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दादा जी की धोती

खिड़की के पास कमरे में बैठा हूं। बाहर की ओर अब हल्की-हल्की बारिश अभी भी जारी है। कल रात से ही बारिश हो रही । एक बार तो बारिश होके बंद हो गई थी लेकिन रात को 3 बजे फिर से बारिश शुरू हो गई। अब जाके बारिश कुछ कम हुई है।
बाहर से मेरी तरफ भी कुछ बारिश कि बूंदे आ रही हैं। मन कर रहा कि मैं भी इन बूंदों के साथ घुल-मिल जाऊं।
लेकिन नहीं .क्योंकि मेरे दादा वारांदे में बैठे किताब पढ़ रहे हैं।
खिड़की से ही कई लोगों का घर साफ साफ दिखाई दे रहा है। बरामदे में रखी चारपाई पर बैठ कर लोग लूडो खेल रहें हैं। वहीं कुछ लोग तो पानी के रुकने का इंतजार कर रहे। कुछ लड़के भीगे भीगे खड़े हैं और उनकी अम्मा उनको डाट रही हैं। भीगेंगे क्यों नहीं आम जो उठाने गए थे। हमारे गांव के कुछ बच्चे तो जैसे पिछले जनम में योद्धा थे। इनको तो ना गर्मी, ना धूप और ना रात , ना बरसात का डर रहता। भले ही इनको अपनी पीठ का मसाज घर पर करवानी पड़े। एक समय था जब हम लोगों के गांव कि होलिका सबसे छोटी रहती थी। तब हम भी बच्चे थे। दूसरे गांव के बच्चे हम लोगों पर हस्ते थे इन छोटी होलिका की खबर जब सुनते थे। भाई, होलिका छोटी भी क्यों ना होती जब कंडा (गाय के गोबर का) मांगने जाते तो कोई भी ना कंडा देता और ना ही लकड़ी।
सबसे घोर बेजती तो तब होती थी, जब हमारी कंडा मांगने वाली टीम मेरे ही घर कंडा मांगने आती थी। अम्मा तो यही कहती कुछ नहीं है। एक दो कंडा और कुछ लकड़ी ले जाओ बस। अब भाई एक दो कंडे और कुछ लकड़ी से क्या होगा। कम से कम एक बोरा तो होना चाहिए l और आज यही बच्चे जो योद्धा हैं किसी से डरते ही नहीं ये जब होलिका के लिए कंडा लकड़ी मांगने जाते तो ना मिलने पर भी रात तक चुरा ले जाते।
हमारे गांव के बूढ़े बुजुर्ग लोग कुछ पुराने खयालात के हैं।अपने दादा जी ही की बात करते हैं , अगर छोटा भाई स्कूल की नया यूनिफॉर्म सिलवाने के लिए कह दे तो दादा जी यही कहते ," जब मैं तुम्हारे उम्र का था तो एक ही नैकर (नारे वाली छड्ढी) में स्कूल जाया करता था। शाम को वही धुल के फैला देता फिर सुबह वहीं पहन के स्कूल चला जाता"। और भी बाबा जी गांव में हैं अगर ठंडी के मौसम में उनके साथ कौरा (आग ताप के लिए) के पास बैठ जाएं तो लगते हैं अपनी कहानी सुनाने। गांव में कई बूढ़े बुजुर्ग लोग होते जो भूतों से लड़ें होते हैं या उनसे भूत बीड़ी मांगा होता है।

ऐसे ही एक दिन की बात है। आम का मौसम था। चांदनी रात थी। उस दिन सायद चांद पूरा निकला हुआ था। लेकिन आम के बगीचे के नीचे उतनी ही अंधेरी रात थी।कुछ पेड़ जो एक दो पत्ते वाले थे उनके बीच से चांद की रोशनी छन के आ रही थी वैसे ही जैसे चाय छानते वक्त छननी से चायपत्ती चली जाती है। हम चार - पांच दोस्त थे जो अपने पटिदार के ही थे। उस रात को थोड़ी बहुत तेज हवा चल रही थी तो अधिकतर लोग बगीचे में थे। तो हम दोस्तों ने सोचा क्यों ना किसी को भूत बनकर डराया जाए। सबने बड़े उत्साह से हा भर दी। अब भूत बनने के लिए सफेद धोती की जरूरत थी। जब मैंने कहा कि कोई अपने बाबा की धोती ले आए तो सबने बहाना मारना सुरु कर दिया। किसी ने कहा मेरे दादा की एक ही धोती है, किसी ने कहा दादा जी की धोती आज ही साफ की गई है गंदा हुए तो पीटेंगे। अब इन सब की बात सुनने के बाद मैंने ही अपने दादाजी की धोती चुरा लाई। रात को बुजुर्ग लोग धोती खोल कर ही सोते हैं। धोती को सिर के पास से चुपके से खिसका कर के ले आया। अब हम बच्चों में से जो सबसे बड़ा था वहीं भूत बनकर एक पेड़ पर जा कर बैठ गया। बाकी लोग तो आम बीनने में जुट गए। काफी देर हो गए पर किसी की निगाह उस पर ना तो हमही लोगों ने छिल्लाना सुरु कर दिया ,"भूत देखो भूत भूत,"। जिस किसी ने सुना वो लोग उस पेड़ की तरफ देखने लगे जिधर भूत बैठा था। अब उनमें से एक छोटी लड़की बहुत तेज़ से चिल्लाई, ऐसे ही था जैसे कोई सच में भूत देख के चिल्लाता हो। उसकी चीख से हम लोग भी डर गए। सभी लोग जो अपने - अपने पेड़ के नीचे आम बीन रहे थे सब इकट्ठे हो गए। छोटी लड़की अब भी रोए जा रही थी। उसका सारा बदन काप रहा था। वह यही बोले जा रही थी," भूत भूत भू भू भूत"। उसने उंगली से इशारा करते हुए पेड़ की तरफ बिना देखे किया।हम लोग और भी डरे हुए थे। मन ही मन कह रहे थे कि भागवान अब ऐसी गलती नहीं करेंगे। जो लड़का भूत बना था। वह तो फरार हो चुका था। मै तो यही सोच रहा था कि कोई ये ना जान जाए कि हम्ही लोग यह नाटक रचे थे। लड़की अब चुप हो चुकी थी। लड़की के पिता जी भी घर से आ चुके थे। झार फूक के लिए सब मौलाना बाबा सब का ठिकाना बताने लगे। कुछ देर बाद जब लड़की कुछ बोलने लगी तो उसने कहा कि ऐसे ही परसो मैंने एक भूत देखा था। इतना सुनते ही मेरे मन को बहुत शांति मिली। मन ही मन कहा चलो इसके लिए ये पहली बार नहीं है अब बीमार नहीं होगी।
सब लोग घर की ओर जाने लगे इतने में मुझे याद आया दादाजी की धोती। अब गए हम अब क्या करें। कहा जाएं अकेले धोती को खोजने। बाकी दोस्त तो चले ही गए। जो भूत बना था धोती लेके,वो तो पहले ही भाग गया।
अब मैं भी वैसे ही घर चला गया। सुबह हुई, दादाजी अपनी धोती खोजनी सुरु कर दी। कई बार मुझसे भी पूछे कि कोई धोती को मेरे देखा है। मैंने कुछ ना बोला। अब दादाजी गुस्से में आकर घर के बाहर निकल कर जोर जोर से चिल्लाने लगे गाली के साथ ,"कोन ले गया मेरा धोती,"।
दोपहर तक ये बात कुछ घर तक फैल गई की उनकी धोती चोरी हो गई। तब किसी ने धोती को वापस कर दिया। उन्होंने धोती को देते वक्त कहा कि," ये धोती उनको मुन्नू के खेत में मिली थी"।
अब हम लोग यही से फस गए। रात को भूत वाली घटना की खबर सबको थी। और सब जानते थे कि मैं खुराफाती बहुत हूं। दादाजी तुरंत जान गए कि यही भूत बनकर डराया होगा उस बच्ची को। एक दो डाट पड़ी तो मैंने अपनी सारी टीम का नाम बात दिया। और ये बात और फैल गई जब धोती वापस करने वाले व्यक्ति वापस अपने घर गये। उनको रास्ते में जो मिला उन्ही को बताते हुए जाते गए। मेरे घर तो मुझे डांट पड़नी बंद हो गई थी। लेकिन जब शाम को घर से बाहर निकला तो जो मिल रहा था वो यही कह रहा था ,"क्या रे, यही पढ़ाया जाता तेरे स्कूल में, तुम्हारी वजह से और लड़के भी बरबाद हो रहे,"।

अब बात को यही ख़तम करते हैं। बारिश भी रुक चुकी है , काओवे फिर आसमान में उड़ने लगे हैं। अब मैं जा रहा खेत की और टहलने। जहां खीचड़ होंगे ,मैं छलांग लगा लूंगा।
धन्यवाद