसे तो मां मेरी जल्दी शादी कराना चाहती थी पर पिताजी चाहते थे कि मैं जरूर कुछ बनूँ.
इस बात को एक हफ्ता बीत गया और इसी एक हफ्ते में मेरा और आकाश का आमना सामना नहीं हुआ. मैं जरूर सोचती थी कि कहीं वह चला न गया हो.
एक दिन सामने वाली मिनी आई और आवाज लगाई "मीता दीदी-मीता दीदी".
मैं बोली "मिनी, यहां आ जाओ. मैं यहां मेरे कमरे में हूं." मैंने पूछा "आज यहां कैसे?"
तो बोली "कुछ नहीं दीदी, यह सुनील भैया की मम्मी ने दिया है. आपके लिए, सिर्फ आपको ही देने को कहा था." मैं बोली "चाची जी ने?" तो वह बोली "हां !" और एक लिफाफा पकड़ाई और भाग गई.
मुझे तो कुछ शुबा सा हुआ. मैं जल्दी से कमरे का दरवाजा बंद करी और लिफाफा खोली तो देखा, उसमें आकाश का खत था. मेरी जिंदगी का पहला 'प्रेम पत्र'. खत में आकाश ने माफी मांगी थी और साथ ही अपने प्रेम का इजहार भी किया था. उसने हर संभव कोशिश की थी यकीन दिलाने की कि वह मुझसे बेइंतहा मोहब्बत करता है. वह तो बस mains के exams के रिजल्ट आने की रस्ता देख रहा है. पास होने पर वह अपने घर वालों से हमारे रिश्ते की बात करेगा, इस बात का उसने यकीन दिलाया था.
जब मैंने रिश्ते की बात पढी, तभी अचानक मुझे ध्यान आया कि हमारा तो धर्म भी अलग-अलग है. बचपन से लेकर आज तक, मैंने कभी इस मोहल्ले में धर्म का जिक्र नहीं देखा था. पर अब होने वाला था क्योंकि यह प्यार का मामला था, जो आगे शादी में बदलने की सोच सोच रहा था. मुझे तो पूरा यकीन था कि मेरी मम्मी कभी नहीं मानेगी और मुझे तो यकीन इस बात का भी नहीं था कि आकाश के माता-पिता मान जाएंगे. क्योंकि अब भी हमारे देश में धर्म, शादी के आड़े आता ही है. आखिरी में उसमें लिखा था कि या तो छत पर मिलने आ जाओ या इस खत का जवाब भेज दो, जो भी जवाब तुम्हारा होगा वह मुझे मंजूर होगा. मैंने इस खत को एक नहीं, कई बार पढ़ा, बार-बार पढ़ा. खत को बार-बार पढ़ने के बाद मुझे यकीन हो गया कि कहीं ना कहीं मुझे भी आकाश से मोहब्बत हो ही गई है. मैंने जल्दी से खत को अपनी अलमारी में, कपड़ों के बीच छुपाया और छत पर आ गई तो देखा कि आकाश मेरा इंतजार कर रहा है. वह मेरी आंखों में बहुत कुछ पढ़ना चाहता था और मैं बहुत कुछ छुपाना. मैंने बस उससे इतना ही कहा कि "ठीक है! आज के बाद हम बात करना बंद नहीं करेंगे".
फिर हमने कुछ देर इधर उधर की बातें की और मैं पढ़ाई का बहाना लेकर किताबें लेकर बैठ गई. थोड़ी देर में एक कागज की गेंद आकर मेरे सर पर लगी. खोल कर देखती हूं तो उसमें कुछ शायरी लिखी हुई थी और पलट के देखती हूं तो आकाश मुस्कुरा रहा था.
मैंने पूछा "क्या है यह सब?"
तो बोला कि "मैं तुम्हें कुछ भी करने से कहां रोक रहा हूं. तो तुम भी, मुझे कुछ जो करना है करने दो".
शेर कुछ यूं था -

"खिले खिले फूलों में तुम्हें,
उपवन की तरह देखा है.
बरसी बदली में तुम्हें,
सावन की तरह देखा है.
सजे है जो ख्वाब मेरी
जिंदगी की राहों में,
हर ख्वाब में तुम्हें
दुल्हन की तरह देखा है."

शेर पढ़कर, मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी. मुझे सूझ ही नहीं रहा था कि इसका क्या जवाब देना है क्योंकि शेर लिखना या शेरो शायरी मुझे नहीं आती थी. तभी मुझे दीपाली की याद आयी, वो शेर - ओ - शायरी की शौकीन थी.
जब कॉलेज में मिली तो मैंने उससे पूछा कि "दीपाली, मुझे तेरी शेरो शायरी की कॉपी देगी?" तो आश्चर्य में मुझे देखने लगी और बोली कि "मीता! तुझे कबसे शेरो शायरी की जरूरत पड़ने लग गई? कोई आ गया है क्या जिंदगी में?"
मैं बोली "फालतू बातें मत कर, देना है तो दे".
तो उसने झट से अपनी कॉपी निकाल कर मुझे दे दी. कुछ एक शेर जो मुझे प्यार भरे लग रहे थे, वह मैंने अपनी कॉपी में उतार ली.
वो शेर कुछ यूं था -
"यूं ना देखा करो,
इतनी गहरी निगाहों से तुम मुझको..!
बहुत मुश्किल है,
डूबकर इन आँखों से ढूंढ पाना खुदको !! "

शाम को घर आकर, मैंने एक बड़े अच्छे तरीके से सजाकर एक कागज में उन शेरों को लिखा और बहाने से चाची जी के घर गई और चुपचाप आकाश के हाथ में धर दिए. उसने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश तो कई, पर मैं भाग आई. शाम को जब वो छत पर मिला तो, बहुत खुश था. शेर के मायने वही थे, जो मैं उसे कहना चाहती थी और वह समझ चुका था कि मुझे भी उससे मोहब्बत है.
इस तरह एक छत से दूसरे छत, हमारे कूदने फांदने की जगह, पन्ने कुंदने-फांदने लगे. हमारा एक दूसरे को चिट्ठियां लिखने का सिलसिला शुरू हो चुका था.
थोड़े दिन बाद मेरे कॉलेज की परीक्षाएं आने वाली थी और उसका भी गांव जाने का टाइम आ गया था. पहली बार मैं खुद जाकर उसके गले लग कर बहुत रोई थी. उसने मुझे वादा किया था कि वहां से बराबर पत्र लिखा करेगा. मैंने उसे दीपाली का पता दिया था. मेरे घर में तो जिसके हाथ में पत्र आ जाता, वही खोल कर पढ़ लेता. पर दीपावली के घर में ऐसा नहीं था. मैं नहीं चाहती थी कि हमारे घर में अभी से पता चले और हंगामा शुरू हो जाए. कल सुबह वो जाने वाला था. यूं लगा जैसे, यह आज की रात, हमारी आखिरी रात है. क्या पता फिर हम मिल पाया ना मिल पाए ?
पहली बार रात में, छत से कूदकर मैं उससे मिलने गई. दिल बहुत घबरा रहा था. कल जल्दी सुबह वह चला जाएगा, इसलिए मुझे रात ही उससे मिलना जरूरी लगा. मुझे देखते ही उसने मुझे कस के गले लगाया और चुंबनों की बौछार कर दी. फिर कुछ देर बैठ कर हमने बातें की, कुछ कसमें खाये, कुछ वादे किए. उसने प्यार निभाने की कसम खाई, मैंने उससे इंतजार करने का वादा किया. जब मैं जाने लगी तो, उसने मुझे बहुत ही गहरा चुंबन दिया और हम एक दूसरे में जैसे खो ही गए. मुझे लगा कहीं बात इससे आगे ना बढ़ जाए. आकाश को भी समझ आ गया कि हम बहकने लगे हैं. मैं जल्दी से खड़ी हुई तो, आकाश ने कहा "मीता,अब तुम घर जाओ. कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए. हम दोनों बेहक रहे हैं, मैं नहीं चाहता कि अभी ऐसा कुछ हो".
उसकी इस अदा पर मुझे गर्व भी हुआ और, और भी प्यार आने लगा. मैंने उसे कसकर गले लगाया और कहा आकाश मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. इतना कहकर मैं अपने कमरे में वापस आ गई. मैं सारी रात रोती रही और सुबह देखा खिड़की से कि आकाश जा रहा था. जाते-जाते आकाश की नजर भी मेरी खिड़की पर ही थी. आकाश ने मुझसे वादा लिया था कि मैं रोने में वक्त जाया नहीं करूंगी और अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दूंगी. साथ ही वह अपनी एक तस्वीर दे गया था. इसे मैंने छुपा कर रखा था. जब भी उदास होती, उसकी तस्वीर निकाल कर उससे बात कर लिया करती थी.
मैंने अपना पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर लगा दिया. एक हफ्ता गुजर चुका था. तभी दीपाली मेरे घर आई. दीपाली को देखते ही मेरे चेहरे पर खुशी लौट आई. तभी मां बोली "अरे दीपाली बेटा! बहुत दिन बाद आई?"
दीपाली बोली "कुछ नहीं आंटी! बस मिता से थोड़ा काम था, इसलिए चली आई".
मां बोली "परीक्षा की तैयारी कैसी चल रही है? तुम सब भी उसी में लगी हुई हो. बैठो ! मैं तुम्हारे लिए नाश्ता भिजवाती हूं".
यूं तो कोई भी सहेली आए तो, हम नीचे ही बैठा करते थे पर उस दिन मैं मां को बोली कि "मुझे इससे पढ़ाई के बारे में कुछ बात करनी है, तो हम कमरे में जा रहे हैं. आप नाश्ता वही भिजवा देना".
ऐसा बोलकर मैं दीपाली को अपने कमरे में ले आई. कमरे में आते ही दीपाली ने तेवर दिखाए "क्यों, क्या बात है? बहुत उतावली हो रही है?"
मैं बोली "हां यार! बहुत याद आ रही है. लगता है मैं आकाश के बिना जी ना पाऊंगी".
दीपाली बोली "मीता, तुझे पक्का यकीन है ना कि वह अपना वादा निभाएगा".
मैं बोली "हां दीपाली, मुझे पक्का यकीन है". तो दीपाली ने मुझे आकाश का खत दिया.
न जाने क्यों आकाश ने खत में उस रात का जिक्र कुछ यूं किया था कि कुछ ना लिखते हुए भी बहुत कुछ लिख दिया था. जब दीपाली ने खत पढा उसके चेहरे के भाव बदल गए. उसके चेहरे पर चिंता मुझे साफ नजर आ रही थी.
मैंने दीपाली को पूछा "क्या हुआ?"
दीपाली बोली "मीता, तू सब समझ रही है, फिर भी मुझे पूछ रही है कि क्या हुआ?"
मैंने दीपाली से पूछा "दीपाली, तुझे मुझ पर विश्वास नहीं है?"
दीपाली बोली "विश्वास है! पर मुझे प्यार पर विश्वास नहीं है, मुझे जवानी पर विश्वास नहीं है".
मैं बोली दीपाली "तू तो मुझे बचपन से जानती है फिर भी तुम मेरे लिए ऐसा कहोगी?"
दीपाली बोली "जब होश खोते हैं ना तो, सब कुछ खो देते हैं. कुछ भी समझ में नहीं आता, सारी समझ चली जाती है उस वक्त".
तब मैंने दीपाली को बताया कि कैसे उस रात आकाश नहीं हमें आगे बढने से रोका था. मुझे वापस घर भेज दिया था. तब जाकर कहीं दीपाली के चेहरे से चिंता हटी और मुस्कुराहट आई. उसने कहा "मीता, अब मुझे लगता है कि तेरा निर्णय सही है. तूने अपने लिए सही व्यक्ति का चयन किया है. मैं बहुत खुश हूं तेरे लिए, पर क्या तू अंकल आंटी को मना पाएगी?".
मैं बोली "दीपाली, मैं अभी यह सब कुछ भी सोचना नहीं चाहती हूं. मेरी परीक्षाएं होने वाली हैं. उसकी परीक्षाओं का रिजल्ट आना बाकी है. उसका इंटरव्यू होना बाकी है. उसका नौकरी लगनी बाकी है. यह सब बाद में देखा जाएगा. मैं उसके लिए कोई भी कठिन परीक्षा देने के लिए तैयार हूं".
दीपाली खुश हो गई और मुझे चढ़ाते हुए बोली "अगले खत में जीजाजी को हमारी तरफ से भी हेलो हाय कहना".
मैं बोली "अच्छा बच्चू! तुम जीजाजी कहोगी?".
तो वो बोली "हां! कहना ही होगा, सहेली के पति जो ठहरे".
मैं बोली "पति की बच्ची, मुझे चिढ़ा रही है".
वह बोली "मीता, अभी तो हमारे चढ़ाने के दिन आए हैं. देख लेना, हम तुझे कितना परेशान करने वाले है".
और हम दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ी. तभी मम्मी ने आवाज दी "आकर नाश्ता ले जाओ".
तो दीपाली बोली "हां जाजा! लेकर आ, अब तो तुझे मेरी सेवा करनी पड़ेगी. तभी तुझे मेवा मिलेगा".
मैं बोली "अच्छा बच्चू! अभी से ब्लैक मेलिंग भी चालू हो गई".
दीपाली बोली "देख लेना, अगले पत्र के एवज में मैं तुझसे क्या वसूलती हूं".
"बहुत पिटेगी तू" ऐसा बोल कर मैं नाश्ता लाने चली गई.
हर साल की तरह इस साल भी, मैं कॉलेज में अव्वल आई थी और उधर आकाश भी मेंस क्लियर कर चुका था और इंटरव्यू की तैयारी में लग गया था. मैंने उसे इंटरव्यू के लिए शुभकामनाओं का एक कार्ड भेजा था. मंदिर में जाकर उसके लिए मन्नत भी मांगी थी. देखते ही देखते वह इंटरव्यू में भी पास हो गया. उसकी सरकारी नौकरी लग गई थी. बड़ा औहदा मिला था, अफसर बन गए थे जनाब. जोइनिंग लेटर मिलते ही वह सीधे विराटनगर आया.
मैं छत पर बैठी उसी का पत्र पढ़ रही थी कि अचानक से किसी ने पीछे से मेरी आंखें बंद कर दी. मैंने घबरा कर, सबसे पहले पत्र मोड कर, किताबों के बीच में रखा और पूछा कौन है ? तभी एक मिठाई का टुकड़ा सीधे मेरे मुंह में आया. हाथ हटते ही, जैसे ही मैं पलटी तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था.
"आकाश! तुम यहां?" मैं सीधे गले लग गई. मेरी आंखों से आंसू बहने लगे.
वह बोला "अजीब पागल लड़की है. नहीं रहता हूं तो रोती है, आ गया हूं तो रो रही है. ऐसा नहीं चलेगा जीवन भर".
"जीवन भर"? मैं बोली .
वो बोला "हाँ ! मेरी नौकरी लग गई है. अफसर बन गया हूं".
इतना सुनते ही मैंने उसे झट चूम लिया.
वह बोला "ओ, हो.. हो.. हो ! यह क्या आश्चर्य हुआ".
मैं बोली "इनाम है तुम्हारा! अफसर बनने का". तो वो बोला "यह इनाम तो मुझे जिंदगी भर चाहिए"
मैं बोली 'हट'!
तो बोला "हट क्या? मैं अंकल आंटी से बात करने आया हूं".
मैं बोली "सच्ची"!
तो वह बोला "हां ! मां-बाबूजी को मना कर आया हूं. अब अंकल आंटी को मनाना है और तुम्हें दुल्हन बनाकर ले जाना है".
मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
वह बोला "मीता, अभी सुनील भैया भी आ रहे हैं. मैं, चाची जी और सुनील भैया शाम को तुम्हारे घर आएंगे".
उसने मुझे पहले से बता दिया.
वह बोला "मीता, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता".
मैं बोली "आकाश, मैंने भी यह दिन बहुत मुश्किल से गुजारे हैं. मैं भी तुम्हारे बिना नहीं जी सकती".
फिर उसने मुझे कॉलेज में अव्वल आने की बधाई दी और बोला "यह हुई ना कोई बात. ऐसी होनी चाहिए मेरी मीता. मीता, तुमने बहुत अच्छा किया जो संजीदगी से पढ़ाई की. मेरी यादों में तुम और सवर गई".
मैं बोली "हां, अकाश ! हम एक दूसरे की कमजोरी नहीं, एक दूसरे का संबल है. हमें मिलकर एक दूसरे को बहुत आगे ले जाना है". हम दोनों एक दूसरे को पाकर बहुत गर्वित हो रहे थे.
"चलो, शाम को मिलते हैं". बोलते हुए, आंधी की तरह आया आकाश, ठंडे झोंके की तरह चला गया.
शाम को मेरा साड़ी पहनने का बहुत मन था पर मम्मी के डर से मैं पहनी नहीं. पूछ लेती साड़ी क्यों पहनी है? तो क्या जवाब देती फिर? आकाश की पसंद का गुलाबी रंग का एक अच्छा सा सूट पहन लिया. मुझे तैयार देखकर मम्मी ने पूछा "कहीं जा रही हो क्या?"
तो मैंने बोला "हां, अगर दीपाली आ गई तो, हम सब सहेलियों के मिलने का प्लान है".
तो मम्मी बोली कि "ठीक है, पर शाम को जल्दी घर आ जाना".
मैं बोली "मां, पहले जाने तो दो".
और हम दोनों मुस्कुराए.
घड़ी की सुइयां जैसे मुझे चुभ रही थी. एक-एक मिनट काटे नहीं कटता था. बार-बार आंखें दरवाजे पर जाती थी. अब लगता था कि वह लोग आएंगे, तब लगता था कि वह लोग आएंगे और बस मैं इंतजार की घड़ियां बेचैनी से काट रही थी. मैंने सारी घड़ियां जांच ली कि कहीं घड़ियां बंद तो नहीं पड़ गई है. मैं कमरे से निकलने में घबरा रही थी, कहीं मेरे चेहरे की खुशी और होठों की मुस्कुराहट मां को शक का मौका ना दे दे.
तभी सुनील भैया की आवाज आई. तो मेरी जान में जान आई. सुनील भैया ने आते ही मां को प्रणाम किया तो माँआश्चर्य में बोली "अरे सुनील, कब आया बेटा?".
भैया बोले "चाची जी, आज ही आया हूं और आकाश भी आया है तो उसे भी साथ ले आया".
मां बोली "बैठो बेटा, बहुत अच्छा किया जो चले आए".
भैया ने पूछा "चाचा जी कहां पर हैं?"
मां बोली "बस बेटा, आते ही होंगे".
तभी माँ ने देखा चाची जी भी आई है साथ. तो मां को थोड़ा अजीब लगा, पर वह कुछ नहीं बोली.
चाची जी ने पूछा "मीता कहां है?"
तो मां बोली "अपने कमरे में ही है".
चाची जी के चेहरे पर खुशी तो नहीं थी, सुनील भैया के चेहरे पर खुशी दिख रही थी और आकाश, उसका तो मुस्कुराना जैसे बंद ही नहीं हो रहा था.
तभी मां ने मुझे आवाज दिया "मीता, नीचे आओ देखो, सुनील भैया आए हैं"
मैं झट से नीचे आई. चाची जी ने मुझे बहुत ही अजीब निगाहों से देखा पर सुनील भैया और आकाश ने मुझे अव्वल आने की बधाई दी. तभी पापा भी आ गए और मेरे चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी. सभी बैठक में बैठे हुए थे. थोड़ी देर बाद में चाय लेकर गई. मैं आकाश की तरफ शर्म से देख भी नहीं पा रही थी. मुझे पता था क्या बातें होने वाली है इसलिए मैं चाय रख कर चली गई और सुनील भैया पापा से बात करने लगे.
जितनी खुशी आकाश के आने की हुई थी अब दिल उतना ही घबरा रहा था. पता नहीं क्या भूचाल आने वाला था.
तभी चाची जी ने मुझे अलग ले जाकर पूछा कि "मीता, कम से कम तुम्हें तो हमें बताना चाहिए था. मेरी बहन मुझसे कितना नाराज हो रही थी".
मैं कुछ नहीं बोली बस आँख नीचे कर के उनकी बात सुनती रही. चाची की भी बैठक में चली गई थोड़ी देर में पापा ने मम्मी को आवाज दिए, "मीता की मां, आप भी जरा बैठक में आईए". रसोई का काम मुझे सम्भला कर मां बैठक में चली गई. मेरी दिल की धड़कन और बढ़ती चली जा रही थी. पर मुझे यकीन था सुनील भैया सब संभाल लेंगे और पापा को मना भी लेंगे.
थोड़ी देर बाद पापा ने मुझे आवाज लगाए "मीता, बैठक में आओ".
मुझे तो लगा जैसे मैं चक्कर खाकर गिरने वाली हूं. जैसे तैसे संभलकर, धीरे-धीरे चलकर मैं बैठक में गई. मुझ में नजरें मिलाकर बात करने की हिम्मत नहीं थी. फिर भी मैं बोली "जी पापा".
पापा बोले "यह सब हम क्या सुन रहे हैं?"
मैं कुछ नहीं बोली.
पापा बोले "मीता, हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं".
मैं बोली "जी पापा, यह सच है".
मम्मी तो एकदम गुस्सा हो गई और बोली "मीता, तुमने एक बार भी हमारे बारे में नहीं सोचा? समाज में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी?"
मेरे मुंह से कुछ नहीं निकल रहा था और मैं नजरें भी ऊपर नहीं कर पा रही थी, मानो मैंने कोई अपराध कर लिया है.
तभी सुनील भैया बोले "चाची जी, ऐसा मत कहिए. आप देख ही रहे हो कि आकाश कितना अच्छा लड़का है. मेरा भाई है. उसकी और उसके परिवार की मैं गारंटी लेता हूं. आप देख ही रहे हो कि वह अफसर बनते ही सीधे आपके पास आया है, आपकी बेटी का हाथ मांगने. इन दोनों ने प्यार किया है. कुछ गलत काम तो नहीं किया".
पापा को लगा कि सुनील भैया सही कह रहे हैं. पर सुनील भैया को बोले कि "बेटा, धर्म जाति भी कुछ होती है. हमको भी समाज में उठना बैठना पड़ता है".
सुनील भैया बोले कि "चाचा जी, लड़का हिंदू है. बस यही काफी नहीं है क्या? परिवार इतना अच्छा है, लड़का इतना अच्छा है. हमारी बेटी खुश रहेगी".
मम्मी कुछ कहने ही जा रही थी कि पापा ने उन्हें रोक दिया और बोले कि "हमारी मीता की खुशी से ज्यादा हमें और कुछ नहीं चाहिए. देखा भाला परिवार है. हमारी बेटी खुश रहेगी".
मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. यह मैं क्या सुन रही हूं? मैंने तुरंत जाकर मम्मी-पापा, चाची जी और सुनील भैया के पैर छू लिये.
पापा बोले "सुनील, आकाश के मम्मी पापा को भी खबर कर दो. उन्हें आने के लिए कह दो. शादी की तारीख पक्की करनी है".
मेरी और आकाश की नजरें पल भर के लिए मिली और दोनों की आंखों में खुशियां ही खुशियां झलक रही थी.
ये थी हमारी प्रेम कहानी जो छत से जुड़ी हुई थी. छत पर मिले और छत से ही एक दूसरे के हो गए. छत से ही खतों का आदान-प्रदान हुआ. छत हमारे मिलने का कारण बनी और हम हमेशा के लिए एक दूसरे के हो गए.
©️ ®️ Vaisshali