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परिचय - मेरे साथ चाणक्य निती

"चाणक्य नीति " , जब यह पुस्तक लोगों के सामने आती है तब अधिक प्रमाण में लोग इस पुस्तक को एक राजनीतिक मुद्दे की समान स्वीकार करते है। यह प्रक्रिया इनके निर्माता की पहचान के कारण है , जो मेरे गुरु भी है और भारत राष्ट्र के सबसे बड़े राजनीतिक पुरुष है। परंतु , मेरे विचार से यह पुस्तक राजनीति तक सीमित नहीं है। यदि मैं इस पुस्तक का संक्षिप्त में वर्णन करूं तो यह सिद्ध है कि अगर गीता स्वयं का परिचय है , तो वहां चाणक्य नीति स्वयं के साथ किया उत्तम व्यवहार है। जब कोई व्यक्ति श्रीमद भगवत गीता को समझता है तब उस व्यक्ति मैं प्रेमज्ञान का उचित बीज बोया जाता है। परंतु , जब व्यक्ति चाणक्य नीति को समझता है तब व्यक्ति के मन की बौद्धिक क्षमता उस स्तर पर बढ़ जाती है , कि व्यक्ति मानव समाज के हर उचित और अनुचित कर्म को उत्तम दृष्टि से देख सकता है व्यक्ति पूरे मानव समाज का स्वीकार कर अपने उचित कर्मों से उसके हित में जुड़ जाता है। स्पष्ट शब्दों में अगर मैं कहूं , तो गीता समग्र सृष्टि का ज्ञान है और चाणक्य नीति मानव जीवन का ज्ञान है , मानव के हर कर्म का ज्ञान है और मानव के हर कुकर्म का भी ज्ञान है।

मेरे ह्रदय स्पर्शी गुरुदेव की इस नीति का आरंभ करने से पहले मैं उनका संक्षिप्त परिचय देता हूं महान आचार्य चाणक्य को भारत राष्ट्र उनकी कुटिल बुद्धिमता के कारण " कोटिल्य " भी कहता हैं चाणक्य के पिता का नाम आचार्य चणक होते हुए इन्हें चाणक्य कहते हैं , जबकि उनका वास्तविक नाम " विष्णुगुप्त " है। आज से २३०० साल पहले जब विशाल भारत पर एक कुकर्मी राजा धनानंद का शासन था। उनका राज्य मगध था और मगध के सर्वोत्तम राजनीतिक आचार्य चणक थे। एक समय बड़े भ्रष्टाचार और लोगों की पीड़ा से विमुख अपने भोग विलास में डूबे धनानंद के खिलाफ आचार्य चणक ने उनके महामंत्री शकतार के साथ मिलकर विद्रोह किया था। यह विद्रोह की बात धनानंद के दरबार तक पहुंच गई और इसी कारण से धनानंद ने क्रोध में आकर आचार्य चणक को मृत्युदंड दे दिया था। इस समय महान आचार्य चाणक्य बहुत छोटी उम्र के थे। परंतु , अपनी बुद्धि से बड़े विद्वानों को भी चकित कर देते थे। इसी कारण जब पिताजी की मृत्यु हो गई उसके बावजूद भी इतनी सी कम आयु में अपनी दृढ़ता और स्थिरता को उन्होंने यूं ही बनाए रखा था इसी स्थिरता के कारण उन्हें उस समय की सबसे बड़ी विश्वविद्यालय तक्षशिला का विद्यार्थी पद प्राप्त हुआ था। वहां से विद्या प्राप्त करने के बाद उनका एक ही लक्ष्य था , धनानंद से भारत की मुक्ति। इसी लक्ष्य के लिए उन्हें एक महान पराक्रमी शिष्य की खोज थी , जो बाद में भारत का महान चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य बने। चंद्रगुप्त मौर्य को चाणक्य ने तक्षशिला मे सर्वोत्तम विद्या देकर उत्तम पुरुष बनाया था। यह विद्या आचार्य चाणक्य ने भविष्य के लिए " चाणक्य नीति " के रूप में समग्र विश्व को समर्पित किया है। यह स्पष्ट है कि जो ज्ञान एक गुरु के द्वारा शिष्य को दिया गया है वह उत्तम ग्रंथ बना है। जैसे गीता का ज्ञान गुरु श्री कृष्ण शिष्य अर्जुन को देते हैं , वैसे उत्तम पुरुष का ज्ञान आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को दिया है। यह ज्ञान उत्तम पुरुष के आदर्श गुणों का समूह है। मैं विलास नंदन आज मेरे गुरु के इस ज्ञान को अपने प्रेम और विवेक से भरे मेरे हृदय से इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित करता हूं और इसे सभी उत्तम पुरुष को अर्पित करता हूं।


- विलास नंदन

( २८/६/२०२० )


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