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उर्वशी - 8

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

8

" क्या हुआ ?" शौर्य ने उसकी ओर देखा।

" कुछ भी नहीं "

" आप मुस्कुरा क्यों रही हैं ?"

" क्या अब मुस्कुराने के लिए भी आपसे इजाज़त माँगनी होगी ?"

" बिल्कुल नहीं, हमारा आप पर कोई दावा नहीं। "

" दावा तो हम दोनों का ही एक दूसरे पर बनता है, आप न मानें, यह और बात है। लेकिन हकीकत यही है। " उसने जवाब दिया। शौर्य उसे देखता रह गया।

" सुना है आप बहुत अच्छी अभिनेत्री हैं। "

" सिर्फ रंगमंच पर, हकीकत में तो आप ज्यादा बढ़िया अभिनेता हैं। " उसके जवाब पर शौर्य के चेहरे पर अप्रिय भाव आ गए। पर वह मौन रह गया।

" आपकी ग्रेसी कैसी है ?" उसने प्रश्न किया तो वह चौंक गया। उसने गौर से उसे देखा।

" ठीक है, बहुत अच्छी है। "

" क्या इस समय कोई तसवीर है आपके पास ?"

" क्या करेंगी आप ?"

" देखना चाहती हूँ। जिसने कुँवर सा का दिल चुरा लिया, उसमे कोई बात तो होगी । "

वह कुछ पल अनिश्चय की स्थिति में रहा । शायद सोच रहा था कि उसे तस्वीर दिखाई जाए या नहीं।

" आप जितनी खूबसूरत नहीं, पर हमारे लिए वह दुनिया मे सबसे सुंदर है। "

" बिल्कुल होगी, आखिर सुंदरता तो देखने वाले कि नज़रों में होती है। " उसने जवाब दिया। उसके शब्द सुनकर शायद शौर्य का असमंजस दूर हो गया और उसने मोबाइल में से एक चित्र निकाल कर उसे दिखा दिया। उर्वशी ने देखा एक स्मार्ट सी लड़की मुस्कुरा रही है, जो वैसे तो आकर्षक थी पर तुलनात्मक रूप में उसके आगे कहीं नहीं ठहरती थी। तो मेरा मुकाबला इससे है ? उसने सोचा और स्वयं को आत्मविश्वास से भरपूर पाया।

" अच्छी है। " उसने प्रशंसा करते हुए मोबाइल वापस पकड़ा दिया। उसकी तारीफ भरे शब्दों ने शौर्य पर सकारात्मक असर डाला। अब वह सहज नज़र आ रहा था। थोड़ी देर औपचारिक बातें हुईं फिर उर्वशी को नींद आ गई। धीरे धीरे उसका सर लुढ़कता हुआ शौर्य के कंधे पर टिक गया। उसने एक बार उसे देखा फिर सहज भाव से बैठा रहा। जब गाड़ी रुकी तो उसकी आँख खुली। अपना सर उसके कंधे पर टिके पाकर वह कुछ असहज हो गई

" सॉरी, पता ही नहीं चला "

" इट्स ऑलराइट। " वह पहली बार कोमल स्वर में बोला। तभी बैंड बाजे के स्वर से वह चौंक गई देखा उसके स्वागत में घर बहुत भव्य तरीके से सजा हुआ था। वह गाड़ी से उतरी तो थोड़ी थोड़ी दूर पर खड़े घर के सभी नौकरों ने फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा की। वह एकदम से अभिभूत हो गई। न चाहते हुए भी उसकी दृष्टि शिखर से मिली तो वह मुस्कुरा दिए। पैलेस के मुख्य द्वार पर ऐश्वर्या भाभी और माँ सा खड़ी थीं। उन्होंनें आरती उतारकर उन लोगों का स्वागत किया । उसने सास व जेठानी के चरणस्पर्श किये, ऐश्वर्या ने बहुत औपचारिक अंदाज में उसके सर पर हाथ रख दिया और मुस्कुरा दी। माँ सा ने उसके कंधे पकड़कर उसे उठाया और गले से लगा लिया।

" हमारे घर की लक्ष्मी के जाने से पैलेस बहुत सूना लग रहा था। अब लग रहा है कि घर की रौनक आ गई। " उन्होंने कहा तो ऐश्वर्या ने कुछ ईर्ष्या व कुछ व्यंग्य के भाव से उन्हें देखा।

कुछ देर वह सबके साथ बैठी रही। सबकी कुशल क्षेम जानकर, माँ सा की आज्ञा से वह अपने कमरे में आ गई। दोपहर का भोजन उन दोनों को उनके पोर्शन के डाइनिंग रूम में ही परोसा गया। बाद में सीमा से उसे पता लगा कि पूरा पैलेस चार हिस्से में बँटा हुआ है। एक हिस्से में माँ सा का पूरा पोर्शन है। दूसरे हिस्से में शिखर का परिवार रहता है। तीसरा पोर्शन शौर्य के लिए है और चौथे हिस्से में नौकरों के रहने का स्थान है। शादी से पहले शौर्य का खाना पीना माँ सा के साथ होता था। पर अब उसके और उसकी पत्नी के भोजन की व्यवस्था उसके हिस्से की रसोई में कर दी गई थी। तीज त्योहार, किसी मेहमान के आने अथवा खास अवसरों पर सभी लोग माँ सा के डाइनिंग रूम में भोजन करते हैं। बाकी दिनों में सब अपने हिस्से में रहते हैं। जो मर्जी हो बनवाते खाते हैं। अपना स्वतंत्र जीवन जीते हैं। किसी का कोई व्यवधान नहीं। उस शाम एक शानदार पार्टी का आयोजन था, बहु के पुनरागमन की खुशी में। ऐसी पार्टियाँ राणा पैलेस में समय समय पर होती रहती थीं। कभी राजनैतिक उद्देश्य से तो कभी व्यवसायिक उद्देश्य से। आज शाम को एक बार फिर उसे पूरे तामझाम के साथ तैयार होना था।

* * * * *

समय गुज़र रहा था, उसके आने के बाद अगले दिन माँ सा, उसकी व शिखर की एक मीटिंग हुई। जिसमें निर्णय लिया गया कि अभी शौर्य पर कोई दबाव नहीं डाला जाएगा, वरना इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। वह तो अपने ऑफिस जाने पर रोक लगने से ही बहुत चिड़चड़ाने लगा था। हनीमून ट्रिप स्थगित कर दी गई थी ।

अब तय किया गया कि उसे थोड़ी देर ऑफिस जाने दिया जाए। बाकी समय उसे पत्नी से बात करने, उसके साथ थोड़ा समय गुज़ारने को प्रेरित किया जाए। उर्वशी को भी कहा गया कि वह उसपर कोई कटाक्ष न करे बल्कि सामान्य बातचीत करे। थोड़ा उसकी रुचि के अनुसार ढलने के प्रयास करे। जब उन दोनों के मध्य अंतरंगता हो जाए तभी दोनो को कुछ समय के लिए बाहर भेजा जाए। तब तक फैमिली ट्रिप की योजना नहीं बनाई जाएगी। उनके हनीमून के कुछ समय गुज़र जाने के बाद ही पारिवारिक भृमण का कार्यक्रम बनेगा। उसे थोड़ा धैर्य रखना होगा, तभी बात बनेगी।

मम्मी, पापा व भाई उसके लिए चिंतित थे। इस मीटिंग में हुई बातचीत के विषय मे जानकर वह लोग भी थोड़ा शांत हुए और ईश्वर से सब ठीक कर देने की प्रार्थना करने लगे। सब कुछ योजनानुसार होने लगा। बारी बारी से शिखर और माँ ने शौर्य को पास बैठाकर देर तक समझाया कि उसकी पत्नी अपना घर परिवार छोड़कर सिर्फ उसके लिए इस घर मे आयी है। तो पत्नी की सुविधा असुविधा का ध्यान रखना उसका कर्तव्य है। उनके घर मे आकर कोई दुखी हो, यह उन सबके लिए बहुत शर्म की बात है। उसे अपने सभी दायित्वों को निभाते हुए भी पत्नी का विशेष ख्याल रखना है। वह शांति से सब सुनता रहा, पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। फिर कभी उन्हें फ़िल्म के लिए भेजा गया, तो कभी किसी म्यूज़िक कन्सर्ट में। धीरे धीरे मन की गाँठ खुलने लगी और वह पत्नी के साथ औपचारिक बात करने लगा। थोड़ा सा मित्रता भाव उसके मन मे आने लगा।

विवाह हुए एक माह निकल चुका था। अब वह यहाँ की अभ्यस्त होने लगी थी, पर समय बिताना उसके लिए सबसे बड़ी समस्या थी। घर मे करने को कोई काम नहीं था। नौकरों की फौज प्रत्येक कार्य को करने के लिए तत्पर रहती थी। बात करने को भी घर का कोई सदस्य नहीं मिलता था। शौर्य से अधिक बात करने का समय नही होता था। शिखर के साथ वह सदैव दूरी बरतने का प्रयास करती थी। ऐश्वर्या भाभी अपनी समाज सेवा व किटी में व्यस्त रहती। बच्चे, जो की देहरादून के शीर्षस्थ बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे, अब वापस जा चुके थे। माँ सा राजनीतिक दौरों में व्यस्त हो चुकी थीं ।

पहाड़ सा दिन काटना उसके लिए मुश्किल होने लगा था। थोड़ी देर मम्मी पापा से बात करती, फिर सखियों से, थोड़ा सोशल मीडिया। थोड़ी देर संगीत सुनती, पुस्तकें पढ़ती। फिर भी ढेर सारा समय मुँह बाए खड़ा रहता। उसे लगने लगा था कि यहाँ आकर वह बिल्कुल निठल्ली हो गई है। तंग आकर उसने खानसामा हटा दिया और भोजन स्वयम पकाने का निर्णय लिया। मदद करने को मेड थी। कुल दो लोगों के भोजन पकाने के लिए मेहनत ही कितनी थी, जिसमे की बहुत सारा कार्य मेड निबटा देती।

दो बार सिम्मी आकर उससे मिल चुकी थी। उसका आना काफ़ी ऊर्जा देने वाला लगा। उसने ही उसे सुझाव दिया कि वह कोई प्रोफेशनल कोर्स कर ले। यद्यपि उसे नौकरी करने की इजाज़त नही मिलेगी। बहुत सोच विचार करके उसने पियानो सीखने का मन बनाया। जिसकी आज्ञा उसे सहर्ष मिल गई। एक पियानो टीचर घर मे आकर उसे सिखाने लगी। पियानो के पाठ व अभ्यास उसमें एक सुखद अनुभूति भरने लगे। उसका मन उसमें रमने लगा था।

उस दिन शौर्य के एक मित्र के घर पार्टी थी। उसने उर्वशी से वहाँ चलने के लिए पूछा था,पर उसने जाने से मना कर दिया। वह किसी को जानती नहीं थी, और शौर्य से भी उसे अपेक्षा नहीं थी, कि वह अपने मित्रो को छोड़कर उसके साथ ही बैठा रहेगा। ये पार्टियाँ उसे बहुत बोरिंग लगती थीं। इससे बेहतर तो यह होगा कि वह घर बैठकर कोई बढ़िया सी पुस्तक पढ़ ले। राणा पैलेस में एक बहुत अच्छी लाइब्रेरी थी जिसमे उत्कृष्ट पुस्तकों का संग्रह था। उसने मोपांसा की एक पुस्तक निकाली और पढ़ने बैठ गई। काफी देर तक पुस्तक में डूबी रही, जब वह समाप्त हो गई तो उठकर शावर लिया और नाइटी डालकर टीवी देखने बैठ गई। बार बार घड़ी की ओर उसकी दृष्टि जा रही थी। बेशक शौर्य से बात कम होती थी पर किसी के साथ होने का अहसास तो रहता ही था। नींद से पलकें बोझिल होने लगीं । उसने जागे रहने की कोशिश की, पर कामयाब न हुई और पलँग की पुश्त पर ही टिकी हुई ही सो गई।

उर्वशी ने जब पार्टी में जाने में रुचि नहीं दिखाई तो शौर्य अकेला ही चला गया। बल्कि कहना चाहिए कि उसके न आने से शौर्य ने राहत ही महसूस की। अगर वह भी आती, तो उसका ख्याल रखना पड़ता, और वह पूरी तरह से दोस्तों का साथ एंजॉय न कर पाता। इस समय वह ग्रेसी की बहुत कमी महसूस कर रहा था। काश वह भी होती, तो कितना अच्छा लगता। वैसे तो वह रेड वाइन के दो पैग से अधिक कभी नहीं लेता था, पर उस दिन मित्रो के जोर देने पर एक पैग और ले लिया था । अब वह थोड़े सुरूर में था। मस्तिष्क सुन्न हो गया था और वह स्वयं को उड़ता हुआ सा महसूस कर रहा था । घर आते आते एक बज गया था।

शयनकक्ष में आया तो देखा टीवी खुला हुआ है और उर्वशी पलँग की पुश्त से टिकी सो रही है। उसने बिना कोई आवाज़ किये नाइट सूट पहना ओर टीवी बन्द कर दिया। फिर उर्वशी को पलँग से टिककर सोते देख सोचा की उसे लेटा दे। उसके करीब आया तो दृष्टि उस पर टिक गई। आज वह पहली बार उसे नज़र भर के देख रहा था। इससे पहले जब भी वह कमरे में आया, तो उर्वशी जाग रही होती थी। अपने अहम में वह उसकी ओर देखता तक न था, पर आज उसके सो जाने के कारण पहली बार उसे देखने का अवसर मिला था।

उसका इंतज़ार करते हुए शायद कुछ देर पहले ही उसकी आँख लगी थी। उसने सिल्क की गुलाबी रंग की, स्लीवलेस नाइटी पहन रखी थी। शौर्य की दृष्टि उसकी देह पर फिसलने लगी। उसकी सँगमरमरी बाहें आमंत्रण देती सी प्रतीत हुईं। उसका उजला रंग, आयत नयन, सुतवां नासिका, पंखुड़ियों से होंठ, लम्बी पतली गर्दन, साँचे में ढली देहयष्टि। वह उस पर से अपनी दृष्टि नहीं हटा पाया।

" ब्यूटीफुल " वह बुदबुदाया।

क्रमशः