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आधा आदमी - 16

आधा आदमी

अध्‍याय-16

‘‘पर यह सब हुआ कब?‘‘

‘‘कल रात.‘‘

‘‘माई कहाँ है?‘‘

‘‘वही गई हैं.‘‘

‘‘तो ठीक हैं भाईजान, मै बाद में आता हूँ.‘‘ कहकर ज्ञानदीप ने सेलफोन रख दिया।

एकाएक ज्ञानदीप को चाय पीने की तलब लगी। और वैसे भी उसका सिर भारी हो रहा था। उसने जैसे ही चाय का पानी चढ़ाया उसे अचानक याद आया कि न ही शक्कर हैं, न ही चायपत्ती। पर्स देखा तो वह भी खाली था। वह हर बार की तरह गूडडु की दुकान उधार सामान लेने पहुँच गया।

गूडडु सामान देने में बिजी था। मौका पाते ही उसने पूछा, ‘‘क्या लिख रहे हो आजकल?‘‘

‘‘कोई खास नहीं, वैसे एक मैगजीन में मेरी कहानी आई हैं.‘‘

‘‘टाइटिल क्या हैं?‘‘

‘‘गांधी के आँसू.‘‘

‘‘टाइटिल तो बढ़िया हैं। देना पढ़ेंगे.‘‘

‘‘ठीक हैं.‘‘

‘‘ज्ञानू भाई! आप बिजली व्यवस्था पर क्यों नहीं लिखते.‘‘ गूडडु बोला।

नाटे कद वाला बीच में बोल पड़ा, ‘‘नीचे बेजली वाले परीशान कियैं हय। उप्पर भगवान, बादल बन-बन के आवत हय पर बरसत नाय हय। हमरे टेम में एक-एक हफ्ता पानी बरसत राहै.‘‘

‘‘अरे तो चाचा, पहले का माहौल भी कुछ और था। शायद आप लोगों को मालूम नहीं उपग्रहों से मिली तस्वीरों के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 14 लाख हेक्टेयर वन उजड़ रहे हैं। यह जो हम पाँलीथीन डिस्पोजल, गिलास, कटोरी, चम्मच इस्तमाल कर रहे हैं इससे हमारी जमीने बंजर हो रही हैं.‘‘

‘‘सोला आना सच कहेव भइया, पर एक बात बताव हमरे नेता ई सब रोकत काहे नाय हय.’’

‘‘चाहे नेता हो या अभिनेता इनकी कथनी-करनी में बहुत फर्क हैं। एक तरफ तो अमिताभ फैमली ग्रीन कार्पेट पर पर्यावरण सरक्षण की बाते करते हैं। दूसरी तरफ़ कहीं आने-जाने के लिए एसयूवी का उपयोग करते हैं। और जानते हो, एसयूवी वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड फैलाती हैं.‘‘

‘‘ये सब साले ऐसे ही होते है.‘‘ गूडडु ने टिप्पणी की।

‘‘पहिले हम्में गोमती देव फिर ई सब बकवास करव.‘‘ ग्राहक ने बीच में टोका।

‘‘जिंदगी भर जाहिलें रहयव.‘‘ गूडडु ने डाँटा।

‘‘छोड़व यार, उसके लिए तुम अपना मूड क्यों खराब करते हो। खैर, मैं बता रहा था इस बात से अमिताभ भड़क उठे। उन्होंने उलटे उलटवार किया, सबसे पहले अख़बार छापने के लिए कार्बन का उपयोग बंद करें.‘‘

‘‘यह इंडिया हैं यहाँ कुछ होने वाला नहीं जो हो रहा हैं उसे होने दो, इसी को हम भारत कहते हैं.‘‘ गूडडु ने अपनी फ्रसटेंशन निकाली।

आव बच्छों तुमैं देखाहें।

झाँठे हेन्दूसतान की

इ लंड से गाँड़ मरवाओं

बोलों लौंडेबाज की।।

छह-सात बरस का लड़का गाता हुआ निकल गया। यह सुनते ही वहाँ खडे़ कुछ लोग खींसे निपोड़कर हँसने लगे।

‘‘क्या होगा ऐसे बच्चों का भविष्य?’’ गूडडु ने अफसोस जताया।

‘‘दुख तो इस बात का हैं कि वह बच्चा मासूम हैं। मगर इन समझदार लोगों को देखो, कितना मजा ले रहे हैं। आज-कल का माहौल तो तुम देख ही रहे हो, हम जैसा अपने आस-पास माहौल बनायेंगे हमारे बच्चे वही सीखेंगे.‘‘

‘‘सही कहत हो यार.‘‘

ज्ञानदीप सामान लेकर चला गया था।

कब्र पर थूका और चप्पलों से पीटा

पायल की लाश के चारों तरफ़ हिजडे़ बाल खोले बैठी थी। कई ग़मगीन होने का अभिनय कर रही थी। कई तो यह ज़ताने में लगी थी कि मरने वाली का उनसे बड़ा कोई हितेषी ही नहीं। कई ऐसी थी जो सिर्फ इस इंतजार में थी कि कितनी जल्दी मिट्टी हो और वे सब घर भागे।

पूरा घर हिजड़ो से भरा था। दीपिकामाई लाश के किनारे बैठी थी। चाँदनी और कुन्नी कमरे से निकल कर आँगन में आयी।

कुन्नी बुदबुदा उठी, ‘‘अरी हमका तो शक उके गिरिया पैं हय। हो न हो उही ने इसे मारा हय, तुमका का लगत हय?’’

‘‘अल्ला जाने का सही हय अउर का गलत.‘‘

‘‘चल री हिजड़े, टाकनी चिस कर आये। भूक के मारे पेट बिलबिलात हय?’’

‘‘अरी भागव बहिनी! दण्ड दिलवय्हों का, पता नाय कित्ता बड़ा तुमरा खुमड हय.‘‘

‘‘अरी भक री, का ल्हाश के साथ हम्म भी ल्हाश होई जाई.‘‘

कई और हिजड़े आँगन में आ गई थी।

‘‘अरी उ मेहरे को देख न कईसे भभका करके आई हय। जईसे अपने गिरिये की छीहवाओं (शादी) में आई हय.‘‘ चाँदनी ने कमेंट की।

‘‘अरी बहिनी! इका का, न दीन के न दुनिया के फिर चाहे ई पीलमा (सोना) पहिने या सफेदी (चाँदी).‘‘ कुन्नी ने मुँह बना के कहा।

‘‘पहिने का तो बहिनी, हम्म भी पहिन सकती हय.‘‘

‘‘अरी चल री मरजानियां, इहाँ बइठी का बकचौदी कर रही हय...चलो मैयत को हाथ लगाव.‘‘ दीपिकामाई ने आँगन में आकर कहा।

सभी लाश के पास आ गई। आँगन के एक तरफ गड्डा खुदा तैयार था। तमाम हाथों ने झुककर लाश को अपने आगोश में ले लिया। लाश गड्डे में रख दी गई। सभी ने मिट्टी दी। फिर अपनी मुठ्ठियां भरे तैयार मेहमान की अंमित विदाई पर उसे मिट्टी दी। फिर अपनी रस्म-रिवाज़ के अनुसार लाश को खुलकर गालियाँ दी और कब्र पर थूका और चप्पलों से पीटा।

‘‘अब तीजा-चालसी होगा तभी बहन आना। जिस बंदें को रूकना हो रूको। आया बंदा आया रिजक, गया बंदा गया रिजक.‘‘ दीपिकामाई ने कहा।

मिट्टी होने के बाद सभी ने बाल बाँधा।

ज्ञानदीप ने घर पहुँचकर दीपिकामाई की डायरी पढ़नी शुरू कर दी-

मैं इसराइल को इस हालत में देखकर घबरा गया और पूछ पड़ा, ‘‘यह सब हुआ कैसे?‘‘

‘‘मैंने घर वालों से अपना पैसा वापस माँगा उसी के लिए अब्बा से झगड़ा हुआ। मेरी छोटी बहन ने चैला मार दिया.‘‘

मैं झट से तैयार हुआ और उसे ले जाकर डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने उसके माथे पर चार टाँके लगाये। दवा लेने के बाद मैं इसराइल को लेकर अपने मोहब्बत महल में आ गया था।

सुबह होते ही मैं इसराइल को छोड़कर सीधे घर आ गया था। कमरे में जाते ही बीबी तैश में आ गई, ‘‘कहा थे रात भर....?‘‘

‘‘हमारे दोस्त की हालत सीरियस थी इसलिए उसे हम लेकर अस्पताल में थे.‘‘

‘‘तुमारे लिये तुमारा दोस ही सब कुच्छ हय, हम लोगों का तो तुम पैं कोई हक ही नाय हय.‘‘

इसी बात को लेकर हम-दोनों की जमकर लड़ाई हुई।

ज्ञानदीप, दीपिकामाई की डायरी में इस कदर खोया था कि उसे यह भी याद नहीं रहा कि उसे ट्यूशन पढ़ाने जाना हैं। अचानक उसे याद आया। उसने झट से साइकिल निकाली और चल पड़ा।

कस्तूरी की गंध सौगंध की हाज़त नही रखती

ज्ञानदीप की साइकिल का पिछला पहिया दगते ही टायर बाहर निकल आया। उसने साइकिल खींचनी चाही मगर पहिया जाम होने के कारण साइकिल आगे न बढ़ सकी। बड़ी मशक्कत के बाद वह टायर अंदर कर सका। ऐसी घटना वर्षो पहले सुब्रतों राय, धीरू भाई अंबानी, राजकपूर, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ घटी थी।

ज्ञानदीप अपनी किस्मत को कोसता हुआ रिपयेरिंग की दुकान तक पहुँचा।

टायर-ट्यूब देखने के बाद मिस्त्री, प्रेम चोपड़ा स्टाइल में बोला, ‘‘इसे तो बदलना पड़ेगा.‘‘

ज्ञानदीप की जैसे सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसकी पॉकेट में मात्र तीस रूपये थे। जबकि टायर-ट्यूब बदलने का मतलब कम से कम चार सौं रूपये। साइकिल ऐसे चित्त पड़ी जैसे अधमरा गधा।

ज्ञानदीप ने खुशामद की, ‘‘इस वक्त मेरे पास इतने पैसे नहीं वरना मैं बदलवा लेता.‘‘

मिस्त्री को औजार उठाता देख, ज्ञानदीप को कुछ राहत महसूस हुई। उसने सोचा, ‘जब तक यह पंचर बनायेगा तब तक मैं चाय पी के आ जाऊँगा.‘

ज्ञानदीप, मिस्त्री को बोलकर सामने वाले होटल में आ गया। दुकान के अंदर बैठे कुछ लोग आपस में डिशकसन कर रहे थे, ‘‘बताव अड़तीस लाख रूप्या खर्च होई गवा अउर राहुल गांधी भी नाय आये.‘‘

‘‘अरे चाचा, उक्कें लिये अड़तीस लाख का हय.‘‘ दाढ़ी वाले ने अपनी भड़ास निकाली।

‘‘उक्का थोड़े पइसवा गवा हय, पइसवा तो हम्म जनता का गवा हय.‘‘ वृद्व ने अपनी पीड़ा व्यक्त की।

‘‘कहव कुच्छ भी भइया, मरन हम्म गरीबेन की होत हय.‘‘

देश के हालात पर बात हो और ज्ञानदीप चुप रहे। ऐसा हो ही नहीं सकता। उसने भी अपनी भड़ास निकाली, ‘‘अब आप ही बताइए चाचा, लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट आने में 17 साल लग गये। नतीजा कुछ नहीं, ऊपर से खर्चा आठ करोड़ रूपया। यह सब कहाँ से पूरा होगा? हमारा-तुम्हारा ही तो पेट काटा जायेगा.‘‘

इसी बीच तेज-तेज उठती आवाज़ ने सभी का ध्यान अपनी तरह आकर्षित किया, ‘‘अरी भाग, तुमका चीसा-बीला से का तुम तो खान्जरेबाज मूरत [धन्धेवाली], हो, न ही हिजड़ो में हो और न ही मरदों में खाली पब्लिक को बेवकूफ बना के अपनी जेब खर्च चला रही हो.‘‘

‘‘अगर हम करती हैं तो किसी की अम्मा का क्या जाता हैं.‘‘ नैना ने ताली बजाई।

‘‘बिटिया, हमको देखो तीन कपड़े अपने बदन पर डालकर हिजड़ो का नाम पैदा कर रही हूँ। कहीं भी उनकी मान-मर्यादा को झुकने नहीं देती और अपने गुरूओं की सेवा करती हूँ.‘‘

ज्ञानदीप चाय की चुस्की के साथ-साथ उनकी बातें भी जल्दी-जल्दी डायरी पर नोट किये जा रहा था। बाकी बैठे वहाँ लोग उनकी बातों पर ठहाके लगा रहे थे।

‘‘अरी जाव बहिनी, तुमसे जरा हाल-चाल का पूछ लिया कि तुम तो पोती-पतरा खोल के बैठ गई.‘‘

‘‘आये भाग, तुम तो कुकूरमुन्डे लौन्डेबाज, हो, तुम्हें का कहीं भी धुरा पिटा के अपनी हंडियाँ सीधी कर लोगी.‘‘ टीकली अम्मा ने आँख मटका कर कहा।

‘‘काले के आगे चिराग़ नहीं जलता, तुमका का हैं तुम तो हिजड़े हो तीन कपड़ा पहना और जजमानी से काम लाई। पर हम तो मेहनत-मजूरी करके अपना पेट पालती हूँ। और पेशा हबीबउल्ला हैं.‘‘ नैना ने मुँह बिचकाया।

‘‘अरी भाग, काली कमर पै चढ़ै न दूजो रंग हम्म तो पन के हिजड़े हय हम्म तुमारी तरह खान्जरा नाय करती। क्योंकि हम्में हिजड़ों को लेकर चलना हय.‘‘

‘‘तुम तो गुरू ऐसी बेतुकी बात करके हम जनानी का दिल दुखा दिया। तुम्हें का पता तुम तो हिजड़े हो और हिजड़ों का दुनियादार से का मतलब, मगर हमारे दुनिया-दार हैं। हम तुमारे लोतर ख्बहलाना, में आकर दुनियादार को नहीं छोडे़ंगी चाहे हमसे मिलो या न मिलो.‘‘

‘‘बिटिया! जिस दिन हमारी जैसी हों जाओंगी उस दिन तुमसे पूछेगी और हमसे ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करना.‘‘ टिकली अम्मा ने ताली बजाई।

‘‘कस्तूरी की गंध सौगन्ध की हाज़त नहीं रखती, तुमका का न दीन के, न दुनिया के, अल्ला तौबा! तुमका बुरा कह के अपने सर बुराई लेना हैं। तुम लोग तो रोटी पर के बोटी हो। तुम कहती हो हम तुमारे जैसा बन जाऊँ। हम तो ऊपर वाले से यही कहती हूँ कि किसी दुश्मन का बच्चा भी इस लाइन में न आये.‘‘ बातो-बातो में नैना गहरी बात कहकर चली गयी।

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