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दलदल

लघुकथा

दलदल

" लगता है आज हमारी जान का मूड कुछ ठीक नहीं है !"

" मूड क्या यार , घर - गृहस्थी में ही जिंदगी खप् रही है , मैं तो बोर हो गयी ."

" कोई नई बात हुई है क्या ......जो इतनी उखड़ी - उखड़ी सी हो। ? "

" नया क्या होना है . सुबह उठो , पति महोदय के लिए नाश्ता बनाओ , पैक करो . उन्हें आफिस भेजने के बाद बच्चों को तैयार करो . स्कूल के लिए चलता करो ......सबके विदा होने के बाद बिखरी हुई हर चीज को समेटो . उसके बाद सारे दिन के बंधे - बंधाये काम ....शाम होते ही फिर वही सबकुछ और उसके बाद, वही घिसी हुई रात ....कुछ भी तो नया नहीं .....ये भी कोई जिंदगी है क्या ? "

" ठीक है कुछ नया करते हैं ."

" नया क्या कर लोगे ?"

" कल दोपहर को फिल्म चलते हैं ."

" शाम को उनसे क्या कहूँगी ?"

" कुछ भी कह देना या फिर हमेशा की तरह का परमानेंट बहाना कि शॉपिंग करने मार्किट गयीं थी ."

"कौन सी फिल्म दिखाओगे ?"

" तुम्हारे साथ तो रोमांटिक ही चलेगी ."

" हमेशा गुड़िया कि तरह ट्रीट करते हो और चाहते हो हमेशा वही करूँ जो तुम चाहो ."

" मैं भी तो यही करता हूँ ."

" एहसान करते हो क्या ? तुम्हारी मजबूरी है कि मेरा कहा मानो "

" क्या मतलब ?"

" मतलब ये मजनूं मियां कि तुम्हारे पास कोई विकल्प ही नहीं है ."

" हाँ तुम्हारे पास तो विकल्पों की लाइन लगी है ?"

" तुम पीछे हट जाओ , तुम्हे खुद ही पता चल जाएगा ?"

" ....................................................!"

" चुप क्यों हो गए ? .......साहब की बोलती बंद क्यों .हो गयी ."

"........................................................!"

" अरे कुछ है तो बोलो न ."

".............................................!"

उसकी जबान को लकवे ने निष्क्रिय कर दिया और उसकी चेतना से संवेदना गायब हो गयी . वह रिश्तों की इन अवैद्य सच्चाइयों का सामना करने के लिए तैयार नहीं था . उसकी इच्छा हुई कि वह संबंधों की इस कालिख से स्वयं को मुक्त कर ले . जिस उद्गार को वह अनंत ऊर्जा का स्रोत समझ प्रेम के रूप में अपने अंतरमन में प्रतिष्ठित किये बैठा था , वह उसके सामने स्वयं द्वारा सृजित की हुई विष धारा में घिरकर प्रलय की घोषणा कर रही थी .

वह यंत्र - वत उठा .उसके सिले हुए होंठ बड़बड़ाये , " तुम अपने दम्भ के दलदल में स्वयं ही दफन हो जाओगी , मेरे लिए तुम्हारा और अधिक साथ देना किसी डूबती नाव पर सवार होना है ."

उसने मन ही मन कहा , " जिंदगी कभी विकल्पहीन नहीं होती ."

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सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

,डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन,साहिबाबाद-201005(उ.प्र.), मो:9911127277,

E.mail: surendrakarora1951@gmail.com