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विश्वास

विश्वाश

सेठ रामानंद जी भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त हैं। उनका व्यापर का काम बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन पिछले कई दिनों से उनको कारोबार में हानि उठानी पड़ रही है...।

वे सज्जन स्वभाव के हैं तथा हमेशां ही ग्राहकों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं।
सेठजी दान पुण्य भी बहुत करते हैं। वे अपनी पत्नी दयावती से हमेशां कहते थे कि इस संसार में दान-पुण्य करके कर्मों को सुधार लें और यही सद्कर्म अगले जन्म में भी काम आते हैं... मनुष्य इस संसार में खाली हाथ ही आता है और इस संसार से खाली हाथ ही चला जाता है।
उनका मानना है कि इस संसार के लोग सत्कर्म करने वालों को सदियों तक याद करते हैं...।
दयावती भी अपने नाम को सार्थक करने वाली धर्मपरायण स्त्री हैं। अपने स्तर पर खूब दान करती हैं, अपने द्वार पर आने वाले किसी भी जरूरतमंद को कभी भी खाली हाथ नहीं जाने देती हैं।

आजकल कारोबार में नुकसान की वजह से सेठजी काफी परेशान रहने लगे हैं तथा भगवान से प्रार्थना करते हैं कि जल्दी ही उनका कारोबार पहले की तरह चलने लगे...।

जिन आँखों से सेठजी ने अपने कारोबार के उत्थान को देखा आज उसी कारोबार को पतन के गर्त में जाते हुए कैसे देख सकते थे... इसी कारण से उनकी आँखें भर आयी ...
सेठजी पर काफी कर्जा होने के कारण वे बहुत दुःखी हो गए और एक रात सेठजी ने धीरे से अपनी पत्नी के कमरे में प्रवेश किया और सेठानी के सिरहाने एक छोटा सा काजग का टुकड़ा छोड़ दिया जिसमें लिखा था " मैं अपने व्यवसाय को और अधिक डूबता हुआ नहीं देख सकता... कुछ पूँजी दुकान के लॉकर में रखी है बाकी तुम हमारी सम्पति को बेचकर लेनदारों के कर्जे को चुका देना और अपने बेटे को लेकर किसी दूसरे स्थान पर चली जाना... ।"
सेठजी घर छोड़कर जा रहे थे और वे चाहकर भी दयावती को नींद से नहीं उठा पाए, क्योंकि उनको मालूम था अगर दयावती को इस बारे में पता चलेगा तो वे कदापि ऐसा नहीं करने देंगी...
ऐसा सोचते - सोचते सेठजी की आँखों में पानी आ गया और वे मन ही मन सेठानी से क्षमा याचना करते हुए वहाँ से चल पड़े...
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रात के अंधेरे में सेठजी अनजान रास्ते पर चल रहे थे । उनको चलते-चलते लगभग एक पहर बीत गयी ... रास्ते में उनको एक मन्दिर दिखाई दिया जो संयोग से भगवान श्री कृष्ण का था...।
ज्यादा थकान के कारण सेठजी ने थोड़ी देर मन्दिर में विश्राम करके आगे बढ़ने का निश्चय किया...
उन्होंने मन्दिर में जाकर हाथ-पैर धोए तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को दण्डवत प्रणाम किया और वहाँ पर एक ओर बैठ गए..।
तभी उनकी नज़र एक दीन - हीन व्यक्ति पर पड़ी... जो सेठजी के बाद मन्दिर में आया और वहीं पर बैठ गया उसके चेहरे पर उदासी साफ दिखाई दे रही थी और वह अपनी आँखें बंद कर कुछ बुदबुदा रहा था संभवतः भगवान का नाम सुमरिन कर रहा था..।
जब सेठजी ने उसे पुकारा तब उसने अपनी आँखें खोली...
तुम इस तरह उदास क्यों हो और आधी रात को मन्दिर आने का क्या प्रयोजन? - सेठजी ने आश्चर्य चकित होते हुए आगंतुक से पूछा।
मैं बहुत गरीब हूँ और मेरा पुत्र बहुत बीमार है मुझे उसके इलाज के लिए कुछ रुपयों की आवश्यकता है। आगंतुक ने कहा...।
तब सेठजी ने अपनी अंगूठी निकालकर उसे देते हुए कहा कि इसे बेचकर किसी अच्छे वैद्यजी से अपने बेटे का इलाज करा लेना... अगर और पैसों की जरूरत हो तो मेरे घर से ले लेना, कहकर सेठजी ने उसे अपने घर का पता दिया।
तभी सेठजी ने उससे पूछा कि अगर तुम्हारा बेटा बीमार है तो तुम्हें इस वक़्त यहाँ आने की बजाय उसके साथ होना चाहिए था।
तब उस व्यक्ति ने कहा कि मैं यहाँ प्रभु से सहायता माँगने आया था।
तब सेठजी ने पूछा तुम्हें ऐसा क्यों लगा की प्रभु तुम्हारी सहायता करेंगे?
तब उसने कहा कि मुझे विश्वास था प्रभु किसी न किसी रूप में मेरी सहायता अवश्य करेंगे...
उसका उत्तर सुनकर सेठजी ने सोचा कि इस व्यक्ति का पुत्र बीमार है लेकिन फिर भी यह ईश्वर पर पूर्ण विश्वास किए हुए है और एक मैं हूँ जो भगवान को मानता हूँ फिर भी अपने कर्तव्यों से भागकर क्या करने चला था...? धिक्कार है मुझ पर... ऐसा सोचकर उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी...

अब तो सेठजी भगवान की मूर्ति के चरणों में लोट गए और बार-बार प्रभु से क्षमा मांगने लगे...
हे प्रभु, हे कृपा निधान, हे करुणानिधि, हे दीनबन्धु मुझे माफ़ कर दो मैं क्यों नहीं समझ पाया आपकी लीला को... प्रभु मैं अज्ञानी की भांति आपकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने चला था...
मुझे माफ़ कर दो भगवन मैं बिना सोचे समझे अपने जीवन का अंत करने चला था।
मुझे क्षमा कर दो प्रभु मेरा विश्वास कैसे कमजोर पड़ गया...?

मुझे अपनी गलती सुधारने का अवसर दो भगवान... इसी तरह सेठजी ने भगवान श्री कृष्ण से अपनी भूल की क्षमा माँगी और वहाँ से घर की ओर चल पड़े... अब उनके मन का बोझ उतर चुका था , थकान का नामोनिशान तक नहीं था ... सेठजी हर कदम के साथ 'जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण' कहते जा रहे थे... अब रामानंद जी सेठानी के उठने से पहले घर पहुंचना चाह रहे थे...

'जय श्री कृष्ण'

___ समाप्त
परमानन्द 'प्रेम'