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उर्वशी - 3

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

3

" यहाँ ? हमारे घर मे ?" आश्चर्य से वह उछल ही पड़ी थी। इससे पहले की पापा कोई उत्तर दें, वह लगभग दौड़ती सी बैठक में आ गई। शिखर पर दृष्टि पड़ी तो अवाक रह गई … कुछ पल को वह अपनी चेतना जैसे खो बैठी थी। आँखें फाड़े बस देखती रही। शिखर ने सुर्ख गुलाब का सुंदर सा गुलदस्ता उसकी ओर बढ़ा दिया। उन्होंने उससे क्या कहा, उर्वशी के कानों तक आवाज़ ही नहीं गई।

" क्या हुआ ? हैलो " उसने चुटकी बजाई तब वह चैतन्य हुई। उसकी यह स्थिति अपने समक्ष राणा साहब को शिखर के रूप में पाकर हो गई थी।

" आप ….. शिखर …." उसे अब भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहना चाहती है,और क्या कह रही है।

" जी हाँ- हम शिखर प्रताप सिंह राणा, लोगों ने हमें राणा साहब का सम्बोधन दे रखा है।"

" मैंने कभी सोचा भी ... मतलब आप …. मैं यह जानने को कितना …." वह हड़बड़ाहट में न जाने क्या क्या बोले जा रही थी।

" यानी आपको बहुत परेशान किया है हमने। " वह मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।

" अ … आप यहाँ कै….?"

" नहीं आ सकते क्या ?"

" उन्होंने गहरे स्वर में पूछा।

" नहीं, मेरा वह मतलब नहीं … " कहते हुए वह कट कर रह गई। अब जाकर वह पूर्ण रूप से चैतन्य हुई। हे भगवान, इन्हें आज ही आना था ? आज क्या कार्टून बनी हुई हूँ मैं ? उसे अब याद आया कि वह इस समय कम से कम इस अवस्था मे बिल्कुल नहीं थी कि उनके सामने आती। उस चेहरे को देखने की उत्सुकता में वह बिना विचार किये दौड़ी चली आयी थी। अब जाकर उसे होश आया कि वह इस वक़्त उपयुक्त परिधान में नहीं है। सुबह स्नान करके आयी तो गर्मी बहुत लग रही थी अतः उसने एक बहुत पुरानी और घिसी हुई गुलाबी रंग की कैपरी पहन रखी थी,जो उसने घुटने से ऊपर चढ़ा रखी थी । उसपर गोल गले की एक काली टीशर्ट, जिसमे लिखा था रॉकस्टार। सुबह सिर धोया था, इसलिए केश गीले होने के कारण यूँ ही उलझे और खुले पड़े थे। जिन्हें सूखने के बाद बाँधना था, पर उपन्यास के रहस्य - रोमांच में ऐसा डूबी,की सुलझाने, समेटने का ख्याल ही न रहा था । अब भी उसके बाल बुरी तरह उलझे और बिखरे हुए थे। यह सब याद आते ही वह लज्जा से गुलाबी पड़ गई। शिखर बहुत दिलचस्पी से उसे देखे जा रहे थे।

" कोई काम था आपको ? "

" आप इतनी परेशान क्यों हैं ?" शिखर मुस्कुराए।

" नहीं, वो बात नहीं, आप हमेशा …. मतलब कभी सामने नहीं आये तो ….." सत्यानाश, यह क्या बोले जा रही हूँ मैं ? उसने स्वयम को डपटा।

" हमें नहीं पता था कि आप हमें लेकर इतनी बेचैन हैं ।" उसके अपदस्थ हो जाने पर शिखर मन ही मन

मजा ले रहे थे।

वह और भी न जाने क्या बोलती पर तभी उसे उबारने को पापा वहाँ आ गए। उसे लगा जैसे उसकी साँस वापस आ गई।

" एक्सक्यूज़ मी " कहकर वह वहाँ से अपने कक्ष में आ गई। सबसे पहले उसने दर्पण में अपना हुलिया देखा। हे भगवान इन्होंने आज किस भेष में देख लिया मुझे। क्या सोच रहे होंगे, कितनी फूहड़ लड़की है। तमीज ही नहीं कि बाहर वालों के सामने कैसे जाते हैं। अजीब ही हालात हैं, ऐसा अक्सर होता है। कभी घर बहुत बिखरा हो तो ज़रूर कोई आ जाता है, जब ढंग के कपड़ों में न हो तो वो आता है, जिसके आने के विषय मे सपने में भी नहीं सोचा होता है। यह तो स्वप्न में भी अनुमान न था कि शिखर और राणा साहब एक ही व्यक्तित्व होंगे। यह मुझे हमेशा फूल क्यों भेजते थे ? इनके यहाँ आने का मकसद क्या है ? इन्हें इतनी दिलचस्पी क्यों है मुझ में, कि मेरे घर का पता लगाया, और फिर यहाँ तक चले आये ? इससे पहले तो कभी बात नहीं की। जबकि दिल्ली में मिलना अधिक सुविधाजनक था। अपना सारा काम छोड़कर यहाँ तक आये। इनमें और मुझमें कहीं कोई तालमेल नहीं। क्या यह भी मुझे चाहते हैं ? यह हावभाव जताते तो यही हैं कि इन्हें कोई खास दिलचस्पी है। परन्तु क्या ?

सोच विचार करते हुए उसने वार्डरोब से अपना कॉटन का एक सूट निकाला और पहन लिया। इसके बाद वह दर्पण के सामने जाकर बाल सुलझाने लगी। बाल भी नामुराद इस कदर उलझ गए थे कि सुलझाना मुश्किल लग रहा था। किसी तरह बाल बनाकर वह बैठक में आयी तो देखा की वहाँ उसकी मम्मी और पापा बैठे हुए बातचीत कर रहे थे तथा चाय नाश्ता चल रहा है। राणा साहब काली चाय पी रहे थे और बाकी सब दूध वाली चाय पी रहे थे। वह आयी तो सबकी नज़रें उसकी ओर उठ गईं और मम्मी पापा ने उसे विशेष दृष्टि से देखा। पापा ने उसे बैठने का इशारा किया। वह बैठ गई और बातचीत का सिरा तलाशने लगी। राणा साहब ने थोड़ी देर उससे इधर उधर की बातें की और फिर चले गए।

वह उनके यहाँ आने का मकसद नहीं समझ सकी। उन्हें कोई विशेष कार्य नहीं था, उन्होंने कोई खास बात भी उससे नहीं की थी । फिर भी उसके घर का पता जानने की कोशिशें की, वहाँ आये भी, पर क्यों ? वह इन्ही विचारों में दिन भर डूबती उतराती रही। रात में उसकी इस जिज्ञासा का समाधान हो गया। उमंग ने बताया कि राणा साहब उसके विवाह का प्रस्ताव लेकर आये थे। यह सुनकर वह बुरी तरह से चौक गई। क्या यह भी सम्भव है ? कहीं मैंने गलत तो नहीं सुना ? ईश्वर, कहीं तू मेरा उपहास तो नहीं कर रहा ? कहाँ मैं और कहाँ उनका ऊँचा खानदान। जिस बेलगाम मन को उसने नियंत्रण के चाबुक से साध रखा था वह अब फिर से दौड़ पड़ा।

उमंग ने बताया कि अगले दिन वह अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ आएंगे। यह सब सूचनाएं एक के बाद एक उस पर विस्फोट सा कर रही थीं। क्या आज सिर्फ चौंकने का दिन है ? पर उसके सपनो का क्या होगा ? अभिनय के नए कीर्तिमान गढ़ने का, विश्व के पटल पर छा जाने का ? अभी तो उसने उड़ान भरनी ही शुरू की है और उसके पँख कतरने की तैयारी शुरू हो गईं। क्या विवाह के बाद वह कला के प्रति इतनी समर्पित रह पाएगी ? क्या उसे इतना अवकाश मिल पाएगा ? पर शिखर ! वह तो उन्हें बहुत चाहती है। उन्हें उसने संसार मे सर्वधिक चाहा है, उनकी कामना की है। अब तक वह अपने मन को साधती आयी थी, कि उसका और उनका साथ असम्भव है। पर अब जब यह सुसंयोग बन रहा है तो वह कैसे अस्वीकार कर दे ? उमंग थोड़ी देर बैठकर न जाने क्या कहता रहा पर वह कुछ न सुन पाई। उसका ध्यान कहीं और ही था।

सारी रात वह शिखर के स्वप्न देखती रही । कभी उनके अंक से लगी हुई, कभी उनके साथ घूमती हुई। उनकी वधु बनकर छुईमुई होती हुई, तो कभी उनके स्पर्श से सिहरती हुई। एक अजीब सा खुमार उस पर छाता जा रहा था। मन मस्तिष्क में एक मीठी सी बेचैनी, एक गुदगुदी सी महसूस की उसने। क्या होगा जब उसके कलाकार साथियों को यह असम्भव सी लगती सूचना मिलेगी। जब दीपंकर को यह समाचार मिलेगा तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी ? हो सकता है वह उसे उनके प्रोजेक्ट से निकाल दें। यही सुना है कि विवाहित अभिनेत्री में लोगों की रुचि नहीं रहती। उसके विचार न जाने कहाँ कहाँ दौड़ते रहे और सारी रात निकल गई।

* * * * *

दोपहर बाद राणा परिवार को आना था। मम्मी, पापा, और उमंग सुबह से ही तैयारी में बहुत व्यस्त थे। कामवाली बाई को आज तड़के ही बुला लिया गया था। अच्छी बात यह थी कि दोनों भाई बहन ने एक दिन पहले ही पूरा घर व्यवस्थित किया था। पर्दे, चादरें, कुशन कवर, सब बदले गए। पीतल के शोपीस ब्रासो करके चमकाए गए। गुलदस्तों में ताजा फूल सजाए गए। प्रवेश द्वार, खिड़की, दरवाजे, हर जगह गेंदे और गुलाब के फूलों की लड़ियों और बन्दनवारों से सजाए गए। पापा ने नाश्ते के लिए कितनी ही चीजों का ऑर्डर करके मंगवा लिया। सुस्वादु व्यंजनों की सुगन्ध से घर सुवासित हो उठा।

उमंग उसके श्रृंगार के लिए पार्लर की मदद लेना चाहता था, पर उसने इनकार कर दिया। माँ ने उसके लिए थोड़ी भारी काम की साड़ी निकाली लेकिन वह उसे पहनने को भी तैयार न हुई। उसने एक सादी सी जॉर्जेट की फिरोज़ी रंग की साड़ी, जिस पर हल्का सा सीक्वेंस वर्क था, पहन ली। थोड़े बाल क्लचर में लेकर बाकी खुले छोड़ दिये। दायें हाथ में अमेरिकन डायमंड का ब्रेसलेट और बायें हाथ मे घड़ी, गले मे चेन हमेशा पड़ी ही रहती थी, उसमें एक पेंडेंट डाल लिया कानों में भी अमेरिकन डायमंड के टॉप्स। तैयार होकर स्वयं पर दृष्टि डाली तो वह सन्तुष्ट नज़र आयी।

चार बजे एक मर्सडीज़ और एक लैंड रोवर दरवाजे पर रुकी। जिनमें से एक विवाहित महिला, दो पुरूष, एक किशोर आयु की लड़की और एक लड़का उतरा। जबकि दोनो गाड़ियों के ड्राइवर व एक एक अंगरक्षक गाड़ी में ही बैठे रहे। आगन्तुकों में एक तो शिखर ही थे दूसरी एक महिला थी, जो लगभग तीस वर्ष की होगी। देखने मे सुंदर, गोरा रंग, वेशभूषा से बहुत आधुनिक और फैशनेबल लग रही थी। वह कीमती डिज़ाइनर सूट में थी। देह पर डायमंड व प्लेटिनम के आभूषण, कुल मिलाकर उसकी एक एक वस्तु उसकी अभिजात्यता का आभास करा रही थी। साथ में लगभग पच्चीस वर्षीय, गोरा चिट्टा युवक था, जो देखने मे बहुत सुदर्शन था। उसका कद भी काफी लंबा था। उसके कुछ सुनहरे से घुँघराले बाल, हरी सी आँखें थीं। किशोरी लड़की ग्यारह वर्ष के करीब थी और बहुत प्यारी लग रही थी और उसका चेहरा शिखर से मिलता हुआ था। उससे छोटा लड़का था, देखने मे प्यारा वह भी था पर शक्ल अलग थी।

उर्वशी के परिवार ने बहुत गर्मजोशी से आगन्तुकों का स्वागत किया। महिला ने निरक्षण पूर्ण ढंग से उसके घर मे चारों ओर दृष्टि दौड़ाई। वह उनकी हैसियत का आँकलन करती हुई प्रतीत हुई। उनलोगों के आने के थोड़ी देर बाद उमंग उर्वशी को लेकर आया। हर निगाह उसकी ओर उठ गई और बहुत प्रभावित नज़र आयी। उसका दप दप दमकता रूप हर एक पर गहरा असर छोड़ गया। शिखर भी अपलक उसे सुध खोकर देखते रह गए। जब वह बैठ गई तो जैसे उन्हें अपनी अवस्था का भान हुआ। उन्होंने अपने परिवार का परिचय उससे करवाना शुरू किया। वह महिला उनकी छोटी बहन शिप्रा थी जो विवाह करके उदयपुर में बस गई थी। वह युवक उनका छोटा भाई शौर्य था, लड़की, उनकी बेटी स्वस्ति तथा लड़का उनका बेटा सौम्य था ।

उनके बेटे और बेटी के विषय मे जानकर उर्वशी अवाक रह गई। उसके हृदय पर एक आघात सा हुआ। उसने शिकायती नज़रों से उन्हें देखा। एक पल को उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्होंने उसका विश्वास तोड़ दिया हो। उसने कभी सोचा ही नही कि यह व्यक्ति विवाहित या दो किशोर बच्चों का पिता होगा। पर उसने क्यों नहीं सोचा? उनकी आयु ऐसी है जिसमे अक्सर विवाह हुए कई वर्ष हो चुके होते हैं। फिर किशोर बच्चों का पिता होना कौन सी हैरानी की बात है। विवाह हुआ है तो बच्चे भी होंगे ही। उन्होंने उससे कब कहा कि वह अविवाहित हैं ?

क्रमशः