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ग्रामीण बच्चियां और उनका बचपन

मैं एक शिक्षक हूं। मेरी पोस्टिंग एक ग्रामीण इलाके में है। मेरा स्कूल को-एड है, जैसा कि अमूमन हर शासकीय स्कूल होता है। हमारे देश में हालांकि बाल-विवाह कानूनन अपराध है, पर अभी भी ग्रामीण इलाकों में बाल-विवाह होते हैं। मेरी जिस गांव में पोस्टिंग है वह भी इससे अछूता नहीं है। मेरे स्कूल में एक लड़की पढ़ती थी सोनिया (काल्पनिक नाम )। वैसे यह हर ग्रामीण लड़की की कहानी है। हालांकि यह उसका पैतृक गांव नहीं था, वह हमारे गांव की भानेज है। गांवों में यह भी प्रथा है कि वह अपनी लड़कियों की प्रथम संतान का लालन-पालन स्वयं करते हैं और शादी भी वही करते हैं। सोनिया भी अपने माता-पिता की प्रथम संतान थी तो इसलिए वह भी यहां अपने नाना-नानी के पास रहती थी, उसके परिवार में उसके नाना-नानी, दो मासीयां, एक मामा और वह थी।

सोनिया पढ़ने में बहुत होशियार थी। मैं जब भी उससे बात करती वह एक ही सवाल पूछती मेडम जी आप कितनी कक्षा तक पढ़े हो। मैं उसे अपनी एज्युकेशन क्वालिफिकेशन बता देती। हालांकि डिग्रियों की समझ उसमें नहीं थी, पर उसका मेरी क्वालिफिकेशन पूछने का एक ही मकसद होता था कि उसका बालमन कहीं न कहीं एक शिक्षक बनने के सपने बुन रहा था। मेरे स्कूल की वह एकमात्र ऐसी लड़की थी जो बिना नागा किए स्कूल आती थी।चाहे कितनी भी बारिश हो, ठंड हो, गर्मी हो वह स्कूल आना कभी मिस नहीं करती थी। गांवों में जब फसल कटाई का समय होता तब कोई भी बच्चा स्कूल नहीं आता। जो बड़े बच्चे हैं, वह फसल कटाई का काम करते है और जो छोटे हैं वह या तो अपने से छोटे भाई-बहनों का ध्यान रखते हैं या फिर जो अनाज के दाने काटते समय खेतों में बिखर जाते हैं उन्हें इकट्ठा करने का काम करते हैं ताकि उन दानों को बेचकर अपने लिए नये कपड़े, खिलौने या अन्य कोई भी समान जो वह चाहते है वह खरीद सकें, पर सोनिया फसल कटाई के समय भी बिना छुट्टी किए रोज़ अकेली स्कूल आती। हम स्टाफ मेम्बर्स उसे बोलते जब कोई नहीं आया तो तुम क्यों आती हो, तुम भी छुट्टी मनाओं, पर वह कहती कि जब कोई नहीं आता तब आपका पूरा ध्यान मुझ पर होता है तो मुझे सब-कुछ अच्छे से समझ आता है और आप पूरा समय मुझे पढ़ाते हो तो मैं उन सबसे आगे निकल जाती हूं।

सोनिया जब कक्षा ३रीं में आई तो वह कुछ दिनों तक स्कूल नहीं आई। शुरू के एक-दो दिन तो मैंने भी ध्यान नहीं दिया कि शायद बीमार हो पर जब वह पूरे सप्ताह नहीं आई तो मैंने कक्षा के बाकी बच्चों से पूछा तो उन्होंने मुझे जो बताया वह सुनकर मैं अवाक रह गईं। बच्चों ने मुझे बताया कि मेडम सोनिया की तो कल शादी है। मैंने कहा क्या? तो बच्चों ने एक बार फिर कहा मेडम सोनिया कि कल शादी है। मैंने अपने स्कूल में मध्याह्न भोजन बनाने वाली भाभी से पूछा तो उन्होंने मुझे जो बताया उसे सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया, उन्होंने मुझे बताया कि सोनिया की दोनों मौसियों के साथ-साथ उसके नानाजी उसकी भी शादी कर रहे है। यूं तो उसकी मौसियों की उम्र भी ज्यादा नहीं थी वह १५-१६ साल की थी पर गांव के अनुसार यही शादी लायक सही उम्र थी इसलिए उससे मुझे भी इतना फर्क नहीं पड़ा, पर सोनिया वह तो महज आठ साल की थी। मैंने मध्याह्न भोजन वाली भाभी से पूछा कि सोनिया की शादी की इतनी जल्दी क्यों। तो उन्होंने मुझे बताया कि उसके नानाजी का कहना है कि उसकी मौसियों की शादी के साथ ही वह सोनिया की शादी भी कर देते हैं तो बाद का खर्च बच जायेगा और एक ही बार में तीनों निपट जाएगी।और वैसे भी गांव वाले कहते है कि एक भानेज परनाने (शादी करने) पर जो पुण्य मिलता है वह १०० गाएं दान करने के बराबर होता है, यह सुनकर तो मुझे और अधिक गुस्सा आया कि यह कैसा पुण्य है जो एक छोटी-सी बच्ची की जिंदगी बर्बाद करके कमाया जाएं। मैंने कहा मैं इस विवाह का विरोध करूंगी तो मेरे साथी स्टाफ और मध्याह्न भोजन वाली भाभी ने मुझे कहा कि मेडम यह तो गांवों में आम बात है।आप इनका विरोध करके अपने लिए ही मुसीबतेंं बढ़ाएंगी और आप किस से इनकी शिकायत करेंगी, इनके यहां शादियों में बड़े से बड़े नेता से लेकर कई बड़े अधिकारी भी शामिल होते हैं,जब वह लोग कुछ नहीं करते तो हम या आप जिन्हें इन लोगों के बीच रहकर ही अपनी सर्विस करनी है,क्या कर सकते हैं और पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर रखना सही नहीं होगा। वह अभी सिर्फ उसकी शादी कर रहे है, बिदाई तो उसके समझदार हो जाने के बाद ही करेंगे। उनकी बातें मुझे भी कहीं सही लगी तो मैंने भी उसका विरोध नहीं किया।

चार दिन बाद सोनिया वापस स्कूल आने लग गई। वह इन दस-बारह दिनों में हुई अपनी पढ़ाई का नुक़सान पूरा करने के लिए ज्यादा होमवर्क लेने लगीं।तीन दिन में उसने अपने पिछड़े कोर्स को कम्प्लीट कर लिया।समय निकलता गया उसने ५वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली, चूंकि हमारा स्कूल प्राथमिक विद्यालय है तो अब उसे आगे की पढ़ाई के लिए पास के गांव में जाना था। हमारे गांव के जस्ट पास में एक गांव है जहां पांच मिनट में आप पैदल ही पहुंच सकते हो, हमें भी बस वगैरह के लिए पैदल ही उस गांव तक जाना पड़ता है। उस पास के गांव में हायर सेकेंडरी तक स्कूल है तो हमारे गांव के सभी बच्चे ५वीं के बाद वहीं पढ़ने जाते हैं। सोनिया ने भी उस गांव के स्कूल में अपना दाखिला करवा लिया।

वक्त गुजरने लगा एक दिन मुझे अचानक सामने से दो छोटे बच्चों को लिए सोनिया आती दिखाई दी। उसका चेहरा एकदम मुरझाया हुआ बिल्कुल सफेद पड़ चुका था।हरदम खुश रहने वाली, गुलाब सी खिली-खिली रहने वाली सोनिया का यह रूप देखकर मैं एकदम हतप्रभ रह गयी।जब मैंने उससे उसकी इस हालत के बारे मैं पूछा तो जो उसने बताया वह हैरान करने वाला था।

उसने कहा जब उसने ६ठीं कक्षा में पास के गांव में दाखिला लिया तो वह बहुत खुश थी कि अब वह यहां से १२वीं तक की पढ़ाई पूरी करेगी और फिर शिक्षक प्रशिक्षण कोर्स करेंगी, पर जब वह ७वीं कक्षा में थी तब उसकी सांस का देहांत हो गया तो उसके ससुराल वाले यह कहकर कि उनके परिवार में कोई महिला नहीं है और काम-काज की दिक्कत आती है तो वह उसकी बिदाई करवा कर लें गये। सोनिया रोज सुबह ५ बजे से उठती और चौका-चूल्हा निपटाकर खेतों पर चली जाती, शाम को वापस आकर फिर चौके-चूल्हें में लग जाती। दिन भर काम करने और १६ साल की उम्र में दो बार की डिलीवरी होने के कारण उसके शरीर में खून की कमी हो गई है। उसकी दो लड़कियां हैं और डाॅक्टर ने अब उसे किसी भी तरह की रिस्क लेने से मना किया है।उसके ससुराल वाले चाहते हैं कि एक लड़का हो इसलिए उन्होंने सोनिया को छोड़कर उसके पति का दूसरा विवाह कर दिया है। सोनिया जो की अभी खुद एक बच्ची है, अपनी दो बच्चियों को अकेले पाल रही है। उसका बचपन उसके अपनों ने ही छिन लिया है। और मैं भी यही सोच रही हूं कि आखिर एक भानेज की शादी करके उसके नानाजी ने पुण्य कमाया या उसका जीवन बर्बाद करके वह पाप के भागीदार बनें हैं।