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पेंसिल और रबड़

यह कहानी है दो दोस्तों की। यह दो दोस्त कोई भी दो आम दोस्त हो सकते है ‌। पर हमारी कहानी के ये दो दोस्त हैं पेंसिल और रबड़। हां-हां हमारे ज्यामेट्री बॉक्स वाले पेंसिल और रबड़।



हमारे यह पेंसिल और रबड़ दोनों पक्के वाले दोस्त होते है। दोनों दिन-रात एक-दूसरे के साथ रहते। पेंसिल को कोई जरा भी छिलता तो दर्द रबड़ को होता। कोई बच्चा मुंह में लेकर रबड़ को काट देता तो तड़प पेंसिल जाती।


पेंसिल कोई जरा सी भी गलती कर देती तो रबड़ तुरंत आकर उस गलती को मिटा देता और पेंसिल अपनी गलती को सुधार देती।


पूरे ज्यामेट्री बाॅक्स में इनकी दोस्ती की चर्चा थी ‌। सब इनकी दोस्ती की मिसाल देते थे। पर कहते हैं ना कि जहां आपसे प्यार करने वाले होते है, वहीं कुछ लोग आपसे जलने वाले भी होते हैं तो ऐसा ही एक शार्पनर ज्यामेट्री बॉक्स में भी था, जो इन दोनों की दोस्ती से जलता था और रोज़ इन दोनों की दोस्ती तुड़वाने के ही सपने देखा करता था और एक दिन वह पेंसिल के पास आया और पेंसिल से बोला क्या पेंसिल बहन तुम भी दिनभर कहां उस रबड़ के साथ घूमती रहती हो, कहां तुम इतनी दुबली-पतली, लम्बी, नाजुक सी और कहां वो मोटा-नाटा सा रबड़। तुम दोनों की जोड़ी बिल्कुल अच्छी नहीं लगती।इसी तरह की और भी बातें कहते हुए शार्पनर पेंसिल को रबड़ के खिलाफ भड़का देता है। अब वह रबड़ से बात नहीं करती। इधर रबड़ को समझ ही नहीं आता कि आखिर पेंसिल को हुआ क्या है, वह उससे बात करने की बहुत कोशिश करता पर पेंसिल उसे भाव ही नहीं देती।


एक बार कलेक्टर साहब का कोई अर्जेंट भाषण होता है वह पेंसिल से अपने नोट्स तैयार करते हैं तो पेंसिल से कुछ ग़लत लिखा जाता है। कलेक्टर साहब को पेंसिल पर बहुत गुस्सा आता है,वह उससे सही करके लिखने को कहते है, पर पेंसिल का दोस्त रबड़ तो उसके साथ होता ही नहीं है कि जिससे की वह अपनी गलती को सुधार पाएं।


इधर कलेक्टर साहब का गुस्से से तमतमाया चेहरा देखकर पेंसिल रोने लगती है कि आज तो उसकी ख़ैर नहीं। उसे अपने दोस्त रबड़ की बहुत याद आती है। इतने में रबड़ का वहां से गुजरना होता है और वह पेंसिल को ऐसे रोते हुए देखता है तो उसे बहुत दुख होता है,वह तुरंत पेंसिल के पास जाता है और उससे उसके रोने का कारण पूछता है तो पेंसिल अपनी गलती बता देती है और कहती हैं कि कलेक्टर साहब बहुत नाराज़ हैं। रबड़ बोलता है कि इसमें इतना रोने की क्या जरूरत थी मुझसे कहती मैं तुरंत गलती को मिटा देता और तुम सुधार कर देती। रबड़ ऐसा कहते हुए तुरंत गलती को मिटा देता है और पेंसिल सुधार करके लिख देती है। कलेक्टर साहब बहुत खुश होते हैं और एक नये ज्यामेट्री बाॅक्स में पेंसिल को रखने वाले होते है कि पेंसिल उनसे कहती है कि वह अपने दोस्त रबड़ के बिना नहीं रहेगी क्योंकि उसका सच्चा दोस्त रबड़ ही है जो उसकी हर गलती को मिटा देता है। कलेक्टर साहब रबड़ को भी नये बाॅक्स में रख देते हैं।और दोनों वापस पक्के दोस्त बन जाते हैं।


ऐसा ही हमारे जीवन में भी होता है हमारा सच्चा और अच्छा दोस्त वहीं है जो हमारी गलतियों को दूर कर उसे हमें सुधारने का मौका दे।