तानाबाना - 6 (8) 603 1.3k 6 उधर कुंदन हर रोज दिन गिनता । हर रात रात । आखिर एक दिन किसी काम से लाहोर गया तो रास्ते में सतघरा रुक गया । घर वाले उसे देख हैरान तो हुए पर किसी ने कुछ नहीं पूछा, न कहा । बाहर डयोढी में उसके लिए निवारी चारपायी बिछाई गयी । उस पर मोरनी की कढाई वाली चादर बिछा आदर से ठहरा दिया गया । पीतल के कङे वाले गिलास में लस्सी दी गयी । समय समय पर अंदर से कुछ न कुछ खाने पीने को भेजा जाता रहा । इस बीच भाभी घूँघट निकाले आई और जमना को गोद में दे हाल चाल पूछ गयी पर जिस देवी के दर्शन करने के लिए भगत इतनी परेशानी मोल ले यहाँ आया था, उसके कहीं दर्शन नहीं हो रहे थे । पूरे चौबीस घंटे बाद कुएँ पर उसे मंगला मिली तो मानो उसने मन की मुराद पाई । पर मंगला तो मारे शर्म के बात ही नहीं कर पाई । कोई देख लेगा कहकर हाथ छुङाकर भाग गयी । कुंदन ने पुकारा, - जब तक तू मिलने नहीं आएगी , मैं यहाँ से जानेवाला नहीं । जाते जाते मंगला ने अपने महबूब को देखा और रात को गाय के बाङे में मिलने का वादा कर गयी । कुंदन ने वें दस घंटे एक एक मिनट गिन कर निकाले । रात को उससे रोटी खाई ही नहीं गयी । नौ बजे जब पूरा परिवार सो गया, वह गौशाला पहुँचा । धङकता दिल लिए । करीब एक घंटे के इंतजार के बाद मंगला का दीदार हुआ । आ गयी तू – मान भरे पति न् कहा । वे कुङियाँ सोने में ही नहीं आ रही थी । चल शुक्र है, तू आई तो । कुंदन ने उसे बाँहों में ले लिया । रुह एक हो गयी । साक्षी बना वहीं रखा चारे का गट्ठर । दोनों अपने आप में न जाने कब तक खोये रहते कि अचानक कुंदन की चीख निकल गयी । घास के गट्ठर में जहरीला विषधर छिपा था । उसने टांग में डंक मार दिया था । कुंदन तडप कर रह गया । मंगला दुपट्टा संभालती हुई घर के भीतर भागी और खाट पर ढेर हो गयी । रुलाई रोकने की जितनी कोशिश करती, उतनी सुबकियाँ तेज होती जा रही थी । भाभी की नींद खुली – क्या हुआ मंगला । मंगला भाभी के गले लग रो पङी । बता तो सही, हुआ क्या है ? मंगला ने गौशाला की ओर उँगली उठाई – उसे देखो भाभी । भाभी सारी बात समझ गयी । पागल है तू मंगला, पहले क्यों नहीं बताया । मंगला को वहीं छोङकर दौङ के उसने घर के मरदों को उठाय़ा । लालटेन ले जब तक घर के लोग गौशाला पहुँचे, कुंदन नीला पङ चुका था । देह पूरी अकङ गयी थी । उँह से झाग निकला पङा था । वैद्य को बुलाया गया पर सब व्यर्थ । आत्मा आधा घंटा पहले ही देह छोङ स्वर्ग सिधार चुकी थी । घर में रोना धोना मच गया । मंगला सुन्न हो गयी । कब कुंदन को नहलाया गया । कब संन्यासी विधि विधान से उसे समाधी के दी गयी । मंगला यंत्रवत् बैठी देखती रही । मंगला फिर डेरे नहीं गयी । घर के पीछे शीतला माँ का मंदिर था । उसके पीछे समाधी बनी थी । उसने वहीं मंदिर में रहना शुरु किया । सबसे पहले अपने लंबे बाल नाई बुला कटवा दिए । दिन में एक बार शाम चार बजे खाना खाने का नियम बना लिया । यदि किसी कारण चार बजे न खा पाती तो जल पीकर रह जाती । आसन, चारपायी, बिछौना सब त्याग दिया, मात्र एक चादर बिछा कर सो जाती । दिनरात भगवत् भजन में लीन रहती या बेटियों की परवरिश में । स्वामी जी ने उसे आश्रम ले जाना चाहा पर उसका हठ देख मंदिर के पीछे वाली जमीन उसके नाम करा गये । मंगला तो विरागी हो गयी थी । सब से उपराम, प्रायश्चित में लीन । लोग समय से उसे रोटी खिला जाते । वह बिना विरोध के खा लेती । जमीन बटाई पर दे दी गयी . जैसे तैसे दिन बीत रहे थे । ‹ Previous Chapter तानाबाना - 5 › Next Chapter तानाबाना - 7 Download Our App Rate & Review Send Review Divya Goswami 2 months ago well written Kinnari 4 months ago Sneh Goswami 9 months ago Deepak kandya 8 months ago Ranjan Rathod 9 months ago More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Sneh Goswami Follow Novel by Sneh Goswami in Hindi Novel Episodes Total Episodes : 29 Share You May Also Like तानाबाना - 1 by Sneh Goswami तानाबाना - 2 by Sneh Goswami तानाबाना - 3 by Sneh Goswami तानाबाना - 4 by Sneh Goswami तानाबाना - 5 by Sneh Goswami तानाबाना - 7 by Sneh Goswami तानाबाना - 8 by Sneh Goswami तानाबाना - 9 by Sneh Goswami तानाबाना -10 by Sneh Goswami तानाबाना - 11 by Sneh Goswami