Tasvir ka sach - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

तस्वीर का सच - ३

शाम को समीर ने टी वी फिक्स कर दिया, समृद्धि ने शाम को चाय और ब्रेड-पकौड़े बनाए और सबसे कहा कि बालकनी में चलो वहीं बैठकर चाय पियेंगे और पकौड़े खाएंगे।।
सब बालकनी में आए,शाम को डूबते सूरज का नज़ारा भी बहुत अच्छा लग रहा था,सब मिलकर बातें कर रहे थे और पकौड़ों का आनन्द ले रहे थे।।
तभी अचानक एक मरा हुआ बड़ा सा चमगादड़ समृद्धि की गोद में जा गिरा, समृद्धि डर के मारे जोर से चीख पड़ी__
समीर कहा ने रिलैक्स समृद्धि..... रिलैक्स और समीर ने उस चमगादड़ को उठाया, वहीं दूर ले जाकर एक गड्ढा खोदा और चमगादड़ को दफना दिया।।
समृद्धि बोली,मैं नहाकर आती हूं और वो नहाने चली गई।।
थोड़ी देर बाद शाम होने लगी, और चारों तरफ अंधेरा गहराने लगा था, कहीं से झांय झांय करके झींगुरो की आवाज आ रही थी तो कहीं ना कहीं किसी ना किसी पंक्षी की आवाज सुनाई ही दे जाती,रात में वैसे भी कोई भी आवाज डरावनी लगती है।।
रात के आठ बज चुके थे, समृद्धि ने कहा चलो सब खाना खा लो ,खाना बन गया है और सब खाना खाने बैठे, समृद्धि जहां बैठी थी उसके सीधे सामने खिड़की पड़ रही थी उसे ऐसा लगा कि खिड़की के बाहर कोई है लेकिन आस-पास जो घर है वो भी बहुत दूर दूर है, ऐसे कैसे कोई हो सकता है फिर वो खाना खाने लगी,सबका खाना ख़त्म होने के बाद सब अपने अपने कमरे में चले गए , समृद्धि बोली मैं किचन और टेबल साफ करके आती हूं, समृद्धि टेबल साफ कर रही थी एकाएक उसे फिर लगा कि खिड़की के बाहर कोई है उसने इस बार खिड़की से झांक कर देखा तो उसे दूर अंधेरे में चार लोग एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए नजर आए, ध्यान से देखा लेकिन उनके चेहरे नहीं दिख रहे थे, उसे लगा होगी कोई आस पास की फैमिली जो खाना खाकर टहल रही होगी उसने ज्यादा ध्यान दिया नहीं दिया और गंदी प्लेट्स किचन में रखकर वापस आई तो वो उस तस्वीर को देखकर हैरान हो गई उसने देखा कि वो चारों उस तस्वीर नहीं है जो वो लेकर आई थी, उसने खिड़की से फिर बाहर झांक कर देखा तो हुबहू वहीं चारों लोग खिड़की के बाहर खड़े होकर समृद्धि को देखकर मुस्कुरा रहे थे।।
अब तो समृद्धि की बुरी तरह चीख निकल गई,उसकी चीख सुनकर सब भागे भागे आए , समृद्धि पूछा कि क्या हुआ, समृद्धि ने सब घटना कह सुनाई, समृद्धि की बात सुनकर समीर ने तस्वीर की ओर देखा तो तस्वीर में चारों लोग थे,समीर ने कहा, समृद्धि वो देखो तस्वीर सब ठीक है,तुम भी ना, फ़ालतू में डरा दिया।।
अब समृद्धि की समझ से सब कुछ परे था, ऐसे कैसे हो सकता है, मैंने ध्यान से देखा था वो लोग तस्वीर में नहीं थे।।
समृद्धि सोने आ गई और यही सोचते सोचते सो भी गई।।
करीब आधी रात को समृद्धि को लगा कि किचन से कुछ आवाजें आ रही है, उसने समीर को जगाया लेकिन समीर गहरी नींद में था वो नहीं जगा, बोला समृद्धि तुम खुद ही देख लो।।
समृद्धि किचन में धीरे धीरे और डर डर कर आ रही थी उसने किचन की लाइट ओन की देखते ही उसकी चीख निकल पड़ी, वहां बहुत सारे चमगादड़ लहुलुहान मरे हुए पड़े थे, जहां देखो वहीं खून बिखरा पड़ा था वो बेडरूम की ओर भागी,समीर को जगाने,जब तक वो समीर के साथ लौटी वहां कुछ भी नहीं था।।
समीर बोला, समृद्धि तुम्हें हो क्या गया है,जब देखो तब तुम कुछ ना कुछ अजीब सा ही बोलती रहती हो।।
हां...समीर... यहां पड़े थे,मरे हुए चमगादड़,मैं झूठ नहीं कह रही, समृद्धि बोली।।
समीर बोला अभी सोने चलो, बहुत रात हो गई है,कल बात करते हैं और समृद्धि सोने चली गई लेकिन नींद कहां....
सुबह हुई समृद्धि और समीर बालकनी में बैठ गए,समृद्धि बहुत ही अनमनी थी,कल रात की पहेली वो सुलझा नहीं पा रही थी कि वो सब झूठ था लेकिन झूठ कैसे हो सकता है फिर अचानक कैसे सब गायब हो गया।।
तभी अंदर से कृतज्ञता अपनी आंखें मलते हुए आकर बोली,गुडमार्निग.....मम्मा,गुडमार्निग... पापा.... समृद्धि ने देखा कि कल वाली गुड़िया कृतज्ञता के हाथों में है।।
तभी समृद्धि ने कृतज्ञता से पूछा,कल तो हम लोग ये गुड़िया तालाब किनारे फेंक आए थे ये वापस कैसे आ गई।।
पता नहीं ,मम्मा मैं रात को जब सोने गई थी तो ये मेरे बिस्तर पर पहले से थी, मुझे लगा आप ने लाकर रख दी होगी, कृतज्ञता बोली।।
लेकिन मैंने तो नहीं रखी, समृद्धि बोली।।
अब समृद्धि बहुत ज्यादा परेशान हो चुकी थी,ऐसी अनचाही सी चीजें हो रही थी जिसे वो समझ नहीं पा रही थी।।
थोड़ी देर बाद समृद्धि ने नाश्ता बनाया सबने नाश्ता किया, समृद्धि बोली बच्चों जाओ तुम लोग बाहर खेलों, अभी लंच के लिए थोड़ा टाइम है तब तक मैं बचा हुआ सामान भी अनपैक कर देती हूं,समीर बोला ठीक है मैं भी लैपटॉप पर कुछ आफिस के काम निपटा लेता हूं, कुछ हेल्प चाहिए तो बता देना।
समृद्धि बोली ठीक है तुम जाओ, मुझे हेल्प चाहिए होगी तो बुला लूंगी।।
थोड़ी देर बाद समृद्धि सामान के पास पहुंची, कमरे में अंधेरा सा था उसने लाइट ओन की, जैसे ही लाइट ओन की बल्ब फ्यूज हो गया किर्र....किर्र...की आवाज के साथ,तब समृद्धि ने खिड़की खोल ली, उसने अलमारी खोली फिर कपड़ों के भरे कुछ कार्टून खोले और जैसे ही अलमारी में कपड़े रखने को मुड़ी उसने अलमारी की सामने वाली सीध में रखें आइने में देखा कि एक औरत अलमारी में कपड़े रख रही है तभी उसने अलमारी की तरफ देखा वहां कोई नहीं था उसने फिर आइने की ओर देखा तो वो औरत फिर से कपड़े अलमारी में रखती हुई नजर आई उसने फिर अलमारी की देखा तो वहां कोई नहीं था, तभी समृद्धि जोर से चीखने की हुई लेकिन उसके मुंह पर किसी ने हाथ रख रखा था और उसके दोनों हाथों को पीछे से पकड़ रखा था, थोड़ी देर की मेहनत मसक्कत के बाद समृद्धि ने अपने आपको छुड़ा कर बाहर की ओर भागने लगी तभी कार्टून में से एक बड़ा सा हाथ निकला और उसके पैर को जोर से पकड़ लिया, समृद्धि अब जोर से चीखी,चीख सुनकर समीर भागकर आया,तब तक वो हाथ गायब हो चुका था।।
समृद्धि डर के मारे समीर से लिपट गई और हकलाते हुए बोली,समीर... यहां जरूर कुछ है,इस बार तुम्हें मेरी बात माननी होगी।।
समीर बोला, ठीक है... ठीक है...अभी शांत हो जाओ।।
समृद्धि बोली,इस घर में कुछ है।।
समीर बोला, अभी तुम चलो थोड़ा आराम कर लो, मैं बच्चों को बाहर से बुलाता हूं।।
समृद्धि सो गई,दोपहर में समीर ने दाल चावल बनाया और समृद्धि को जगाकर बोला चलो खाना खा लो, सबने खाना खाया और सब टी वी देखने में लग गए।।
समीर बोला,अब मैं आराम करने जा रहा हूं,समीर बेडरूम में आकर किताब पढ़ने लगा, तभी उसने किताब से नजर हटाई तो देखा कि एक बूढ़ा सूट बूट में हैट लगाए हुए हाथ में छड़ी लेकर हाल से किचन की ओर जा रहा है उसने समृद्धि से कहा कि समृद्धि कोई आया है क्या?
समृद्धि बोली, नहीं तो।।
समीर बोला तो ये बूढ़ा कौन है,जो किचन की ओर जा रहा है।।
समृद्धि बोली,कौन... कहां है बूढ़ा....
अरे वही जो अभी किचन में गया, समृद्धि बोली।।
समृद्धि बोली, कोई नहीं है....
समीर दौड़कर किचन की ओर गया,देखा तो वहां कोई नहीं था___

क्रमशः___
सरोज वर्मा___