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जागो

#जागो

काई से लेकर सरीसृप तक और फिर सरीसृप से मनुष्य तक का चेतना का सफर किन किन आयामो से होकर गुज़रा होगा ये तो मात्र अनुमान ही लगाया जा सकता है मगर ये बात तय है कि मनुष्य शरीर एक ऐसा पड़ाव है जहाँ पहुँच कर एक प्रकार का ठहराव आया जब पहली बार चेतना को स्वयं का होना अनुभव हुआ पहली बार किसी पदार्थ में बोध उत्पन्न हुआ और उत्पन्न हुई जिज्ञासा या मुमुक्षा ,ब्रह्मांड को जानने की मगर हुआ ये की विरले ही जान पाए और जिन्होंने भी जाना वो कह गए कि उसे जाना नही जा सकता । उनके कहे वचन अपने आपमे पूरा रहस्य लिए हुए थे। मगर मनुष्य को एक व्यवस्था मिली और उसे लगा कि कोई शक्ति तो है जो इस संसार मे व्याप्त है अपने परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप में।

ज्यादा कुछ तो क्या बोलूं क्योंकि असंख्य किताबें , शास्त्र , मनुष्यों ने बहुत कुछ बोला है। पर अपने गुरु परमपूज्य ओशो के चरणों मे नमन करते हुए यही कहूंगा कि हमसे कहीं न कहीं चूक हो ही गयी और हमने एक गलत पगडण्डी पकड़ ली। कईं सभ्यताएं आईं और गयीं कईं बार सृष्टि का निर्माण हुआ प्रलय आयी और हो सकता है कि मनुष्य ने विकास की उन ऊंचाईयों को छुआ हो जो आज भी संभव नही हो पाया है मगर जिस धोखे में हम पहले भी कई बार फंस चुके हैं उसी धोखे में हम अभी भी फंसे हुए हैं ऐसा प्रतीत होता है।

अंतरिक्ष, कहते हैं इतना विशाल है कि ये धरती उसमें धूल का एक कण तक भी नहीं है इतनी भयंकर बड़ी-बड़ी आकाशगंगा के समूह हैं ,ब्लैक होल हैं और कई और पृथ्वियां हैं जहां पर जीवन हो सकता है ऐसा कहा जाता है ।इतने विशाल जगत में किसी का हाथ अपने सर पर ना हो तो बड़ा डराने वाला लगता है इसी डर के कारण ईश्वर का निर्माण हुआ उनके द्वारा जो खोजने की काबिलियत नही रखते थे मगर जानने का दावा भी करते थे जिससे कि अहंकार को तृप्ति मिले और दूसरे मनुष्यों का शोषण किया जा सके। इसी के चलते , ईश्वर और मनुष्य के बीच में बैठ गए कुछ दलाल टाइप के लोग और उन्होंने लोगों को समझाना शुरू किया कि हम आपके और ईश्वर के बीच में मध्यस्थ हैं और आप अपना दुःख परेशानियां हमें बताइए हम ईश्वर को बोल के उन्हें ठीक करवा लेंगे आप बस हमारे जरिए ईश्वर की पूजा करते रहे, हमारी तन मन धन से सेवा करते रहे और हमने जो बनाया है उसका पालन करें ।

फिर यूं भी हुआ की सत्य को जिन्होंने जाना ,वह जो कहना चाहते हो हम समझ नहीं पाए और नासमझी के कारण हमने ईश्वर की तलाश न करके उन बुद्धपुरुषों का ही दामन पकड़ लिया और अपने आप ही उनके पीछे धर्म खड़ा करते हुए उनका अंधानुकरण करने लगे, क्योंकि देखा जाए तो मोहम्मद से पहले मुसलमान धर्म नहीं था ,ईसा मसीह के पहले ईसाई धर्म नही था तथा जितने भी धार्मिक ग्रुप है वो किसी न किसी बुद्धपुरुष का अंधानुकरण ही हैं । हिंदू धर्म कई देवी-देवताओं के आधार पर खड़ा हुआ है कुल मिलाकर देखा जाए तो ऐसा कोई धर्म है ही नहीं जो मनुष्य से पहले रहा हो उन धर्मों की तरह जिस तरह के धर्म मनुष्य ने बनाए हैं । कुछ शक्तियां हैं जिनसे यह सब चल रहा है उन्ही को शायद धर्म कहा गया हो या फिर इस पर कुछ ना बोल कर अपनी अपनी खोज उसके प्रति जारी रखना ही मार्ग हो।

बड़ा सवाल यह है कि क्यों ना मैं ईश्वर की खोज खुद करूं क्यों ना मैं उस शक्ति की खोज में निकल जाऊं, छोड़ दूं अपने आप को अस्तित्व के हाथों में और मनुष्य के बनाए हुए इन धर्मों को इंकार कर दूं कि मुझे मेरे ईश्वर और मेरे बीच कोई मध्यस्थ नही चाहिए कोई दलाल नही चाहिए जो यह तय करें कि मुझे कब क्या करना चाहिए मुझे किस ईश्वर को मानना चाहिए।

यह तथाकथित धर्म अपने घर ही रहते तो ठीक था मगर तकलीफ यह हुई कि अलग-अलग तरह के अलग-अलग धर्म पैदा हो गए जो एक दूसरे के विपरीत धारणा पाल के चले एक दूसरे को अपना दुश्मन मान कर चले चाहे महावीर हों बुद्ध हों चाहे वाहे गुरु हों चाहे कृष्ण हों राम हों मोहम्मद हो जिन्होंने सत्य को जाना हमने उस सत्य की तरफ देखने की कोशिश भी नहीं की बस हमने वह मार्ग पकड़ लिया, पकड़ा भी नही मार्ग को ही पूजना शुरू कर दिया अब मार्ग एक दूसरे से हमेशा अलग होते हैं हमने मार्गो की भिन्नता को सत्य की भिन्नता मान लिया गोया की राम का सत्य कृष्ण के सत्य से अलग हो या बुद्ध का सत्य महावीर के सत्य से अलग हो और हमें लगने लगा कि सत्य अलग-अलग प्रकार के हैं यही सब गड़बड़ हो गई इसलिए हिंदू मुसलमान एंटी हो गए और यहूदी ईसाई एंटी हो गए और यह सारा बखेड़ा खड़ा हो गया जो आज तक हमें दिखाई नहीं दे रहा है और विज्ञान की प्रगति के बावजूद उन धर्मों को ढो रहें हैं जिनका आधार अंधानुकरण है। सत्य की तरफ पीठ किए हुए हम ये जीवन व्यर्थ की चीज़ों में गवा रहें हैं

~ सम्पूर्ण सिद्धार्थ