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वो भूली दास्तां, भाग-१०

आकाश हॉस्पिटल पहुंचते ही सीधा डॉक्टर के पास गया। उसे देखते ही डॉक्टर ने कहा "आइए आकाश जी मैं आपका ही इंतजार कर रहा था। "
"डॉक्टर आज मैं भी हूं आपसे ही मिलने आया हूं। मुझे भी आपसे पूछना था कि आखिर चांदनी की बीमारी का पता क्यों नहीं लग पा रहा है !ऐसी क्या बीमारी है, जो इतने दिनों से पकड़ में नहीं आई। इतना बड़ा हॉस्पिटल, एक्सपीरियंस्ड डॉक्टर्स फिर क्या फायदा! मैं आज ही हॉस्पिटल बदल दूंगा। मुझे नहीं रखना यहां पर उसे।"
"शांत हो जाइए आकाश जी। आपके परिवार से हमारे शुरू से ही अच्छे तालुकात है और जहां तक बात हमारे काम की है, वह हम पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं। वह तो आपकी सास ने हमें बताने से रोका हुआ था वरना बीमारी का पता तो हमें बहुत पहले ही लग गया था।"
"क्या मतलब?"
"मतलब यह है कि आपकी पत्नी को कैंसर है और इसकी शुरुआत शादी से पहले ही हो चुकी थी। हम तो आपको पहले ही है बताने वाले थे लेकिन आपकी पत्नी व सास ने हमें उसके भविष्य का वास्ता देकर रोका हुआ था। मैं भी भावनाओं में बह गया था। वो तो आज आपने हमारे व हमारे हॉस्पिटल की कार्यप्रणाली व योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया तो मैं खुद को बताने से रोक नहीं पाया। "
"यह क्या कह रहे हैं डॉक्टर आप । चांदनी मेरे साथ इतना बड़ा धोखा नहीं कर सकती है। यकीन नहीं हो रहा मुझे। मेरी भावनाओं के साथ इतना बड़ा खिलवाड़। मैं उसे कभी माफ नहीं कर सकता।" कहते हुए आकाश बाहर निकल गया।

आकाश चांदनी के पास पहुंचा तो उसकी मां भी वही थी। दोनों उसे देख मुस्कुरा उठी। आकाश को देखते हैं चांदनी की मां ने कहा "बेटा मैं तुम्हारा सुबह से ही इंतजार कर रही थी। एक खुशखबरी सुनानी थी तुम्हें! सुन कर तुम भी बहुत खुश हो जाओगे। डॉक्टर ने कहा है....!"
उनकी बात बीच में ही काटते हुए आकाश बोला "मम्मी जी, आपने मुझसे इतनी बड़ी बात क्यों छुपाई?"
"कौन सी बात! किस बारे में बात कर रहे हो तुम और इतना गुस्से में क्यों हो!""
"यही कि चांदनी को शादी से पहले से ही कैंसर था और उसका इलाज चल रहा था।"
"बेटा यह किसने कहा तुम्हें! ऐसा तो कुछ नहीं! सब झूठ है!"
चांदनी की मम्मी हैरान होते हुए बोली।
"झूठ तो आप दोनों बोल रहे हो मम्मी जी लेकिन अब आपका झूठ पकड़ा गया। चांदनी मुझे तुमसे ये उम्मीद ना थी। अगर तुम मुझे पहले ही सच बता देती तो मुझे बुरा ना लगता। पति-पत्नी है हम दोनों! फिर झूठ के आधार पर कोई भी रिश्ता नहीं टिक सकता। इतना विश्वास करता था मैं तुम पर। आखिर मां की बात सच ही निकली!"
आकाश की बातें सुन चांदनी की आंखें फटी की फटी रह गई कमजोरी के कारण उससे बोला भी नहीं जा रहा था फिर भी हिम्मत करके उसने कहा
"आकाश ये तुम , हम पर इतना बड़ा इल्जाम कैसे लगा सकते हो। जिसने भी तुमसे कहां , झूठ है वह। मुझे पहले से कोई बीमारी नहीं थी। मैं तुम्हारी कसम खाती हूं।"
"मत खाओ मेरी कोई झूठी कसम ।तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता नहीं। जा रहा हूं, कभी वापिस ना आने के लिए। और हां मम्मी जी, आप लोगों ने हमारे साथ धोखा किया हो लेकिन मैं आपको बीच में नहीं छोडूंगा इसके इलाज के लिए जो भी खर्चा होगा मैं दूंगा!"
"आकाश तुम बिना हमारा पक्ष सुने नहीं जा सकते। रूक जाओ।" लेकिन आकाश नहीं रुका और बिना उनकी और देखें चला गया।
मां बेटी जड़ सी बहुत देर तक बैठी रही । उन्हें समझ नहीं आया। यह सब क्या हुआ और जब होश आया तो दोनों ही एक दूसरे के गले लग बहुत देर तक रोती रही।
आकाश आज फिर लड़खड़ाते कदमों से घर में घुसा था लेकिन आज मीरा देवी चौंकी नहीं क्योंकि आज वह कारण जानती थी। फिर भी वह आकाश को संभालने का नाटक करते हुए बोली
" क्यों अपने जीवन का दुश्मन बन रहा है इस लड़के के पीछे! अभी भी मान जा और छोड़ दे उसे।'
इतना सुनते ही आकाश गुस्से से बोला " मां आप ठीक कहती थी। " फिर उसने डॉक्टर की सारी बातें अपनी मां को बताई और बोला
"आखिर क्यों किया उसने मेरे साथ ऐसा। पहले क्यों नहीं बताया! क्यों मेरे विश्वास को छलनी किया!"
"बेटा जो हो गया सो हो गया। उसकी बातों को सोच अपने मन को मत जला। आगे बढ़, अभी तो एक बात का ही पता चला है ना जाने और कितनी बातें छुपाए बैठे होंगे वह दोनों मां बेटी। शराब से तेरा दुख दूर ना होगा बल्कि तुझे उसकी और याद दिलाएगा। तू ऐसा कर कुछ दिन बाहर चला जा। हवा पानी बदलेगा तो तेरा मन भी बहल जाएगा।"

"लेकिन मां मैं उसे ऐसे छोड़कर कैसे?"

"तू अभी आराम कर, इसके बारे में कल बातें करेंगे।"
अगले दिन नाश्ते के समय आकाश को चुपचाप बैठे देख उसकी मां ने उससे कहा "और आकाश, तुमने क्या सोचा है बाहर जाने के बारे में।"
"मां मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा। क्या करूं क्या नहीं।"

बेटा तुमने अपने मन की कर के देख ली। अब हमारी मान ले। हमारा भी तो तुझ पर कुछ हक बनता है। हम तेरे माता पिता तेरे भले के लिए ही कह रहे हैं।" मीरा देवी आंखों में झूठे आंसू लाते हुए बोली।
"जैसा आप सही समझे!" कह वह चला गया। मीरा देवी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान छा गई।
उधर हॉस्पिटल वालों ने उन्हें वहां से जाने का नोटिस दे दिया। चांदनी की मां ने कारण जानना चाह तो उन्होंने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया जी देखिए हमारी तरफ से जो इलाज होना था जब हमने कर दिया। अब आप इसे घर ले जाइए और वही इनकी देखभाल कीजिए।
"लेकिन डॉक्टर साहब अभी तक इलाज पूरा नहीं हुआ। कल ही तो आप कह रहे थे कि अभी एक महीना और लगेगा।"

"जो कल कहा था, वह भी ठीक है और जो आज कह रहा हूं वह भी सही है। हमारे यहां इलाज आज पूरा हो गया। अगर आपका मन नहीं मानता तो आप किसी दूसरे हॉस्पिटल में एडमिट करा सकती हैं।"
कह उन्होंने डिस्चार्ज के पेपर उनके हाथ में थमा दिए। चांदनी की मां ठगी सी उन्हें देखते रह गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब अचानक ऐसा क्यों कर रहे हैं! उसने आकाश को फोन लगाया लेकिन उसने फोन काट दिया।

तभी रश्मि वहां चांदनी से मिलने आई। चांदनी की मां को परेशान देख उसने पूछा तो उन्होंने सारी बात बता दी। सुनकर रश्मि को उनकी बातों पर यकीन ना हुआ लेकिन डिस्चार्ज के पेपर देख यकिन ना करने का कोई कारण भी ना था।
यह सारी बातें सुनकर चांदनी से मिलने की तो उसकी हिम्मत ही नहीं हुई। वह माथा पकड़ वहीं बैठ गई और बोली
" चाची अभी 10 दिन पहले मिलने आई थी, तब तो सब सही था। फिर अचानक से आकाश जी को क्या हो गया।"

"यहीं बात तो हमें समझ नहीं आ रही बिटिया। बिट्टू तो कल से रोए ही जा रही है और डिस्चार्ज की सुन, कैसे खुद को संभालेगी। तू सही समय पर आई है। मैं अकेली बहुत घबरा गई थी। बिटिया तू ही कोई रास्ता निकाल। दामाद जी और आकाश बेटा दोस्त है। तू कह उसने कि वह आकाश जी को समझाए। उनकी बात नहीं टालेंगे आकाश जी।" कहते हुए वह रो पड़ी।

रश्मि उन्हें संभालते हुए बोली " चाची हिम्मत से काम लीजिए । आप ही तो हमारी हिम्मत हो। आप टूट जाओगे तो चांदनी को कौन संभालेगा। आप उसके पास जाइए लेकिन उसे अभी कुछ मत बताना। मैं डॉक्टर से मिलकर आती हूं। "

डॉक्टर ने रश्मि को भी वहीं जवाब दिया। अपने आप को किसी तरह संभाल वह चांदनी के पास पहुंची और हंसते हुए बोली "और मैडम जी कैसी तबीयत है अब!"
उसे देख चांदनी अपना दर्द छुपा फीकी सी हंसी हंसते हुए बोली
"तबीयत तो शायद अब मरने के बाद ही सुधरेगी।"

"हम तुझे ऐसे ही मरने देंगे क्या! वैसे चाची हमें यह हॉस्पिटल
बदल देना चाहिए। बस नाम है, काम नहीं। देखो ना मेरी सहेली की क्या हालत बना दी है इन्होंने। आज मैं इसी काम से यहां आई हूं । आपको भी तो रोज इतनी दूर से आने जाने में परेशानी होती है। इसलिए हम आज हॉस्पिटल बदल देंगे और जो हमारे घर के पास है उसमें इसका इलाज कराएंगे। वैसे भी बचपन से हमें वही की दवाइयां लगती है और मुझे पूरा यकीन है, वहां जाते ही मेरी सहेली 2 दिन में ही सही हो जाएगी।"
"कह तो तू सही रही है बिटिया, मेरे मन में भी बहुत दिनों से यह बात थी। लेकिन ससुराल की बात थी इसलिए मैं कुछ कह भी ना पाई। अब अगर आकाश जी यही चाहते हैं तो हॉस्पिटल बदल देते हैं।" चांदनी की मां रश्मि की हां में हां मिलाते हुए कहा।
"क्या आकाश जी ने कहा है हॉस्पिटल बदलने के लिए!"

"और क्या हम अपनी मर्जी से हॉस्पिटल बदल रहे है। हमें क्या उनकी डांट खानी है।"
"वह खुद क्यों नहीं आए?"चांदनी ने पूछा।
"वह तो खुद ही आते लेकिन गांव में तेरे चाचा ससुर की तबीयत बहुत ज्यादा खराब थी इसलिए पूरा परिवार उन्हें देखने गया हुआ है। उन्होंने ही मुझे भेजा है यहां। "
"तू सच कह रही है रश्मि!" चांदनी ने हैरानी से ऊसकी ओर देखते हुए पूछा।
"अब तू सच झूठ मत कर ,चलने की तैयारी कर।" रश्मि ने अपने चेहरे पर आते हुए विभिन्न भावों को छुपाते हुए उससे कहा।

क्रमशः
सरोज ✍️