Wo shapit jungle books and stories free download online pdf in Hindi

वो शापित जंगल

वो शापित जंगल

उस जंगल के बारे में जितने किस्से सुनाओ उतने कम है। जितने मुँह नहीं होंगे उतने किस्से सुनने को मिलेंगे। सब एक ही बात कहते है….भुतहा है वो जंगल...सूरज डूबने के बाद कभी मत जाओ उधर।
लोगो मे डर का आलम ये है कि कोई भी उस जंगल मे अंधेरा होने पर नही जाता। आज तक मुझे भी कभी जरूरत नही पड़ी दिन डूबने के बाद उधर जाने की। अगर पड़ती तो मैं जरूर जाता। मुझे नही लगता कि वो सिवा अफवाह के कुछ और है।
वेसे भी पहाड़ी गावो में भूत प्रेत की अफवाहें कुछ ज्यादा ही फैली होती है।
मेरा नाम भुवन रावत है। बी एस सी फाइनल ईयर में पढ़ता हूँ। पिथौरागढ़ में मेरा कॉलेज है। वही कमरा किराये से लेकर रहता हूँ।
एक दिन फ़ोन आया कि पापा की तबियत खराब है तो छुट्टी लेकर आ गया। अब कल से इम्तिहान है। पापा की तबियत अभी भी ठीक नही है। पर एग्जाम देने तो जाना ही होगा। शाम को मैं निकलने की तैयारी करने लगा।
"बेटा आज मत जा" माँ ने मुझे रोकते हुए कहा।

"पर माँ कल एग्जाम है….. मुझे कल तक पहुँचना है किसी भी हाल में।"

"पर बेटा रास्ते मे वो….।" कहते कहते माँ रुक गयी

"अरे माँ क्या तुम भी….किन बातों और यकीन करती हो।"

"बेटा एक तो रात का वक़्त ऊपर से आज अमावस्या है।" माँ बहुत ज्यादा चिंतित थी।

"माँ मुझे कुछ नही होगा…..और फिर मैं बाइक से जा रहा हूँ , चुटकी में जंगल पार कर जाऊँगा।"

"बेटा अपना ध्यान रखना…...और हाँ ये ताबीज डाल लें गले में, हनुमान जी का है।" माँ की तसल्ली के लिए मैंने वो ताबीज पहन लिया। और 7 बजते बजते मैं बाइक उठा निकल गया घर से।

अगस्त का महीना था। दो दिन से बारिश हो रही थी। आज ही मौसम खुला था, पर ठंड थी। 8 बजे तक मैं जंगल के मुहाने पर पहुँच गया। अब यहां से शुरू होता था जंगल का रास्ता।

ये जंगल काफी गहरा और घना था। ऊंची नीची घाटियां और उनपे पसरा ये बियावान जंगल। जंगल के बीचों बीच से होकर रोड गुजरती थी। उसी रोड पर मेरी बाइक 80 की स्पीड से चली जा रही थी। रास्ता एकदम सीधा था सो कोई दिक्कत ना थी बस मोड़ो पर ज़रूर धीमी करनी पड़ती थी।
मैं अभी जंगल के मुहाने पर पहुँचा ही था कि, एक चीखती हुई आवाज़ के साथ चमगादड़ो का झुंड मेरे सिर के ऊपर से निकला। वो इतना डरावना था कि मेरा बैलेंस बिगड़ गया और मैं गिर पड़ा।
हालांकि चोट नही आई, पर मैं घबरा गया था। रात में। जंगल का माहौल बड़ा ही रहस्मयी लग रहा था।
मैंने उठ के अपने कपड़े झाड़े और बाइक को उठा कर किक मारी। पर वो कमबख्त स्टार्ट होने का नाम ही नही ले रही थी। मुझे कम से कम दस मिनट उसमे लगे लगे हो गया पर वो स्टार्ट ना हुई।
मैंने सब चेक कर लिया कोई गड़बड़ नही थी, पर बस स्टार्ट नही हो रही थी।
अब सच मे मुझे डर लगने लगा था। काली स्याह रात, जंगल के रास्ते पर अकेला खड़ा मैं। तिस पर ये भूतिया जंगल। उसमे से आती अजीब अजीब आवाजे सब कुछ इसे डरावना बना रहा था।
मैं अब किक मारते मारते थक चुका था। मैंने कोशिश बंद की और बाइक पर ही बैठ कर थोड़ा आराम करने लगा।
मैंने चारों तरफ नजर दौड़ाई शायद कोई मदद के लिए दिख जाए। पर इतनी अच्छी किस्मत कहा।
अभी मैं बैठा सोच ही रहा था कि क्या करूँ, तभी मेरे पीछे की तरफ जंगल के अंदर से एक ज़ोरदार चीख सुनाई दी।
बुरी तरह फट गई। हिम्मत ही ना हुई कि पलट कर देखूँ। मैंने अपने गले मे पहना हनुमान जी का ताबीज पकड़ लिया और हनुमान चालीसा रटने लगा। इंसान जिंदगी में कितना भी भगवान को ना माने पर जब ऐसे मौके आते है तो सबसे पहले भगवान याद आता है।
मैंने पलट कर ना देखा बस उसी तरह बुत बना बैठा हनुमान जी को याद करता रहा।
एक बार फिर से जोरदार चीख सुनाई दी। ये लड़की की आवाज थी जो थोड़ी फ़टी फ़टी लग रही थी। ठीक पीठ के पीछे तेज आवाज में "आआआआआआआआआआआ………..।" चीख सुनाई दे रही थी। और मैं मूर्ति बना बैठा था। बचपन मे कभी रात में डर लगता था, तो मैं ऐसे बिना हिले डुले पड़ा रहता था ये सोच कर कि भूत आया अगर तो वो मुझे देख कर सोचेगा ये तो मरा हुआ है और फिर मरे हुए का वो क्या करेगा। बस वही हाल आज था।
आखिरकार आवाज आनी बन्द हो गयी। फिर मुझे याद आया कि जंगल मे इस तरह की आवाज कई बार तो जानवर निकालते है, और कई बार हवा पेड़ो में चक्कर खा कर ऐसी आवाज निकालती हुई चलती है।
मन ही मन खुद पर हँसी आई। बेवजह ही डर रहा था। जंगल मे आवाजे आना तो मामूली बात है।
मैंने फिर से बाइक स्टार्ट करने की कोशिश की। इस बार तीन चार बार किक मारने के बाद बाइक स्टार्ट हो गयी। और मैं वहां से चल दिया। मैं चलते चलते पुल पर आ गया। पुल के नीचे से साफ पानी का नाला बह रहा था।

जैसे ही मेरी बाइक पुल पर पहुँची, कि अचानक रोड के दूसरी तरफ से एक लड़की चीखती हुई जंगल से बाहर आ गयी।
मैंने तेजी से ब्रेक लगाए, बाइक के टायर रगड़ मारते हुए रुक गए।

"मैडम कौन हो आप,और इस जंगल मे इतने टाइम?" मैंने उसे सरसरी निगाह से देखा।
मध्यम कद, गोरा रंग,घुघराले और बिखरे हुए बाल...अभी मैं उसको देख ही रहा था कि वो घबराई सी बोली।
"प्लीज मुझे बचा लो।"

"बचा लू! पर किससे?" मैं हैरान था आगे पीछे कही कोई नही था।

"प्लीज मुझे बचा लो उससे मेरे दोस्त भी जंगल में फंसे हुए है।"

"मैंम आप थोड़ा शांत हो जाओ….और फिर आराम से पूरी बात बताओ।" मैंने इस बार उसे थोड़ा और ध्यान से देखा। डार्क ब्लू जीन्स, ग्रे कलर की जैकेट,पैरो में काले बूट्स जो मिट्टी में सने हुए थे।
"मैं….मैं इस जंगल में कैंपिंग कर रही थी, मेरे साथ मेरे दोस्त भी थे। तभी मेरे दोस्त पर किसी ने हमला किया।" वो अटक अटक कर बोली।

"हमला किया किसने किया हमला।"

"भूत ने…...वो मुझे भी मार डालेगा।" वो लड़की काफी डरी हुई थी।

"मैडम आप एक काम करो… आप मेरे साथ चलो इस जंगल के बाहर एक पुलिस चौकी पड़ती है। आप उनको अपनी समस्या बताना वो आपकी मदद कर सकते है।"

"पर मेरे दोस्त जंगल मे ही है, उन्हें शायद वो भूत ले गया।"

"मैंम ऐसे हम जंगल मे ढूढ़ने नही जा सकते….आप मेरे साथ चलिए मैं आपको वहां छोड़ दूँगा।"

"मैं इस जंगल से बाहर नही निकल पा रही हूँ। मैं पिछले चार दिनों से कोशिश कर रही हूँ।"

"मैडम आप रास्ता नही ढूढ़ पा रही होगी। आपके लिए ये जंगल अनजान है। पर मैं यही का हूँ….डोंट वरी मैं आपको पहुँचा दूँगा।"

वो डरी सहमी सी मेरी बाइक पर बैठ गईं। उसे बैठा कर मैंने बाइक दौड़ा दी।
उस जंगल के बाहर थोड़ी दूरी पर एक पुलिस चौकी थी। उस लड़की को वहां पहुँचा कर मैं निकल लेता। पर किस्मत को तो कुछ और ही मंज़ूर था।
मैं बाइक को दौड़ाए जा रहा था। जंगल पीछे छूटता जा रहा था। बस जंगल थोड़ा और बचा था। जंगल का आखिरी मुहाना दिखने लगा था। मैंने स्पीड और बढ़ा दी।
अरे! पर ये क्या जंगल खत्म होते ही फिर से शुरू हो गया। थोड़ा और चल कर मैं फिर से उसी पुल पर आ गया।

"हे भगवान ये क्या हो रहा है। हम तो फिर से जंगल मे आ गये।" अब मुझे डर लग रहा था।

"मेरे साथ ये पिछले चार दिनों से हो रहा है।" ये कह वो लड़की रोने लगी।

"चार दिन से….मतलब आप चार दिन से यहां इस जंगल मे हो।"

"हाँ….बहुत कोशिश कर ली पर घूम फिर कर वही आ जाती हूँ। मेरे दोस्त एक एक कर ग़ायब हो गए। चार दिनों से बारिश हो रही थी, दिन में भी कोई नही मिला मदद के लिए...आज आप दिखे है।"

उसकी बात सुन मेरी हिम्मत जवाब दे गई। ये आखिर कैसा जाल था जिसमें वो फसी थी, और अब मैं भी फस चुका था।
इसका मतलब इस जंगल के बारे में अफ़वाह नही थी बल्कि सच था। पर अब मैं फस चुका था।
हम दोनों बाइक से उतर पड़े। मैंने मोबाइल निकाल कर देखा तो नेटवर्क नदारद। रात के 10 बज रहे थे। इस अंधेरे में जंगल और भयावह लग रहा था। जंगल के अंदर से जानवरों की अजीब अजीब आवाजें आ रही थी। रात एकदम स्याह काली थी।

"अब हम क्या करेंगे।" उस लड़की की दबी दबी सी आवाज़ आई।

"मुझे कुछ समझ नही आ रहा। ना फोन में नेटवर्क है, ना ही यहां कोई मदद करने वाला। करे तो करे क्या?"

"मुझे लगता है मेरी वजह से आप भी बस गये।"

"तुम हो कौन? और क्या करने आई थी इस जंगल मे?"

"मेरा नाम आर्या है और मैं पुणे से अपने दोस्तों के साथ हाईकिंग के लिए निकली थी। घूमते घूमते हम लोग यहां आए। आज से चार दिन पहले हम यहां पहुचे थे। इस जंगल मे एक जगह हमे पसंद आई। वही पर हमने कैंपिंग की। जब रात में हम सब सो रहे थे तभी अचानक किसी के चीखने से हम सबकी आँख खुल गयी। जाग कर हमने देखा कि हमारा एक दोस्त ग़ायब था। हम सबने उसे ढूंढा पर वो नही मिला। सुबह होने पर हम सब अलग अलग डायरेक्शन में उसे ढूढ़ने निकले। बस तभी से अब तक मैं अपने दोस्तों से नही मिल पाई हूँ। हर बार घूम फिर कर एक ही जगह आ जाती हूँ।"

"चलो एक बार फिर कोशिश करके देखते है।" ये कह मैंने बाइक स्टार्ट की।
उसको बैठा के मैंने फिर से बाइक दौड़ा दी। इस बार मे वापिस गाँव की तरफ चला। और आधा घण्टे बाद मैं फिर से उसी जगह था। मुझे लग रहा था कि मैं पागल हो जाऊँगा। कल परीक्षा की वजह से रात में निकला था। पर यहां तो किस्मत परीक्षा लेने पर तुल गयी कि बेटा चल इस जंगल से निकल के दिखा।

"मेरी वजह से आप भी फस गए।" ये कह वो फिर से सुबकने लगी।

"मैडम आप चुप रह लो, एक तो मैं फंस गया और ऊपर से लगा रखा है।" मैं बुरी तरह परेशान था। मेरा चिल्लाना सुन वो एकदम चुप हो गयी। "अब एक काम करो जहाँ पर आपके दोस्त गुम हुए थे उस जगह ले चलो।"

हम दोनों उस पुल से उतर कर दाई तरफ नाले के समानांतर चलने लगे।

"यहां से कितनी दूर है वो जगह।" मैंने चलते चलते पूछा।

"नही मालूम।" उसने कंधे उचकाए।

"नही मालूम का क्या मतलब...तुम चार दिन से बराबर इस जंगल मे फसी हो तुम्हे नही मालूम।"

"हाँ…..क्योकि मैं दुबारा उस जगह तक पहुँच ही नही पाई….हर बार इस पुल तक आकर अटक जाती हूँ।"

"ओह्ह माय गॉड….इसका मतलब हम ट्रैप की तरह इसमे फसे हुए है।"

"हाँ…..मुझे लगता है मेरे दोस्त भी शायद इसी तरह फंसे हो।"

"मे बी….पर तुमने बताया था कि तुम्हारा एक और दोस्त था। जो कैंप से गुम हुआ था।"

"हाँ उस पर किसी ने हमला किया था….पर किसने ये नही मालूम। हम छह लोग आए हुए थे। जिसमें से एक उस रात कैम्प से गायब हुआ। बाकि हम पाँच लोग उसे ढूढ़ने निकले और दुबारा नही मिले।"

"पर तुम सब अलग अलग क्यो हुए एक साथ रहना था।"

"क्या पता था कि ऐसा होगा। हम जल्दी से जल्दी अपने दोस्त को ढूढना चाहते थे।"

"एक औऱ बात मुझे समझ नही आई।"

"क्या?" उसने पलट कर पूछा।

"ऐसी बेतुकी जगह पर कौन कैंपिंग करता है। घनघोर जंगल आस पास बस्ती नही। क्या तुमने इस जंगल की अफवाहें नही सुनी थी?"

"सुनी थी ना.. ..तभी तो आये थे।"

"ओह्ह…मैडम को एडवेंचर करना था या फिर घोस्ट हंटिंग…...नही मतलब इरादा क्या था? पता है आर्या जी मैं भी इन चीजों में विश्वास नही करता पर मैं इनसे छेड़छाड़ भी नही करता। गौरव तिवारी का भूल गयी क्या…..?"

"हमने यही आकर सुना था कि ये जंगल भूतहा तो हमने इसी में कैंपिंग करने की सोची।"

"मिल गया नतीजा। तुम्हारे साथ साथ मैं भी फस गया।"

हम चलते चलते काफी आगे आ चुके थे। पर कही पर भी वो जगह नजर नही आई। अभी हम दोनों खड़े कुछ सोच ही रहे थे कि तभी पेड़ो में कुछ हलचल हुई।
हम दोनों ने इधर उधर देखा, पर दिखाई कुछ ना दिया। तभी एक दिल दहलाने वाली जोर की चीख गूंजी। "आआआआआआआआआआ…….।"

हम दोनों ने डर कर एक दूसरे को देखा और बेतहाशा वहां से भागे। ना जाने किस जगह पहुँच कर हम रुके। थोड़ी देर हांफने के बाद मैं बोला। "वो क्या था?"

"नही मालूम। ऐसी आवाज पहले भी सुनी है मैंने।"

"मैंने भी…...जब मैं आ रहा था तब सुनी थी ये आवाज। मुझे लगा कि कोई जानवर है। पर अब लग रहा है कि ये जानवर तो नही है।"

जिस जगह हम रुके थे, वहां पेड़ो का घना झुरमुट था। हम उससे चल के थोड़ा आगे आ गए। यहां पर थोड़ी से जगह खुली हुई थी। इसमे लम्बी लम्बी घास खड़ी हुई थी।
इस जगह पर खड़े होकर मैंने आस पास देखा। बीच मे थोड़ी से खाली जगह औऱ आस पास घना जंगल।

"आखिर इस जंगल मे ऐसा है क्या?" मैं कुछ समझ नही पा रहा था

"कोई आत्मा है शायद।"

"आत्मा है तो दिखी क्यो नही। और क्या चाहती है आत्मा?"

"क्यो जो चीखे सुनते है वो किसकी है? तुम्हे क्या लगता है वो कोई इंसान है या फिर जानवर?" इस बार उसने मुझे झिड़क दिया।

हम दोनों चुप चिंतित उस जगह पर खड़े थे। जंगल मे घुसने की हिम्मत नही हो रही थी। ठंड भी लग रही थी।
एक जगह टीले के पास जगह देख हम दोनों वही बैठ गए। जंगल मे घुसने का कोई फायदा नही था, ना ही उससे निकलने का कोई तरीका।
"ऐसे कब तक बैठेंगे हम?" उसने पूछा।

"सुबह होने तक। सुबह शायद हम निकल सके।" मैंने जवाब दिया।

"निकल पाएंगे…….मुझे नही लगता मैं चार दिन से चककर काट रही हूँ। भूख के मारे हालत खराब है।" उसकी आवाज से साफ समझ आ रहा था कि वो काफी भुकी है।

मुझे याद आया कि माँ ने मेरे बैग में काफी खाने का सामान रख दिया था। मैंने पीठ से अपना बैग उतारा और उसमे देखने लगा। एक टिफिन में पूड़ी सब्जी रात के लिए रखी हई थी माँ ने। वो मैंने उसे दे दी।
वो जल्दी जल्दी बिना रुके वो टिफिन पूरा खत्म कर गयी। खाना पीकर वो थोड़ी ठीक लग रही थी।

"थैंक यू।" वो मेरी तरफ मुस्कुरा कर बोली।

और कई दिन होता तो मैं इस थैंक यू और स्माइल पर पिघल जाता। पर आज मैं फंसा पड़ा था। आज तो उर्वशी भी सामने आके नाचे तो फर्क ना पड़े।
अभी हम दोनों बाते कर ही रहे थे कि सामने अंधेरे में एक आकृति सी दिखी। वो धीरे धीरे हमारी तरफ आ रही थी। आर्या ने डर कर मेरा हाथ पकड़ लिया। वो सफेद सी आकृति हमारे तरफ ही बढ़े जा रही थी ।

"हमारे तरफ ही आ रहा है।"

उसने डर कर मेरा हाथ पकड़ लिया। "चलो हम यहां से भागे।"

"कहा जायेगे भाग कर…..हम जहाँ जायेगे वो वहां आएगा।" ये कह कर मैंने जाने से मना कर दिया। और उस आकृति को देखने लगा।
वो बेहद धीमे धीमे हमारी तरफ बढ़ रही थी। जब वो थोड़ा सा और पास आई तो मैंने अपना मोबाइल निकाल उस पर फ़्लैश लाइट मारी।
उसे देख मुझे उल्टी आने लगी। ये कोई भूत नही बल्कि एक जिंदा लड़की थी।
जिसकी हालत बहुत खराब थी। उसका एक हाथ कटा हुआ था जिससे मांस के लोथड़े लटक रहे थे। जगह जगह से उसका शरीर कटा हुआ था। उसके शरीर के घाव सड़ रहे थे उनसे बदबू आ रही थी।
"टीना…….।" आर्या चीख कर उसके पास गई।"ये क्या हुआ टीना ये किसने किया।"
मैं भी उन दोनों के पास आ गया था। वो लड़की यानी टीना जो कि आर्या की दोस्त थी बड़ी मुश्किल से कुछ शब्द बोल पाई। "तुम्हे …..भी नही छोड़ेगी.. । वो लड़की मेरे तरफ देख कर बोली। नननन निकल ज्ज्ज्ज्ज्जाओ यहां से… …..।" ये कह कर टीना गिर पड़ी। कहने की कोई बात नही थी कि वो मर गयी थी। ना जाने वो इतना सब कुछ झेल कर जिंदा कैसे थी।

आर्या सुन्न हो गयी थी। वेसे भी जब मुसीबत का पहाड़ टूट पड़े तो आंसू भी सूख जाते है।
मैं आर्या का हाथ पकड़ उसे खींच कर वहां से ले जाने लगा। "चलो आर्या….चलो यहां से।"

हम दोनों जैसे ही आगे बढ़े थे कि एक डरावना ठहाका उस जंगल मे गूंज पड़ा। मानो वो अपनी जीत पर हंस रही थी।
मैं अब तंग आ चुका था। मैं चिल्ला कर उससे बोला। "आ तुझे जो करना है करले चुड़ैल…..ऐसे क्यो तड़पा रही है। नरक की आग में जलेगी तू एक दिन।"
मेरे इतना कहना था कि उसकी फिर सब वही तेज चीजख गूँजी "आआआआआआआआआ………"हम दोनों सिर पर पैर रख कर वहां से भागे पर वो आवाज़ बराबर पीछा किये जा रही थी।
हम भागते भागते जंगल मे काफी अंदर घुस आए थे। पर उसकी वो आवाज़ पीछा नही छोड़ रही थी। साथ ही ऐसा लग रहा था कि कोई हमारे पीछे जंगल मे भाग रहा है।
हम दोनों बिना रुके भागते रहे। और हमारे पैरो में ब्रेक तब लगे जब वो हमारे सामने आकर खड़ी हो गयी। वो एकदम हमारे सामने खड़ी थी। सफेद गाउन पहने जो अक्सर क्रिश्चियन दुल्हन पहनती है। आंखे एकदम सफेद। हाथ खून से सने। वो हमारे सामने खड़ी थी।
मत पूछो की कितनी बुरी फटी। तुरन्त पलट कर दूसरी तरफ भागने लगे। डर के मारे घुटने साथ छोड़ रहे थे। पर भागे जा रहे थे।
अचानक आर्या रुक गयी। "क्या हुआ भागो।" मैंने उसे खींचा।

"रुक जाओ भुवन। हम भाग कर भी नही बच सकते। इस जंगल से निकल नही पाएंगे। औऱ जंगल मे ये मार देगी। कोई फायदा नही भागने का।"

"फिर हम क्या करे?"

"हम दोनों एक साथ एक जगह रहते है। जो होगा देखा जाएगा। अगर हम सुबह तक जिंदा बच गए, तो बाहर निकलने की कोशिश करेंगे।"

"हम्म ठीक है।" मैंने फ़ोन निकाल कर टाइम देखा रात के दो बजे रहे थे।
हम दोनों वही एक पेड़ के नीचे बैठ गए। मुझे अब रह रह कर मां की बात याद आ रही थी। काश! मान ली होती। अब पता नही मां से दोबारा मिल पाऊंगा या नही। यही सोचते सोचते आँखो में आँसू आ गए।
हम दोनों को वहां बैठे करीब आधा घंटा गुज़र गया कुछ नही हुआ। बस मैं यही मना रहा था कि किसी तरह सुबह हो जाये।
मेरे हाथ पर एक बूंद गिरी शायद बारिश भी होने वाली थी। यही सोच मैंने ऊपर आसमान की तरफ देखा। "आर्या भाग.. ……..।" मैंने जोर से चीख कर उसे खींचा। पेड़ के ऊपर से वो घुटनो के बल उतरती हुई आ रही थीं। हम दोनों एक बार फिर से भागे और वो चुड़ैल डरावनी आवाज़े निकालते हुई हमारे पीछे लग गयी। एक बार फिर हमें भागना पड़ा। वो शायद हमसे खेल रही थी। वरना वो चाहती तो कब का मार देती।

हम भाग कर फिर से पुल पर आ चुके थे। वही मेरी बाइक भी खड़ी थी। अचानक मेरे दिमाग मे एक तरकीब आई। मैंने आर्या को इस बारे में नही बताया कि शायद कही वो भूतनी सुन ना ले।
मैंने आर्या को बाइक के पास आकर उसे बैठने का इशारा किया। वो चुपचाप बैठ गयी। मैंने बाइक रोड पर ना चला कर जंगल मे उतार दी। और नाले के साथ साथ उबड़ खाबड़ रास्ते पर चलाने लगा।
दरअसल मुझे याद आ गया था कि इस जंगल मे नाले के किनारे एक हनुमान जी का मंदिर है। कोई भी भूत मन्दिर के अंदर नही आएगा। मुझे बस उस मंदिर तक पहुँचना था।

एक बार फिर वो आई। इस बार वो बाइक के सामने आकर हवा में लटकी थी। बेहद खौफनाक शक्ल थी उसकी। पर मैंने भी बाइक रोकी नही। चलता रहा बराबर। पर मैं भूल गया था कि वो भूत है और मैं इंसान। साली बाइक भी उसकी साइड थी। बाइक बन्द हो गयी और गायब हो गई।
मैं बाइक से उतर पैदल चलने लगा। थोड़ी ही देर हुई होगी कि वो फिर से आ गयी। हम दोनों भागे शायद वो मेरा इरादा समझ गयी थी। इस बार वो बेहद गुस्से में लग रही थी। उसने पेड़ो की टहनियां उठा उठा कर फेक्नी शुरू करदी। हम दोनों बचा बचा कर भागते रहे।
एक टहनी मेरे पैर में लगी जान ही ना निकली बस इतना दर्द हुआ। पर रुकने का वक़्त नही था। मैं लँगड़ा कर भागने लगा।
वो अब सामने आ गयी। "तुम दोनों को मार दूँगी सबको मार दूँगी।" हाय जितनी खतरनाक शक्ल उतनी ही डरावनी आवाज।

"तुम्हारी शक्ल तो बड़ी अच्छी है…...बाते भी थोड़ी अच्छी कर लिया करो।" इतनी देर से उसे देखते देखते मैं अब फ़्रेंडली हो गया था।

मंदिर अब दिखाई दे रहा था। पर बड़ी अजीब बात थी कि मंदिर में रोशनी हो रही थी। वहां तो कोई पुजारी नही रहता फिर रोशनी कैसी। मैं अब थक चुका था। मन्दिर थोड़ी ही दूर था। चुड़ैल भी अब गायब थी। मैंने रुक कर टाइम देखा चार बज रहे थे यानी सुबह होने वाली थी।

"आर्या थोड़ा रुक जाओ मैं थक गया हूँ।" मैं अपनी लँगड़ी टांग को सम्हाल कर बैठ गया।
मैंने अपना बैग भी उतार दिया। उसे उतारने में मेरे गले मे लटका ताबीज टूट गया। मैंने ताबीज को हाथ मे ले लिया। और आराम करने लगा।
दर्द, थकान औऱ दहशत से मुझे बेहोशी सी छा रही थी। नया चाहते हुए भी आंख बन्द हो गयी।
आंखे खुली किसी के चिल्लाने से। मैंने जाग कर देखा सुबह हो चुकी थी। पूरब में लालिमा आ रही थी। हनुमान जी का मंदिर सामने था। उसी में से दो लड़के मुझे इशारा कर रहे थे और कुछ चिल्ला रहे थे। मैं उठ कर खड़ा हुआ आर्या भी वही मेरे पास बैठी थी। वो भी एकटक उन लोगो को देख रही थी।

"आर्या तुम जानती हो इन्हें?"

"हाँ" आर्या की आवाज काफी बदली हुई थी।

"कौन है ये?"

"मेरे दोस्त।"

"तुम फिर गयी क्यो नही उनके पास।"

"मैं नही जा सकती।"

"नही जा सकती। क्यो? सामने ही तो है चलो तुम मैं आता हूँ पीछे से। आज तो मंगलवार है आज पुजारी आएगा मन्दिर में तब निकल लेगे।"

"भुवन।" आर्या ने बड़ी ही अजीब नजरो से मेरी तरफ देखा।

"अबे ओये यहां भाग।" मन्दिर से उन लड़कों की आवाज मेरे कानों में पड़ी।

मैंने पलट कर उनको देखा। वो आर्या की तरफ इशारा करके बोले। "मार देगी वो यहां भाग आ।" ये सुन कर मैं आर्या की तरफ पलटा। पर ये क्या उसे देख मेरा दिल दहल गया।
उसकी आंखें अब एकदम सफेद थी। गर्दन पर गहरे तक काटे जाने का निशान था पूरी खून में सनी थी।
मैं कुछ बोलता उससे पहले ही उसने अपने दोनों हाथ मेरे पेट मे घुसा दिए। मरते वक्त ताबीज याद आया। देखा तो वो जमीन पर पड़ा था।

"आई एम सॉरी भुवन।" आर्या अजीब सी आवाज में बोली।

"मुझे क्यो मारा।" मैं जैसे तैसे बोला।

"उसने मारने को बोला तुम्हे। उसको भी किसी ने मारा था वो सबको मार देती है। मुझे भी मारा उसी ने।"

किसी के बराबर झकझोरने से मैं जागा। आँख खुली तो देखा आर्या मुझे जगा रही थी। मेरे दिमाग मे आया कि मैं मर चुका हूँ और मैं अब आत्मा बन गया हूँ। मैंने इधर उधर नजर दौड़ाई शायद कही मेरी लाश पड़ी हो। पर नही मैं जिंदा ही था।

"मैं जिंदा हूँ?" आर्या से पूछा।

"हां।"

"पूरा जिंदा।"

"ये आधा पूरा क्या। जिंदा हो तुम बस।"

तभी मैंने अपने ताबीज को देखा। वो मेरे हाथ मे ही अटका हुआ था। मतलब सब सपना था।
सूरज उग आया था। मैंने मन्दिर की तरफ देखा वो लोग अभी मन्दिर में ही थे। हम दोनों भी उनके पास पहुँच गए।

"ये तुम्हारे दोस्त है ना?"

"हाँ। ना जाने ये यहां कैसे पहुँचे।"

"आर्या कहा थी तुम और ये कौन है?" उन दोनों लड़कों ने आर्या से पूछा।

"जिस दिन से तुम लोग अलग हुए मैं बस जंगल मे गोल गोल चक्कर काट रही हूँ। कही पहुँच ही नही रही थी। ऐसे ही भटकते हुए कल रात मुझे ये भुवन मिले।"

"हम तो चार दिन से इसके अंदर फसे है। ना कुछ खाया है ना पिया है। दिन में बस इस मंदिर से कुछ ही कदम दूर जाते है कि कही फिर से ना भटक जाए।"

"भुवन ये मेरे दोस्त है अजय औऱ राहुल। इनके साथ और था प्रतीक पर शायद वो नही आ पाया वापिस।"

"प्रतीक मुझे नही मिला।" अजय बोला। "टीना मिली क्या तुम्हें?"

"हाँ मिली थी। वो......।" बोलते बोलते आर्या रोने लगी।

"वो मर चुकी है।" मैंने उन दोनों को बताया।

"ओह्ह नो! भगवान प्रतीक सेफ हो बस्स।"

"अरे! देखो पुजारी जी आ रहे है।" मन्दिर का पुजारी मुझे आता दिखाई दिया।

पुजारी मन्दिर में हम लोगो को देख हैरान था। "कौन हो तुम और मन्दिर में?"

"पुजारी जी हम बड़ी मुसीबत में फस गए है।......हम लोग अनजाने में जंगल मे आ गए वो भी रात के वक़्त......एक चुड़ैल ने हमारे दो दोस्तों को मार दिया है। और अब हम इसमे फस चुके है....हम चाह कर भी नही निकल पा रहे है।" मैंने पंडित जी को बताया।

वो तो अच्छा था कि पंडित दूसरे गांव का था औऱ मुझे पहचानता नही था। वरना वो मां को बता देता। इसलिए मैं अपने वही के होने की बात को छिपा गया।

"हे भगवान....।" पुजारी मेरी बात सुन कर फक्क रह गया। "बच्चों मैं पूजा करलू फिर चलो मेरे साथ।"

ये कह पुजारी जी ने पूजा अर्चना की हम सबको प्रसाद दिया। उसके बाद हम लोग पुजारी जी के साथ निकले।
पर लगता है हमारी किस्मत हमारा साथ नही दे रही थी। इस बार तो तुम पुल तक भी ना पहुँचे। नाले के समानांतर चलना शुरु करते और हर बार मन्दिर पर आकर रुक जाते। अब तक दोपहर हो चुकी थी।
"ऐसा मेरे जीवन मे पहली बार हुआ है। हादसे पहले भी हुए है। पर इस तरह कभी नही हुआ ना कभी सुना है। ऐसा लगता है इस जंगल मे जो भी शक्ति है वो तुम्हें बाहर जाने नही देना चाहती है। दिन का समय देवताओं का समय होता है। अगर दिन में भी तुम बाहर नही निकल पा रहे हो तो इसका मतलब की ईश्वर भी तुम्हारे साथ नही है। मुझे माफ़ करना बच्चों मैं चाह कर भी तुम्हारी मदद नही कर पाया। तुम लोग यही मन्दिर में रहो मैं गाँव जाकर किसी तांत्रिक को देखता हूँ।" ये कह कर पुजारी हमे छोड़ कर चला गया। औऱ हैरानी की बात ये की हर बार हम वापिस वही आ रहे थे पर पुजारी नही आया। मतलब की वो निकल गया था।

हम लोग मन्दिर में बैठ कर किस्मत को रो रहे थे।
"अब हम क्या करे।" आर्या के दोनों दोस्त बोले।

"करना क्या है। चलो कुछ खाने का इंतज़ाम करलें.....आखिर रात जो गुजारनी है इसमें।" मैंने सलाह दी।

मुझे इस जंगल के बारे में मालूम था। इसमें कुछ मौसमी फलो के पेड़ थे। हम जाकर फल तोड़ लाये। नाले से पानी भर लिया।
रात में जंगल का माहौल बड़ा डरावना हो गया। फिर से वो चुड़ैल आ गयी। उसकी दर्द भरी चीखे गूंजती। मन्दिर के पास आकर बड़ी ही डरावनी में चिल्लाती। "आआआआआआ.......कोई नही बचेगा।"

अचानक मुझे पुजारी की बात याद आयी उसने कहा था कि हादसे तो पहले भी हुए है पर ऐसा आज तक नही हुआ।
मुझे भी सब अजीब लगा। मैंने उन तीनों लोगो से बात की । "एक बात बताओ जब तुम सब लोग इस जंगल मे रुके थे तो तुमने कुछ अजीब सा महसूस किया था?"

"हमे ये तो मालूम था कि जंगल हॉन्टेड है।.....शायद यही वजह थी कि आर्या यहां आना चाहती थी।" अजय बोला।

"हाँ मैं पेरानॉर्मल एक्टिविस्ट हूँ।" आर्या शांत स्वरों में बोली।

"तो अब कहा गया तुम्हारा सारा एक्सपीरिंयस...?"

"मैंने इतनी जगह देखी भुवन....पर ये सबसे अजीब है.....ये तो बाहर ही निकलने दे रही। जहाँ तक मैं जानती हूँ दिन में इन लोगो की ताकत कम होती है....पर ये तो दिन में भी ताक़तवर है।"

"अच्छा एक बात बताओ.....तुमने कुछ भी महसूस किया था यहाँ आने के बाद....कुछ भी जो अजीब हो।" मैंने आर्या से पूछा।

"हाँ..... याद आया। मैंने पहली ही रात एक सपना देखा था। उसमें मैंने इसी जंगल के दक्षिणी हिस्से में बनी एक कॉटेज देखी थी। जो बहुत पुरानी और सुनसान थी। सपने में ऐसा लगा जैसे कोई बोल रहा हो.....यही है सारे राज दफन।"

"दक्षिणी हिस्से में कॉटेज।.....हम्म.....सुबह होते ही हम वो कॉटेज ढूंढने चलेंगे.......मैंने सुना है पहले यहां अँग्रेज़ रहते थे और उनके यहां बगले बने हुए थे।"

अब बस सुबह का इंतजार था। जैसे तैसे राम राम बोलते हुए रात कटी।
सुबह होते ही चल दिये कॉटेज ढूढ़ने। कोई तीन घण्टे लगातार चलने के बाद......एक पहाड़ी के ऊपर बनी कॉटेज दिखाई दी।
ये कॉटेज ये छोटी सी पहाड़ी के ठीक ऊपर बनी थी। जब ये जगह आबाद होगी तब बेहद खूबसूरत लगा करती होगी।
हम उस कॉटेज के पास गए। लकड़ी की बनी खस्ताहाल कॉटेज थी। देख कर ही पता चलता था कि अंग्रेजो की बनाई हुई थी। जर्जर दरवाज़े को खोल हम अंदर घुसे। यहां सालों से कोई नही आया था। जगह जगह मकड़ी के बड़े बड़े जाले लटक रहे थे। चमगादड़ो ने अपना घर बसाया हुआ था इसमे।
पर अजीब बात ये थी कि इसमे सामान अब भी पड़ा हुआ था। कॉटेज में घुसते ही एक हॉल था जिसमे पूरी तरह सड़ चुकी टेबल कुर्सी पड़ी थी। उसी हॉल से लगा हुआ बड़ा सा किचन था। उसमें भी जर्जर सामान पड़ा था। हॉल के दूसरी तरफ एक बड़ा सा कमरा था। जिसमे भी सड़ चुका बेड था। इसमे एक अल-मारी भी थी। हमने उस अल-मारी को खोला। उसमे कपड़े टँगे हुए जो लगभग चिन्दी बन चुके थे। हमने चारों तरफ नजर दौड़ाई। दीवाल पर फ़ोटो टंगी हुई थी। उन्हें उतार कर साफ करके देखा । वो बेशक अँग्रेज़ कपल की फ़ोटो थी। एक खूबसूरत औरत कुर्सी पर बैठी हुई थी औऱ उसके बगल से ही एक युवा अँग्रेज़ खड़ा हुआ था। वो देखने मे कोई अधिकारी लग रहा था क्योंकि उसने हाथ में तलवार ली हुई थी जिसे वो ज़मीन से टिकाए खड़ा था। तस्वीर के नीचे कुछ धुँधला सा लिखा हुआ था। रगड़ कर साफ करने पर लिखा दिखाई दिया मिस्टर एंड मिसेज रोबर्ट 1918।

"अबे तेरी ये तो सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है।" उसे देख मेरे मुँह से निकला।
हमने अब उस कमरे की हर चीज छाननी शुरू की। अलमारी से एक डायरी मिली हमे। पीले कागज़ पड़ चुके थे इसके। उसे हमने खोला अंग्रेजी में लिखी हुई थी। डायरी के ऊपर ही नाम लिखा था। "एलिसा रोबर्ट" बड़ी मुश्किल से एक एक शब्द जोड़ पढा। जो समझ आया उसका सार ये था कि
"मेरे पति जिस औरत के प्यार में पड़े है वो उन्हें धोखा दे रही है। ये बात मैं जानती हूँ पर मेरे पति नही जानते। वो सिर्फ और सिर्फ उनकी दौलत के पीछे है। उनके पद का इस्तेमाल कर उसने अपने भाई को नौकरी दिलवाई। और अब वो उनकी जमा पूँजी लूट रही है। मेरे हीरो का हार जो मेरे पति ने उसे दे दिया वो हार उसने अपने दूसरे प्रेमी को दे दिया है। मैंने सुना है वो अपने प्रेमी को बोल रही थी कि एक रात सब लूट कर यहां से भाग चलते है। मेरे पति को कंपनी का ख़ज़ाना मिला है जिसे सुरक्षित इम्पीरियल बैंक पहुँचाना है। पर वो अपने प्रेमी के साथ उसे लूट लेना चाहती है। नतीजा मेरे पति को गद्दारी के इल्जाम में सजा मिलेगी। आखिर कैसे मैं अपने पति को इस धोखे से बचाऊ। ओह जीसस सेव अस।"

हमने डायरी पढ़ कर खत्म की ही थी कि आर्या बोली "मुझे चक्कर आ रहे है।"

"क्या हुआ आर्या तुम ठीक हो?" मैंने उसे सहारा दिया।

"पता नही भुवन ये सब कुछ बहुत जाना पहचाना सा लग रहा है।......ऐसा लग रहा है जैसे मैं यहां आ चुकी हूँ।" आर्या अपना सिर पकड़ कर ज़मीन पर बैठ गयी।

"क्या बात कर रही हो तुम।" हम सब ही हैरान थे ये सुन कर।

"वो मार देगी मुझे भुवन.......ओह गॉड मुझे ले चलो यहां से वो मार देगी।" आर्या बुरी तरह डरती हुई उठ कर वहां से भाग गई।

हम सब पीछे दौड़ पड़े। पर आर्या बस बराबर चिल्लाती हुई भागी "वो मार देगी"।
तकरीबन एक किमी तक ऐसे ही दौड़ते हुए वो गिर कर बेहोश हो गयी। हमे उसे उठा कर मन्दिर तक लाना पड़ा।
मन्दिर लाकर हमने उसे लिटाया पानी के छींटे मारे तब उसे होश आया।

"मुझे याद आ गया भुवन वो मुझे मार देगी।"

"क्या याद आया सब बताओ आर्या....तभी हम कुछ कर पाएंगे।"

"वो......वो जो तस्वीर तुमने देखी वो मेरी और मेरे पति की थी। एलिसा औऱ पीटर वान रोबर्ट। मैं इंग्लैंड के बड़े रईस की बेटी थी। मेरे बाप ने मेरी शादी कंपनी के एक बड़े अधिकारी रोबर्ट से करदी। 1917 में हमारी शादी हुई थी। हमारी जिंदगी अच्छी चल रही थी। तभी मेरे पति ने गर्मियों की छुटियो के लिए यहां कॉटेज बनवाई। हम हर गर्मी यहां आया करते थे। यहां और भी कई अँग्रेज़ परिवार रहते थे। उन्ही में से एक थी "रोजी"। वो कंपनी के सैनिक की बेटी थी। जवान औऱ खूबसूरत। उसने मेरे पति की दौलत देख उस पर डोरे डालना शुरू किए। धीरे धीरे मेरा पति उसके जाल में फँस गया। मेरे पिता ने मेरी शादी देश के बाहर की थी नतीजा यहां पर मेरा अपना कोई नही था। मैं अकेली पड़ गयी इसका फायदा मेरे पति ने उठाया उसको कोई रोकने वाला नही था। पर मेरा पति नही जानता था कि रोजी उसे फंसा रही है। उसका पहले से ही कम्पनी के दूसरे सैनिक अधिकारी से अफेयर था। वो दोनों मिल कर मेरी दौलत हड़पना चाहते थे। पहले तो उसने मेरे पति के पद का उपयोग करके अपने भाई की ऊंचे पद पर नौकरी लगवाई। आखिरकार एक दिन मेरे पति ने रोजी से शादी का एलान कर दिया। मैं जानती थी ये शादी सिर्फ बहाना है। वो तो मेरे पति की वो दौलत लूटना चाहती थी। जो उन्हें कंपनी ने इम्पीरियल बैंक में भेजने के लिए दिया था। मैंने अपने पति को सच बताया पर उसने मेरी बात नही मानी। और एक दिन मेरी डायरी मेरे पति के हाथ लग गयी। और उसे पढ़ कर उन्होंने सोचा कि कोई डायरी में झूठ नही लिखेगा। उन्होंने रोजी से इस बारे में पूछा तो उसने साफ मना कर दिया अपनी सच्चाई की कसमें खाने लगी। पर वो जान गई थी कि अब उसका षड्यंत्र नही चलेगा। इसलिए दूसरे ही दिन वो हमारे घर मे रखे सारे जेवर और पैसे लेकर ग़ायब हो गयी। साथ ही उसका प्रेमी भी। उसके बाद उसकी सच्चाई मेरे पति के सामने थी। उसके बाद हम दोनों ने वो जगह छोड़ दी हमेशा के लिये ओर इंग्लैंड चले गए। मर कर रोजी भूत बनी औऱ वही बदला मुझसे लेना चाहती है।"

मैं हैरान था सुन कर। यकीन नही हो रहा था पर झूठ भी नही मान सकता था। हम सब भौचक्के थे। तभी पुजारी जी अपने साथ किसी को लेकर आये।

"बच्चों ये यहां के तांत्रिक है.....इन्होंने कइयों को भूत प्रेत से बचाया है ये।" पुजारी जी हमसे बोले।

"पुजारी जी हम उसका रहस्य जान चुके है।" मैंने भूमिका बांधना शुरू की।

"क्या पता चला बताओ।" वो तांत्रिक ने पूछा।

मुझे जो कुछ पता था मैंने सब पता दिया। आर्या के पिछले जन्म का किस्सा भी।
ये सब सुन कर तांत्रिक ने सिर हिलाया। "ह्म्म्म.…...मुझे जब पुजारी जी ने बताया मैं तभी समझ गया था। कि बात सिर्फ इतनी नही है। कुछ और भी है जो हमे नही पता।"

"तो अब क्या करेंगे हम?" हम सबने एक साथ पूछा।

"उसी जगह चल कर हम उसकी आत्मा को बुला कर कैद करेंगे।" तांत्रिक बोला
"ठीक है फिर चलो।" हम सब तैयार थे।

"इसके लिए मैं सारा जरूरी सामान लाया हूँ। बस रात का इंतजार करना होगा हमे।"

"आप बस हमे बाहर निकलवा दो। वो कैद नही होगी।" आर्या बीच मे ही बोल उठी।

"चिंता मत करो तुम लोग बाहर भी निकलोगे औऱ वो कैद भी होगी।" तांत्रिक ने उसे समझाया।

पर आर्या की बेचैनी कम ना हुई। वो बहुत परेशान लग रही थी।
दिन ढलते ढलते हम वापिस उस काटेज में थे। वो तांत्रिक वहां पड़ी हर चीज को छुकर आंखे बंद करता। आखिर में अलमारी में टँगे एक गाउन को उसने निकाल लिया। "ये उसी का है।"तांत्रिक बोला।

मैंने ध्यान से देखा तो याद आया कि रोजी की आत्मा भी ऐसा गाउन पहने होती है। तांत्रिक ने कॉटेज के चारों तरफ भस्म से गोल रेखा बनाई।
उसके बाद अपने साथ लाये सामान से उसने हवन की तैयारी शुरू की। सारा बंदोबस्त हो जाने के बाद वो आर्या से बोला। "अब सूर्य डूब चुका है। अब तुम उस रेखा के बाहर खड़े होकर उसे आवाज़ दो उससे कहो कि आओ और मार दो मुझे। जैसे ही वो आये तुम तुरंत इस रेखा के अंदर आ जाना।"

"पर उसने मुझे मार दिया तो।"आर्या डरी हुई थी।

"नही वो नही मार पाएगी। भगवान पर विश्वास रखो जाओ। यही एक तरीका है उसे बुलाने का।"

आर्या डरते डरते बाहर निकली। उस रेखा के बाहर पैर रख वो चिल्लाई। "रोजी......रोजी.......कहाँ हो तुम। आओ और ले लो अपना बदला।"

एक दो मिनट तक एकदम शांति रही। फिर तो मानो भू-चाल आ गया हो। सामने से तेज बवंडर के साथ चीखों की आवाजें आने लगी। और उसमे खौफनाक शक्ल बनाये रोजी आती दिखी।
उसे आता देख आर्या भाग कर कॉटेज के अंदर आ गयी। रोजी बवंडर के साथ उड़ती हुई सीधा कॉटेज के तरफ आई। पर उसे रेखा के पास आते ही चीख कर पीछे लौट गई।

उसके आते ही तांत्रिक ने हवन शुरू कर दिया। लगभग दस मिनट तक लगातार मंत्र पढ़ने के बाद उसने रोजी का गाउन उठाया और उसे हवन में डालने लगा। जैसे ही उसने उसे हवन की आग के नज़दीक किया बाहर से रोजी चीखी। "ओह्ह जीसस।"

अचानक तांत्रिक के बढ़े हुए हाथ रुक गए। बाहर रोजी रोती हुई चिल्लाने लगी। "oh god......Forgive me for all my sins. I just wanted to take revenge. Save me god"

"ये बुरी आत्मा नही है।" तांत्रिक अपनी क्रिया-विधि करते करते रुक गया।

"क्या मतलब?" मैं हैरान था।

"वो बदला लेना चाहती है किसी बात की। वो ईश्वर का नाम ले रही है। बुरी आत्मा कभी ईश्वर का नाम नही लेती। ज़रूर उसके साथ कुछ गलत हुआ है।" तांत्रिक ने रोजी की तरफ देख कर कहा।

"क्या आप भी भूत की बातों में आ रहे है।" मैं हैरान था तांत्रिक की बात पर।

"वो नाटक कर रही है। जैसे वो पहले करती थी। उसने मेरे दो दोस्तों को मार दिया। वो मुझे भी मारना चाहती है। आप उसकी बातों में मत आओ।" आर्या डर रही थी।

"हो सकता है सच कुछ और हो। मैं अभी उसी की ज़ुबान से सच उगलवाता हूँ।" ये कह कर तांत्रिक फिर हवन करने बैठ गया। मंत्र पढ़ते पढ़ते उसने गाउन का एक टुकड़ा हवन में डाल दिया। उसके डालते ही रोजी तड़पने लगी।

"एक तरफ से उस लाइन को मिटा दो।" वो तांत्रिक मुझसे बोला।
मैंने जैसे ही लाइन मिटाई तुरन्त रोजी अंदर पहुँच गई।

"बताओ क्यो मारना चाहती हो इसे। पिछले जन्म में भी इसका बुरा चाहा और फिर से मारना चाहती हो?"

"मुझे दर्द देना बन्द करो मैं बताती हूँ सब।' रोजी दर्द में तड़प रही थी।
तांत्रिक ने गाउन को एक तरफ हटा लिया।

"मैंने इसका कुछ नही बिगाड़ा था। इसने तुम सबसे झूठ बोला है। मैं कोई चोरी कर के नही भागी थी। इसने मुझे मार दिया था। और चोरी भी खुद करवाई थी ताकि मैं रॉबर्ट की नज़रों में गिर जाऊ। और ऐसा ही हुआ भी। इसने मुझे मरवा दिया और रोबर्ट से कहा कि मैं भाग गई हूं। इसने मेरे भाई को भी फाँसी दिलवा दी।" हम सब हैरान थे ये सुन कर।

"ये झूट बोल रही है। इसने मेरे दोस्तों को मार दिया।" आर्या चिल्लाई

"हां अगर तुम्हें इससे बदला लेना था तो तुमने अब तक इतने बेकसूर क्यो मारे।" तांत्रिक ने पूछा।

"जब भी कोई यहां रात में आता। मैं उससे एलिसा और रोबर्ट का पता पूछती पर कोई नही बताता था। सब मुझे जिंदा लड़की समझ कर जोर ज़बरदस्ती करना चाहते और मैं उनको मार देती।"

वाह रे लोगो की भी हद हो गयी। मतलब भूत भी। कुछ नही हो सकता लोगो का।

"इसके दोस्तों को क्यो मारा?" तांत्रिक ने अगला सवाल किया।

"उन्हें मैंने नही इसी ने मारा है। वो इसका सच जान चुके थे। इसलिए इसने उनको मार दिया। मैं सच कह रही हूँ। आत्मा झूठ नही बोलती। मेरी लाश इसी घर के नीचे है। जिस जगह तुम बैठे हो वहां की लकड़ियां हटाओ सच सामने आ जायेगा।"

हम सबने तुरंत लकड़ियां हटानी शुरू करदी। बात सच थी। अंदर एक कंकाल निकला। उसके सीने की हड्डियों में एक तलवार फंसी हुई थी। हम सबने अब आर्या की तरफ देखा।

"तुमने झूठ क्यो बोला आर्या। तुमने जो भी किया था वो पिछले जन्म की बात थी पर अब क्यो ऐसा किया?"

आर्या रोने लगीं। "मुझे यहां आकर सब याद आ गया था। इसने किस तरह मेरी पिछली जिंदगी नरक बनाई थी। अगर मैंने इसे मारा तो क्या गलत किया इससे पूछो क्या इसने मेरे पति को मुझसे नही छीना था। क्यो इसने जानते हुए भी मेरे पति को फँसाया।"

"मैं इसे नही छोडूगी इसकी वजह से मैं रोबर्ट की नज़रों में गिर गयी। इसने मेरी जान ली।" रोजी बेहद गुस्से में थी।

"हाँ मार दे। मुझे मार कर भी तुझे रोबर्ट हासिल नही होगा। वो तेरे लिए मेरा ही रहा। वो जब तक जिया उसने तुझसे सिर्फ नफरत की। मैं जीत चुकी हूँ अब मुझे मारना है तो मार दे।" आर्या भी चिल्लाई।

रोजी एक झटके में आर्या के पास आई और उसकी गर्दन पकड़ के लटका दिया।

"रुक जाओ रोजी......तुमने बहुतों की जान लेली। इसे माफ कर दो। याद करो जीसस ने क्या कहा था जब वो क्रूज पर थे। हे ईश्वर इन्हें माफ करना ये नही जानते ये क्या कर रहे है। वो जब उनको माफ कर सकते है तो उसी गॉड की ख़ातिर तुम इसे माफ कर दो। आखिर गलत तो तुम भी थी किसी का पति छीन रही थी तुम। उसने अपना पति वापिस पाने के लिए वो सब किया। उसकी जगह कोई भी होता तो शायद यही करता। सोचों एक लड़की अकेली दूसरे देश मे सिर्फ अपने पति के सहारे थी और तुमने वही पति छीन लिया उससे।" मेरी बातों का रोजी पर असर हुआ। उसने आर्या को छोड़ दिया। रोजी की आंखों से आँसू बह रहे थे।

"माफ कर दो इसे रोजी और खुद को भी इस बंधन से आज़ाद करो।" तांत्रिक भी बोला।
उसने रोजी का गाउन हवन में डाल दिया और बोला। "ये तुम्हारी उस शादी का गाउन है जो हो नही पाई। इसी के मोह में बंध कर तुम इतने साल तड़पती रही। भगवान तुम्हें मुक्ति दे।"
गाउन के जलने के साथ ही रोजी की आत्मा एकदम सुंदर रूप में आ ग़ायब हो गयी। जाते जाते वो एक प्यारी सी मुस्कान देकर गयी जिसका अर्थ था कि उसने माफ किया।

"अब इसके कंकाल को किसी पादरी को देकर दफन करवा देना।" तांत्रिक बोला।

हम सब बाहर आ गए। आर्या नज़रें नही मिला पा रही थी ।

"तुम्हें अपने दोस्तों को नही मारना चाहिए था।" मैंने कहा।

"हां आर्या हम सोच भी नही सकते थे कि तुम टीना औऱ प्रतीक को मार दोगी।" अजय और राहुल बोले।

"वो सच जानने के बाद मुझे मारना चाहते थे। वो कह रहे थे कि मेरे मरने के बाद ही वो आत्मा उन्हें जाने देगी। मैंने खुद को बचाने के लिए मारा। आर्या बोली

"कैसे यकीन करें तुम्हारा।" अजय बोला।

"माफ करो तुम भी। जब रोजी ने कर दिया तो तुम भी कर-दो हो सकता है इसकी बात सच हो।" मैंने दोनों को समझाया।

हम लोग कॉटेज से निकल कर दूर आ गए थे। हमारे पीछे से अचानक आवाज आई। हम पलट कर देखे तब तक किसी ने तेज रफ्तार से चाकू फेंक कर आर्या को मारा। आर्या तुरंत गिर पड़ी और मर गयी।
हमने देखा तो वो टीना की आत्मा थी। खौफ नाक शक्ल लिए वो बोली। "रोजी ने माफ कर दिया पर मैं नही करुँगी।"

।।।।।