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निवेदन पत्र...

"और ये पूरी ताकत के साथ बंटी ने लगाया सिक्स...!!!!!" छोटे कमेंटेटर बल्लू ने हाथ में पकड़ा हुआ बोटल वाले माइक पर चिल्लाकर कहा।
और पूरी बच्चा पार्टी हुर्रे-हुर्रे!!! चिल्लाने लगी।
"अरे मोरी मैय्या!!!! जे का हो गओ ससुर..!!!!" उसी पार्टी का मेंबर गिट्टू चिल्लाया।
उसकी आवाज़ सुन कर उनके लीडर महाशय मोंटी सामने आया।
मोंटी का पूरा नाम तो मुरलीधर बृजवासी था पर रहता इलाहाबाद में था।
उस बच्चा पार्टी में सभी दस के नीचे वाली उम्र के थे सिवाय मोंटी के।
उसकी उम्र पूरी दस साल एक महीना पांच दिन थी जिससे उसे बच्चा पार्टी का लीडर बनाया गया।
पहलवानों के घर से ताल्लुक़ रखने वाला मोंटी खुद भी हट्टा-कट्टा था।
इसलिए उसकी गैंग के अलावा सोसाइटी के हर गैंग के बच्चे उससे डरा करते थे।
यही उनकी गैंग की ताकत थी।
मोंटी की आंखें तब चौड़ी हुईं जब उसने देखा कि बंटी के लगाए सिक्स वाली बॉल सीधा हिंदी मास्टर तिरपाठी जी के घर की खिड़की चीरती हुई गयी है।
वैसे तो मास्टर साहब का सरनेम त्रिपाठी था पर तिरपाठी बोलने में अलग मजा आता था सबको।
तिरपाठी जी की खासियत थी कि उनकी हिंदी के आगे अच्छे-अच्छे झुकते थे।
सोसाइटी में तीस बरस तक का शायद ही कोई युवा हो जिसे तिरपाठी जी ने हिंदी न पढ़ाई हो।
या ऐसा कोई नही था जिसकि तिरपाठी जी की सौति से कुटाई ना हुई हो।
सभी बच्चे थरथराने लग गए।
"अबे!!! डर काहे रहे हो बे!!! चलो लेकर आते हैं बॉल।" मोंटी ने अकड़ में कहा हालांकि अंदर ही अंदर वह खुद भी कांप रहा था।
"का बोल रहे हो रे!!! मास्टर कूट दहियें सबहि का।" गिट्टू बोला तो सभी ने सहमति जताई।
तभी सट्टू जो उनकी क्लास का किताबी कीड़ा यानी सबसे ज्यादा पढ़ने वाला बच्चा वहां से निकला।
माजरा समझ और उन सब के डरे चेहरे देख कर जोर स्व हँसने लगा।
"मैं तो कहता था कि छुट्टियों में आने वाली क्लास की स्टडीज करो..!!! पर अब खाओ तिरपाठी सर की डांट। हिहिहि...!!" सट्टू ने उनका मजाक उड़ाते हुए कहा।
"चुप रह..!!! अभी जा रहा है तेरा चश्मा तोडूं..!!" मोंटी ने सट्टू को डराया तो वो भागकर अपने घर मे घुस गया।
"एक बार चलने में का हो जाएगा।" मोंटी बोला।
अपने लीडर का हुक्म मानकर सभी चिल्लर पार्टी उस तरफ चलने लगी।
तिरपाठी सर घर के सामने सभी रुके। मोंटी ने अपने कद का फायदा उठाया और बेल बजायी।
दरवाजा खुला। सामने साठ वर्षीय सफेद कुर्ता-पायजामा पहने एक इंसान ने दरवाजा थामा हुआ था।
जो यकीनन तिरपाठी सर थे।
"तुम शैतानों ने फिर से मेरी खिड़की तोड़ दी...!!!" तिरपाठी सर उनको देखते ही चिल्ला पड़े।
"अरे सर..!!! दे दीजिए न गेंद..!!" मोंटी ने कहा।
तिरपाठी सर ने उसे घूर कर देखा फिर अपना चश्मा नाक पर चढ़ाया।
"तुम बृजमोहन के लड़के हो न..!!" तिरपाठी सर ने चीखकर पूछा।
"हाँ..!!"मोंटी ने अकड़ कर कहा।
"एक तुम्हारे पिता थे जो बचपन मे पढ़ते रहते थे और तुम बस दिनभर इधर उधर घूमा लो।" तिरपाठी सर ने कहा।
"पढ़ते थे कि आप मार मार कर पढ़ते थे..!" कहकर मोंटी मुहँ पर हाथ रख कर हँसने लगा।
तिरपाठी सर ने उसे घूर कर देखा।
2003 यह एक आखरी पीढ़ी होती है जिसके बच्चे आगे चलकर संस्कारी होते हैं।
और मोंटी के द्वारा कहे गए इस कथन से यह साबित हो रहा था।
"भाग यहां से...!!!" तिरपाठी सर ने इस वाक्य को इतने ऊंचे स्वर में कहा की थरथराते हुए मोंटी सहित पूरी मंडली चीते की रफ्तार से भाग गई।
मोंटी व गैंग अपने जमाने में तिरपाठी सर के पसंदीदा शिष्य यानी मोंटी के पिताजी बृजमोहन जी के पास गए।
बॉल यह शब्द सुनकर ही बृजमोहन जी ने अपनी पीठ पर हाथ रख दिया।
उन्हें याद आया कि बॉल शब्द में चन्द्रबिन्दु न लगाने पर मास्टर साहब ने किस तरह उनकी पीठ पर निशान दिए थे।
जिनका दर्द अब भी उन्हें महसूस हो जाता था।
"देखो बच्चों..!!! मैं तो उनके पास जाने से रहा। हां लेकिन मेरे पास एक तरकीब है।" बृजमोहन जी ने कहा।
चिल्लर पार्टी उन्हें आशाजनक निगाहों से देखने लगे गयी।
"तिरपाठी सर का पसंदीदा विषय है पत्र। तो तुम लोग उन्हें एक पत्र लिखकर दे दो। कयक पता तुम्हारी गेंद तुम्हारे पास आ जाये।" बृजमोहन जी ने कहा।
"पापा कैसे लिखें..??? हमे तो कोई ज्ञान नही इसका।" मोंटी ने कहा।
"अब मुझे तो फॉरमेट भी याद नही। इंटरनेट पर देख लो। चलो मुझे ऑफिस जाना है। अपना ख्याल रखना।" कहकर बृजमोहन जी खिसक लिए।
इंटरनेट की सहायता से मोंटी ने एक लंबा चौड़ा पत्र तैयार किया।
"अबे तुम्हे लगता हैं कि हिटलर साहेब इस पत्र को लिखने भर से बॉल दे देंगे।" बल्लू ने अपनी बात रखी।
मोंटी ने उसकी बात पर गौर किया।
"सही कह रहे हो बे..!!! पर एक ठो आईडिया है।" मोंटी ने कहा।
सब उसे चमक के साथ देखने लगे।
अपने पास बुला एक गोला तैयार और फुसफुस कर के मोंटी ने पूरा पिलान उन्हें समझा दिया।
सभी तिरपाठी सर के घर के सामने ठगे और पिछली बार की तरह मोंटी ने बेल बजायी।
मास्टर साहब ने दरवाजा खोला।
उसे देख वो चिल्लाते इससे पहले ही मोंटी ने पत्र उनके सामने कर दिया।
उन्होंने पत्र को देखा, फिर एक नज़र मोंटी पर डाली फिर उस पत्र को खोला।
और पढ़ना शुरू किया।
"मकान नं. 375, श्री हरि सोसाइटी,
इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
दिनांक: 12/ मई/ 2019
विषय: गेंद वापसी हेतु निवेदन पत्र।

प्रिय तिरपाठी सर,
हम याने के आपके प्रिय शिष्य बृजमोहन जी के लड़के मुरलीधर उर्फ मोंटी।
कुछ टाइम पहले आपके घर की खिड़की हमारी जदन द्वारा टूट गयी थी।
जिसके लिए हम दिल से सॉरी कहना चाहते हैं। एन्ड चाहेंगे कि आप हमें हमारी गेंद दे दीजिए।
हम वादा करते हैं कि जब हम बड़े होंगे तब पक्का आपको पैसे लौट देंगे।
और तो और डी.जे की वॉल्यूम भी धीमा रखेंगे।
यहां तक कि आपके पोते ऋषिकेश को फ्यूचर में अपनी टीम का कप्तान बनाएंगे।
पर उसके लिए प्लीज अभी हमारी गेंद दे दीजिए।
प्लीज!!!!!!!
धन्यवाद।"
पत्र समाप्त हुआ।
इतने वर्षों बाद किसी के निवेदन पत्र को पढ़कर वह भी एक दम सही मात्रा बिंदुओं वाला।
मास्टर साहब की आंखों में आंसू थे जो सीधा पत्र के मध्य में गिरा।
उन्होंने नजर उठाकर देखा तो वहां से सब गायब थे।
"अरे!!!ये सब कहाँ गए।" उन्होंने इधर उधर देखकर कहा।
"मास्टर साहब सामने देखिए।" तिरपाठी सर के पड़ोसी आलोक जी ने कहा।
तिरपाठी सर ने सामने देखा तो पूरी चिल्लर पार्टी हाथ मे ली हुई गेंद को उछालते हुए मैदान की ओर भाग गए।
तिरपाठी सर को समझते देर न लगी कि।
जब तक वह निवेदन पत्र को पढ़ रहे थे तब तक बच्चें गेंद जो उन्होंने पास की टेबल पर रखी हुई थी।
उठा कर भाग लिए।
"शैतानों..!!! अब दिख मत जाना...!!" उन्होंने चिल्लाकर कहा।
पर "निवेदन पत्र" का इतना सही इस्तेमाल पहली बार उन्होंने देखा था।
जिसे सोच वह मुस्कुराते हुए भीतर चले गयें।
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समाप्त...