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स्वप्न सुंदरी

अलार्म लगातार बज रहा था।
अलार्म की आवाज से मेरी नींद टूटी।
आंखे खोलने पर भी कुछ देर तक मुझे कुछ समझ नहीं आया कि मैं कहा हूं। छत का फैन पूरे स्पीड से घूम रहा था।खिड़की के बाहर से पुराने कूलर की खट,,,खट,,की आवाज भी आ रही थी।

रोशनदान से छनकर सूरज की रोशनी कमरे की दीवार के कुछ हिस्से को पीला किये हुए थी।

नीचे पानी की मोटर की आवाज के साथ-साथ मकान मालकिन की कर्कश आवाज मेरे कानों में पड़ी। अब तक जो मस्तिष्क शून्य हुआ था वह समझ चुका था कि मैं अपने किराये के रूम में पड़ा हूँ।

ओह! इससे पहले जो घट रहा था वह सपना था..........

मैंने हाथों से टटोल कर टेबल लैम्प जलाया और अलार्म बंद किया ।घड़ी पर नजर डाली सुबह के साढ़े सात बज रहे थे।मैं हड़बड़ाकर उठ बैठा। ओह देर हो रही थी।
आज मेरे पहले केस की हियरिंग थी जिसमें बतौर लाॅयर मैं पेश होने वाला था।उसके संबंध में कुछ तैयारी भी करनी थी।मैं जल्दी जल्दी तैयार होने लगा।आज पहली बार मैंने बैंड बांधा था....................

रूम से निकलते निकलते फिर भी नौ बज गये थे।मैं तेज कदमों से बस स्टैंड की ओर चलने लगा जो कि मेरे रुम से पांच सौ मीटर की ही दूरी पर था।अब भी मैं थोड़ा अस्त-व्यस्त सा था।

बस स्टैंड पर काफी भीड़ थी। वैसे भी वर्किंग टाइम पर यहां काफी भीड़ रहती है।स्कूल और कालेजों के छात्रों से पूरा स्टैंड गुलजार था।मैं भी अपना बैग सम्हाले एक ओर खड़े होकर भीड़ छटने का इंतजार करने लगा।
अचानक मेरी नजर बस स्टैंड के कोने पर खड़ी उस लड़की की ओर चली गयी ।एकदम अलग वह अकेले ही खड़ी थी। शक्ल-सूरत से मैंने उसकी अवस्था का अंदाजा लगाने कि कोशिश की और जहां तक मुझे समझ आया वह कालेज स्टूडेंट तो नहीं लग रही थी।
मेरी नजर बार-बार बस स्टैंड के कोने में खड़ी उस लड़की की ओर चली जाये। भीड़ से थोड़ा दूर वह कुछ ऐसी खड़ी थी मानो वह इसका हिस्सा न हो।

सफेद शर्ट के साथ नीली जींस पैरों में शूलेस शूज और पीठ पर लदा पिट्ठू बैग कम से कम पहनावा उसे माडर्न बता रहे थे ,,चेहरा भी आत्मविश्वास से भरा हुआ।

मैंने एक बार फिर ध्यान से देखा.. . . . ......

सहसा मुझे याद आया कि यह तो ठीक वैसे ही है जैसी मैंने सपने में देखा था ठीक वैसी ही जो किले के सामने ऊंचे उठे चबूतरे पर दिखी थी।

मैंने दिमाग पर जोर दिया और कुछ याद करने की कोशिश करने लगा। हां कपड़े भी उसी ढंग के वैसी ही कुछ अपने में खोई हुई।

तो क्या मेरा सपना सच है ? वास्तविकता में यह चरित्र मौजूद है...................

वैसे भी लोगों का मानना है कि रात्रि के आखिरी पहर में देखे गये सपने सच होते हैं और जल्द ही पूरे होते हैं। मैंने तो एकदम सुबह इसे देखा है।

मन ही मन मैं खुश भी था और थोड़ा आश्चर्यचकित भी।
मैंने आंखों को भींचकर गीला किया और एक बार फिर उस ओर देखा।

वह अब भी वहीं खड़ी थी। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या यह सपना था या यह वास्तविकता थी।यह सब इतनी जल्द सच होगा इसकी तनिक भी आशंका मुझे नहीं थी। किन्तु यह सब हो रहा था वो भी वास्तविक रूप में।

मैं इससे कैसे बात करूं ? वो कौन है ? यह जानना मेरे लिए बहुत आवश्यक हो चला था क्योंकि यह मेरे जीवन से जुड़ता सा मालूम हुआ और क्यों नहीं आखिर इन मोहतरमा को मैंने स्वप्न में जो देख रखा था ।

मैंने नजर छुपाकर फिर एक बार उस ओर देखा वह इन सब से बेखबर अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी।

चेहरे पर सुकून के भाव थे ऐसे जैसे हांफते शहर से उसे कोई मतलब ही न हो।वह ऐसे सरोवर जैसी थी जो गंभीर होने के साथ ही साथ स्थिर भी हो।बिल्कुल इन बेचैन चेहरों से। अलग।
उससे खुद सुकून प्रस्फुटन के माध्यम से चारों ओर बिखर रहा था।कई दिनों से जो बेचैनी मेरे भीतर पल रही थी वह उसके सामीप्य मात्र से घटती सी दिखाई दे रही थी।

मै धीरे-धीरे उसकी ओर खिचता चला गया। उसमें कुछ तो था जो मुझे आकर्षित कर रहा था।

ऐसा शान्त और सुकून भरा चेहरा मुझे आज तक नहीं मिला था।

मैं उसकी ओर बढ़ तो रहा था किन्तु समस्या यह थी कि मेरे इस काम को कहीं वो धृष्टता न समझ बैठे और कोई बखेडा खड़ा हो जाये।

तब तो लेने के देने पड़ जायेंगे।

पर मैं क्या करूं बात तो मुझे करनी ही थी।

आज पहली बार मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आ रहा था।सही कहते है सारे दोस्त लड़की से बात करना कैसे शुरु किया जाय मुझे इसका सलीका नहीं।

पर मैं पीछे नहीं हट सकता था क्योंकि उसकी सादगी और ताजगी मुझे ऐसा करने से रोक रही थी।फिर यह वही थी जो बार-बार मुझे सपने में दिखती है।मेरा कहीं न कहीं इससे कनेक्शन तो है।लगातार जारी रहने वाली खोज आज पूरी होती जो दिख रही थी।

तो क्या यही थी वो स्वप्न सुंदरी जिसका इंतजार मैं वर्षों से कर रहा हूं?????

मैं यही सब सोचते हुए उसके करीब तक पहुंच गया। इस तरह मुझे पास आते देख उसकी तंद्रा टूटी।
वह मेरी ओर मुखातिब हुई ऐसा लगा जैसे किसी शांत सरोवर में किसी ने पत्थर मार दिया हो और यह हरकत उसे पसंद न आयी हो।अचानक उसके मुड़ने से मैं हड़बड़ा गया।

मेरे मुंह से बस यही निकला मैंने आपको पहले कहीं देखा है।उफ्फ ये छिछले शब्द,,,,,,इतनी तैयारी धरी रह गयी,,,,,,मैंने फिर उसकी ओर देखा उसका चेहरा अब भी शांत था।
मैं झेंप चुका था किन्तु अपनी यह स्थिति को सम्हालते हुए फिर कहा मेरा मतलब आप यहां नयी लग रही हैं,,,,,,,,, यह कहकर मैं उसके उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा।सारा टैलेंट मैं झोंक चुका था अब बारी उसकी थी।काफी देर बाद वो धीरे से मुस्कुराई,,,,,,,,,,मुझे ध्यान से देखा और हंसते हुए कहा,,,,,,,,ब्लैक कोट ,,,यानी कि आप लाॅयर हो ,,,,,,,,

हां आई एम लाॅयर बट आई एम नाट टेल अलाय,,,,,,,,,,,

मेरे इस उत्तर से वह हंस पड़ी,,,,,,ओह रियली,,,,,,,बट,,,,,

आप यहां नयी लग रही हैं ,,,,,,,मैंने अपने प्रश्न को फिर दोहराया ।
करता भी क्या मुझे यह जानने की उत्सुकता तो थी पर कैसे यह पता नहीं था।
आप बड़ी जल्दी में हैं ,,,,,,,उसने कहा।
जी नहीं ऐसी बात नहीं है।
आप को कैसे पता कि मैं यहां नयी हूं।
जी छोटा सा शहर है हमारा ,,,नाम का समझिये इससे बड़े तो कई कस्बे होंगे। नया नया मुख्यालय बना है सो इज्जत थोड़ा बढ़ गयी। यहां लगभग हर कोई किसी को जानता है इसी आधार पर मैंने यह कह दिया।
अच्छा जी आप तो बड़े स्मार्ट हैं फिर आप ने पेशा भी वही चुना है जिसमें बाल की खाल निकाल दें,,,,,,,
ऐसा कुछ नहीं हैं हम तो बस अपने परिवार की परम्परा को बढ़ाने के लिए इसे,,,,,,,,,,,,,,इससे पहले मैं अपनी बात पूरी करता वह बोल पड़ी।
वैसे आपने सही समझा है मैं यहां नयी ही हूं ,,,,,?
आप किसी काम से यहां,,,,,,,,,,,,,,,
जी हां सभी काम से ही किसी जगह जाते हैं और मैं भी,,,,,,,,,,
मैं अपनी बेवकूफी पर पर हैरान था।एक भी सवाल सही से नहीं। मैं अपने दोस्त की उस एडवाइस को याद करने लगा जो पिछले हफ्ते ड्रिंक्स के समय उसने मुझसे कही थी। मैंने दिमाग पर जोर दिया,,,,,,,,,हाँ हा,,,,,,याद आया पहले मुस्कुराना था ,,,,,,,,दो तीन एंगल से ,,,,,,,फिर जब लगे कि वह कुछ इंप्रेस हो रही है तो,,,,,,,,
मैं एक आर्कियालाजिस्ट हूं,,,,,,,,,,,
यानी पुरानी चीजों में नया ढूढती हैं आप ,,,,,मेरे मुंह से अनायास ही निकला।
हां और मैंने सुना है कि यहां कोई महाभारत काल का पुरास्थल है और कुछ उससे भी पुराने,,,,,,,,,
आपने सही सुना है इनके बारे में पर क्या आप किसी संस्था की ओर से आयी हैं
नहीं ये मेरा सेल्फ इंटरेस्ट है मैं इन पर एक पेपर तैयार करना चाहती हूं।
ये तो बहुत अच्छा है माफ करियेगा अगर आप कहें तो मैं आपकी कुछ मदद करूं,,,,,,,वैसे मुझे भी पुरानी वस्तु और स्थलों को जानने में बहुत इंटरेस्ट है।

क्या मैं जान सकती हूं कि आपका लगाव अभी अभी मेरी बातें सुनकर पैदा हुआ है या वाकई ही आप इसमें रुचि रखते हैं।

उसकी बातें सुन मैं शर्म से लाल हो गया।मैंने लगभग हकलाते हुए कहा जी ऐसी कोई बात मेरा इंटरेस्ट सच में इस विषय में है ।यहां तक कि मैंने आर्कियोलॉजी में मास्टर डिग्री भी ले रखी है।

ओह ये तो अच्छा है !!!तो क्या आप मेरी मदद करेंगे उसने मुस्कुराते हुये कहा।

मेरी तो जैसे लाटरी लग गयी। मैं यही तो चाहता था कि कि उसके बारे में और अधिक जान सकू।यह तो मुंह मांगी मुराद पूरी होने जैसा था।अंदर-अंदर मैं बहुत खुश था किन्तु खुद को संयमित करते हुए कहा,,,,,,,,,,,,,ये सब मैं अपने पैशन के लिये करूंगा,,,,,,,,ये मेरी बुरी आदत है कि मै किसी को लीड लेते नहीं देख सकता।
आफकोर्स अपने लिये।
धीरे-धीरे बातें अनौपचारिक जोन में आ गयी।
माफ करियेगा मैं आपका नाम पूंछना भूल गया,,,,,,,,,,
जी याज्ञसेनी,,,,,,,,,,,,और आप,,,,,,,,,,
यौधेय,,,,,,,,,,,,,,, मेरे मुंह से धीरे से निकला,,,,,,,,,,,,,वह विस्मित सी मुझे देख रही थी।

यद्यपि मेरा नाम यौधेय नहीं है फिर भी मैंने उससे यही बताया क्यों यह मुझे भी पता नहीं था। शायद मन ही मन मैं उसे अपना मान चुका था।

आप यहां कहां ठहरी हुई है मैने पूंछा।

अभी तो एक गर्ल्स लाॅज में रूम लिया है फिलहाल वहीं हूं।
तब तक मेरी रिंगटोन बज उठी।ये वरुण का काॅल था मेरा असिस्टेंट ,,,,,,,,शायद वह कोर्ट पहुंच गया था ,और मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।

मुझे उससे बातें करते हुए काफी देर हो चुकी थी। बस स्टॉप के बाकी यात्री मुझे अजीब से घूर रहे थे।

मुझे जाना पड़ेगा वरुण मेरा वेट कर रहा होगा, ये रहा मेरा कार्ड यदि कोई जरूरत हो तो निःसंकोच मुझे सूचित करियेगा मुझे प्रसन्नता होगी।
यह कहकर मैं बस में चढ़ गया।वह वहीं अब भी खड़ी थी।रास्ते भर मैं उसके ही बारे में सोचता रहा।आखिर क्या है ?? जो मुझे वह इतनी खास लग रही थी।मैं मन ही मन इससे फिर मिलने की कामना कर रहा था,,,, ,,,,,,,,,,

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रास्ते भर मैं उसके ही बारे में सोचता रहा। यह बिल्कुल ऐसी है जैसे साथी की मैं कामना करता रहा हूं। आखिर लोग आज झूठे साबित हो ही गये जो यह कहते थे कि यह खूबियाँ संभव ही नहीं हैं।

यही सब सोचते हुए कब मैं बस से उतर कर कोर्ट परिसर में पहुँच गया मुझे पता भी न चला ।भीड़ के बीच में भी मुझे न कुछ सुनाई और न ही कुछ दिखाई पड़ रहा था मैं बस अपनी ही धुन में चलता जा रहा था।वो तो वरुण की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा।

शार्दूल सर कहां रह गये थे आप ? वो तेजी से मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा।

सर कहां रह गये थे?????
उधर हमारे केस की पुकार हो रही है और आप का अता पता नहीं चल रहा। वैसे भी आपने पहले ही सिर ओखली में दे रखा है तो कम से कम जब तक मूसल से बच सके तब तक तो प्रयास करना चाहिए और आप हैं कि इन सबसे बेखबर हैं।

करेंगे ना संघर्ष तू तो खामखाह डर रहा है अभी तुमने अपने भाई का जलवा देखा कहां है।

तेरा भाई अगर ठान ले तो आकाश झुका दे, नदी की धारा मोड़ दे पर्वत को नतमस्तक कर दे तूने अभी जाना कहां है मैंने शायराना अंदाज में उससे कहा।

पर इन बातों का उस पर कोई खास असर नहीं हुआ। आखिर वह मुझे पिछले पन्द्रह सालों से रोज ही देख रहा है।

मेरी बातों का मतलब वह अच्छे से जानता है ।मेरी यूटोपिया ( आदर्श ) को वह सुनता तो था पर वह वास्तविक रूप से बहुत व्यवहारिक व्यक्ति था।
सो उसने ज्यादा कुछ नहीं कहा। वह मुझसे असहमति के बाद भी मेरा विरोध नहीं करता था। उसका मेरे प्रति यह सम्मान ईश्वर का वरदान ही था।

फिलहाल जो ये रिट का फंदा गले में फंसाया है वही निकाल दो बस,,,,,,,,,
वरुण ने कहा।
यह फंदा नहीं है देखना जिसे तुम फंदा कह रहे हो उसी रस्सी से हम सीढ़ी बना कर बहुत ऊंचाई तक जायेगें।
ह,,,,,म् म्,,,, म् वो दिन कब आयेंगे ।वरुण ने एक लम्बी सांस ली।

वरुण मुझसे दो साल जूनियर था काफी समय से हम एक दूसरे को जानते है।वह मुझे बड़े भाई जैसा ही मानता है।यद्यपि हम दोनों ने साथ ही लाॅ करना शुरू किया किन्तु उसके कुछ पेपर में बैक आने से उसे डिग्री पूरी करने में एक वर्ष अतिरिक्त लगे और मैं यहां भी उसका सीनियर बन गया।वरुण बहुत ही तेज तर्रार है जहां मस्तिष्क का प्रयोग बहुत ज्यादा करना पड़े बस उसी काम को छोड़कर कुछ भी ऐसा नहीं जो उसके लिए असंभव हो।
तब तक कोर्ट रूम के चेम्बर नं सात से संतरी ने आवाज लगाई। मेरा केस इसी चेम्बर में था।मैंने और वरुण ने कागज पत्तर समेटा और तेजी से चेम्बर की ओर बढ़ गये।अगर सच कहूँ तो उस समय मेरी टांगे कंप रही थी।

काफी देर बाद जब कोर्ट रूम से मैं बाहर आया तो पसीने से तरबतर था।यद्यपि वहां पंखे चल रहे थे किन्तु जो दबाव मस्तिष्क पर मैंने महसूस किया उसने उसे बेअसर कर दिया। जज साहब को अपने तर्कों से कन्विंस करने में मेरी हालत खराब हो गयी। जबान बार बार ऐसे लड़खड़ा रही थी जैसे उसने ककहरा अभी अभी सीखा हो।कानून के पेचीदा लैटिन शब्द उन्हें बोलते बोलते तो मेरी जिह्वा भी अकड़ गयी ।फिलहाल मैंने पहली बाधा पार कर ली थी अब आगे जो आयेगा देखा जायेगा।

वरुण तुम्हारे पास कुछ पैसे हैं मैंने वरुण से कहा

पैसे किसलिए सर् वह चौंका।

तुझे पार्टी देनी है

कैसी पार्टी अभी तो केस सिर्फ स्वीकृत बस हुआ है।

अरे ये नहीं! कुछ दूसरी बात है किसी के बारे में कुछ बताना है मैंने धीरे से उसके कान के पास कहा।
क्या बात है सर् आखिर आप भी,,,,??????

हां! किन्तु इसके लिए मूड की आवश्यकता है और तू तो जानता ही है।
जरूर सर्,,,,,, आखिर इस दिन का मैं बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था। आज कुछ पैसे मिले हैं सर् काम हो जायेगा।
तो बाइक निकालो यहां का काम निपट चुका है मेरे रूम पर चलते हैं वहीं आराम से बात करेंगे।

मैं और वरुण पूरी तैयारी के साथ मेरे कमरे पर पहुंच गये ।दो तीन ड्रिंक्स सिप् गटकने भर से ही इंसान की आकाशवाणी और दूरदर्शन सेवा दोनो शुरू हो जाती है।मेरी भी ज्ञानवाणी पूर्ण प्रवाह पर थी।

हल्के नशे में ही मैंने सुबह की घटना के बारे में तफ्तीश से वरुण के सामने कही।बात को रोचक बनाने के लिए मैं बीच में मिर्च मसाला भी घुसेडता रहा।

वरुण बड़े ही ध्यान से मेरी बातें सुन रहा था।

हूँअअ तो ये बात है सर् आपने क्या नाम बताया??
किसका???? ओह !! अच्छा समझा,,,,,,,,,,,,, याज्ञसेनी,,,,,,

वाह-वाह सर नाम में ही इतना वजन है तो व्यक्तित्व में कितना होगा।

अब बोल तू जो कहता था कि ऐसी लड़की तो आप को स्वर्ग में या दूसरे जन्म में ही मिलना सम्भव है।

आई एम सारी सर् आयम टोटली रांग !! ,,,,रांग सर् ओनली यू नो दि ट्रूथ ,,,,,, ऐनीबडी कुड नाट,,,,,,
वरुण तो इंग्लिश पर आ गया था।

सर् मैं मान गया। सर् अगली डेट कब है।
तू भी मै तुझसे क्या बात कर रहा हूं तू है कि काम को फिर से बीच में लाकर घुसेड़ रहा है।
अरे सर् आप समझे नहीं मेरा मतलब अगली मीटिंग से था।आपने कोई पता, कान्टेक्ट ,कुछ इस तरह का लिया या नहीं। आप दोबारा उससे कैसे मिलेंगे।
हाँ ये तो मुझे याद ही नही रहा। किन्तु मैंने अपना कान्टेक्ट नंबर उसे दिया है और मुझे यकीन है कि उसका काॅल जरूर आयेगा।
हां सर् क्यों नहीं जरूर आयेगा आखिर आप भी तो इस धरा के यूनीक पीस हो।

काफी देर तक बातें होती रही फिर वरुण अपने घर चला गया और मैं उसी के बारे में सोचता हुआ कब नींद के आगोश में पहुँच गया मुझे पता भी न चला।

अचानक मोबाइल की रिंगटोन से मेरी नींद टूटी। इतनी रात को किसका फोन आ सकता है। मन में शंका और डर दोनों उत्पन्न हुए। मोबाइल की स्क्रीन पर नजर डाली तो नया नम्बर फ्लैश हो रहा था।
मैंने टेबल लैम्प का स्वीच आॅन् किया।रात के साढ़े तीन बज रहे थे। इस समय किसका फोन आ सकता है।
मैंने काॅल रिसीव किया। मेरे हैलो बोलने पर उधर से आवाज आई।

क्या आप यौधेय जी बोल रहे हैं???????

एक क्षण के लिए मैं चौंक गया। ये नाम तो,,,,,,,,,,,

जी मैं याज्ञसेनी बोल रही हूं,,,,,,,क्या मैं यौधेय जी से बात कर सकती हूं।
ये नाम तो मैंने सिर्फ उससे ही ,,,,,,,,,,,,,,अगले ही क्षण सुबह की पूरी घटना आखों के सामने से घूम गयी।अपने को सम्हालते हुए मैंने कहा जी मैं यौधेय ही बोल रहा हूं और मैं आप को पहचान गया हूं याज्ञसेनी जी कहिये क्या काम है।
मैं आपसे मिलना चाहती हूं।
पर इस समय इतनी रात को,,,,,,,,,,,,
नहीं नहीं इस समय नहीं कल उसी समय मैं बस स्टैंड पर र आपकी प्रतीक्षा करूँगी।
जी मैं जरूर आऊंगा।
इतना कहकर उसने फोन काट दिया।

मेरे मस्तिष्क में फिर से अजीब से खयाल आने लगे। फिर से नींद आने में देर हुई जिससे सुबह आंख देर से खुली। उठते ही मैं जल्दी तैयार होकर नियत समय पर वहां पहुंच गया।

भीड़ में मेरी नजरें बड़ी व्यग्रता से बस उसे ही खोज रही थी।आखिर मेरी तलाश खत्म हुई और वो दिखी ठीक उसी जगह वही कपड़े और उसी बेखबरी के साथ।मैं धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ गया। उसे देखते ही मैं क्या महसूस करता हूँ शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता था। वह कुछ तो अलग थी जो भीड़ में भी उसे अलग पहचान देती थी।

मुझे अपनी तरफ आता देख उसी चिर-परिचित अंदाज से मुस्कुराते हुए कहा माफ करियेगा ;; आपको तकलीफ हुई पर मैं क्या करती इस अजनबी शहर में मैं आपके सिवा किसी को जानती भी नहीं।

तकलीफ की कोई बात नहीं है,,,, इंसान ही इंसान के काम आता है, आप निःसंकोच कहें क्या बात है।

मुझे किराये का कमरा चाहिए। जहां मैं इस समय हूं वो काफी महंगा पड़ रहा है।मेरा काम यहां पता नहीं कितने दिन तक चले सो एक कमरा मिल जाता तो आसानी हो जाती। आप यहां काफी दिनों से हैं आपके पहचान में कोई न कोई तो जरूर होगा।

मैंने दिमाग पर जोर दिया और कुछ याद करते हुए कहा जी जरूर आपका काम हो जायेगा। शाम तक बात फाइनल कर मैं आपको सूचित करता हूं।

जी बड़ी मेहरबानी होगी।

कुछ देर तक हम दोनों खामोशी से खड़े रहे।
आपका बस्ता बड़ा भारी लग रहा है लगता है आप काफी फेमस लाॅयर हैं उसने बस्ते को देखकर कहा।
उसके इस सवाल से मेरी हंसी छूट गयी।
उसे उलझे देख मैंने कहा,,,,,,,ऐसा कुछ भी नहीं है दरअसल बस्ता भारी इसलिए है कि इसमें मैंने पिताजी के निपटाये केसों की पुरानी फाइलें भर रखी हैं साथ ही कुछ अन्य किताबें जिन्हें मैं खाली समय में पढ़ता हूं। लोग इसे देखकर भ्रमित हो जाते हैं ।

किन्तु मेरी ऐसी कोई नीयत नहीं है।

तो आप लोगों को भ्रमित करते हैं ।

फिलहाल मैं नहीं लेकिन मेरा बस्ता और चैम्बर जरूर करते हैं।

तो आप विधिक परिवार से हैं।

आप ने शब्दावली बहुत अच्छी ढूंढी है।हां मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि रही है जिसका फायदा मुझे मिला है किन्तु सिर्फ फायदा पैसे के मामले में है ,मैं अब भी पारिवारिक वेतनभोगी ही हूं।

क्या मतलब ???????

ये कि अभी भी आजीविका के लिये कुछ पैसे घर से भी लेने पड़ते हैं।
मेरे इस अंदाज पर वह अपनी हंसी न रोक सकी।
वैसे आज आप दिनभर क्या करेंगी मैंने बातों का सिलसिला आगे बढ़ाया।
बस कुछ जगहों से सम्बंधित तस्वीरें और जानकारियां जुटानी है ।

अब तक आसपास के लोग फिर से अजीब तरह से मुझे घूरना शुरू कर चुके थे। कितने बेसहूर लोग हैं जैसे इन्हें यही काम रह गया है।

ठीक है आप अपना काम करिये जैसा भी होगा मैं शाम तक आपको बताते हैं ।।

जल्द ही मिलते हैं।

यह कह कर मैं अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा।

दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार मैंने एक कमरा ढूंढ निकाला था।और क्यों न मिलता पहली बार तन मन धन से मैं किसी काम में जुटा जो था।किराये का एडवांस पेमेंट कर और ताला लगा बस इस बात का इंतजार कर रहा था कि कब उसे इसके बारे में बताया जाय।
समय काटने के लिये मैं नुक्कड़ पर चाय की दुकान पर चाय पीने लगा। बेसब्री से याज्ञसेनी की काॅल की प्रतीक्षा में था।अंततः उसका फोन आया ।मैंने उसे फोन पर ही आदर्श नगर के पहले मोड़ पर वेट करने को कहा और उस ओर चल पड़ा। वहां पहुंच कर देखा वह मुझसे पहले पहुँच चुकी थी ।वहां से हम दोनों पैदल ही नये कमरे की ओर चल पड़े। रास्ते भर बस हल्की फुल्की बातें होती रही। मैंने उससे आज के दिन के बारे मे पूंछा और थोड़ी बहुत औपचारिकता उसने भी दिखायी।

आज का डिनर मैंने याज्ञसेनी के साथ ही किया ।वहां की सारी फार्मैलिटीज उसे समझा मैं अपने कमरे की ओर रवाना हुआ। मेरा वहां से आने का मन नहीं हो रहा था किन्तु ये मदद के नाम पर धृष्टता होगी जो की किसी भी लिहाज से ठीक नहीं। वह पास होती है तो अजीब सुकून चारों ओर घुल जाता था उसे छोड़कर कर जाने को मन ही ना होता ।

उसके विचार मेरे विचारों से कितना अधिक समानता रखते हैं। मन अधीर होता जा रहा था किन्तु मुझे यह पता था कि संबन्धों के पुष्प खिलने में समय लगता है।
आते आते मैं शहर के बाहर स्थित लगभग सौ वर्ष से अधिक पुराने पुल देखने चलने के बारे में उससे पूंछा। मैंने जानबूझकर ही इसका चुनाव किया था पहला तो मैं यह जान चुका था कि पुराने स्थलों में याज्ञसेनी का इंटरेस्ट है और दूसरा मुझे स्वयं वहां समय बिताना काफी अच्छा लगता था।
उसने तुरंत ही इस बात की हामी भर दी।

अगले दिन मैं शाम तक पुल पर पहुंच चुका था।
वो अभी नहीं आयी थी।जब तक वो नहीं थी मुझे उस नजारे को आखों में कैद कर लेने का समय था।

यहां एक साथ तीन पुल थे।

बीच में वायसराय कर्जन के समय का रेल सह सड़क पुल और दोनों तरफ नये बने क्रमशः सड़क और रेल के पुल बने थे।नये पुलों के निर्माण से अब पुराने पुल के माध्यम से आवागमन नहीं होता सो अथॉरिटी ने इसका सौंदर्यीकरण कर इसे शहरियों के पिकनिक स्पॉट में तब्दील कर दिया है।आज भीड़ कम थी इक्के दुक्के लोग यहां वहां टहल रहे थे। हैलोजन की रोशनी में नहाया समूचा पुल नदी की धारा में प्रतिबिंबित हो बेहद प्रभावोत्पादक प्रतीत हो रहा था।

वहीं नये पुल पर भारी भीड़ थी। लोगों और गाड़ियों की कतारें लगी थी ।
पता नहीं मेरी आंखे उनमें क्या ढूंढ रही थी अचानक एक बिन्दु पर जाकर नजर ठहर गयी।वह चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा।
क्या ये याज्ञसेनी ही हैं मुझे अपनी आंखो पर भरोसा न हुआ???????हां ये वही थी।
सहसा मुझे अपनी भूल याद आ गयी मैंने उससे इस पुल के बारे में नहीं बताया था कि उसे इस पुल पर आना है।
मैं अपनी भूल सही करने के लिये जैसे ही मुड़ा मैं हतप्रभ रह गया मेरे सामने याज्ञसेनी खड़ी उसी परिचित मुस्कुराहट के साथ मुस्कुरा रही थी।एक पल को अंदर धक से हुआ। शीघ्र ही पलट कर मैंने उस जगह को फिर देखा इस बार वहां कोई नहीं था।

मुझे इस तरह विस्मृत देख वह बोल पड़ी क्या हो गया आप इतना चौंक क्यों रहे हैं ।

आपने ही तो यहां बुलाया था ये तो आपको मालूम ही है न,,,,,,,,??????
हां,,,,,,,हाँ,,,?????????मेरे मुंह से निकला,,,,???

***********

क्या बात है? आपको मेरा यहां आना पसंद नहीं आया क्या??? या इस वक्त किसी और के यहां होने की कल्पना कर रहे थे।साॅरी मैंने आपको डिस्टर्ब किया,,,कोई बात नहीं मैं अकेले भी घूम लूंगी। वैसे भी मुझे इसकी आदत है।यह कहकर वह एक दो कदम आगे बढी ।
नहीं,,,,,,,,, नहीं,,,,,, ऐसी बात नहीं है। वो मैं कुछ सोच रहा था और अचानक से आपके आने से मैं चौंक गया,,,,,,बस और कोई बात नहीं।
अब तक मैं खुद को सम्हाल चुका था।
यहां का दृश्य तो अद्धभुत है।क्या आप यहां अधिकतर् आते हैं।
रोज तो नहीं किन्तु हां जब मन बहुत उदास होता है तो नदी से बातें करने आ जाता हूं।
नदी से बातें करने,,,,,,,,,,उसने अजीब से मेरी ओर देखकर कहा।
जी हां नदी से बातें करना मुझे बड़ा अच्छा लगता है।
पर ऐसा क्यों है???????क्या आपकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है,,,,,, इस बार वो हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी।

ये व्यंग था या हमदर्दी उस समय तो मुझे पता नहीं चला किन्तु इन बातों का मुझपर खास असर नहीं हुआ।
"अब तो शादी की उम्र भी धीरे-धीरे पार हो रही है और आप गर्लफ्रेंड की बात कर रही हैं",,,और इस दिखावटी माडर्निटी के युग में मुझ जैसे नकारे मोहरों पर कौन दांव चलने वाला है,,,,,,,,,,,,, मैंने एक गहरी सांस ली,,,,, ,,,,,हालांकि इसमें मेरी व्यथा भी छुपी थी।

"सो मैं नदी को ही दिल का हाल बता देता हूँ,,,,,
और मजे की बात ये है कि यह मेरी सारी बातें सुन लेती है पर कभी भी जवाब नहीं देती"।
"मुझे तो ऐसा नहीं लगता,,,,,,,,?????
"क्या नहीं लगता,,,????
वही कि आप ,,,,,,,????? वैसे मुझे आप यूनीक् लगे।

उसकी बातें सुन कर इतना अच्छा लगा कि मैं शब्दों में नहीं लिख सकता किन्तु यह बात मुझे अंदर ही अंदर साल रही थी कि याज्ञसेनी को यह कैसे पता चला कि मैं इसी जगह पर हीं हूं। आने से पहले उसने पूंछा भी नहीं और सटीक जगह पर सीधे पहुँच भी गयी।
मैं ज्यादा देर तक खुद को रोक नहीं सका।
याज्ञसेनी एक बात पूंछे,,,,,, तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहीं ही हूं,,,,,,,,,,???????
वह कुछ गंभीर सी हो गयी। मुझे लगा कि मैंने जल्दबाजी कर दी,,,,अब ये भी,,,,,,,, धत् तेरी,,,,,,, तू भी गलत टाइम पर गलत प्रश्न,,,,,,,,, बच्चू तू अकेले ही रहने लायक है,,????? सही ही कहते हैं सब तुझे बात करने का तरीका ही नहीं मालूम,,,,,,,,, पहले तू सीआईडी जरूर बन ले ,,,,,,,,प्रेम , मोहब्बत तो गये तेल लेने,,,,,???मैं मन ही मन खुद को कोस रहा था।

वाह ! वकील साहब अब भी आप कोर्ट रूम से बाहर नहीं आये क्या,,,,,,,, वह फिर मुस्कुराई,,,,,
उसे हंसते देख मेरी जान में जान आई,,, "चलो गलती तो टली"।
"वैसे आपने जो कहा वह जानना एक आम इंसान के लिए भी बेहद आसान था तो मैं तो,,,,????????
"आपको तो पता ही है कि मैं किस काम से इस शहर आयी हूं ,,,, और यहां कौन सी चीज ऐसी है वो तो जानते ही हैं। रही आपके यहां होने की बात तो मैं पहले ही दिन आपका इंटरेस्ट देख यह समझ गयी थी ।
उसके तर्क का मैं कायल हो गया। उस बात को अपना भ्रम और नासमझी मान मैंने वहीं छोड़ दिया।
"अच्छा छोड़ो इन बातों को और बताओ आज का दिन कैसा रहा????
:कुछ खास नहीं बस वैसे ही,,,,,,,
क्यों आज किसी जगह नहीं गयी???????

"एक तो मैं यहां नयी हूं और इस जगह के बारे में मुझे कोई आइडिया नहीं और दूसरा अकेले कहीं घूमने में वह मजा कहां",,,,,,,उसने बेतकल्लुफी से कहा।

उसके हंसने और बातचीत के बीच मुस्कुराने की अदा का कायल होता जा रहा था। तो क्या यह मेरे लिये आॅफर था।मुझे रास्ता नजर आने लगा था।
कोई बात नहीं आप निराश न हो मैं इस शहर के चप्पे-चप्पे से ताल्लुक रखता हूँ मैं आपकी मदद करूंगा,,,,,, अगर आपको कोई दिक्कत न हो तो??।।।।
मैं अब सतर्क था और हर कदम बहुत ही साध कर चल रहा था।
"पर आप के पास फुर्सत कहाँ होगी आप के पास तो अपना काम है"।
हां,,,,, काम तो है किन्तु जज साहब एक हफ्ते की छुट्टी पर चले गये हैं सो समय निकल आया है , मैंने झट से कहा।
"तब तो बड़ा अच्छा है" उसकी आंखों में चमक थी।
वैसे मैं जल्दी झूठ नहीं बोलता,,,,, क्योंकि झूठ बोलते मेरी जबान लड़खड़ाती है ,,,,,, किन्तु आज मैंने बड़ी सफाई से झूठ बोला। पर दिक्कत ये थी कि वरुण को मनाना पड़ेगा और वो कला तो मुझे पता थी।

बहुत देर तक हम टहलते रहे और मैं उसे उस पुल के इतिहास भूगोल के बारें में विस्तार से बताता रहा।एक यही तो मैंने अपने जीवन में सीखा था मुद्दा कोई भी हो मजाल कि मेरी जानकारी बीच में दम तोड़ दे।वो मेरी बातों में सिर हिलाते और हूं हूं से मुझे संकेत देती रही कि वह इस प्रवचन में बनी हुई है।कुछ देर के बाद लगा कि वह मेरी बातों से बोर हो रही है तो मैंने टापिक बदल कर उससे पूंछा ।
"भूख लग रही होगी,,,,,,, कुछ खाते हैं",,,,,,,,बताइये क्या खायेंगी,,,,,,,, ?
"कुछ भी जो आप को पसंद हो,,,?????
ये उत्तर मुझे बेहद बुरा लगता है,,,,,,,, ये तो गेंद मेरे पाले में डाल निश्चिन्त हो गयी। अब मैं मन ही मन इस बात का चुनाव कर रहा था कि क्या खाया जाय।

आइसक्रीम, चुरमुरा, पानी के बताशे। या भुट्टा।

मैंने ठोंक पीटकर और पहले से यह मानकर कि लड़कियों को पानी बताशे खाना पसंद होते हैं, उसका आॅफर कर दिया।
एक पल के लिये वह सोची और फिर ,,,,,,,,,
"क्या आप को यह पसंद है,,,,,,,,
"मुझे नहीं है मैं तो आप की बात कर रहा हूं,,,,,
"अगर बुरा न लगे तो हम भुट्टे खा लें,??
"क्यों नहीं आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली"।

जैसे जैसे मैं याज्ञसेनी को और अधिक जानता जा रहा था उसमें और खुद में समानताएं मुझे और गहरी दिखती जा रही थी। मेरा विश्वास और मजबूत होता जा रहा था।
भुट्टे वाले की ट्राल बाकी दुकानों से थोड़ा हटकर एकांत में थी और वहां खम्भे पर लगे होर्डिंग्स की वजह से छाया भी पड़ रही थी जो हम जैसे नौसिखिये आशिकों के लिए बेहतर जगह थी।
वह शाम बहुत खुशगवार बीती।
रात का खाना याज्ञसेनी के ही कमरे पर हुआ। वहां से अपने रूम पर पहुंचते पहुंचते मैं काफी थक गया था। आज मन बहुत हल्का महसूस कर रहा था सो मुझे जल्द ही नींद आ गयी।
अगले एक हफ्ते मेरे जीवन के सबसे अच्छे दिन सिद्ध हुये। सुबह से लेकर रात तक याज्ञसेनी के साथ बहुत सुकून से बीत रहे थे।मैं भी फुल राजू गाइड बना था ।रोमांटिक अंदाज में उनसे मैं कहीं कमतर नहीं था बस मुझे गाना नहीं आता था।
मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि मैं अब और अधिक याज्ञसेनी के नजदीक आ गया था। मुझे ऐसा लग रहा था कि उसे भी यह बात पता थी।इस दौरान बस मुझे एक ही बात अखर रही थी वो था शहर के लोगों का मेरे प्रति बर्ताव,,,,,,????? उनका हम दोनों को अजीब से घूरना मुझे बहुत बुरा लगता था।

आज बहुत दिनों बाद मैं कोर्ट गया था ।वरुण को मैंने काॅल कर बस स्टैंड पर ही बुला लिया था वहीं से हम दोनों वाइक से आगे गये। रास्ते भर वरुण मुझसे याज्ञसेनी और मेरे रिलेशन के बारे में पूंछता रहा।
क्या बातें हुई,,,,,, बात कहां तक पहुंची वरुण को इन सब के बारे में जानने की उत्सुकता थी।मैंने उसे सारी बातें बताई।
तो आगे क्या सोंचा है सर,?
किसके बारे में?
अरे याज्ञसेनी जी कब हमारी भाभी बनने वाली है,,,,,
तू बड़ी तेजी में रहता है,,,,, अभी कितने दिनों की पहचान है,,,,,, कब भाभी बनने वाली हैं,,,,,,,,, देख न मैं तुम्हारी तरह फास्ट हूं और न ही मुझे कोई शौक है?????
अभी प्यार का फल लगा ही है पकने तो दे तभी तो मीठा लगेगा,,,,,,,,,,,,,
पर फल आपने तो चख ही लिया होगा,,,,,,,,,,,,,,,
इस बार मुझे वरुण पर गुस्सा आ गया।
देख मुझसे छिछोरपन वाली और नये लड़को के जैसे बाते कि तो ठीक नहीं होगा,,,,,,,तू जानता है मैं कैसा हूं।
हां,,,,,,हां;,,,,, गलती हो गयी सर मैं तो भूल ही गया था कि हमारे प्यारे सर् का प्यार बुजुर्गों वाला प्यार है जिनमें तकरीबन बातें ही होती हैं,,,,,,,,,,, बातों से ही प्यार को उचाईयों और गहराइयों तक ले जाने के कसमे वादे होते हैं,,,,,,,,,, हां मैं भूल गया था सर सच्ची,,,,,,,, महान सर की महानतम मोहब्बत,,,,,,,,,, क्या लाइन बनी है वाह,,,,, वाह,,,,,
उसकी इस बात पर मुझे हंसी आ गयी।
अबे,,,,, चुप ,,,, सीधे बस्ता उठा ,,,, ज्यादा बकबक नहीं,,
तब तक हम कोर्ट परिसर पहुँच गए थे ।मैंने वरुण को हंसते हुए झिड़की दी और हम मुस्कुराते हुए अपने चैम्बर की ओर बढ़ गये।
आज का दिन व्यस्तता में व्यतीत हुआ।केस से सम्बंधित कागजों को तैयार करने में ही मैं सारा दिन भिड़ा रहा।फिर भी दिमाग में यह बात घूम रही थी कि रात का खाना पैक कराकर याज्ञसेनी के रूम पर ही जाकर खायेंगे। शाम को बस्ता वरुण को पकड़ा मैं याज्ञसेनी के कमरे की तरफ लपका किन्तु एक अनहोनी हो गयी रास्ते में कुछ अज्ञात लोगों ने मुझ पर हमला कर दिया। वो चार मुस्टंडे टाइप के लोग थे।उनमे से एक ने मुझे रोक कर कहा,,,,,,,,,,,,
सुन ,,बे, वकील ज्यादा फेमस होने के चक्कर में पड़ेगा तो हम तुम्हें वर्तमान से भूतपूर्व बना देंगे,,,,,,???? समझ जा????
बंदा फिल्मी था हालांकि मैं समझ गया था ये किसकी हरकत है फिर भी मैं बखेडा खड़ा नहीं करना चाहता था सो मैंने शालीनता से ही कहा।
भाई साहब मैंने क्या किया है,,,,???
उसमें से एक बोला देख भाई ये अंग्रेजी बोल रहा है , हिंदी इसे समझ ही नहीं आती।
आज पहली बार मालूम पड़ा कि ऑक्सफोर्ड वालों ने इन शब्दों को अपने कोश में शामिल कर लिया है।
वैसे तो मैं बहुत शांत प्रकृति या थोड़ा डरपोक कह ले ,,, आदमी हूं किन्तु उस दिन मुझे गुस्सा आ गया और मैं जोर से चीख पड़ा,,,,,,,,,,, हां नहीं समझ आती हिन्दी,,,,, जो उखाड़ना है उखाड़ ले जा के बोल दे अपने आका से मैं नहीं हटने वाला, चाहे जो हो जाये???????
वो थोड़ा चकित थे, शायद इसकी उन्हें आशा नहीं थी।
फिर क्या होना था उन चारों ने मुझे तबियत से धुन दिया। मैं जोर जोर से चीखकर उनको गालियां दे रहा था जिससे भीड़ जुटना शुरु हो गयी और वो भाग निकले। मुझे गंभीर चोट तो नहीं आयी पर इतना हो गया कि अब मैं इस हालत में याज्ञसेनी के रूम पर तो नहीं जा सकता था।चोट से ज्यादा दर्द इसी बात का था।मैंने वरुण को काॅल किया और उसके साथ हास्पीटल चला गया। वहां मुझे यही चिंता सताये जा रही थी कि याज्ञसेनी आज भूखी रह जायेगी।मैंने वरुण से कहा
याज्ञसेनी को खाना नहीं पहुँचा सका ????,,,,
आप चिंता न करें मैं दे आता हूं सर,,,,
यह बोल वह उठने लगा।
अरे,,,,,, नहीं,,,, नहीं,,,, मैंने याज्ञसेनी से वादा किया था कि उसकी इच्छा के बिना यह राज ही रखूंगा।
ये कौन सी बात हुई सर्,,,,,,, क्यों नहीं बतायेगें???? आपने कहीं डाका थोड़े न डाला है जो छुपा रहे हैं।
तू समझ नहीं रहा है।
मैं सब समझ रहा हूं सर्,,,,,,, मैं इस बारे में आपसे ज्यादा जानता हूं,,,,,,, आप हर बार मेरी बात टाल देते हो ,,,,,, किन्तु मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।
क्या ठीक नहीं लग रहा है????
मुझे लगता है वो कोई बात जानबूझकर हमसे छुपाना चाहती है।
नहीं,,,, नहीं,,,, ऐसी बात नहीं,,,,
आप बहुत भोले हो सर आप इनकी बातें नहीं समझ पायेंगे, मुझे तो बस आप की चिंता है।
तुम मुझे पागल समझते हो क्या?????
पागल तो नहीं समझता सर पर एक बात मेरे दिमाग में है वो कहना चाहता हूँ,,,,,,
हां कहो,,,,,
सर कान इधर लाइये,,,,,,,,,,,, वो भी कुछ सनकी है क्या?????
भी,,,,,,,,
इस बात पर हम दोनों ही हंस पड़े।

अगली बार जब मैं याज्ञसेनी से मिला तो उसने मुझसे इस घटना के बारे में पूंछा। मेरे यह कहने पर कि उसे कैसे पता चला तो उसने बताया कि शहर में इस बात के खूब चर्चें हैं,,,,,,, किन्तु उसे इस बात का दुःख था कि लोग मुझे सनकी कहकर मेरे काम का मजाक उड़ा रहे हैं।
छोड़ो भी कम से कम मैं शहर भर में चर्चित तो हुआ,,,, कैसे भी सही???? न कुछ तो सनकी ही सही ।
इस बात को लेकर वो अपसेट थी।उसने मुझे सलाह दी ।
आप कुछ ऐसा करें कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे ,,,,?
पर कैसे???????
समझौता,,,,
मैं चौक पड़ा।
कुछ ऐसा कि वो लोग समझौते के लिये विवश हो जायें,,,,,,,
पर वो दबंग और काफी पहुंचे हुए लोग हैं वो समझौता क्यों करेंगे।
सब करेंगे,,,,, अच्छा ये तो बतायें ये केस किस बारे में है।
क्यों तुमने भी डिग्री ले रखी है क्या????
डिग्री तो नहीं ली पर "अदालत " देख देखकर काफी कुछ सीख गयी हूं।
माफ करियेगा मोहतरमा ये वास्तविक कोर्ट है,,,,,
फिर भी आपकी इच्छा है तो मैं बता देता हूं।
याज्ञसेनी का यह रूप देख मैं दंग था।
यह सरकारी जमीन पर कब्जे से संबंधित है। जिस जमीन को डेवलपर निजी बता रहा है वह वास्तविक रूप से शहर के छोर पर स्थित वन विभाग की जमीन है जिस पर हजारों वृक्ष हैं। आसआसपास के लोग चाहते हैं कि ये बरकरार रहे किन्तु डेवलपर को पुलिस और प्रशासन का सहयोग प्राप्त है जिससे वो विरोध नहीं कर पा रहे हैं।
समझ गयी तो आप समाज सेवा करने निकले हैं,,, यही न,,,,,
हां,,,,, अब इसे जो भी कहो।
वैसे आपके जज्बे को मैं सल्यूट करती हूं जो आपने किया वह करने की हिम्मत विरले लोग ही कर पाते हैं।
याज्ञसेनी के मुंह से खुद की प्रशंसा सुन गर्व से सीना छप्पन इंच से भी ज्यादा चौड़ा हो गया।
आप चिंता न करें इस समस्या के समाधान के लिए मेरे पास एक प्लान है।
प्ला,,,,,,,,,,,,,न कैसा प्लान,,,, मेरी हैरानगी बढती जा रही थी।
एक बार उस जगह पर चलते हैं।
मैं और याज्ञसेनी उस जगह पर पहुंचे। मैं बहुत ही ज्यादा हैरान था।क्या सचमुच कुछ ऐसा था जो वह मुझसे छुपा रही है,,, पर ऐसा क्या है ????? इसका मतलब जो वरुण कह रहा था वह सच है ?????? यह अकेले रहती है कभी भी इसने अपने घरवालों के बारे में नहीं बताया न ही कोई ऐसा फोन ही आये??? कहीं ये कोई जाल तो नहीं जिसमें मैं फंस गया था। ये इस केस के बारे में इतना क्यों इन्टरेस्टेड है और इतनी रात को मुझे यहां क्यों लायी ।एक मिनट में जब मैंने सारा कैलकुलेशन किया तो जो मैं समझा उसे सोंच कर मुझे पसीना आ गया।मैंने अगल बगल आगे पीछे कुल देखा याज्ञसेनी एक मिनट में जब मैंने सारा कैलकुलेशन किया तो जो मैं समझा उसे सोंच कर मुझे पसीना आ गया।मैंने अगल बगल आगे पीछे कुल देखा याज्ञसेनी नदारद थी।मेरा शक यकीन मे बदल गया। मुझे खुद पर तरस आ रहा था और अपनी मूर्खता पर गुस्सा भी।मैं तेजी से वहां से वापस मुडा और चल पड़ा ही था कि उसकी आवाज मेरे कानों में फिर टकराई
अरे!!@@ वकील साहब भागे कहां जा रहे है,,,,,???? ऐसे ही केस साल्व करेंगे।
मैंने पलटकर देखा वो मेरी ओर ही आ रही थी ।
आप तो भागने लगे मुझे अकेला ही छोड़कर,,,,,??
मेरे मुंह से आवाज नहीं निकली बस मै आंखें फाडे उसे ही देखता रहा।
मुझे न देखिये अपना व्हाट्सअप चेक करिये,,,,??वो मुस्कुरा रही थी ।
अभी तक जिस मुस्कान पर मैं न्यौछावर हुआ जा रहा था वो अब मुझे डरावनी लगने लगी थी।कांपते हाथों से मैंने अपना मोबाईल चैक किया,,,,,,,,,, मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा??????? ये तुमने कैसे किया।
मेरा दिमाग भन्ना रहा था जैसे कई टन भार मेरे सिर पर रख दिया गया हो,,,,,,
ये सब बाद में पूछियेगा ,,,, ये रहा नम्बर और सेन्ड करिये,,,
मैंने वैसे ही किया।
अब निश्चिन्त रहें,,, कल आपकी बहादुरी के कसीदे पूरा शहर पढ़ रहा होगा। ।
ये सब तो ठीक है लेकिन जिसे मैं प्रेम की मूरत समझ रहा था वह अचानक से लेडी शेरलाक होम्स कैसे बन गयी।
मैंने डरते डरते पूंछा कौन हो तुम?????
वह फिर हंसी,,,, क्यों आप को अभी तक नहीं पता???
"मुझे तुमने धोखे में रखा है",,
आप को क्या ऐसा लगता है कि मैंने आपको धोखे में रखा है
मैं कन्फ्यूज था।
दिल तो कहता है नहीं , पर दिमाग कहता है हां,,,
तो अपने दिल की सुने यौधेय जी क्या आपको लगता है कि आपकी याज्ञसेनी आपको धोखा देगी??।
मुझे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या सही था और क्या झूठ। मस्तिष्क दर्द से फटा जा रहा था ।
आप अभी घर जायँ इस समय आपका खुद पर काबू नहीं, हम बाद में इस बारे में बात करेंगे।
मैं उसकी परवाह किये बिना सीधा वहां से अपने रूम पर चला आया। दिल दिमाग दोनों ही बेकाबू थे।आज नींद की ज्यादा गोलियां लेनी पड़ेगी और साथ ही पेन किलर भी।
किस तरह उस रात मुझे नींद आयी ये मुझे खुद नहीं पता किन्तु जब अगले दिन मैं सो कर उठा तो दोपहर हो चुकी थी। मोबाइल चेक किया तो पिताजी और वरुण की कई काॅल पड़ी थी किन्तु सबसे हैरान कर देने वाली बात यह थी कि याज्ञसेनी की भी काॅल आयी हुई थी।सबसे पहले मैंने वरुण को फोन लगाया
हैलो???
अरे शार्दूल सर् आप तो राबिन हुड निकले,,,
क्या हो गया।
सर सारे शहर में आपके ही चर्चे हैं ,, हम केस जीत गये हैं,,,, वो समझौता मान गये हैं और जमीन का दावा भी छोड़ दिया है।
ठीक है????
सर शाम को मैं आपके ही कमरे पर आता हूं। यह कहकर वरुण ने फोन काट दिया।
अभी वरुण का फोन कटा ही था कि पिताजी का भी काॅल आ गया ।उन्होंने बधाई के साथ साथ मेरा वादा भी याद दिलाया। दरअसल कुछ दिन पहले मैंने पिताजी से ये वादा किया था कि इस केस के निपटते ही मैं बिना किसी न नुकुर के उनकी पसंद की लड़की से शादी कर लूंगा।मुझे अपनी कोर्ट पर पूरा भरोसा था किन्तु केस ऐसे सरपट साल्व होगा ये उम्मीद न थी।मैं अपने ही जाल में बुरी तरह उलझ गया था। याज्ञसेनी के साथ किये व्यवहार का मुझे खेद था । मैंने उसे फोन करना चाहा किन्तु वो स्विच ऑफ था।मुझे बहुत बुरा लग रहा था ।मैं सीधे उसके कमरे पर पहुंचा वहां भी निराशा हाथ लगी। कमरे पर ताला लटक रहा था। मैं पागलों की तरह यहां वहां हर जगह ढूंढता फिर रहा था किन्तु वह कहीं नहीं मिली। याज्ञसेनी के इस तरह चले जाने का मुझे बहुत दुःख था ।थक हार कर मैं अंततः उसी पुराने पुल पर पहुंचा और पुल की रेलिंग पकड़ कर नदी को देखने लगा।
आज ये कितनी शान्त थी किन्तु मेरे अन्दर सैलाब उमड़ रहा था।आंसुओं की नदी उफनती चली आ रही थी और बंधन तोड़ कर बह जाने को बेताब थी।
"अपनी गर्लफ्रेंड से बातें कर रहे हैं क्या "?????
अचानक आयी आवाज ने मेरा ध्यान खींचा। ये याज्ञसेनी ही थी जो वहां खड़ी मुस्कुरा रही थी ।अब तक जो सैलाब उठा था वह आंखों के रास्ते बह निकला। दोनों ही प्रायश्चित में बहुत देर तक एक दूसरे से लिपटे रहे।
"माफ करना यौधेय मैं तुम्हारा साथ नहीं निभा पाऊंगी"
इसका मुझे खेद रहेगा।
मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा कोई बात नहीं किसी से इस कदर तक अपेक्षायें नहीं पालनी चाहिये जिसे पूरा करने में सामने वाला असमर्थ हो।
मुझे इसका कोई मलाल नहीं।
आज याज्ञसेनी ने फिर वही ड्रेस पहनी थी जिसे पहली बार मिलने पर पहन रखी थी।
मेरी एक बात जरूर मानना आप अब बिना देर किये शादी कर लेना,,,,, अब किसी याज्ञसेनी का इंतजार नहीं करना,,, ????
इतना कहकर वह तेजी से मुड़ी और पुल के दूसरे छोर की ओर चल दी।
अब और नहीं,,,,,, ????मेरे मुंह से यही निकला। मैं उस लम्बे पुल पर याज्ञसेनी को तब तक देखते रहा जब तक वह परछाई बन धुंध में गुम नहीं हो गयी।

मेरी शादी को छः महीने हो चुके थे। मैं और मेरी पत्नी कृष्णा दांपत्य जीवन में बहुत खुश थे।उस दिन मैं बैठे बैठे अखबार पढ़ रहा और कृष्णा मेरे सामने ही बैठी थी ।अचानक मेरी नजर अखबार के उस भाग पर ठहर गयी जहां लिखा था " याज्ञसेनी " उफ्फ़ पुराने घाव पर जैसे नाखून चल गये हों। मेरा चेहरा देख कृष्णा ने कहा "क्या हो गया जी आपको"।
कुछ नहीं बस कुछ पुराना,,,,,,,,???????
"आप रिलेक्स करिये मैं आपके लिये काॅफी बना लाती हूं"।
कृष्णा काॅफी बनाने के लिए किचन में चली गयी तभी डोरबेल बजी मैंने बेमन से उठकर दरवाजा खोला और झुंझलाहट में बोला कौन म,,,,,,र,,,,,???र,,,
मेरी आंखे खुली की खुली रह गयीं " याज्ञसेनी दरवाजे पर उसी चिर-परिचित मुस्कुराहट के साथ खड़ी थी।
क्यों यौधेय जी आपको अब मेरी याद नहीं आती,,,,?
मैं कुछ न कह सका।
मैं अंदर आ जाऊं "
हां हां क्यों नहीं?????
कौन आया है जी अंदर से कृष्णा ने आवाज दी।
एक कप काॅफी और बढ़ा लेना कृष्णा,,,,,, और आओ मैं तुम्हें किसी से मिलवाता हूं।
क्यों यौधेय जी याज्ञसेनी और कृष्णा में से किसमें आप अपनी स्वप्न सुंदरी को देखते हैं।
मैं कुछ देर तक सोचता रहा।
"याज्ञसेनी प्रतिबिम्ब थी जो मौजूद तो था किन्तु हकीकत नहीं जबकि कृष्णा उसकी वास्तविकता है"। मैंने जवाब दिया।
इसका मतलब अब आप को याज्ञसेनी की आवश्यकता नहीं,,,,
हूहहं,,,,, कह सकती हो याज्ञसेनी,,।
तब तक कृष्णा काॅफी लेकर आ गयी। ये अतिरिक्त मग किसके लिये मंगाया था।
इनसे मिलों कृष्णा ये याज्ञसेनी हैं।
"आप ठीक तो हैं न "
हां हां क्या हुआ?
वहां तो कोई नहीं है, किससे मिला रहे हैं।
क्या????
सच ,,,,,,,,,, कुर्सी खाली थी और वहां कोई नहीं था।

*********

इस बार मेरा संशय यकीन में बदल गया। मुझे लगने लगा था कि कुछ तो ऐसा मेरे साथ घटित हो रहा है जिसे सामान्य तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता था।
तो क्या वरुण की बातें सच हैं यानी कि याज्ञसेनी मुझसे कुछ छुपा रही है या उसी के शब्दों में कहें वो साधारण लड़की नहीं बल्कि भूतिया है।अभी वह मुझे बताये बगैर अचानक कहां चली गयी,,,,, तो क्या वह कृष्णा के सामने खुद को स्पष्ट नहीं होने देना चाहती,,,,, या सच में वह केवल ख्वाब है जिसे मैं अब तक देखता आ रहां हूं। कुछ भी स्पष्ट नहीं हो रहा था।

कृष्णा काॅफी टेबल पर रख वहीं बैठ गयी,,,,, चिंता की लकीरें मुझे उसके चेहरे पर भी उभरती दिखायी पड़ी।

इधर मैं यह सब सोच सोचकर और उलझता हुआ महसूस कर रहा था।आखिर क्या चल रहा है यह पता लगाना मेरे लिये बहुत जरूरी हो गया था।

मुझे कुछ नहीं सूझा तो मैंने वरुण को फोन लगाया

हैलो वरुण तुम कहां हो?????
जहां भी हो दस मिनट में कमरे पर पहुंचो बहुत जरूरी बात करनी है,,,,,,
फोन काट कर मैं वरुण का वेट करने लगा। इस बीच कृष्णा कुछ काम से उठकर अंदर चली गयी,,,,,,,, उसके जाते ही मुझे अजीब सी सिरहन हुई ऐसा लगा कि याज्ञसेनी यहीं कहीं है ,,,,,,, कृष्णा के हटते ही वह फिर से कहीं वापस न आ जाये अब इस बात का डर मुझे सता रहा था ।ये दस मिनट बड़ी व्यग्रता से व्यतीत हुये और डोरबेल बजी। मैंने झट से दौडकर दरवाजा खोला,,,,,
दरवाजा खोलते ही मैंने राहत की सांस ली और ईश्वर को धन्यवाद कहा,,,,,,,,, ये वरुण ही था।

क्या हो गया सर् आप इतना परेशान क्यों है????
कुछ नहीं बस तुम पहले यहां बैठो,,,,
हां ये सब ठीक है पर बात तो बताइये???
हां पहले तुम काॅफी पियो,,,,,
पी लेंगे,,,,,,,, पर ये तो एकदम ठण्डी हो गयी है,,,,, ठण्डी क्या इस पर पाला पड़ गया है,,,, इसे कैसे पियें,,, वरुण ने मग हाथ में लेते हुए कहा।
कोल्ड,,,,,, कोल्ड काॅफी का नाम सुना है न ये वो है,,,,
अच्छ ,,,,,, जी ,,,,पर यहां बुलाने का कारण तो बतायें।
मुझे लगता है तुमने जो याज्ञसेनी के बारे में मुझसे कहा था वो सच है,,, वो मुझे आम लड़की नहीं बल्कि भूतिया लग रही है।
किन्तु ऐसा आप क्यों कह रहे हैं,,,,, आज फिर ऐसा कुछ घटित हुआ क्या???

हाँ पता नहीं ये सच है कि झूठ जब मैं अखबार पढ़ रहा था तो एक जगह याज्ञसेनी लिखा देख मैं ठिठक गया,,,,,, मुझे ऐसे लगा वो मेरे आस पास ही है,,,, तभी अचानक से डोरबेल बजी और झो मैंने देखा मुझे अपनी आंखो पर भरोसा न हुआ???
आपने क्या देखा सर???
मैंने देखा कि याज्ञसेनी दरवाजे पर खड़ी है,,,,, उसकी बातों से ऐसा लग रहा था कि वो गुस्से में हो पर क्यों ये पता नहीं,,,,,,, आखिर उसने ही ने मुझे किसी का भी इंतजार करने से मना किया था,,,,,, क्या मुझसे कोई गलती हो गयी है वरुण,,,,,, मैंने याज्ञसेनी को धोखा दिया है क्या?????
ऐसा कुछ भी नहीं है सर जो स्वयं ही अस्तित्वहीन है वह मानव से मिलन की अपेक्षा कैसै कर सकती। ।
पर वो कौन थी और कहां से आयी थी इसके बारे में हमें कौन बतायेगा।
मैंने एक गहरी सांस ली,,, मन में अपराधबोध सा घर कर रहा था,,, क्या मैं उसे नहीं समझ सका,,, इस बात का दुःख था।
मुझे परेशान देख वरुण ने कहा।
आप कपड़े चेंज कर लीजिए सर ,,,
क्यों???
एक जगह चलना है आपके सारे प्रश्नों के उत्तर वहीं मिलेंगे।
ऐसी कौन सी जगह है??
आप पहले चलें तो सही।
वरुण मुझे लेकर एक बंग्लानुमा मकान के सामने पहुंचा।
"यहां क्यों लाये हो वरुण "?मैंने अचरज से कहा।
"आप पहले अंदर तो आइये"।
अंदर जाने पर एक युवक से मुलाकात हुई। वरुण को देखकर उसने इशारे में कुछ कहा।
"प्रोफेसर साहब अंदर हैं " वरुण ने उससे पूंछा।
हां आप लोग हमारे साथ आइये।
हम उसके साथ हो लिये। वह हमें गोल सीढियों से होकर एक हालनुमा कमरे में ले गया। वो कमरा कुछ अस्त व्यस्त सा था ।अंदर एक वृद्ध बैठे थे।उनकी पीठ हमारी तरफ थी वे शायद कुछ पढ़ रहे थे ।वरुण के अभिवादन पर जब वो पलटे तो उन्हें देखकर मुझे कुछ याद आया।
"मैं इनसे मिल चुका हूं बहुत ही ढीठ किस्म के आदमी हैं ये"मैने धीरे से वरुण से कहा।
आइये आइये मैं आप लोगों का ही इंतजार कर रहा था।
हमारा इंतजार! पर क्यों? मैं कुछ समझ नहीं सका था।
सब समझ जायेंगे,,, और वरुण सब ठीक है।
ये वरुण को जानते हैं पर उसने कभी इस बात की चर्चा नहीं की मैं मन ही मन सोच रहा था कि अचानक मैं चकित रह गया।
आप ठीक हैं यौधेय जी,,,,,उन्होंने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देख कर कहा।
यह बात तो मैंने सिर्फ,,,,,,,,,,,,,, फिर इन्हें कैसे पता। मैं हैरान था।
पर सर का नाम शार्दूल है प्रोफेसर साहब??
अच्छा पर इन्होंने तो मुझे यही,,,,,,,,,, खैर छोड़िये,,,,,,
और बताइये।
क्या आप किसी निष्कर्ष पर पहुंचे सर्,,,,,,, वो आज फिर से सर को ,,,,,,,,, वरुण ने उनसे कहा।
मैं शांत सा बैठा था ये सब क्या चल रहा था उससे अनभिज्ञ सा।बस याज्ञसेनी के बारे में ही सोच रहा था कि आखिर वो अचानक से कहां चली गयी।
याज्ञसेनी ने तुमसे क्या कहा??? प्रोफेसर साहब मुझसे मुखातिब थे।
यही कि उसमें और कृष्णा में से मैं किसमें अपनी स्वप्न सुंदरी को देखता हूँ।
और तुमने क्या कहा?
कि वह तो प्रतिछाया है जबकि कृष्णा वास्तविक,,,,,,
ये तुमने समझदारी से जवाब दिया ,,,,,, अब याज्ञसेनी कभी वापस नहीं आयेगी।
पर वह गयी कहां और वो आयी कहां से थी ????
मैंने कहा।
ये प्रश्न मुझे बेचैन किये हुये थे और यह जानने की व्यग्रता मुझ पर भारी पड़ रही थी।
आपने तो याज्ञसेनी को देखा है जब आप पार्क में मुझसे मिले थे,,,
हूँ अअ,,,,,
तो बताइये न कि क्या वह आप को नार्मल लगी???वरुण कहता है कि वह अजीब थी।
हाँ वो अजीब ही थी,,,,,,,,
मतलब???
ये कि वह केवल तुम्हें ही दिख सकती है,,,,
ओह! इसका मतलब वरुण सही कह रहा था वो आत्मा ही थी ,,,,,,,,, पर किस,,,,,,,,
तुम्हारी??????
मेरी!!!!किन्तु ये कैसे हो सकता है। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था।
हां वो तुम्हारा ही अंश थी सो वह तुम्हें ही दिख सकती थी।
ये कैसे सम्भव है?किन्तु उस दिन तो आपने उससे बात की थी ,,,
वो बात मैंने तुमसे ही की थी?????
प्रोफेसर साहब की बातें मुझे पहेली सी लग रही थी मेरा सिर भारी होता जा रहा था।यह अब और भी उलझा हुआ सा मालूम हो रहा था।
मेरी आत्मा????? किन्तु वह लड़की कैसै हो सकती है??
इन सब को समझने के लिए हमें कुछ बातें जान लेना चाहिए ,,,,,,
कौन सी बातें????? मेरे और वरुण के मुंह से निकला।
हमारे धार्मिक ग्रंथों में शिव जी के अर्धनारीश्वर स्वरूप का वर्णन है,,,,,, यानी आधा दायां भाग भगवान शिव तथा आधा बांया भाग देवी पार्वती का,,,, इसका अर्थ है कि हर इंसान की आत्मा के दो स्वरूप होते हैं, एक पुरुष और एक स्त्री ।
किन्तु उसका इससे क्या संबंध हो सकता है????
दरअसल याज्ञसेनी तुम्हारा वही आधा रुप थी जिसे तुमने अपने आस-पास महसूस किया,,,,,,,वो थी भी और नहीं भी,,,,,,,किन्तु तुम्हें वास्तविक लगती थी,,,,,, उसकी सारे गुण, पसंद नापसंद तुमसे मिलने का कारण यही था क्योंकि वो तुम ही थे।जब वह तुम्हारे पास होती थी तुम इस वास्तविक संसार के समानांतर काल्पनिक दुनिया खड़ी कर देते थे जिसमें तुम इतना डूब जाते थे कि वह तुम्हें हकीकत लगने लगता था। वैज्ञानिक भाषा में इस स्थिति को सिज़ोफ्रेनिया कहा जाता है अर्थात वह स्थिति जिसमें जो हम करते और देखते हैं उसे ही हकीकत समझ बैठते हैं।
ग्रीक कथाओं में भी इस तरह का उल्लेख है जिसे सोलमेट कहा गया है। किंवदंती के अनुसार प्रत्येक मनुष्य में दो (प्रत्येक स्त्री पुरुष) आत्मायें होती थी जिससे मनुष्य अत्यधिक शक्तिशाली हो देवताओं पर विजय प्राप्त करने की स्थिति में आ गया था।इस समस्या के समाधान तथा मनुष्य की शक्ति कम करने के लिये जीउस ( इन्द्र) ने मनुष्य की आत्मा को दो भागों में विभाजित कर दिया । यह भी इसी ओर संकेत करते हैं ।
किन्तु याज्ञसेनी का पुरास्थलों का अध्ययन, केस के संबंध में सहायता करना वो क्लिप जो सबूत के तौर पर मुझे दिया था क्या वह सब झूठा था।
नहीं,,,,,,
तब आप कैसे कह सकते हैं कि वह नहीं थी,,,???
यह मस्तिष्क की एक विशेष स्थिति है जिसमें हमारे द्वारा किया गया कार्य ही हमें ऐसा ही प्रतीत् होता है कि किसी और ने किया है।यह सिज़ोफ्रेनिया है यानी मस्तिष्क का अलग स्तर पर क्रियाशील हो जाना।यद्यपि आत्मिक रुप से याज्ञसेनी विभाजित रुप थी किन्तु शारीरिक विभाजन संभव नहीं। यही कारण है कि उसने जो भी किया वह तुम्हारे शरीर द्वारा ही किया गया।
किन्तु मैंने तो वो वीडियो शूट नहीं किया था,,,,
हां यह याज्ञसेनी ही थी किन्तु शरीर तुम्हारा ,,,,,,,, शायद तुम लोगों की मदद करना चाहते थे किन्तु किसी से दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहते थे अतः याज्ञसेनी ने तुम्हें समझौते का सुझाव दिया यानी यह तुम्हारा ही विचार था।याज्ञसेनी वैचारिक स्तर पर तुम्हारे ही समान थी आखिर वह तुम्हारी ही कृति थी।
प्रोफेसर साहब की हर बातें अविश्वसनीय और हैरान करने वाली थी क्या ऐसा भी हो सकता है ।इसका मतलब जो मैं आज तक जीता रहा वह सिर्फ कोरी कल्पना थी यानी मस्तिष्क का काल्पनिक सर्जन मात्र।
मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था।

किन्तु उसका मोबाइल नम्बर मेरे पास है क्या यह भी झूठा है????
यह सुनकर प्रोफेसर साहब मुस्कुराये।
तो मिलाइये फोन मुझे भी याज्ञसेनी से बात करनी है ,,,,,,,
हाँ सर मिलाइये ये आखिरी सबूत है याज्ञसेनी की वास्तविकता का,,,, वरुण ने कहा।
हां,,,,, हां ,,, जरुर।
मैंने मोबाइल निकाल कर नम्बर डायल किया ।रिंग के साथ ही हम सब चकित थे।वह मेरे जेब में ही बज रहा था मैंने फोन निकाला स्क्रीन पर यौधेय फ्लैश हो रहा था।
यानी कि,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरे शब्द अटक गये थे।
हां फोन करने और रिसीव करने वाला कोई और नहीं बल्कि तुम खुद थे।तुमने ही उसे याज्ञसेनी नाम दिया और खुद को चतुराई से यौधेय कहा यानी वो द्रौपदी और तुम अर्जुन ,,,,,, उसके लिये किराये पर कमरा,, साथ घूमना और साथ लंच ये सब तुमने खुद ही किये,,,,, वो कल्पना में तुम्हारे साथ थी किन्तु वास्तविकता में उसने जो भी किया वह तुमने खुद ही किया।
यह सब सच में परेशान करने वाले खुलासे थे।मैं शांत था।ऐसा भी मेरे साथ कुछ हो सकता है यह सोचा नहीं था।मैं सबसे अलग था ये तो मुझे लगता था किन्तु मस्तिष्क खुद की दुनिया खड़ी कर देगा इसका अंदाजा नहीं था।
इसका कारण क्या हो सकता है?? वरुण ने हैरानगी से कहा।
कोई ऐसी बात जिसका मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा हो।कुछ ऐसी इच्छायें जिन्हें व्यग्रता की हद तक पूरा करने का जुनून हो।कुछ दबी भावनायें जिन्हें हमारा मस्तिष्क और आत्मा पूरा करने निकल पडते हैं जो सामान्य रूप से संभव न हो ।ऐसे लोग समाज और जीवन को लेकर असन्तुष्ट होते हैं किन्तु इन सब से टकराने में डरते है जिससे यह स्थिति उत्पन्न होती है।
तुम्हारे सर भी कुछ इसी भावनाओ से जूझ रहे थे और जिसका जिक्र उन्होंने किसी से नहीं किया क्योंकि समाज ऐसे लोगों को केवल पागल और सनकी ही कहता है।
प्रोफेसर साहब के एक एक शब्द तस्वीर को स्पष्ट करते जा रहे थे।मेरा भी भ्रम अब टूट चुका था। पर एक बात मुझे साल रही थी कहीं याज्ञसेनी दुबारा तो नहीं लौटेगी,,,
क्या ऐसा फिर हो सकता है????
हां यदि ऐसी स्थिति पुनः उत्पन्न हुई तो,,,किन्तु तुमने जो आखिरी शब्द उससे कहे उस हिसाब से तुमने स्वयं ही याज्ञसेनी को ठुकरा दिया था। अतः सम्भावना सीमित ही है।
कृष्णा की कई बातें मुझसे काफी मिलती हैं तो कहीं वो भी तो मेरी कल्पना,,,,,,,,,,,,,,,,
नहीं वह कल्पना नहीं किन्तु सोलमेट हो सकती है,,,,,,,,,
प्रोफेसर साहब ने कहा।
सोलमेट का तो पता नहीं किन्तु वो आपकी बैचमेट जरूर है सर्,,,,,, वरुण ने हंसते हुए कहा ।
बैचमेट,,,,,,, कैसे???
अरे सर जब आप इंटर में मैथ्स की कोचिंग करने जाते थे तो देश दुनिया समाज बदल देने की लम्बी चौड़ी बातें किया करते थे। उन्हीं बातों से वो आपसे इतना प्रभावित हुईं कि ,,,,,,,,,,,,, कोई इन बातों से भी प्रभावित हो सकता विश्वास नहीं होता,,,,, खैर,,,,, बात यहां तक पहुंची,,,,,,
पर तुम्हें कैसे मालूम????
मुझे भाभी जी,,,,, मतलब वास्तविक भाभी जी ने बताया था।
वरुण की बातों पर सब हंस पड़े।
जमीं बर्फ पिघल चुकी थी।सब कुछ स्पष्ट हो गया था।इसके साथ ही याज्ञसेनी के रहस्य से भी पर्दा उठ चुका था।मैं बहुत ही हल्का महसूस कर रहा था।हमनें प्रोफेसर साहब को धन्यवाद किया और वहां से विदा हुये। एक प्रश्न था जो अब भी दिमाग में चल रहा था कि आखिर प्रोफेसर साहब को मेरे बारे में इतना सब कैसे पता था।
वरुण ये बताना कि प्रोफेसर साहब मेरे और याज्ञसेनी के बारे में इतना कुछ कैसै जानते थे?????
जो आपका आठ महीने से पीछा कर रहा हो यही सब जानने के लिये वो आपके बारे में नहीं तो क्या दूसरे के बारे में जानेंगे,,,,,,,
आठ महीने,,,,,????
हां सर ,,, जब आप उस दिन मुझे याज्ञसेनी के कमरे पर खाना ले जाने से मना किया था मुझे उसी समय यह लगा कि कुछ न कुछ तो है जो सही नहीं,,,,,, बस उसी समय मैंने प्रोफेसर साहब की मदद ली।
ओह! तो ये बात थी,,,, वैसे उन्हें इस बारे में गहरा ज्ञान था !!!!!!!
होगा क्यों नहीं सर् वो खुद भी इससे गुजर चुके हैं,,,,
क्या??????
जी हां,,,,,,वैसे ऐसे केश विरले ही होते हैं।
तब तक घर आ गया था। वरुण मुझे दरवाजे पर ही छोड़कर वापस चला गया।
अंदर आते ही कृष्णा ने मुझसे जो कहा उसे सुनकर मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।
ये यौधेय कौन है??????
क्या यौधेय!!!! ये नाम तुम्हें कहां मिला।
इस कार्ड पर जिसमें आप के नाम के ऊपर यौधेय का स्टीकर चिपका हुआ है,,,,,
ओह!!!!! तो ये भी मैंने ही ,,,,,,,,,,,,,,, मैंने धीरे से कहा।
क्या कह रहे हैं,,????
जब तुम कृष्णा ( द्रौपदी ) हो तो मैं क्या हो सकता हूं यौधेय ( अर्जुन) ही ना,,, मैंने हंसते हुये कहा।
मेरा जवाब सुन वह मुस्कुरा उठी,,, मुझे ऐसा लगा वो कोई और नहीं याज्ञसेनी ही हो।

समाप्त।

अचलेश सिंह यथार्थ।

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