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आसमानी गुलाब


"न जाने... हम फिर मिल पाएंगे भी या नहीं!" जन्नत कमल के गले लग रोते हुए बोली।
"तुम एक बार, हाँ..कह कर तो देखो जन्नत..! मैं तुम्हारे लिए सारी दुनिया से लड़ जाऊंगा।" कमल रोती हुई जन्नत के आंसू पोंछते हुए बोला।"नहीं....कमल! तुम्हें मेरी कसम जो मेरी खातिर तुमने घरवालों से बगावत की तो...!"
"तो फिर...!"
"कुछ मत कहो.. कमल..! इस पल को मुझे बस, जी भर के जी लेने दो।" कमल की बाहों में बैठे-बैठे न जाने कब शाम हो गयी। चौकीदार के पार्क बंद किये जाने के लिए बजाई जा रही सीटी से दोनों की प्रेम-धुन टूटी।
"तुम्हें मेरी याद तो आएगी न!" कमल ने आखिरी मुलाकात का स्वाभाविक प्रश्न किया।
"तुम भुल पाओगे मुझे?"
"कह नहीं सकता! हाँ.. तुम अपनी कोई निशानी दो तो, शायद.. न भूल पाऊं!"
एक साधारण से घर की लड़की एक रईस घर के लड़के को क्या दे सकती थी।
"जब भी कहीं गुलाब का फूल देखना तो समझना मैं तुम्हारे ही कहीं आस-पास हूँ।" बगल की क्यारी में खिल रहा गुलाब का फूल तोड़ कमल की कमीज के बटन में फंसाते हुए जन्नत बोली। ऐसे ही गुलाब के फूल से उनकी मोहब्बत को शुरुआत जो हुई थी।
"परन्तु.. तुमने मेरी बात का जबाब नहीं दिया?"
"मुझे मालूम है कमल तुम मुझसे क्या मांगने वाले हो?"
"क्या?"
"मुझे मालूम है, तुम्हें ये पल-पल अपना आकार बदलते बादल... ये आसमानी आकाश..! कितना पसंद है।... जब कभी तुम्हारी याद आएगी तो उस आसमान को निहार कर तुम्हें याद कर लिया करूंगी।" इस आखिरी मुलाकात का समापन जन्नत यूँ मायूस होकर नहीं करना चाहती थी।
"मैं जानता हूँ जन्नत... शायद इसलिए आज तुम मेरे पंसदीदा आसमानी रंग की साड़ी पहन कर आई हो। इस आसमानी साड़ी में तुम जन्नत से उतरी कोई परी लगती हो!"
जन्नत कमल का पसंदीदा रंग जानती थी इसलिए इस आखिरी मुलाकात में उसने आसमानी साड़ी पहनना जरूरी समझा था।
"ऐसे बातें न करो कमल कि मैं इस जुदाई को मुकाम न दे पाऊँ!" जन्नत अपनी पीड़ा दबा न सकी।
"और.. जब रात में ये आसमानी आकाश नहीं दिखेगा तो?" दोनों एक दूसरे को गहराई तक समझ चुके थे। कमल ने भी बात पलट गमगीन माहौल को हल्का किया
"अब क्या रात में सोने भी नहीं दोगे मुझे!" जन्नत ने भी चुटकी ली तो थी , पर अपनी आँखों के पोरों में आये आंसुओं रोक न सकी।
दोनों एक दूसरे से जुदा हो चुके थे। फिर कभी न मिलने के लिए। एक दूसरे से हंस कर विदा हुए इन प्रेमी-युगल न जाने कितनी रातें रोते हुए गुजारी थी।
कमल एक रईस घर का लड़का था। पढ़ने-लिखने में होशियार, मृदभाषी, सौम्य, क्या गुण नहीं थे...कमल में! शायद इसलिए जन्नत कॉलेज में उसे पहली नज़र अनदेखा न कर पाई थी। जन्नत भी जन्नत की ही किसी हूर से कम न थी। इंटर में पूरे डिस्ट्रिक्ट की टॉपर थी सो अलग। कमल को भी उसे एक नज़र देखते ही उससे प्यार हो गया था। एक ही क्लास पढ़ते हुए जब कमल को जन्नत के धर्म का पता लगा, तो उसने अपने दिल को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु दिल ने उसकी एक न सुनी। दोनों आखिर एक दूसरे को दिल दे ही बैठे। कॉलेज के बाद कमल अपनी मेहनत और बड़े कोचिंग सेंटर से ली गयी कोचिंग की बदौलत पहली ही बार में यू.पी.एस.सी में अच्छी रैंक ला कर आई.ए.एस. बन गया।
जन्नत छह भाई-बहनों में तीसरे नंबर की थी। घर के हालात देखते हुए कोचिंग की तो सोच भी नहीं सकती थी। उसने भी बहुत मेहनत की जिसमें कमल ने भी उसका बहुत साथ दिया। परन्तु जन्नत यू.पी.एस.सी. क्लियर नहीं कर पाई। कमल ने घरवालों को जन्नत के लिए बहुत मनाने की कोशिश की परन्तु एक तो साधरण घर की लड़की, ऊपर से उसका धर्म, आखिर दोनों ने हार मान ली। आखिर कमल ने घरवालों की पसंद से शादी कर ली।
"साहब गुलदान को गुलाब के फूलों सज़ा दिया है। देखिये कैसे खिल रहें हैं?" चपरासी गुलदान में फूल लगाते हुए बोला।
कमल आज भी जन्नत को भुला नहीं पाया था। इसलिए जहाँ-जहाँ गुलाब लगा सकता था वहां लगा कर रखता था। उसके बंगले के बगीचे में गुलाब के फूल हमेशा महका करते थे।
प्रदेश के स्वाथ्य विभाग का सबसे बड़ा अफसर। हमेशा अपडेट रहना पड़ता था। सामने पड़े कई अखबारों में उसने सरसरी नज़र मारना जरूरी समझा। कि एकाएक एक छोटी सी खबर पर उसकी नज़र रुक गई। 'जन्नत जहां' प्रमोशन के बाद बड़ी अधिकारी बन कर रेलवे के प्रधान कार्यालय में स्थानांतरित होकर आयी थी।
कमल को इन दिनों में ये तो पता चला था की जन्नत ने भी दो बार के प्रयास के बाद यू.पी.एस. सी. क्लियर कर लिया है। परन्तु काम के बोझ और घर-परिवार में रम जाने के कारण उसने जन्नत के बारे में ज्यादा जानना जरूरी नहीं समझा। उसकी बस चुकी नई दुनिया से भी उसके कोई शिकायत नहीं थी। इसलिए घाव भर तो जरूर गए थे पर निशान रह गए थे। इस खबर को पढ़ कमल अपने पूर्व में खो सा गया।
"ये आज की अपॉइंटमेंट है सर्" पी.ए. ने कमल को आज की दिनचर्या का ब्यौरा दिया।
"अशोक ज़रा पता करो रेलवे के ऑफीसर्स की कॉलोनी कहाँ पर है।?" कमल को जन्नत के बारे में जानने की उत्सुकता जाग चुकी थी।
"यहीं..अपने किदवई नगर में ही तो है सर्!"
"वाह! सवाल के साथ ही जबाब हाज़िर!"
"थैंक्यू सर्... दरअसल मेरे मामाजी को भी वहीं फ्लैट मिला हुआ है। इसलिए मुझे पता है। वो भी रेल में बड़े अधिकारी ही हैं।
"अरे वाह... तब तो तुम मेरा एक काम आसानी से कर सकते हो!"
"बताइए सर्!"
"तुम अपने मामाजी से....!" कुछ सोच कर कमल रुक गया "नहीं तुम रहने दो मैं खुद पता कर लूंगा।"
सारी रात उसने आंखों में काटी। आखिर उसने फैसला कर लिया कि वह कल वह जन्नत को ढूंढने जरूर जाएगा। प्रदेश में फैली महामारी के कारण उस कल को आते-आते महीने भर से ज्यादा हो चला था। हाँ... कोट में गुलाब जरूर रोज़ लगाया जाने लगा था। शाम होते-होते गुलाब मुरझा जरूर जाता पर उसकी खुशबू से नथुने महकते रहते। जो उसे जन्नत की याद दिलाते रहते थे।
सुबह घर से जल्दी नाश्ता कर कमल ड्राइवर को साथ ले शहर से दूर एक अस्पताल के मुआयने को निकल गया। वापसी में शाम हो चली थी। ड्राइवर का घर रास्ते में ही पड़ता था। कमल ने उसे वहीं रास्ते में उतार, खुद ही गाड़ी ले चल दिया। थोड़ी देर बाद किदवई नगर की ऑफिसर्स कॉलोनी को सामने देख उसकी गाड़ी की गति धीमी हो गयी। आगे की बत्ती से यू टर्न लेने से खुद को रोक न सका।
"देखिये...यहां रेल की अधिकारी जो अभी कुछ दिन पहले यहां ट्रांसफर हो कर आईं हैं उनका फ्लैट बता पाओगे।" कमल ने गॉर्ड से नाम छुपाना जरूरी समझा
"फ्लैट नंबर और नाम बताईं!" गेट पर खड़ा गॉर्ड बोला।
"बिना उसके नहीं पता चल पाएगा?"
"कुछ तो बताइए कहाँ से ट्रांसफर होकर आयी हैं?... किस पद पर है? ऐसे कइसन बताईं?" गॉर्ड ने मज़बूरी बता दी।
"देखिये अभी लखनऊ से ट्रांसफर हो कर आई है करीब महीना भर हुआ है!" इस बार भी कमल ने अधूरी जानकारी ही बताई।
"ए.. माधव! अभी कौन मैडम ट्रांसफर होकर आयी है। लखनऊ से!" सरकारी गाड़ी में बैठे कमल को गॉर्ड, टालने की हिम्मत न कर सका। पास ठिया लगाए बैठे प्रेस वाले से गॉर्ड ने पूछा।
"ल...ख...न..ऊ...से..! कुँवारी तो नहीं है?"
"शायद!" कमल को जन्नत के बारे ज्यादा जानकारी तो थी नहीं।
"कोनहु जान पहचान की है का? फ़ोन कर के फ्लैट नंबर पूछ लेइ!" प्रेस वाले ने सलाह दी।
"जान पहचान ही समझ लो परन्तु कई सालों से संपर्क में नहीं है इसलिए फ़ोन नंबर नहीं है। और फ़ोन ही होता तो इतना पूछताछ क्यों करनी पड़ती।" कमल ने अफसर वाले अंदाज़ से सफाई दी।
"आयी तो है तीन अफसर परंतु...!नाम पता होइ तो अभई बता देईल।" जानकारी देने के लिए माधव ने जरूरी जानकारी मांगी।
"ये सामने रखी आसमानी रंग की साड़ियां किसकी है।" प्रेस वाले के सामने रखी चार आसमानी साड़ियों को कमल के चेहरे पर चमक आ गयी। और पूछ बैठा।
"अरे हाँ... यही मैडम ही तो आयी हैं ट्रांसफर हो कर के...उ सामने वाले फ्लैट है उनका।" एक जैसे मकानों में एक फ्लैट की ओर उंगली कर कमल को दिखाता हुआ प्रेसवाला माधव बोला।
कमल को फ्लैट को समझने में ज्यादा देर नहीं लगी।
"साहब उ आपके जान पहचान की हैं तो आप ई एक बात तो जानत होंगे ही।" माधव काफी समय से शायद अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए मानो उसी की प्रतीक्षा कर रहा था।
"कहो?"
"हमें एक बात समझ में नहीं आवत इन मैडम का हर चीज आसमानी रंग की काहे होत रही। सारा का सारा कपड़ा हम जो प्रेस करीं हैं उ आसमानी... घर में लगा पर्दा आसमानी...यहाँ तक कि दिवारों का रंग तक शिफ्ट करने के बाद आसमानी करा लिए.... भला ऐसा कौन लगाव हुई इस आसमानी रंग से!" फ्लैट की बालकॉनी में तीन आसमानी साड़ियां सुख रही थी। उन्हें देख अब कमल की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए गियर डालने की हिम्म्मत न हो सकी। कमल को बैक गियर डाल घर जाना ही उचित लगा।
(छात्र जीवन में छात्रों के बीच सुनाई जाने वाली प्रेम-कहानी। जिसे लिखा स्वंय गया है। जो किसी लेखक की रचना या ये पात्र सयोंगमात्र हो सकते है।)
प्रताप सिंह
9899280763
वसुंधरा, गाज़ियाबाद,उ०प्र०