Photo album books and stories free download online pdf in Hindi

फोटो एलबम

- फोटो एलबम

बच्चे कब बड़े होते चले जाते हैं, पता ही नहीं चलता। बचपन में सबके अपने सपने और जिद होते हैं, समय के साथ सब बदलते भी तो रहते हैं। औरों का क्या कहूँ मेरी ही एक सहेली थी, जो नींद में भी खूब सपने देखा करती थी। आगे मैं जो बताने जा रही हूँ, इसे मेरे और उनके सिवाय सिर्फ क्लास रूम की दीवारों को ही बस पता है कि उनके सपने कैसे कैसे हुआ करते थे। ये बताते हुए मुझे ये भी डर है कि इस बात को माँ या मेरी छोटी बहन जान गए तो क्या होगा ? होगा यही कि मेरा फेवरेट टीवी सीरियल देखने पर प्रतिबंध लगा देंगे!

बाकी ये डर तब होता जब मैं अभी भी छोटी ही रहती। या कॉलेज में होती। अब तो मैं टीचर की भूमिका में अपनी जिम्मेदारी निभा रही हूँ। ग्यारहवीं क्लास में आर्ट ली फिर कॉलेज में भी आर्ट से ग्रेजुएशन फिर एम.ए हिंदी कर ली और नेट के बाद एक प्राइवेट कॉलेज में गेस्ट टीचर बन गयी। ठीक सैलरी है। साथ में घर में कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती हूँ।

हाँ तो हम वापस अपनी सहेली के सपनों पर लौटते हैं। सपनों की रानी रिय्या यानी मेरी बेस्ट फ्रेंड। हम कितने ही बड़े हो जाएँ लेकिन अपने स्कूल वाले दिनों के किस्सों को शायद ही भूल पाते हैं। और भूलना तो तब और मुश्किल हो जाता है जब उन दिनों में आपके अच्छे दोस्त बनें हों। रिया मेरी उन्हीं दोस्तों में से एक थी। रिया और मैं नाइंथ क्लास में ही फ्रेंड बने। वो पहला दिन याद आता है, जब वो रिक्शे में बैठी अपने पापा का वेट कर रही थी। उसी दिन रिया का एडमिशन हुआ था। इसी रिक्शे से अब रिया को आगे के क्लास में भी सफ़र करना था।

रामु अंकल का रिक्शा। पहले तो मैं ही बस अंकल के रिक्शे की रानी हुआ करती थी। अब इस रिक्शे में हम दोनों को आगे सफ़र तय करना था। मैं दूर से ही रामु अंकल को आवाज़ लगाई। अंकल आज 3 बजे घर जाना है। लंच के बाद मैं गेट के पास ही आऊंगी। आप वहीं पास रहना। अंकल जी मुझे इशारों में ही अपने पास बुलाकर बोले। स्तुति बेटा! अब से ये रिया भी हमारे साथ ही आना जाना करेगी। इनका घर भी तेरे घर के आसपास ही है। तब तो मुझे बहुत गुस्सा आया था कि, ऐसे कैसे! अब मेरी आज़ादी पर ग्रहण लगाने ये रिय्या कहाँ से टपक गयी है। खैर! लाइफ में एडजेस्टमेंट तो करना ही पड़ता है। और मैंने भी यही किया। नाइंथ क्लास। कितने ही बड़े थे हम बच्चे।

क्लास शुरू हुई। हम एक ही रिक्शे से स्कूल आना जाना करते। पहले तो बस क्लास और होमवर्क की बात होती थी। वैसे किसी को अच्छे से जानने में सप्ताह भर से ज्यादा समय नहीं लगता अगर वे दिखावा न करें तो। वैसे मैं रिय्या को बहुत अच्छे से जानने लगी थी क्योंकि अब तो हम महीनों से एक ही समय में स्कूल आना जाना करते। कुछ किस्से जो स्कूल लाइफ में कॉमन होते हैं... क्लास रूम में चॉकलेट खाना और तो और चुपके से टिफिन बॉक्स भी सफाचट कर जाना। ध्यान रखना होता है कि कुछ ऐसी सब्जी न हो जो पूरे क्लास में सार्वजनिक कर दे कि टिफिन में क्या है। और टीचर से रंगेहाथों पकड़े जाएँ। इसीलिए रिय्या कुछ सूखा लाना पसंद करती थी। अपने घर की लाडली रिय्या का क्या ही कहना। मम्मी को जो कहती बना देती और रिय्या का अपने टिफिन के बाद लंच में मेरे टिफिन पर एकाधिकार हो जाता था। लेकिन चोरी कब तक छिपी रह सकती है। एक दिन शुक्ला मैम को भनक लगी और? हम दोनों इंग्लिश क्लास से बाहर निकाल दिए गए थे।

अब इनके सपनों के बारे में कहूँ तो इनको वो सब बनना पसंद था, जैसे - एक लेखक अपनी लेखनी से कल्पना की दुनिया में भी अनेकों पात्र बना लेता है और एक मुकम्मल दुनिया (कहानी) का सृजन करता है। वैसे ही रिय्या के भी कुछ - कुछ सपने थे. चाय की टपरी खोलना. क्योंकि देश में कुछ भी मुद्दा चल रहा हो, चाय की टपरी ही ऐसी जगह होती है, जहाँ चाय और सिगरेट के साथ लोग पढ़ाई, राजनीति, क्रिकेट और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सिगरेट फूँक घन्टों चर्चा कर रहे होते हैं। और टपरी वाले अपना ग्रोथ रेट कायम रखते हैं। ऐसे टपरी वाले सपने कोई लड़का ही देख सकता है ? लेकिन रिय्या को ये बहुत सामान्य लगता था। कहती थी समानता का अधिकार तो सबको है और ये भी एक रोजगार ही तो है। वैसे साइड बिजनेस रहेगी ये टपरी। वैसे भी दुनिया की सोची तो पैसा लाकर देंगे क्या ? मैं चुप ही रह जाती थी। क्योंकि इस लड़की से तर्क करना अपनी हार को आमंत्रित करने जैसा था।

और मुख्य सपना था, पुलिस बनना. वैसे इस खुरापाती लड़की को पुलिस क्यों बनना था ? इनका मानना था कि पुलिस वाले अंकल खूब पैसे कमाते हैं। वेतन बैंक अकाउंट में और जेब खर्च अपने आर्ट से! उस समय छोटी सी लड़की ये सब कैसे जानती है मुझे लगता था कि कितनी बड़ी हो गयी है रिय्या इस उम्र में इतनी सारी बातें जानना। पहले लगता था कि जो भी बातें हम करते हैं उसे पढ़ना और याद करना होता होगा। लेकिन कुछ बातें तो हमारे आसपास के वातावरण ही हमें सिखा देते हैं। इसीलिए अपने आसपास के लोगों का सही चुनाव भी आगे बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण होता है।

रिय्या बहुत रोचक अंदाज़ में बातें किया करती थी। सबको बहुत पसंद आती उनकी बातें। सिवाय मुझे छोड़कर यानी मुझे तो बकबक लगती। क्योंकि घर से निकलने के बाद घर आने तक रिय्या खूब बातें करती और मैं रास्ते को देखते रिय्या को भी सुनती रहती थी।

रिय्या रिय्या रिय्या पूरी स्कूल लाइफ ही रिय्या और मैं हो गई थी। "उन दिनों" की बातें ही कितनी सुकून देने वाली है। ये मासूम सी पासपोर्ट साइज फोटो। हम दोनों की भी कितनी ही फोटोज़ हैं। आज ये एलबम की फोटोज़ ने उन दिनों की यादों को ताज़ा कर दिया।

चुलबुली सी रहने वाली रिय्या, बारहवीं क्लास की विदाई पार्टी में कैसे गले लग खूब रोई थी। रोना बहुत सामान्य बात नहीं है, आँसू किसी के लिए भी यूँ ही नहीं बहता। उस आँसू में अपनेपन का पवित्र एहसास होता है। उस दिन पता चला था कि अपनों से दूर होने में कितना दु:ख होता है। जब हम कुछ साल साथ पढ़े दोस्त अलग होने पर इतने दु:खी हो जाते हैं, तो एक बेटी की शादी में विदाई देने वाले माता पिता का क्या हाल होता होगा ? लब यू रिय्या।

- गुज़रे समय की यादों को संजोए रखने के लिए भी फोटो एलबम रखनी चाहिए।

- तेज साहू