Khidkiyo se jhankhti aankhe books and stories free download online pdf in Hindi

खिड़कियों से झाँकती आँखें- सुधा ओम ढींगरा

आमतौर पर जब हम किसी फ़िल्म को देखते हैं तो पाते हैं कि उसमें कुछ सीन तो हर तरह से बढ़िया लिखे एवं शूट किए गए हैं लेकिन कुछ माल औसत या फिर उससे भी नीचे के दर्ज़े का निकल आया है। ऐसे बहुत कम अपवाद होते हैं कि पूरी फ़िल्म का हर सीन...हर ट्रीटमेंट...हर शॉट...हर एंगल आपको बढ़िया ही लगे।

कमोबेश ऐसी ही स्थिति किसी किताब को पढ़ते वक्त भी हमारे सामने आती है जब हमें लगता है कि इसमें फलानी फलानी कहानी तो बहुत बढ़िया निकली लेकिन एक दो कहानियाँ... ट्रीटमेंट या फिर कथ्य इत्यादि के हिसाब से औसत दर्ज़े की भी निकल ही आयी। लेकिन खैर... अपवाद तो हर क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण पैठ बना के रखते हैं।

तो ऐसे ही एक अपवाद से मेरा सामना हुआ जब मैंने प्रसिद्ध कथाकार सुधा ओम ढींगरा जी का कहानी संग्रह "खिड़कियों से झाँकती आँखें" पढ़ने के लिए उठाया। कमाल का कहानी संग्रह है कि हर कहानी पर मुँह से बस यही लफ़्ज़ निकले कि..."उफ्फ...क्या ज़बरदस्त कहानी है।"

सुधा ओम ढींगरा जी की कहानियॉं अपनी शुरुआत से ही इस तरह पकड़ बना के चलती हैं कि पढ़ते वक्त मन चाहने लगता है कि...ये कहानी कभी खत्म ही ना हो। ग़ज़ब की किस्सागोई शैली में उनका लिखा पाठकों के समक्ष इस तरह से आता है मानों वह खुद किसी निर्मल धारा पर सवार हो कर उनके साथ ही शब्दों की कश्ती में बैठ वैतरणी रूपी कहानी को पार कर रहा हो।

चूंकि वो सुदूर अमेरिका में रहती हैं तो स्वाभाविक है कि उनकी कहानियों में वहाँ का असर...वहाँ का माहौल...वहाँ के किरदार अवश्य दिखाई देंगे लेकिन फिर उनकी कहानियों में भारतीयता की...यहाँ के दर्शन...यहाँ की संस्कृति की अमिट छाप दिखाई देती है। मेरे हिसाब से इस संग्रह में संकलित उनकी सभी कहानियाँ एक से बढ़ कर एक हैं। उनकी कहानियों के ज़रिए हमें पता चलता है कि देस या फिर परदेस...हर जगह एक जैसे ही विचारों...स्वभावों वाले लोग रहते हैं। हाँ...बेशक बाहर रहने वालों के रहन सहन में पाश्चात्य की झलक अवश्य दिखाई देती है लेकिन भीतर से हम सब लगभग एक जैसे ही होते हैं।

उनकी किसी कहानी में अकेलेपन से झूझ रहे वृद्धों की मुश्किलों को उनके नज़दीक रहने आए एक युवा डॉक्टर के बीच पैदा हो रहे लगाव के ज़रिए दिखाया है। तो कुछ कहानियॉं...इस विचार का पूरी शिद्दत के साथ समर्थन करती नज़र आती हैं कि....

"ज़रूरी नहीं कि एक ही कोख से जन्म लेने वाले सभी बच्चे एक समान गुणी भी हों। परिवारिक रिश्तों के बीच आपस में जब लालच व धोखा अपने पैर ज़माने लगता है। तो फिर रिश्तों को टूटने में देर नहीं लगती।"

इसी मुख्य बिंदु को आधार बना कर विभिन्न किरदारों एवं परिवेशों की कहानियाँ भी इस संग्रह में नज़र आती हैं।

इस संग्रह में सहज हास्य उत्पन्न करने वाली कहानी नज़र आती तो रहस्य...रोमांच भी एक कहानी में ठसके के साथ अपनी अहमियत दर्ज करवाने से नहीं चूकता। किसी कहानी में भावुकता अपने चरम पर दिखाई देती है तो एक कहानी थोड़ी धीमी शुरुआत के बाद आगे बढ़ते हुए आपके रौंगटे खड़े करवा कर ही दम लेती है।

बहुत ही उम्दा क्वालिटी के इस 132 पृष्ठीय संग्रणीय कहानी संग्रह के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है शिवना प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है मात्र ₹150/- जो कि कंटैंट एवं क्वालिटी को देखते हुए बहुत ही कम है। कम कीमत पर इस स्तरीय किताब को लाने के लिए लेखिका तथा प्रकाशक का बहुत बहुत आभार। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।