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निर्मल



पिछले तीस सालों से वह पंचायत प्रधान थे। लोगों के सुख दुख में वे हमेशा शामिल रहते थे। कारण वे पहले दुख की व्यवस्था करते थे फिर उसे दुर करके सुख में बदल देते। शादी ब्याह जैसे आयोजनों में अवश्य पहुंचते थे। ये उनका जनसेवा का अपना स्टाइल था। उनका नाम माता पिता ने रामदेव रखा था लेकिन क्षेत्रीय भाषा का कलेवर चढ़ने से वे रामदेउ बन गये थे। यों पत्नी को चार बच्चे और सीओ साहब को रिश्वत छोड़कर, किसी को कुछ दिया नहीं ।
सुबह सुबह विडॉल मोबिल का डिब्बा संभाले मैदान की दिशा में रेल बने हुए थे कि तभी जोगिंदर चैन पुलिंग कर दिये " मुखियाजी परणाम्"
रिवर्स परणाम् कहके टारने की कोशिश किए। लेकिन उ तो पिलवा मकते पीछे पीछे चलने लगा। ऐसी विपत्त घड़ी में भी रामदेउ अपने वोट की अवहेलना न कर सके। अपने दर्द को भूल उसका दुख पूछने लगे "और सुनाओ क्या हाल है?"
जोगिंदर सुनाने ही तो आए थे लेकिन प्रचलित अफवाह कि सत्ता गरीबों की नहीं सुनती के प्रभाव में हिचकिचा रहे थे। सत्ताधारी अपने आप को भगवान से कम नहीं समझता। लेकिन भगवान भी भक्तों के आगे विवश होते हैं। उपर से रामदेउ जमीन से जुड़े नेता थे और तत्काल भी जुड़ने ही जा रहे थे।
मौका मिलते ही जोगिंदर अपनी इच्छा पटक दिये "उ तनी मिलकिया वाली के वृद्धा पेंशन चालू करवा देतियै। "
रामदेउ मकई के मेड़ पर रूक गये और लघुशंका निस्तारण करते हुए अपनी शंका जोगिंदर के सन्मुख रख दी " ओक्कर त दूनो बेटा के छिक्छा मित्र में करवा देलियै, तब्बो ओकरा दिक्कत हैई खाए पिए के । "
जोगिंदर पतंजलि दंत कांति से सुवासित दंत पंक्ति का प्रदर्शन किये " अपने आउर के आशीर्वाद से खाए पीए के दिक्कत न हैई। लेकिन बुढ़िया के बीड़ी पिये के आदत हैई । पतोहिया स से हरदम पाँच रूपा दस रूपा के लेल किट किट होईत रहैछैई।"
वह डिब्बा उठाकर मकई में घुसने के लिए तैयार होते हुए उसको अभय देने ही वाले थे कि अचानक मानों उनके भीतर आकाशवाणी हुई " अरे ससुर के नाती इ तो नेता हुयै चाहत है।"
फौरन से प्रधान चौकीदार की तरह व्यस्त होते हुए घुड़के "ओकर बेटा सब चिंता करतैई , तू काहे नेता बन रहा है।"
इस परिस्थिति के लिए जोगिंदर तैयार न थे हड़बड़ी में मुँह का खैनी घोंटा गया।
इस दुर्घटना से उबरते हुए उत्कोच अस्त्र का संधान किया " तनी मनी जे खर्चा लगतैय देतैय हो$$ "
इस अमोघास्त्र से शायद ही कोई नेता बचा हो। उन्होंने मकई में घुसे कदम वापस खींच लिए। काम बनते देख जोगिंदर के अरमानों में कोपल लग गये " एगो बख्तियारपुर वाली के इंदिरा आवास भी करवावे के रहे। "
इधर उनको धोती पीली होने का खतरा महसूस हुआ तो अभय दे दिए "जो सरवा बीस तारीख वाला कार्यक्रम में टेंट के खर्चा उठा लिहे सब हो जतौ। "
जोगिंदर उत्साह में आ गये "कैसन कार्यक्रम हैई?"
लोटा को लेफ्ट से राइट हैंड में ट्रांसफर करते हुए मूंछ पर ताव दिये "अप्पन पंचायत के निर्मल ग्राम पुरस्कार मिल रहलै हन। "
इस बेध्यानी में पेट का ढक्कन खुल गया कुछ बाहर गिरे इससे पहले ही वह मकई में गुम हो गए।

मिनट भर भी न गुजरा था कि मकई में से चिल्लाये " के है रे तोरी .....के।"
जोगिंदर ज्यादा दूर न गये थे दौड़कर मेड़ पर आए "क्या हुआ मुखियाजी "
अंदर से वह झुंझलाये " कौनो ससुर ढ़ेला मारके डब्बा गिरा दिया।"
जोगिंदर हँसी दबाते हुए नजर दौड़ाये " बहोरना के पोता रहो , उहे तेतरी देवी के बेटा जेकर नाम एक नंबर पर रहलौ हन। जेकर भतार न है मरल ओकरे बेटा।"
फिर खिखिआते हुए बोले " रूकिए पानी ले के आते है।"
तीस साल से पंचायत प्रधान थे एक एक की रग पहचानते थे इ जोगिंदरा अब दिनभर भेंट नहीं देगा । अब उनके सामने दो ही वैकल्पिक मददगार थे मकई का पत्ता और गमछा । पत्ते के रोयें से छिल जाने का खतरा था सो गमछे का बलिदान कर वे मकई से फुफकारते हुए बाहर आए।
एकदम अगिया बैताल हुए सीधे तेतरी देवी के दुआर पर पहुंचे । तेतरी प्रधानजी को दुआरी चढ़ता देख परणाम् फेंकती हुई मचिया लेने अंदर दौड़ी ।
प्रधान को आया देख बहोरन भी लुढ़कते हुए आकर खड़े हो गये । प्रधान अपना गुस्सा बहोरन पर ही उतारने लगे तो तेतरी ससुर को आया देख मचिया रख दरवाजे की ओट में हो गई। गाली गलौज कर भड़ास उतार रामदेउ चलने को खड़े हुए तो दरवाजे को लक्ष्य कर के सुनाए इस्कूल भेजिए उसको न तो चोर लूक्कर हो जाएगा।
दरवाजे के पीछे से कूक आई "दुआरी पर अलखिन आ बिना चाह पीले चल जथिन "
रामदेउ फुस्स गुब्बारे की तरह बैठ गये। चाय सुरके तो काली चाय से मुँह कसैला हो गया । तेतरी फुसफुसाई "चीनी कम हैंई। "
रामदेउ गंभीर हुए "इंदिरा आवास त बहुत मुश्किल है जनरल वाला के लेल इ सब । कुछ औरो सोचे के पड़ी।"
तेतरी ने विकल्प सुझाया " आंगनबाड़ी में करा दिऊ , मैट्रिक पास हतियै "
कप जमीन पर रखते रामदेउ की नजर तेतरी के पाँव पर पड़ी , उफ्फ इतनी सुधड़ औरत इस हाल में। सोचते सोचते कुछ सूझा "हम्मर सार एगो इस्कूल खोललथिन हन कहिं त ओकरे होस्टल वारडेन लेल बतियायें। उहें रह जाएम और लड़िकवो पढ़ लेत।"
अंधे को क्या चाहिए दो आँखें , यहाँ तो साथ में सिनेमा का टिकट भी मिल रहा था।
तेतरी को एकमुश्त खुशियों पर शंका हुई "ओमे भी कुछ घूस उस लगतै कि।"
"उ सब हम बतिया लेंगे तुम झोरा बोरा बाँध लो।"
तेतरी दरवाजे की ओट से निकल आई और हाथ जोड़ते हुए बोली "ऐसन हो जाई त बड़ी एहसान हो जाई। "
उन्होंने हाथ उपर उठाये " हम कुछ करे आ देवे वाला के, सब त उन्हीं के किये होता है ।भगवान भगवान करू जरूर हो जाई। "