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आधा आदमी - 4

आधा आदमी

अध्‍याय-4

सिकंदर महान, ब्रिटिश गायक जार्ज माइकल, रॉक संगीतकार टाम राबिंसन, फैशन डिजाइनर जियानी बेरसास, अमेरिकी कवि वाल्टव्हिट मैन और जाने कितनी जानी मानी हस्तियों के समलैंगिक संबंध रहे.‘‘

वरूण का सेलफोन बजते ही उसने थोडी देर में पहुँचने का वादा किया। एक एक करके उन सबने ज्ञानदीप से इज़ाज़त ली।

उन सबके जाते ही ज्ञानदीप के ज़हन में कई सवाल मचलने लगे, ‘क्यों न समलैंगिकता पर ही कुछ लिखूँ? तभी उसे याद आया कि इस मैटर पर 1924 में बेचन शर्मा ने ‘चॉकलेट‘ कहानी लिखी थी। और इस्मत चुग़ताई की कहानी ‘लिहाफ‘ भी थी। उसने इस सबजेक्ट पर लिखने के लिए यह कहकर खारिज कर दिया कि वह कोई नए सब्जेक्ट पर काम करेगा। ‘क्यों न किन्नरों पर ही कुछ लिखूँ ? इस सबजेक्ट पर ज्यादा कुछ भी लिखा नहीं गया। जो लिखा भी गया हैं वह भी नाम मात्र। कल्पना के सहारे अगर लिखना भी चाहूँ तो कितना लिख सकता हूँ। इसके लिए तो उनके बीच में जाना पड़ेगा। क्यों न किन्नरों से जाकर मिलूँ? शायद वह इस मामले में मेरी कुछ मदद करें।

मगर अगले ही पल उसके मन ने उसे सतर्क किया, ’कहीं तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया। क्या तुम भूल गये, दीपिकामाई ने क्या कहा था कि हम अपने समाज की बातें किसी को नहीं बताते। भूल के भी इनके पास मत जाना वरना पछताने का भी मौका नहीं मिलेगा। तुमने कभी सोचा? इस सब्जेक्ट पर और राइटरों ने क़ल़म क्यों नहीं उठाई? क्योंकि वे जानते थे कि इनके बीच जाना और शोध करना खतरे से खाली नहीं हैं। अपनी भलाई चाहते हो तो इनसे दूर रहो.‘

पीर यतीमशाह के घर पर अकबर का आना

“लेटव तबैह तो (लुड़खुड़) जुआँ बीनबै‘‘ दीपिकामाई ने ड्राइवर का सिर उठा कर अपनी गोद में रख लिया। और बोली, ‘‘सानिया को आवे दो तब डाई मंगवाई, कित्ते दिन होई गवा डाई लगाये.‘‘

‘‘अबकि जुमेरात का एक महीना होई जियै.‘‘

तभी वे सब आ गई। चंदा ने ढोलक उतार कर दीवार पर टाँग दिया और चटाई पर बैठ गई।

‘‘अरी उ कनजड़वा का साड़ी काहे नाय देत हय‘‘ दीपिकामाई चंदा की तरफ मुख़ातिब हुई।

‘‘उकी बुवा की बुर, एक बड़मा दई दिया तब काहे की साड़ी‘‘ चंदा आवेश में आ गई।

‘‘हम्म तो सुना हय तुमरी कमाई ठेले वाले खाते हय.‘‘ दीपिकामाई ने चुटकी ली।

‘‘कहने वाले की माँ का भोंसड़ा, तुम भी गुरु भाई कम हरामी नाय हव। गाँड़ के बाल पक गैं हय पर हरामीपन नाय गवा.‘‘

चंदा को गुस्से में देखकर दीपिकामाई ने बात का रूख बदला, ‘‘अरी बहिनी हम्म तो घबराई गई राहै कि तुम लोगों की कहीं टिनी-टिनव्वर (मारपीट) तो नाय होई गई.‘‘

‘‘अरी जाव, भूख के मारे बिलबिलाई गैन। हम्म लोग मछरी मंडी से इत्ती दूर पैदल आई हय। एक जगह बिटिया हुई तो इक्यावन रुप्या मिली, दूसरी जगह एक सौ बीस मिली.“ चंदा ने मसाले की पुड़िया मुँह में फाँकी।

यह सुनते ही दीपिकामाई का चेहरा ऐसे उतरा जैसे इंड़िया टीम में न चुने जाने पर युवराज और रैना का उतरा था।

“इदरीस के बगल में पनडितवां राहत हय उके उहाँ बधाई बजाये राहव कि नाय?‘‘ दीपिकामाई ने पूछा।

‘‘तुमऊ गुरुभाई, कहा ऊ मुसलमण्डा.‘‘

‘‘अरी भागव तब तुम नाय जानत हव, ऊ बंगगालिन से पूछेव होती तो बताये देती.‘‘

‘‘लन्डचौदी से पूछा राहै, तो कहिस हम्म नाय जानित हय.‘‘ चंदा ने झोले में से शराब की शीशी निकाली।

‘‘तहवारी लाई हव का?“ दीपिकामाई ने पूछा।

‘‘अरी भागव बहिनी खरीद के लाई हय.‘‘

‘‘हम्मका तो नाय लागत कि तुम खरीद के लाई हव.‘‘

‘‘अल्लाह मियाँ कसम, हम्मरे सामने खरीदिस हय.‘‘ श्रीदेवी ने उसका सपोर्ट किया जैसे समाजवादी पार्टी ने काँग्रेस का किया था।

दीपिकामाई ने चंदा के साथ-साथ शोभा और श्रीदेवी को भी बाँट दिया।

‘‘पाँच रुप्या दे.‘‘ शोभा ने चंदा से माँगा।

‘‘दिया तो राहै.‘‘

‘‘तो का हम्म अपनी गाँड़ में खोस लिया, लाव देव.‘‘

‘‘ई ले पकड़, अब पड़ गई करेजे में शान्ति.‘‘ चंदा ने झिड़का, ‘‘अरी हमरी साऱी लाई के काहे नाय देत हय?”

‘‘अल्ला कसम भूल जाइत हय.‘‘

‘‘गाँड़ मराना नाय भूलत हव.“

“चीख़व न जादा कल लाई के दई देबै.‘‘

‘‘अरी भाग भड़वे, जिकी बात नाय उकी भात नाय। इहाँ भूख के मारे गाँड़ फटी जात हय“.

‘‘जब मछरी की तरह लेट के भकाभक बठली धुरावत (यौन संबंध बनाना) हव तब गाँड़ नाय फटत हय.”

दीपिकामाई ने एक बार फिर चुटकी ली, ‘‘जईसे गोरे टुलने (लड़का) का देखत हव नियत खराब होई जात हय.‘‘

‘‘अरी जाव गुरुभाई, तुम भी का लई के बैठ गई हव। झमके अऊर चले से हमरे फेफड़े अउर कमर में दर्द होय लगत हय.‘‘ चंदा ने सफाई दी।

‘‘अरी भाग उससे नाय.‘‘ कहकर दीपिकामाई ने कूल्हा उठा कर हवा छोड़ी।

‘‘जब देखव तुमरी गाँड़ खुला करत हय.‘‘ ड्राइवर मुँह बिचका के बरामदे की तरफ़ चला गया।

‘‘तुम तो जईसे अपनी गाँड़ में चिपक लगाय हव.‘‘

‘‘अच्छा गुरुभाई हम्म चलित हय.‘‘ चंदा सलाम करके चली गयी।

थोड़ी देर बाद श्रीदेवी को याद आया तो उसने दीपिकामाई को जजमानी वाली बात बताई। यह सुनते ही दीपिकामाई तैश में आ गई, ‘‘तुम चंदा के सामने ई सब काहे नाय बतायेव?‘‘

‘‘भूल गई थी.‘‘

‘‘पेल्हर चूसना तो अपने गिरिये का नाय भूलती हव। उन लोगों की हिम्मत कईसे हुई तुम लोगों को अईसा कहने की? का तुम लोगों ने अपने खूमड़ (मुँह) में लीकम पताये (लिंग) थी.”

‘‘मइया! हम तीन उन पाँच हाथियों का करती.‘‘

‘‘अरी हिजड़ा होकर पूछती हव का करतिन, करमजली हिजड़ा तो ऊ कर सकत हय कि लोग तौबा-तिल्ली कर उठे। रोना तो इसका हय कि तुम लोगों को अभी तक ई नाय मालूम कि अपना इतिहास का हय? तुम सब हिजड़े के नाम पर कलंक हव, रही बात इतिहास की तो हमारे पुरखों ने मैदाने जंग में बड़े-बड़े छक्के छुड़ा दिये थे.‘‘ दीपिकामाई ने उगलदान उठाकर पीक की और मुँह पोंछ कर बोली, ‘‘ईस्ताबुल के सुल्तान ने तो अपने शिखंडी सेनापति काईदली आगा के नेतृत्व में शिखंडियों की फौज ही गठित कर ली थी। अउर तो अउर हिजड़ों में कई पहुँचे हुए सूफी-नजूमी अउर पीर-पैगम्बर भी हुए हय। इनमें सबसे बड़ा नाम पीर यतीमशाह का हय। कहते हय यतीमशाह के इहाँ बादशाह अकबर खुद हाज़िर हुए अउर उन्होंने गुजारिश की मुल्क को सूखे के संकट से उबारने के लिए वह खुदा की इबादत करें। अउर सुन, यतीमशाह ने बादशाह अकबर की बात सुनकर खुदा की इबादत की अउर बारिश की दुआ मांगी। उनकी दुआ कुबूल हुई अउर झमाझम बारिश हुई। मुल्क अकाल से बच गया। अकबर ने यतीमशाह के सम्मान में एक शानदार मस्ज़िद बनवाई। जो आज भी अपनी शानोशौकत के साथ आगरा के लोहामंडी की बस्ती में खड़ी हुई हय, जिसे हिजड़ों की मस्जिद कही जाती हय। अब तो मालूम पड़ गई कि अपना इतिहास का हय.‘‘

प्रत्युत्तर में दोनों ने सिर हिलायी।

लाहौल विला कूव्वत, छठा भर की मच्छी गाँड़ में चुन्ना काटे

पायल कपड़ा फैलाने के साथ-साथ गुनगुना रही थी-

रस में डूबल बा बड़ी रसदार बा

खाई लैव मोरे रजऊ जलेबी तैयार बा

गरम गरम खईबा तो बड़ा मजा आई

रख के जो खईबा तो मन ललचाई

हमरो जलेबिया म रस अऊर पान बा

खाई लो मोरे रजऊ जलेबी तैयार बा

‘‘क्यों री भड़वे, तूने हमारी धौंकनी (सिगरेट) काहे ली?‘‘ श्रीदेवी आँखे तरेर कर बोली।

‘‘चल हिजड़े, तू भी एक कश ले लें.‘‘

‘‘ज़ादा पिये का सौक हुआ करे तो मंगाये लिया करव.‘‘

‘‘चुप री हिजड़े की झाँट.‘‘ पायल ने ताली बजायी।

‘‘अरी भाग, हमरे खूमड़ मत लगना वरना बिन ढोलक के मुज़रा करेगी.“

‘‘लिल्लाही खैराती जुमेराती सात सुबरात न मोहरम झाड़ू.‘‘

‘‘चल भाग रन्डी हमसे जादा तीन पाँच मत करना वरना खड़ी होकर अईसा तीन ताल लगाऊँगी कि हगना भूल जाएगी.‘‘

‘‘चिराए गुल पगड़ी गायब.‘‘

‘‘चल भाग हिजड़े, छठा भर की मच्छी गाँड़ में चुन्ना काटे.‘‘

दरवाज़ें पर दस्तक होते ही पायल ने दरवाजा खोला तो दीपिकामाई, ड्राइवर के साथ अंदर आई। उन्होंने फल से भरी पालीथीन श्रीदेवी को पकड़ा कर राहत की साँस ली।

थोड़ी देर बाद बासी अम्मा और गुन्नीबाई आ गई। सलाम-दुआ होते ही बासी अम्मा, ड्राइवर की तरफ मुखातिब हुई, ‘‘अउर भइया कईसी तबियत हयँ?‘‘

‘‘अब ठीक हैं.‘‘

‘‘अभई तो डाग्डर का दिखाई के आईन हय, बताइस हय लीवर में सूजन हय.‘‘ दीपिकामाई ने बताया।

‘‘हमरी मानव तो भइया पिये पाये वाला काम बंद कर देव.‘‘ गुन्नीताई ने समझाया।

‘‘इनका हम्म धोकनी, खिलवा, पान मसाला सब बंद कराई दिया हय.‘‘

‘‘अल्ला ताला चाहिए तो जल्दी अच्छे होई जियै.‘‘ बासी अम्मा जूड़ा बनाती हुई बोली।

‘‘सकल देखव कईसे होई गै हयँ, आठ दिन से एक्कों निवाला खूमड़ में नायी गवा हय.‘

‘‘भूक जरकों नाय लगत हय का भइया?” गुन्नीताई ने पूछा।

‘‘खाना देखत, जरा भी अच्छा नाय लगत हय। वईसे भी जरा-सा खाई ली तो पलटी होई जात हय.‘‘ कहते समय ड्राइवर की साँस फूल रही थी।

चाय नाश्ता करने के बाद दीपिकामाई दोनों को अपने शयनकक्ष में ले गई। कमरे में डबलबेड था। दायीं तरफ़ दो चेयर पड़ी थीं। उसके ऊपर रोशनदान था जिस पर एक फोटोफ्रेम था जिसमे दीपिकामाई काफी स्मार्ट लग रही थी। उनके अगल-बगल दो महिलाएँ उनके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद की मुद्रा में खड़ी थी।

‘‘अरी ऐ पायलिया, रंगीले पताये (पान) ला.‘‘ दीपिकामाई ने आवाज़ दी।

‘‘लाइत हय मइया.‘‘

‘‘अउर सुनाव गुरूभाई?‘‘

‘‘का सुनाई?“ दीपिकामाई का स्वर नम था।

‘‘का बात हय गुरूभाई, बहुत परेशान दिख रही हव.‘‘

‘‘एक परीसानी हो तो बहिनी बताई, इहाँ तो आफत टूटी पड़ी हय.‘‘

‘‘काहे का हुई गवा.‘‘

“अब इसराइल कहत हय झलके देई देव दुई नमबर का काम करबै.“

‘‘अरी भागव बहिनी, ई गिरियेन-गवारन के चक्कर में गाँड़ गजीफा खेल जईहय। ई उमर म उ हालत होईहय कि भागे रसता न मिली.‘‘ बासी अम्मा ने आँख मटका कर कहा।

‘‘जरा सोचव बहिनी, ऊके चक्कर म चली हम्म भी चक्की पीसी, जऊन काम जिंदगी भर नाय किया अब चली उ भी करी। का बताई गुरूभाई! हमरी जिंदगी तो झंड हुई गई हय। इक साहबजादे बाहर पड़े हय जब तक ठीक रहियहें तब तक अपनी निहारन (औरत) की सीपों ;योनिद्ध चटय्हें, अब जब कबर म जाई लगे तो इहाँ आई गै.‘‘

बासी अम्मा ने उगलदान उठाकर पीक की और डली मुँह में डाल कर बोली, ‘‘बहिनी! बुरा न मानेव हम्म तो पहिले तुमका मना किया राहय, पर तुम हमरी सुनेव कहाँ?‘‘

‘‘का पता रहा गुरूभाई, ई सब हमरे साथ होइय्हें। हमने तो इन्हें दिल से चाहा पर ई लोग.” दीपिकामाई की आँखें नम हो आई थी।

‘‘छोड़ो बहिनी जऊन होना था उ तो हो चुका.‘‘

“कहीं अईसा तो नाय कोई कुच्छ करवाई दीस हय.‘‘

‘‘अउर कऊन करवइय्हें?‘‘ दीपिकामाई ने ड्राइवर की तरफ इशारा किया, ‘‘इकी जउन निहारन हय, इका सिबली अमल करवाई के खिलाये दिहिस हय। उ जऊन कहत हय यही करत हय। अब फटी हय तो इया पड़े हय.‘‘

इतना सब कुछ सुनने के बाद बासी अम्मा अपनी पीड़ा व्यक्त करने लगी, ‘‘अरी बहिनी, कल्हे हमरे चेले ने तो गज़ब कर दिया। गाँड़ चोदी ने बिना हमसे पूछे ही गंगाराम जाति के हिजड़े को दरवाजे के अंदर बुलाय लिया.‘‘

‘‘लाहौलबिलाकूव्वत, अईसे चेले की गाँड़ पर लात मार देहे चाही.‘‘ गुन्नीताई ने ताली बजाई।

यह हिजड़ों की मंडी है, यहाँ आया लौंडा बनाया रंडी

सहिबा अपने सपाट सीने को हथेली में भरे श्रंगारदान के सम्मुख निर्वस्त्र खड़ी अपने साधारण-सी देह का भूगोल आंकलन कर रही थी। वह तरह-तरह की मुद्राएं चेहरे पर बनाती हुई गाने लगी-

दिन रात चाहे जहाँ रहियो हमार पिया।

रात के घर चले अइयो हमार पिया।

जब हम करबै सोलह श्रंगारवा।

तू दर्पण बन जइयों हमार पिया।।

आज की रतिया जो घर ना अइयों।

भेार भए पछितइयो हमार पिया।।

जाके विदेशवा जो हमका भूल जइयों।

छुप-छुप नीर बहिइयों हमार पिया।।

ज्ञानदीप कब बरामदे में आ गया। साहिबा को पता ही न चला।

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