Wo bhuli dasta - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

वो भूली दास्तां भाग-२

आज रश्मि की शादी थी । शाम होते ही चांदनी ने अपनी मां से कहा "मां मैं रश्मि के घर जा रही हूं । उसे तैयार करवाने पार्लर लेकर जाना है। चाची ने यह जिम्मेदारी मुझे सौंपी है। । आपको मैं शादी के पंडाल पर मिलूंगी। "
"तू यही सूट पहनकर जाएगी क्या शादी में! वह साड़ी नहीं लेकर जाएगी जो तूने कल रात निकाली थी पहनने के लिए!' उसकी मां ने कहा।
"अरे मैं तो जल्दी के चक्कर में भूल ही गई थी। सही रहा मां जो आपने याद दिला दिया।" चांदनी ने अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा।
"हमेशा घोड़े पर सवार रहती है। इतनी लापरवाह है तू! कैसे काम चलेगा तेरा शादी के बाद।"
"आप भी मां दादी की तरह लेक्चर देने मत बैठो। चलती हूं वरना देर हो गई तो रश्मि फिर नाराज होगी। आज के दिन उसे नाराज नहीं करना चाहती मैं। कह वह जल्दी से घर से निकल गई।
रश्मि की मां ने उसे देखते ही कहा "ठीक समय पर आई है तू ! बस तेरा ही इंतजार था । अब उसे तैयार करवाने ले जा। वरना देर हो जाएगी और हां समय का ध्यान रखना। ऐसा ना हो बरात दरवाजे पर खड़ी हो और तुम सभ तैयार होने में लगी रहो!"

"आप चिंता मत करो चाची। अभी तो 3 घंटे है बारात आने में। रश्मि को हम समय से तैयार करवा देंगे और हमारा क्या है! हमें क्या टाइम लगना है तैयार होने में!"
"ठीक है रश्मि की ताई की लड़की को भी अपने साथ ले जा। वह बड़ी और समझदार है। कह कर जल्दी काम करवा देगी। तैयार हो जाओ तो फोन कर देना। मैं समीर को गाड़ी लेकर भेज दूंगी, तुम सबको लिवाने। अच्छा तुम जाओ सारा सामान मैंने एक जगह रख दिया है, कुछ छोड़ मत जाना!" रश्मि की मां ने उन्हें समझाते हुए कहा।

चांदनी रश्मि को लेकर पार्लर पहुंची और उसके तैयार होने का इंतजार करने लगी। उसे देख देख कर हैरानी व परेशानी हो रही थी कि हे भगवान दुल्हन को इतना सजना पड़ता है। 2 घंटे से ऊपर हो गए! कब तैयार होगी यह। इस बीच रश्मि की मां का भी दो बार फोन आ चुका था। हर बार चांदनी यही कहती बस चाची 10 मिनट का काम रह रहा है। पर वह 10 मिनट पूरे होने में नहीं आ रहे थे। आखिर पूरे 3 घंटे बाद रश्मि तैयार होकर हटी।
ब्यूटीशियन‌ ने जब चांदनी को कहा कि" दुल्हन तैयार है। एक बार देख लो और कुछ कमी हो तो बताओ!"
यह सुन उसकी सांस में सांस आई। उसने अंदर जाकर जब रश्मि को देखा तो देखती ही रह गई। लाल सुर्ख जोड़े व उसके साथ साज शृंगार! सच रश्मि किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।
चांदनी को ऐसे निहारते देख रश्मि ने इशारों से पूछा कैसी लग रही हूं!
चांदनी ने कहा "यार चांद का टुकड़ा लग रही है तू ! तुझसे हमारी ही नजर नहीं हट रही है तो हमारे जीजा जी का क्या हाल होगा! सुन रश्मि मुस्करा उठी।
तभी ब्यूटीशन ने कहा "आप दोनों को तैयार नहीं होना!"
यह सुन चांदनी बोली "अरे हमें क्या तैयार होना है! बस साड़ी बांधकर 1 बिंदी और लिपस्टिक लगानी है। वह तो मैं अभी 2 मिनट में कर लेती हूं!"
उसकी बात सुन इशारों में ही रश्मि ने उससे कहा कि नहीं तुम इससे ही तैयार हो!
"अरे भई मेरे बस की नहीं, इतनी देर बैठना! यह तो बहुत टाइम लगाएगी तैयार करने में!'
यह सुन ब्यूटीशन बोली "अरे नहीं दुल्हन के मेकअप में ज्यादा समय लगता है। आपको तैयार करने में इतना टाइम नहीं लूंगी। आप बैठिए तो सही!"
रश्मि की जिद पर चांदनी को बैठना ही पड़ा । गुलाबी साड़ी उस पर खुले लंबे बाल , हल्का सा मेकअप करते ही चांदनी का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा।
उसे देख रश्मि की ताई की लड़की बोली "वाह चांदनी तुम भी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही हो। आज सारे बाराती तेरे दीवाने ना हो गए तो कहना! पहले तो तुम दोनों ही काला टीका लगा लो।"
"दीदी अब आप यूं मत बनाओ मुझे। अच्छा चलो आप भी तैयार हो लो चाची का फोन आने वाला होगा। समय हो चुका है।"
जैसे ही सब तैयार होकर हटे , रश्मि का भाई उन्हें लेने आ गया। चांदनी को देखते हैं वह बोला
"अरे बंदरिया आज तो इस पार्लर वाली ने तेरा रंग रूप ही बदल दिया। आज तो तू एक ठीक-ठाक सी लड़की लग रही है! सही कह रहा हूं ना रश्मि!"
"बंदरों को तो सब बंदर और बंदरिया ही नजर आते हैं।" उन दोनों की बातें सुन सब की हंसी छूट गई। रश्मि की बहन बोली‌ "बारात आ गई है क्या!"
"हां दीदी बारात को आए एक घंटा हो चुका और वह द्वार पर आने के लिए चल पड़ी है।"
जयमाला के समय चांदनी रश्मि के साथ ही थी। घरातियों व बारातियों की मीठी नोक झोंक का दौर शुरू हो गया था। चांदनी भी उसमें बढ़-चढ़कर भाग ले रही थी । बड़ा ही मजा आ रहा था उसे। हर बात में ज़िद बहस कर शगुन के पैसे दिलाने में। रश्मि की बहने एक सुनाती तो दूल्हे के भाई व दोस्त चार!
जयमाला के समय भी सब ने एक दूसरे की जमकर टांग खिंचाई। बड़े बुजुर्ग बीच-बीच में सभी को एक प्यार भरी डांट लगा रहे थे। हंसी खुशी के माहौल में जयमाला संपन्न हुई। जब से बारात आई थी, चांदनी को महसूस हो रहा था कि दो आंखें बारातियों की टोली में लगातार उसका पीछा कर रही है लेकिन भीड़ में वह उसे खोज नहीं पा रही थी।

जयमाला के बाद फेरों की तैयारी शुरू हो गई। इसी बीच सभी खाना खाने जाने लगे तो रश्मि की ताई की लड़की ने उसे भी कहा "चांदनी चलो तुम भी खाना खा लो। इसके बाद फेरे शुरू हो गए तो समय नहीं लगेगा।"
"दीदी मैं रश्मि के साथ खा लूंगी।"
"अरे पगली, आज वह तेरे नहीं अपने दूल्हे राजा व उसके परिवार के साथ खाना खाएगी। उसके चक्कर में रहीं तो भूखी रह जाएगी।" वह हंसते हुए बोली।
"ठीक है दीदी, मैं अपनी मां को भी बुला लेती हूं। वह मेरे साथ ही खा लेंगी। हां हां ठीक है, जल्दी करो खाने पर भी ज्यादा बढ़ रही है।" कह वह खाने की ओर चली गई।
चांदनी ने अपनी मां से कहा आप यही बैठो, मैं आपके लिए खाना ले आती हूं।"
खाने के बाद चांदनी आइसक्रीम लेने स्टॉल पर गई तो वहां बहुत भीड़ थी।
कोशिश करने के बाद भी उसका नंबर नहीं आ रहा था। तभी एक लडके ने अपने ‌हाथ में ली हुई आइसक्रीम का कप उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा "यह आप ले लीजिए!"
चांदनी ने अजीब नजरों से उसकी ओर देखते हुए कहा "इतनी मेहरबानी क्यों! मैं तो आपको जानती भी नहीं!"
"तो अब जान लीजिए । मैं लड़के वालो की तरफ से हूं और दूल्हे का दोस्त! आप बहुत देर से कोशिश में ‌लगी थी तो सोचा आपकी मदद कर दूं!"
"यह कप आप मुझे दे देंगे तो फिर आप क्या खाएंगे। भीड़ तो अब भी कम नहीं हुई वहां!"
"कोई बात नहीं आप लीजिए मैं.......!"
वह अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही पीछे से उसका दोस्त आते हुए बोला " वैसे यह नहीं भी खाएगा तो चलेगा। जरूरत आपको ज्यादा है। वैसे भी आप इतनी देर से हम बारातियों से इतनी बहस में लगी हुई थी, आपका दिमाग गरम हो गया होगा तो इसे खाकर ठंडा कर लीजिए। " कहकर वह हंसने लगा।
उसकी बात सुन चांदनी को बहुत गुस्सा आया । उसने आइसक्रीम वापस उस लड़के के हाथ में पकड़ा दी और गुस्से से वहां से चली गई।
वह लड़का पुकारता ही रह गया लेकिन उसने पीछे मुड़कर ना देखा।
क्रमशः
सरोज ✍️