Ghar ki Murgi - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

घर की मुर्गी - पार्ट -2


अगले दिन राशि सुबह सुबह ही नहा धोकर नीचे आ गयी,मंदिर में हाथ जोड़ वो दो मिनट तक मम्मी जी को शांत हो कर देखती रही। शकुंतला जी गुनगुनाते अंदाज में फूलों की क्यारियों को ऐसे सींच रही थी मानो पूरे घर की देखभाल भी ऐसे ही कि हो। पापा जी बाहर गार्डन में बैठकर पेपर की वॉट लगा रहे थे,सालो के पास खबर कम अब विज्ञापन ज्यादा रहता है,मौसा जी भी हा में हा मिलाए पड़े थे और एक साथ बैठकर चाय की चुस्की के साथ भड़ास निकाल रहे थे।

तभी मम्मी जी की नज़र मुझपर पड़ गयी " अरे राशि बहू तुम कब आई।सोई की नही ठीक से। मुझे लगा तुम भी भावना और अंकिता की ही तरह सुबह देर से ही उठती हो।" बोलते हुए मम्मी जी मेरे नजदीक आई और हाथ पकड़ते हुए बोली-" बहू आज तुम्हारी पहली रसोई है। वैसे तो मैंने तुम्हारे खाने की तारीफ बहुत सुनी है मगर अब चखने के दिन आ गए है इतना कहते हुए वो मुस्कुराई। " मैं चुपचाप उनकी बातो पर सिर हिला दी। मेरा सिर हिलाना की मम्मी जी ने स्ट से कहा बहू आज तुम क्या बनाओगी। शुरुआत तो पहले रसोई की मीठे से होती हैं। जिससे परिवार में सदैव रिश्ता मीठा मीठा रहे। ऐसा करो तुम हलवा या खीर बना दो। जी राशि ने शकुंतला जी को सर हिलाकर जवांब दिया।

तभी ननद भावना आई और मेरा हाथ पकड़कर बोली गुड मॉर्निंग भाभी।चलिए आपको आपकी रसोई से परिचित कराती हु। ये है आपकी रसोई और ये रहा सारा सामान सूजी का हलवा बनाने वाला और खीर बनाने वाला।आल द बेस्ट भाभी! इतना बोलते हुए भावना किचन से बाहर चली गयी राशि बिल्कुल अकेले ही किचन में कुछ पल तो खड़ी थी मगर मानो उसे लाइटर भी चलाने ना आता हो। किसी तरह गैस जला कर उसने ज्यो ही कड़ाही चढ़ाई उन्ही बीच शकुंतला जी रसोईघर में झाँक कर बोली अरे बहू घी कम डालना तुम्हारे ससुरजी को कम देना है। उनका इतना बोलना की कड़ाही में घी थोड़ा ज्यादा ही गिर गया। हे भगवान ये क्या हो रहा। अब क्या करूँ। सब क्या कहेंगे मुझसे। आजतक तो सिर्फ चार लोगों का ही खाना नाश्ता बनाई हु और यहाँ दस लोगो का कैसे बनाऊ। उसने अग्नि देवता को प्रणाम करते हुए वापस से शुरुआत की।पहले खीर चढ़ाई और फिर दूसरे तरफ हलवा। इतना सा करने में उसे आधा एक घण्टा लग गया। फिर दुबारा शकुंतला जी आई और बोली कोई चीज चाहिए तो नही। कोई मदद चाहिए तो बोलो शकुंतला जी ने मुस्कुराते हुए बोला। अब मैं नई नवेली क्या बोलती भला किसी से, की मदद नही चाहिए, मगर एक लोग तो यही रहिए । लेकिन ससुराल में पहले दिन कौन लड़की भला बोल पाती है।राशि अंदर ही अंदर ऐसा महसूस कर रही थी कि जीवन मे उसने कभी भी काम नही किया है। हाथ शुरू में तो काँपने लगे,लेकिन फिर राशि पूरे हिम्मत के साथ किचन में खुद का माइंड मेकअप की और किसी तरह दोनो चीजे बनकर तैयार कर दी।

सासूमाँ और दोनो ननद किचन में आई और बोली वाह क्या खुशबू है माँ। शकुंतला जी दोनो चीज बना देख खुश हो कर बोली अरे वाह दोनो ही चीज बना दी।मुझे लगा पता नही तुमसे होगा कि नही।वाकई,जैसा नाम वैसा ही काम। ये सब देख दिल प्रसन्न हो उठा। अच्छा अंकिता भावना दोनो मिलकर जल्दी जल्दी सबके लिए प्लेट में हलवा और कटोरी में खीर निकाल दो। इन्ही बीच शकुंतला जी ने अपने गले मे डली हुई चैन को निकाल बहू राशि को पहनाते हुए बोली ये खानदानी चैन है मेरी सास ने मुझे पहली रसोई पर दी थी। और उनकी सास ने उन्हें। अब ये तुम्हारे लिए है। क्योंकि अब से रसोई की मालकिन तुम हो। बाकी कामो के लिए तो नौकर चाकर लगे है मगर खाना हम बहू के हाथ का ही खाएंगे। राशि उनकी बात सुनकर मुस्कुरा दी।

अच्छा बहू जाओ तुम ऊपर आराम करो,अभी भावना तुम्हे नाश्ता ऊपर ही पहुँचा देंगी। जी राशि सर हिलाकर ऊपर आ गयी। राशि का सारा दिमाग हलवा और खीर पर लगा था न जाने सबको कैसा लगा। पतिदेव व्योम राशि को देखकर बोले अरे तुम्हारा दर्द कैसा है अब ठीक है। हा तो आराम करो घूम क्यों रही। राशि दो पल को व्योम को देखती रही और व्योम सीढी से नीचे उतर गए। नीचे से सभी की आवाज आ रही थी,अरे वाह !क्या लाजवाब रबड़ी जैसी खीर बनी है मजा आ गया। तभी भावना आई और हलवा खीर ले कर बैठ गयी और गाल को खीचते हुए बोली लाजवाब बनाया है आपने। इतना सुन राशि मुस्कुरा दी।

यही से शुरू हुई राशि के जीवन का नया सफर। जिस पहले सफर में वो पास हो जाने से थोड़ी खुद को सहज महसूस कर रही थी। वक्त बीतता गया और दिन हँसते बतियाते निकल गया। तभी माँ ने बताया बहू कल दावत है।तुम्हे सबके लिए अपने चटख हाथो से खाना बनाना होगा। राशि मन ही मन सोची दस पंद्रह ही लोग होंगे ज्यादा से ज्यादा। लेकिन शकुंतला जी ने जब बताया कि कुल पच्चीस लोग दावत पर आ रहे है हमारी बहु के हाथ का खाना खाने। ये सुनते राशि के होश उड़ गयी पच्चीस लोग का खाना। फिर उसे लगा जब इतने लोग आ रहे तो सब उसके साथ मिलकर हाथ भी बटाएंगे ही।