Sawan me lag gai aag books and stories free download online pdf in Hindi

सावन में लग गई आग, दिल मेरा ...

सावन में लग गई आग, दिल मेरा ...

सुशांत सुप्रिय

नरिंदर कुमार रोमांटिक और भावुक क़िस्म का आदमी था । उसे एक लड़की से इश्क़ हो गया । भरी जवानी में इश्क़ होना स्वाभाविक था । अस्वाभाविक यह था कि उस समय पंजाब में आतंकवाद का ज़माना था । नरिंदर कुमार हिंदू था । जिस लड़की से उसे इश्क़ हुआ, वह जाट सिख थी । पर यह तो कहीं लिखा नहीं था कि एक धर्म के युवक को दूसरे मज़हब की युवती से इश्क़ नहीं हो सकता । लिहाज़ा नरिंदर कुमार ने इन बातों की ज़रा भी परवाह नहीं की । इश्क़ होना था, हो गया ।

शुरू में उसका इश्क़ ' वन-वे ट्रैफ़िक ' था । लड़की उसी के मोहल्ले में रहती थी । नाम था नवप्रीत कौर संधू । नरिंदर को लड़की पसंद थी । उसका नाम पसंद था । उसकी भूरी आँखें पसंद थीं । उसकी ठोड़ी पर मौजूद नन्हा-सा तिल पसंद था । उसका छरहरा जिस्म पसंद था ।

लड़की को नरिंदर में कोई दिलचस्पी नहीं थी । लड़की को इश्क़ में कोई दिलचस्पी नहीं थी । यह नरिंदर के इश्क़ की राह में एक बड़ी बाधा थी । पर वह मजनू ही क्या जो अपनी लैला को पटा न सके ! लिहाज़ा नरिंदर तन-मन-धन से इस सुकार्य में लग गया । बड़े-बुज़ुर्ग कह गए हैं कि यदि किसी कार्य में सफल होना है तो अपना सर्वस्व उसमें झोंक दो । इसलिए नरिंदर ' मिशन-मोड ' में आ गया । वह उन दिनों अमृतसर के गुरु नानक देव वि.वि. से अंग्रेज़ी में एम. ए. कर रहा था । ' रोमांटिक पोएट्री ' पढ़ रहा था । वह इश्क़ की उफ़नती नदी में कूद गया और हहराते मँझधार में पहुँच कर हाथ-पैर मारने लगा ।

नवप्रीत को यदि ख़ूबसूरत कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । तीखे नैन-नक़्श, गेंहुआ रंग, छरहरी कमनीय काया, सलोना चेहरा । नरिंदर ने जवानी में क़दम रखा और विधाता की इस गुगली के सामने क्लीन-बोल्ड हो गया । लेकिन आलम यह कि इश्क़ के खेल में आउट हो कर भी वह खुश था । दिल हाथ से जा चुका था पर अगली इनिंग्स का इंतज़ार था । मन में निश्चय था कि अगली बार वह इश्क़ के मैदान में डबल सेंचुरी ठोक कर ही लौटेगा । अगली बार मौक़ा मिलते ही वह धैर्य के साथ इश्क़ के मैदान की क्रीज़ पर डट गया । उसने एक साथ सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वी. वी. एस. लक्ष्मण की ख़ूबियों को आत्म-सात करके विधाता की बॉलिंग खेलनी शुरू कर दी ।

पहले कुछ ओवर बेहद ख़तरनाक थे । नवप्रीत-रूपी नई गेंद बहुत स्विंग कर रही थी । मेघाच्छादित आकाश में गेंद उसे बार-बार छका कर बीट कर जाती । वह नवप्रीत-रूपी गेंद को स्क्वेयर-कट मारना चाहता लेकिन स्विंग हो रही गेंद हवा में थर्ड-मैन की दिशा में चली जाती । लेकिन यहीं नरिंदर ने राहुल द्रविड़ की शैली में इश्क़ की क्रीज़ पर लंगर डाल दिया । ठुक-ठुक, ठुक-ठुक करते हुए वह मनचाहे स्कोर की ओर बढ़ने लगा । उसने अपनी बहन हरलीन को प्रेरित किया कि वह नवप्रीत से दोस्ती करे । दोनों एक ही उम्र की थीं । उधर इन दोनों की मित्रता हुई, इधर नरिंदर को लगा जैसे विकट परिस्थितियों में एक हरी घास वाली उछाल भरी पिच पर उसने जूझते हुए पचास रन बना लिए हैं ।

फिर नवप्रीत हरलीन से मिलने उनके घर आने लगी । नरिंदर तो कब से ताक में था ही । नवप्रीत से ' हलो-हाय ' हुई । फिर बातचीत होने लगी । नरिंदर को पता चला कि नवप्रीत खालसा कॉलेज से एम.ए. ( पंजाबी ) कर रही है । फिर तो नरिंदर और नवप्रीत के बीच अकसर साहित्य-चर्चा होने लगी । नरिंदर ने प्रसिद्ध पंजाबी कवि सुरजीत पातर की कविताएँ पढ़ी थीं । नवप्रीत के प्रिय कवि भी सुरजीत पातर ही थे । इधर दोनों को बातचीत के लिए ' कॉमन ग्राउंड ' मिल गया, उधर नरिंदर को लगा जैसे उसने इश्क़ के मैच में विधाता की गेंद को ' टेम ' कर लिया है । उसे लगा जैसे उसने इस खेल में शतक ठोक डाला है ।

सावन का महीना था । काली घटाएँ आकाश में उमड़-घुमड़ रही थीं । ऐसे मौसम में नवप्रीत एक दिन हरलीन ले मिलने उनके घर आई । उसने फ़ीरोज़ी रंग का पटियाला सूट पहना हुआ था । इत्तिफ़ाक़ से घर के सभी लोग एक रिश्तेदार की शादी में गए थे । नरिंदर की परीक्षा चल रही थी । लिहाज़ा वह पढ़ाई करने के महती कार्य के नाम पर घर पर ही था । अब यह बात नवप्रीत को तो पता नहीं थी । या यह भी हो सकता है कि उसे यह बात अच्छी तरह पता थी । कुछ भी हो, नवप्रीत आई और नरिंदर ने उसकी आव-भगत की । साहित्य-चर्चा होने लगी । रोमांटिक कविता की विशेषताओं की चर्चा करते-करते हमारे नायक ने बेहद रोमानी अंदाज़ में अपनी नायिका का हाथ पकड़ कर उसे चूम लिया । यदि यह कथा कालांतर में घटी होती तो नरिंदर गायक मीका की शैली में अपनी नायिका के सामने गा उठता -- " सावन में लग गई आग, दिल मेरा ...। " ऐसा इसलिए क्योंकि बरसों बाद उसे मीका का गाया यह गाना बेहद पसंद आया था ।

पर उस समय तो नवप्रीत नाराज़ हो गई । या कम-से-कम उसने नाराज होने का अभिनय ज़रूर किया । नरिंदर घुटनों के बल बैठ कर रोमियो की शैली में अपने सच्चे प्यार की क़समें खाने लगा । पता नहीं वह नरिंदर के प्रेम की शिद्दत थी या कुछ और, पर नवप्रीत का मन पिघल गया । या कौन जानता है, शायद वह भी नरिंदर से प्रेम करने लगी थी । जो भी हो, यह प्रेम-कहानी ' वन-वे-ट्रैफ़िक ' से शुरू हो कर अब ' टू-वे-ट्रैफ़िक ' में बदल चुकी थी । नरिंदर को लगा जैसे इश्क़ के मैदान में विधाता की नवप्रीत-रूपी गेंद खेलते हुए आख़िर उसने ' डबल सेंचुरी ' ठोक डाली है । उसके ज़हन के स्टेडियम में तालियों की गड़गड़ाहट गूँज रही थी ।

फिर क्या था । प्रेमी-प्रेमिका के बीच साहित्य-चर्चा के साथ-साथ चुंबन-आलिंगन के दौर भी चलने लगे । इश्क़ के मैदान पर रन-संख्या खिसकती रही । लेकिन इस परिदृश्य में जैसे अचानक एक दिन एक ख़तरनाक गेंदबाज़ ने प्रवेश किया !

दरअसल, नवप्रीत के मामा को न जाने कैसे भनक लग गई कि नवप्रीत और नरिंदर के बीच कुछ चल रहा है । वे लंबे-तगड़े जाट सिख थे । उन्होंने एक दिन नरिंदर को गली में रोका और उसे चेतावनी दे दी । नरिंदर को लगा जैसे गेंदबाज़ ने उसके हेल्मेट पर बाउंसर दे मारा हो । पर उसे अपनी बल्लेबाज़ी पर पूरा भरोसा था । उसने तय किया कि गेंद ज़्यादा स्विंग होने लगे तो कुछ ओवर बिना कोई रन बनाए

' मेडन ' खेल लेना चाहिए । वह जानता था कि ऐसे समय में अपनी विकेट बचाना ज़रूरी था ।

नवप्रीत का उनके घर पर आना-जाना लगभग बंद कर दिया गया था । ऐसे में नरिंदर ने एक बार फिर अपनी बहन हरलीन की सहायता ली । उसने हरलीन को सारी बात बताई । हरलीन की मदद से प्रेमी-प्रेमिका के बीच संवाद बना रहा । आप कह सकते हैं कि नवप्रीत के मामा के बाउंसर से जब नरिंदर को चोट लग गई तो पैविलियन से जैसे उसकी बहन हरलीन दर्द-निवारक स्प्रे, पानी की बोतल और तौलिया लिए हुए दौड़ी चली आई । कुछ देर के उपचार के बाद नरिंदर दोबारा इश्क़ की क्रीज़ पर डट गया ।

बाउंसर से जब बात नहीं बनी तो नवप्रीत के मामा ने एक दिन अपनी मारक गेंद ' यार्कर ' डाल दी । इस बार उन्होंने नरिंदर को गली में रोककर धमकाया कि यदि उसने नवप्रीत का पीछा नहीं छोड़ा तो वे उसकी बहन हरलीन को गुंडे भेज कर उठवा लेंगे । नरिंदर सन्न रह गया । उसे लगा जैसे नवप्रीत के मामा ने ' चकिंग ' करके खेल का नियम तोड़ दिया है । जैसे उनका मारक ' यार्कर ' सीधा उसके टखने पर जा लगा है । वह पिच पर गिर पड़ा है । असह्य दर्द से छटपटाता हुआ । लगा कि अब खेल ख़त्म । बल्लेबाज़ ' रिटायर्ड हर्ट ' ! लेकिन वहाँ नियति के रूप में अम्पायर मौजूद था ।

कुछ दिन बाद ही एक रात अचानक हृदय-गति रुक जाने से नवप्रीत के मामा की अकाल-मृत्यु हो गई । होनी को कौन टाल सकता था । नरिंदर को लगा जैसे नियति-रूपी अम्पायर ने मामा की गेंदबाज़ी पर प्रश्न-चिह्न लगा कर उन्हें 'चक' करने के आरोप में गेंदबाज़ी के लिए अयोग्य क़रार दे दिया था । हमारे बल्लेबाज़ नरिंदर ने राहत की साँस ली । वह एल.बी.डब्ल्यू. होने से बाल-बाल बचा था ।

एक ऐसा समय आता है जब मार्ग से सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं, जीवन के आकाश में इंद्रधनुष छा जाता है, जीवन की बगिया में कोयलों की कूक सुनाई देती है, जीवन की फुलवारी में उगे रंग-बिरंगे ख़ुशबूदार फूलों पर अद्भुत रंगों वाली तितलियाँ मँडराने लगती हैं, मुँह में शहद का स्वाद घुल जाता है और हम जैसे सूर्योदय के समय ओस से भीगी मखमली हरी घास पर नंगे पैर चलने का आनंद |