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एक वीरांगना

एक वीरांगना

अगर झलकारी बाई पहचानी ना जाती तो आज इतिहास और कुछ होता । झलकारी बाई अपने मां बाप की इकलौती बेटी थी ।

झलकारी बाई जब मात्र 4 साल की थी तभी उनकी मां का देहांत हो गया । उन झलकारी बाई के पिता का नाम सदोबा सिंह और मां का नाम जमुना देवी था 22 नवम्बर 1830 को भोजला ग्राम में झलकारी बाई का जन्म हुआ उनके पिता ने बिल्कुल लड़कों की तरह पाला अस्त्र शास्त्र का ज्ञान दिया घुड़सवारी सिखाई झलकारी बाई की उचित प्रकार से शिक्षा ना हो पाई परंतु उन्होंने एक कुशल योद्धा के रूप में अपने आप को विकसित किया बचपन से ही वह बहुत साहसी और निडर थी। एक बार उनके ग्राम में किसी महिला का कुएं से पानी निकालते समय बच्चा कुएं में गिर गया दो झलकारी बाई ने बिना डर के कुएं में उतर कर बच्चे को निकाला इसी प्रकार झलकारी बाई जंगल में रोजाना सूखी लकड़ियां लेकर आती थी एक दिन उसी बीच उनका सामना एक शेर से हो गया उन्होंने बिना डरे शेर को हसीए की सहायता से मार गिराया ।

जब झलकारी बाई के गांव के मुखिया के घर डाकुओं ने हमला किया तब इस साहसी महिला ने उन डाकुओं का डट कर मुकाबला किया और उन्हें मार गिराया इसी तरह जब एक बार गांव में आग लग गई तब झलकारी बाई ने अपनी जान की परवाह बिना किए दो बच्चों की जान बचाई। झलकारी बाई का का विवाह झांसी के किले के एक सैनिक पूरण सिंह से हुआ जो बहुत बहादुर तलवारबाजी तीर कमान मलखम और घुड़सवारी में उस्ताद थे। शादी के बाद झलकारी बाई घर के कामकाज कामकाज में ही सीमित नहीं रही बल्कि पूरण सिंह ने उन्हें हथियार चलाने की अच्छी शिक्षा दी ।

जब अंग्रेजो ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को बागी घोषित कर के उनके साम्राज्य को अपने अधीन कल लिया तब रानी लक्ष्मी बाई को अपने राज्य की रक्षा के लिए बड़ी भारी सेना की जरूरत थी उसी समय उन्होंने झलकारी बाई रण कौशल के बारे में पता चला तो तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई को अपना सलाहकार और अपनी महिला सेना का सेनापति नुक्त किया।

10 मई 1857 को जब झांसी पर पहला हमला अंग्रेजों ने किया तब झलकारी बाई और पूरण सिंह ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया और कुछ ही समय में अंग्रेजों के पैर उखड़ गए और अपनी जान बचा कर भाग गए ।

6 जून 1857 उत्तराखंड झांसी के किले पर अंग्रेजों ने दोबारा हमला कर दिया चारों तरफ से गोलीबारी जारी थी । तीसरे फाटक पर खुदा बख्श और दूसरे फाटक पर झलकारी बाई और पूरण सिंह तैनात थे अंग्रेजी सेना और बुंदेली सेना के बीच जमकर मुकाबला जारी था बुरी तरह से बौखलाई थी किसी भी हालत में अंग्रेजी सेना किले के भीतर दाखिल होना चाहती थी जहां ताकत से काम न चलता वहां रिश्वत से काम से सहारा लेती अंग्रेजी सरकार और जहां रिश्वत से काम ना चलता वहां गद्दारों की मदद अंग्रेजी सरकार। फिर अंग्रेजी सरकार ने अपनी चाल बदली उन्होंने किले के दूसरे फाटक पर हमला बोल दिया जहां झलकारी बाई और पूरण सिंह तैनात थे। अभी तक दोनों अंग्रेजी सरकार को चुन चुन कर मार रहे थे तभी अंग्रेजी सेना में अपनी योजना दोबारा बदली और तोपों से किले के फाटकों पर हमला कर दिया इस हमले से किले में आग लगने का खतरा बढ़ गया जिस कारण किले में रहने वाले लोगों को यह आभास हो गया की अगले दिन सुबह तक अंग्रेजी सेनाकिले को अपने अधीन कर लेगी ।

इस पर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने एक गुप्त सभा बुलाई जिसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के भरोसेमंद झलकारी बाई पूरण सिंह खुदा बख्श नाना भूपतकर जैसे जांबाज़ थे ।नाना भूपतकर ने रानी लक्ष्मी बाई को सलाह दी कि वे अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को लेकर किले के गुप्त फाटक से किले के बाहर चली जाए और और किसी अंग्रेजी सेना के सैनिक को कानों कान खबर ना लगे उन्होंने नाना भूपतकर के कहे अनुसार ही किया झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई को अपने पास बुलाया और अपने वस्त्र दिए और झलकारी बाई के वस्त्र पहनकर रानी लक्ष्मी बाई सुबह से पहले पीठ पर अपने बेटे दामोदर राव को बांधकर किले के बाहर चली और जाते हुए किले की पूरी जिम्मेदारी झलकारी बाई को दे दी अब झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई के वेष में पूरी सेना को आदेश देती और खुद अंग्रेजी सेना के सैनिकों का सफाया करती जा रही थी इसी बीच उन्हें खबर लगी की पूरण सिंह अंग्रेजी सेना से पूरे साहस के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए यह सुनकर झलकारी बाई जरा जरा भी विचलित नहीं हुई बल्कि उसी प्रकार अंग्रेजी सेना का सफाया करती हुई आगे बढ़ती गई कुछ समय बाद अंग्रेजी सेना के कई झुंड ने एक साथ झलकारी बाई पर हमला कर दिया इसके चलते झलकारी बाई अंग्रेजों के हाथ लग गई झलकारी बाई को पकड़ने पर अंग्रेजों ने सोचा कि अब झांसी का किला उनका होगा क्योंकि उन्होंने सोचा ये झांसी की रानी ही है झलकारी बाई पकड़े जाने पर भी किसी समय डर ही नहीं अभी भी उनकी आंखें शेर की तरह चमक रही थी और चेहरे पर साहस का तेज था यह तेज देख कर ब्रिटिश सेना आश्चर्यचकित थी अंग्रेज सेना ने झलकारी बाई से पूछा अब उनके साथ क्या किया जाए इस पर झलकारी बाई ने कहा उन्हें फांसी दे दी जाए यह साहस भरा उत्तर पाकर अंग्रेजों ने झलकारी बाई को छोड़ दिया।

झलकारी बाई की पहचान करने के लिए दूल्हाजू को बुलाया गया जिसने पहले भी कई बार रानी लक्ष्मी बाई से धोखा करते हुए ब्रिटिश सेना की मदद की थी अंग्रेजों को उसने बताया यह रानी लक्ष्मी बाई नहीं बल्कि उन्हीं की हमशकल झलकारी बाई है जो रानी लक्ष्मीबाई बनकर कर उनकी सेना का सफाया कर रही है। छूटने के बाद भी झलकारी बाई ने ब्रिटिश सेना का डट कर मुकाबला किया और शहीद हो गई ।

यदि दूल्हा जू ने झलकारी बाई की असलियत अंग्रेजों को नहीं बताई होती होती तो अंग्रेज रानी लक्ष्मी बाई को पकड़ने या मारने आगे नहीं जाते और रानी लक्ष्मी बाई अपनी वीरता से पुनः झांसी को अपने कब्जे में ले लेती यह हकीकत से बिल्कुल भिन्न इतिहास होता ।

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