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कोहिनूर

फूलों के खिलने व मुस्कुराने की प्रक्रिया दे जाती है वातावरण को एक भीनी सुगंध l गीतों के प्यारे बोल उसकी मधुर स्वर लहरी कानों को एक गुंजन दे जाती l रात्रि का सौन्दर्य शून्य में विलीन हो जाता है और प्रभात के साथ ओस के अनमोल मोती हरी-हरी झिलमिलाते हैं l आज वही सुगंध, वही गुंजन, वही मुक्ताकण मधु के जीवन को झंक्रित कर रहे हैं l
शाम का समय था l मधु के कॉलेज की अभी-अभी छुट्टी हुई थी और वह घर जल्दी पहुँच जाना चाहती थी l उसके उतावलेपन का कारण ह्रदय में बसा वो उल्लास था जिसने उसे साधारण से विशेष बना दिया था l कॉलेज के असेम्बली हॉल में प्रधानाचार्य ने उसे सबके सामने शाबाशी जो दी थी l
सुबह की ही तो बात है, जब वह तैयार हो कर कॉलेज जा रही थी l उसने एक घायल व्यक्ति को कराहते हुए देखा जिसके कपड़े कीचड़ में सने, पाँव खून से लतपत, चेहरे पर पीड़ा और दर्द का अथाह सागर था l मधु खुद को रोक नहीं पायी और साइकिल किनारे खड़ी कर उसकी सहायता को आगे बढ़ी l उसकी सहेलियों को उसकी ये उदारता रास नही आई l सभी ने उसे रोका- “मधु ये क्या कर रही हो ? पता नही ये कौन है ? देखो तो इसे देख कर तो घृणा आ रही है l क्या हर ऐरे-गैरे का जिम्मा तुमने उठा रखा है, जल्दी चलो मधु देर हो रही है l”
उसने किसी की न सुनी l सबकी बातों को अनसुना कर के आगे बढ़ी l यह विचार करते हुए कि “पता नहीं कैसे लोग हैं जिनके मन में तनिक भी दया नहीं है, यदि इनका कोई सगा-सम्बन्धी इस अवस्था में होता, तो क्या तब भी, ये ऐसा ही करती ? हो सकता है मैं या मेरा कोई अपना इस स्तिथि में हो तो क्या अपेक्षा करूंगी दूसरों से ?” जल्दी-जल्दी अपने रुमाल को निकल कर उस व्यक्ति के पावं में पट्टी बाँधी l अपनी पानी की बोतल से पानी उसके मुंह पर डाला और फिर किसी रिक्शे या टेम्पो का इंतजार करने लगी पर देर होती देख चिंता होने लगी अस्पताल कैसे पहुंचाएगी ? तभी दूर से प्रधानाचार्या की कार आती हुई दिखी l उसके मन में आशा की किरण जागी, उनकी कार रुकवा कर उसने उन्हें स्तिथि से अवगत कराया l प्रधानाचार्या ने अविलम्ब उस व्यक्ति को कार में लिटाया और कार अस्पताल की दिशा में दौड़ गयी l समय पर चिकित्सा हो जाने के कारण उस व्यक्ति की जान बच गयी l मधु ने शाम को अस्पताल जाकर उस व्यक्ति का हाल-चाल पूछा l वह व्यक्ति हृदय के अंतस्तल से मधु को दुआएं देता जाता और उसके भावी जीवन में उसकी इस उदारता को बनाए रखने की उत्तम सीख भी देता जाता l
जब वह घर पहुंची तो माँ को दरवाजे पर ही खड़े देखा l वह माँ के गले से लिपट गयी और उनको आज की घटना सुनाने लगी, परन्तु माँ ने उसे डांटते हुए कहा- ‘पता नहीं कौन था ? इस तरह राह चलते तुम्हे रुकना नहीं चाहिए था l आज का ज़माना ठीक नहीं, नेकी करने जाओगी और तुम्हे बदी मिलेगी l (माँ का स्वर कठोर हो गया) आगे से ध्यान रखना l’
माँ की बात सुनकर मधु को बहुत दुःख हुआ था l आज माँ ने शाबाशी देने की बजाये ये क्या सीख दी उसे l माँ ने आज बचपन से सीखे उस पाठ को, जिसमे परमार्थ को सबसे बड़ा धर्म बताया गया, झुठला दिया l
इस घटना को अभी चार दिन भी नहीं हुए थे कि एक दिन दरवाजे पर कॉल बेल बजी l मधु ने उठ कर जब दरवाजा खोला तो दरवाजे पर खड़े व्यक्ति को देख कर आश्चर्यचकित हो गयी l यह व्यक्ति वही था जिसकी उसने सहायता की थी l दोनों आश्चर्य में डूबे थे कि तभी माँ ने पूछा- कौन है ? अरे भाई साहब आप ! “माँ आप जानती हैं इन्हें, मधु ने पूछा l हाँ ! क्यों नहीं, ये मेरी सहेली के पति हैं, तेरे मौसा जी हैं मधु l”
बहुत बहादुर बच्ची है तुम्हारी, बहन ! यदि ये मेरी मदद न करती तो मैं तुम्हारे सामने बैसाखी के सहारे खड़ा होता l ईश्वर इसको जीवन की सारी खुशियाँ दे और इसके मन में परोपकार का भाव सदा जीवित रहे l आज ऐसी संस्कारी संताने नसीब वालों को मिलती l
माँ ये वही है जिनकी मैंने सहायता की थी- मधु ने कहा l सारा वृतांत सुनकर माँ की आँखों से आंसू गिरने लगे l मैं भी कितनी बेवकूफ हूँ, बेटी ने इतना सराहनीय कार्य किया पर उसे शाबाशी देने की बजाये मैंने उसे डांट दिया l मधु मुझे माफ़ कर देना बेटी l आज मुझे समझने में समय लगा, आज तूने मेरा गौरव बढ़ा दिया l मधु ने शरारत भरे अंदाज में पूछा- माँ अगर उस दिन मौसा जी की जगह कोई और होता तो, माँ ने उसके गाल पर एक प्यारी चपत लगायी और उसे गले लगा लिया l
आज कॉलेज कई दिन बाद खुला l कॉलेज पहुँचने पर उसने देखा उसकी सारी सहेलियां मुंह फुलाकर बैठी हैं जिन्होंने उसकी सहायता नहीं की थी l मधु ने आश्चर्य से पूछा- तुम सब मुझसे नाराज हो ? तब उनमे से एक बोली तुम्हारी सहायता न करने पर मैडम ने हमें बहुत डांटा है l मधु ने मुस्कुराते हुए कहा अगर वह तुम्हे न समझाती तो तुम सभी को अपनी गलती का एहसास कैसे होता ? सोचो अगर उस व्यक्ति की जगह तुम्हारा कोई अपना होता तो क्या तब भी तुम ऐसा करती ? अपनी गलती को सुधारना सबसे अच्छा कार्य है अतः शर्मिंदा होने की बजाये अपनी गलती को सुधारो l जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम सब एक दूसरे की सहायता करें न कि घृणा, एक दूसरे का दुःख दर्द बांटे l उन सब की आँखें तो खुल गयीं और प्रधानाचार्या पीछे खड़ी इस वार्तालाप को सुन रही थीं l आज अपने विद्यालय में ऐसी कोहिनूर को पा कर गौरवान्वित महसूस कर रही थी l
कॉलेज में आज बड़ी धूम-धाम थी, फेयरवेल की तैयारी थी l कोलाहल भरे उस माहौल में लोग इस परमार्थ को भूल चुके थे l कार्यक्रम शुरू हुआ, नित्य संगीत, उपाधियाँ, हास्य व्यंग को समेटते हुए विराम की ओर बढ़ चला l अब बारी थी मुख्य अतिथि के भाषण की l मुख्य अतिथि शहर के माने हुए शिक्षा शास्त्री अरविन्द स्वामी और उनके साथ में थे उनके सुपुत्र, जो कि एक उच्च कोटि के कवि व लेखक थे l
पुरूस्कार वितरण में सभी लड़कियों के अभिभावक आमंत्रित थे l सभी को प्रतीक्षा थी पुरूस्कार वितरण की l सभी दिल थाम के बैठे थे कि कॉलेज की बेस्ट स्टूडेंट का खिताब किसे मिलेगा l तभी प्रधानाचार्या खड़ी हुईं और बोलीं-“आज मुझे अति प्रसन्नता हो रही है यह कहते हुए कि इस विद्यालय की उत्तम छात्रा का खिताब जिस छात्रा को दिया जा रहा है वह सर्व गुण संपन्न, प्रतिभावान एवं दयालु हृदय लड़की है उसका नाम है (इतना कहकर उन्होंने मुस्कुराकर मधु की ओर देखा और बोलीं) मधु l” जैसे ही नाम बोला गया मधु व उसके अभिभावकों के चेहरे खिल उठे और पूरा हॉल तालियों ली गड़गड़ाहट से तब तक गूंजता रहा जब तक मधु मंच तक नहीं पहुँच गयी l
अरविन्द जी ने मधु के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर उसे प्रशस्ति पत्र के साथ मुकुट पहनाया l एक बार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूँज उठा l अरविन्द जी ने मधु की सहृदयता व बहादुरी का किस्सा सुना था l मंच से जाते हुए उन्होंने कुछ शब्दों में मधु को आशीर्वाद देते हुए कहा-“आज मुझे अति हर्ष है की समाज के उत्थान पथ पर ऐसे पथिक हैं जो समाज को एक उज्जवल भविष्य व उचित दिशा देने में सहायता करेंगे l कौन नहीं चाहेगा कि ऐसी कोहिनूर उसके कुल का गौरव बढाए l सभी चाहते हैं कि ऐसी सहृदय कन्या उसकी पुत्री हो, पत्नी हो, बहन हो l आज समाज में हर घर में ऐसी एक लक्ष्मी की आवश्यकता है जबकि दया, ममता, प्यार पूरी तरह से समाप्त होती जा रही है l