GOPI GEET - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

गोपी गीत । - 2

।। श्री राधे ।।

हमारे प्यारे स्वामी! तुम्हारे चरण , कमल से भी सुकोमल ओर सुन्दर है । जब तुम गौओं को चराने के लिए व्रज से निकलते हो , तब यह सोचकर कि तुम्हारे वे युगल कंकड , तिनके और कुश-कांटे गड जाने से कष्ट पाते होंगे , हमारा मन बैचेन हो जाता है । हमें बडा दुख़ होता है।। १ १ ।।

।। श्री राधे ।।

दिन ढलने पर जब तुम वन से घर लौटते हो तो हम देखती है कि तुम्हारे मुख कमल पर नीली-नीलो अलके लटक रही है और गौओं के खुर से उड़-उड़कर घनी धूल पडी हुई है । हमारे लोकप्रिय बीर प्रियतम्! तुम अपना वह सौन्दर्य हमें दिखा-दिखाकर हमारे हदय में मिलन की आकांक्षा-प्रेम उत्पन करते हो । । ९ २ । ।

।। श्री राधे ।।

प्रिंयतम्! एकमात्र तुम हो हमारे सारे दुखों को मिटाने वाले हो । तुम्हारे चरण कमल शरणागत भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण काने चाले हैं । स्वयं लक्ष्मीजी उनकी सेवा करती हैं और पृथ्वी कै तो वे भूषण ही हैँ । आपत्ति कै समय एकमात्र उन्हीं का चिंतन करना उचित हैं, जिससे सारी आपत्तियाँ कट जाती है। कुंजबिहारी ! तुम अपने वे परम कल्याण स्वरूप चरणकमल हमारे वक्षस्थल पर रखकर हदय की व्यथा शान्त कर दो ।। १३ ।।

।। श्री राधे ।।

वीरशिरीमणे ! तुम्हारा अधरामृत मिलन के सुख को ,आकांक्षा को बढाने वाला है । वह विऱहजन्य समस्त शोक संताप को नष्ट कर देता है । यह गाने वाली बांसुरी भली भाँति उसे चूमती रहती है । जिन्होंने एक वार उसे पी लिया , उन लोगों को फिर दूसरों की आसक्तियों का स्मरण भी नहीं होता । हमारे 'वीर अपना वही अधरामृत हमें वितरण करो , पिलाओ। । ९ ४ ।

।। श्री राधे ।।

प्यारे दिन के समय जब तुम वन में विहार करने के लिए चले जाते हो तब तुम्हें देखे बिना हमारे लिए एक-एक क्षण युग के समान जाता है और जब तुम संध्या के समय लौटते हो तथा मुँघराली अलकों से युक्त्त तुम्हारा परम सुन्दर मुखारविन्द हम देखती है, उस समय पलकों का गिरना हमारे लिए भार हो जाता है और ऐसा जान पड़ता है इन नेत्रों की पलकों को बनाने वाला विधाता मूर्ख है।१५।

।। श्री राधे ।।

प्यारे श्यामसुन्दर ! हम अपने पिता-पुत्र , भाई -बन्धु और कुल-परिचार का त्याग कर , उनकी इक्षा और आज्ञाओं का उल्लंघन करके तुम्हारे पास आयी हैं । हम तुम्हारी एक-एक चाल जानती हैं, संकेत समझती है और तुम्हारे गान की गति समझकर उसी से मोहित होकर यहॉ आयी हैं । कपटी ! इस प्रकार रात्रि कै समय आयी हुई युवतियों को तुम्हारे सिवा और कौन छोड़ सकता है?।१६।

।। श्री राधे ।।

प्यारे! एकांत में तुम मिलन की आकांक्षा , प्रेमभाव को जगाने वाली बातें करते थे , ठिठोली करके हमें छेड़ते थे । तुम प्रेमभरी चितवन से हमारी और देखकर मुस्कुरा देते थे ओर हम देखती थीं तुम्हारा वह विशाल वक्षस्थल, जिस पर लक्ष्मीजी नित्य निरन्तर निवास करती है । तब से अब तक निरन्तर हमारी लालसा बढती ही जा रही है और हमारा मन अधिकाधिक मुग्ध होता जा रहा है। । १७ ।

।। श्री राधे ।।

प्यारे! तुम्हारा यह अवतार व्रज…वनबासियों कै सम्पूर्ण दु:ख-ताप को नष्ट करने और विश्व का पूर्ण मंगल करने कै लिए है । हमारा हदय तुम्हारे प्रति लालसा से भर रहा है । कुछ थोडी-सी ऐसी औषधि दो जो तुम्हारे निजजनों को ह्रदयरीगों को सर्वथा निर्मूल कर दे । । १ ८ । ।
।। श्री राधे ।।।

प्यारे ! तुम्हारे चरण कमल से भी सुकुमार हैं । उन्हें हम अपने कठोर स्तनों पर भी डरते डरते बहुत धीरे से रखती है कि कहीं उंन्हें चोट न लग जायें । उन्हीं चरणों से तुम रात्रि के समय घोर जंगल में छिपे-छिपे भटक रहे हो। क्या कंकड़ , पत्थर आदि की चोट लगने से उनमें पीडा नहीं होती ? हमे तो इसकी संभावना मात्र से ही चक्कर आ रहा है । हम अचेत होती जा रही हैं । श्रीकृष्णा श्यामसुंदर ! प्राणनाथ ! हमारा जीवन तुम्हारे लिए है, हम तुम्हारे लिए जीं रही हैं, हम तूम्हारी है।। १ ९ ।।

।। श्री राधे ।।
।। श्रीगोपाल ।।