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सफ़र

सफ़र

‘जाने कैसी कैसी बीमारी ले आता है इ चीन भी, सब साला गड़बड़ी इनके खाने पीने की वजह से है। हम तो सुन रहे की ससुर छिपकली, कॉकरोच सब भून भान के खा जाते हैं।‘ खाना खा के तख्त पर लेटे राजेश ने दो तीन डकार के साथ विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश की खान-पान की आदतों पर बड़ी सहजता से इतने गम्भीर आरोप लगा डाले।
उसकी पत्नी बिंदिया एक अबोध बालिका की भाँति आँखो में जिज्ञासा लिये सब कुछ सुन रही थी। काकरोच का नाम सुन के बिदक गयी और बोली,’ भक्क जी! आप भी कुछ भी कहते हैं। काकरोच कौन खाता है।‘
अपने ज्ञान पर यह आक्षेप राजेश को स्वीकार नहीं था, तनिक आवाज तेज कर के बोला,’ अरे! तुम्हें कछु नहीं मालूम। इ भाट्सएप पे सब खबर आवत है देश दुनिया की। इ भी आया था, कौनो हम अपने मन से नहीं बता रहे।
‘अच्छा ठीक है चलो मान लिये। तुम खाली भाट्सएप देखना घर की कुछ खबर है राशन नहीं है। सब्जी वाले के यहाँ ढाई सौ उधार है अब न देगा उधार का खायेंगे फिर।‘ बिंदिया ने परिस्थितियों का ज्ञान कराते हुये राजेश से तनिक और ऊँचे स्वर में कहा।
देखेंगे जी, मालिक से आज बोले कुछ पैसन खातिर पर अब वो भी परेशान हैं। कहे हैं हो पायेगा तो बतायेंगे। चलो सो जाओ।‘ राजेश ने मामला गम्भीर होने से पहले बात खत्म कर दी और तकिये में सर घुसा के लेटे गया।
राजेश और बिंदिया बिहार के रहने वाले थे। राजेश कमाने के सिलसिले में महाराष्ट्र आया, यहाँ मुम्बई में एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम मिल गया। ठीक ठाक पैसा कमाने लगा तो पत्नी बिंदिया को भी ले आया। यहीं एक चाल में रहने को किराये पर एक घर मिल गया, घर क्या एक कमरा जो सिर छुपाने के लिये पर्याप्त था। एक साल भर की बिटिया प्रीति और एक तीन साल का बेटा रोहन को मिलाकर अब वो दो से चार हो गये हैं।
सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि कोरोना का कहर टूट पड़ा। लाकडाउन हुआ फैक्ट्री सब बंद हो गयी। काम ठप्प, वेतन देने की बात तो फैक्ट्री मालिक ने कही है पर कब ये पता नहीं। महीने भर तो बचे खुचे पैसों से काम चल गया। बाद के पन्द्रह दिन दिक्कतें आयी लेकिन कई सारी समाजसेवी संस्था राशन और भोजन वितरण कर रहीं थी तो वो दिन भी निकल गये। रही मकान के किराये की बात तो वो प्रधानमन्त्री जी के संदेश के बाद मकान मालिक आये और बोल कर गये,’ आराम से रहो किराये की चिन्ता ना करना वो स्थिति सामान्य होने पर हम समझ लेंगे।‘ इस दौरान उनके चेहरे पर रूलिंग पार्टी के एक सम्मानित ब्लाक लेवल कार्यकर्ता होने का दबाव साफ झलक रहा था। अपने राष्ट्रीय नेता के संदेश पर अमल करना उनका कर्तव्य भी था और मजबूरी भी। असली समस्या डेढ़ महीने बाद शुरू हुयी अब तक जेब पूर्णतः खाली हो चुकी थी। अधिकांश संस्था अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते करते थक चुके थे और शिथिल पड चुके थे। संक्रमण और तेजी से फैल रहा था। अब चुनौती जीवन निर्वाह की थी।
सूर्य की किरणें धरती पर पहुँच चुकी है, सुनहरी धूप खिली हुयी है आसमान स्वच्छ है। बड़ी बड़ी गगनचुम्बी इमारतों के बीच एक छोटी सी चाल में अपने कमरे के बाहर खड़े राजेश के जीवन में संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सुबह हो गयी चिडियाँ घोसलों से उड़ चुकी हैं भोजन की तलाश में, राजेश को कोई रास्ता नहीं दिख रहा जाये भी तो कहाँ उम्मीद के सभी द्वार लाक्ड डाउन हैं। राजेश इन्हीं चिताओं में डूबा हुआ था तभी किसी ने पुकारा,’राजेश’! पीछे मुड़ कर देखा तो मंगल था उसका पड़ोसी मुम्बई में भी और गाँव में भी। दोनों कमाने भी साथ ही निकले थे।
कहाँ खोये हो कब से बुला रहे?’ मंगल ने मुस्कुराते हुये कहा।
‘कहीं नहीं यार बस यही सोच रहे कि अब आगे कैसे कटेगा। राशन नहीं एक भी घर में दस बीस रूपया बचा था आज सुबह प्रीति और रोहन की खातिर दूध लेते आये, हम तो भूखे रह भी लें उन दोनों के लिये तो बड़ी मुश्किल है।‘ राजेश ने चिंता व्यक्त करते हुये कहा।
‘हाँ भैया बात तो सही है तुम्हारी, हमारा भी हाल कुछ ऐसा ही है।’ मंगल ने हाँ में हाँ मिलायी।
क्या हुआ तुम बता रहे थे ना सरकार की तरफ से हजार रूपये आ रहें हैं खातों में कामगारों के, कुछ पता किये, मिल जाता तो पन्द्रह बीस दिन कट जाते आराम से।‘ राजेश ने आशा भरी आँखो से मंगल की तरफ देखते हुये पूछा।
‘हाँ सरकार ने घोषणा की थी। हम पता किये फार्म भरना था लेकिन यहाँ के पार्षद ने भर कर भेज दिया वो तो।‘ मंगल ने आशा के गुब्बारों में निराशा की सूई चुभाते हुये कहा।
‘क्या? भेज दिया। कैसे, यहाँ तो पूछा ही नहीं ना ही कोई आया।‘राजेश ने बड़े कौतूहल से पूछा।
हाँ! सुना है उसने ज्यादातर अपने लोगों का नाम भर के भेज दिया। जो बी हो अब कोई फायदा नहीं फार्म जमा हो चुका है।‘ मंगल ने बात स्पष्ट कर दी।
वाह! हमारा हक नहीं है क्या? जिसको मिलना चाहिए उससे पूछा ही नहीं।‘ राजेश ने गुस्से में कहा।
क्या करेंगे भैया ऐसे ही हैं योजनायें कागजों पर पूरी धरातल पर अधूरी। खैर छोड़िये हमारी किस्मत में मेहनत ही है बैठ कर मिलने वाली रोटी हजम भी नहीं होती।‘ मंगल ने मुफलिसी के घाव पर खुद्दारी का मरहम लगाते हुये कहा।
राजेश परेशान था, मन में गुस्सा आ रहा थी लेकिन कर भी क्या सकता था। अपनी ही किस्मत को दोष देते हुये आँखे बंद कर ली।
चलो भैया देखते हैं, कहीं खाने का जुगाड़ करते हैं। मंगल ने कहा
हाँ चलो।‘ राजेश ने निराश मन से कहा
दोनों चाल से बाहर खाने की तलाश में निकल गये। हर तरफ सन्नाटा जगह जगह पुलिस की बैरिकेटिग। कुछ दूर चलने पर एक जगह भोजन वितरण हो रहा था। दोनो ने लाइन लगाकर पैकेट लिया। पैकेट में चार पूड़ी और सब्जी थी। इससे एक ही आदमी का पेट भर सकता था सो पैकेट लेकर घर की तरफ चल पड़े।

घर पहुँच कर राजेश ने बिंदिया को पैकेट दिया और बोला तुम खा लो रोहन को भी खिला दो।
बिंदिया ने स्त्री धर्म के अनुसार पूछा और आप?
हम खा के आये उधर ही तुम लोग खा लो।‘ राजेश ने प्रीती को गोद में उठाते हुये कहा।
बिंदिया ने रोहन को तीन पूड़िया खिला दीं। एक पूड़ी तोड़ कर खाने चली तो कमरे के बाहर बैठे कुत्ते पर नजर गयी जो हमेशा चाल के आसपास ही रहता था बिंदिया अक्सर उसे बचा खाना खिला देती थी। पूड़ी लेकर उठी उसके सर पर हाथ फेरते हुये उसे पुचकारा और पूड़ी उसके सामने रख दी। कुत्ता भूखा था पूड़ी हजम करने में उसने भी देर नहीं की।
कहते हैं गरीबी पैसे से नहीं दिल से होती है कोई लाखों का मालिक होते हुये भी गरीब है तो कोई बिना पैसों के भी बहुत अमीर है। सुबह से भूखी बिंदिया कुत्ते को वो आखिरी पूड़ी खिलाते समय इस दुनिया की सबसे अमीर इंसान लग रही थी।

रात को भी खाना न बना बाहर से भी कुछ जुगाड़ नही हुआ, बच्चों के लिये दूध बचाकर रखा था पिलाकर सुला दिया। दोनों को बुलाकर बिंदिया भी लेट गयी। राजेश कमरे में ही टहल रहा था। चिंता बढ़ रही थी भूख से मिलकर उसका असर दोगुना हो गया था।
क्या हुआ जी? लेटते काहें नहीं।‘ बिंदिया ने टोका
हम्म लेट रहा हूँ। राजेश ने बिंदिया को देखते हुये कहा।
क्या सोच रहे? बिंदिया ने राजेश की परेशानी को भांपते हुए पूछा।
यही कि कैसे चलेगा? कितने दिनों तक बिना खायें रहेंगे। कोई मदद भी मिलती नहीं दिख रही। सरकार ने कामगारों के लिये हजार रूपये की घोषणा की थी यहाँ के पार्षद ने सब अपने लोगों के नाम भर के भेज दिये। अब बाहर भी कम ही जगह खाना या राशन बँट रहा। उधार इतना बढ़ गया है कि कोई उधार देने को तैयार नहीं। यही चिंता सता रही है। सरकार श्रमिकों को घर पहुँचाने के लिये स्पेशल ट्रेन चला रही सोचता हूँ घर चल चलें। कम से कम खाने के लाले तो न रहेंगे। यहाँ हम तो गुजारा कर भी लें पर प्रीती और रोहन उनको क्या खिलायेगे बेचारे बच्चे तो भूखे नहीं कर सकते हैं ना।‘ राजेश ने सारी मन की बात कह डाली
जो आप ठीक समझो जी, बात तो सही है आपकी घर पहुँच जाते तो खाने पीने की किल्लत ना रहती’ बिंदिया ने राजेश के प्रस्ताव पर हामी भरते हुए कहा
कल ही जाता हूँ स्टेशन पता करने मंगल भी चलेगा बोल रहा था।‘ राजेश बिस्तर पर लेटते हुये बोला
हाँ ठीक है अब कुछ मत सोचो सो जाओ।‘ बिंदिया बोली
रात काफी हो चुकी थी। राजेश बिस्तर पर लेट गया पर नींद अभी कहाँ आती। झिल्लियों की भायं भायं कानों में बजती रही रात बीतती रही। बाहर चिड़ियों की चहचह शुरू हो गयी। राजेश ने सोने की कोशिश की पर नींद रात भर न आयी।
सुबह मंगल को लेकर राजेश स्टेशन पहुँच गया। स्टेशन पर लम्बी कतार लगी हुयी थी। काऊंटर खाली था, बाहर बैठा एक मोटा आदमी नाम पता और आधार नम्बर नोट कर के टिकट बाँट रहा था। राजेश और मंगल भी कतार में खड़े हो गए। चार घण्टों के बाद बारी आयी।
नाम बताओ।‘ मोटा आदमी रजिस्टर की तरफ ही देखते हुये बोला। उसके रंग के सापेक्ष उसकी गर्दन पर लटकी सोने की चैन साफ झलक रही थी।
‘राजेश’। राजेश सोने की चैन से नजर हटाते हुये बोला।
लाओ आधार कार्ड दिखाओ। कितना टिकट चाहिये’। उस आदमी ने रजिस्टर पर नाम लिखते हुये कहा।
ये है साहब। दो चाहिए।‘ राजेश ने जेब से आधार कार्ड निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाया।
दूसरा कौन है? उसका नाम पता बता दो और चौबीस सौ रूपया निकालो।‘ इस बार उस आदमी ने राजेश को देखकर कहा।
चौबीस सौ? राजेश यह शब्द सुनकर आवाक रह गया। ऐसा लगा घर जाने का स्वप्न टूट गया एकदम से।
साहब पैसे किस बात के? राजेश ने जानना चाहा।
किस बात के? अरे भाई ट्रेन है तो टिकट लगेगा ना फ्री थोड़े चलेगी।‘ मोटे आदमी ने तल्खी से उत्तर दिया।
साहब पर हम सुने की स्पेशल ट्रेन चला रही सरकार मजदूरों को घर पहुँचाने के लिये।‘ राजेश ने अपनी बात रखी।
हाँ सो तो है। लेकिन स्पेशल है क्योंकि सिर्फ़ मजदूरों की घर वापसी के लिये चलायी गयी है फ्री में नहीं है। पैसे हों तो लाओ नहीं तो आगे बढ़ो लाइन लम्बी है।‘ उस आदमी ने राजेश को हटने का इशारा करते हुये कहा।
राजेश हट कर बगल खड़ा हो गया। घर का स्वप्न बिखरता दिख रहा था। यहाँ खाने को पैसे नहीं हैं चौबीस सौ होते तो घर जाने की क्या जरूरत थी। राजेश ने एक आखिरी प्रयास किया,’ साहब बिना पैसे का कोई रास्ता है क्या घर जाने का, पैसे तो हैं नहीं दो दिन से खाना नहीं बना है घर में बीबी बच्चे भूखे हैं। पैसे होते तो घर जाने की काहें सोचते।‘
अरे यार बोला ना टिकट चाहिये तो पैसे ले आओ यहाँ सब परेशान ही हैं। कहानी मत सुनाओ मुझे।‘ आदमी ने झाड़ते हुये कहा।
अब उम्मीदें बिखर चुकी थी। राजेश और मंगल स्टेशन से निकल कर बाहर एक पीपल के पेड़ के नीचे आकर खड़े हो गये। सभी रास्ते बंद दिख रहे थे। गला सूख रहा था प्यास से पास ही एक प्याऊ से पानी पिया और पीपल के नीचे ही गमछा बिछा कर बैठ गये।
मंगल अब तो ये ट्रेन से जाने का ख्याल ख्याल ही रह गया। अब का किया जाये। चौबीस सौ तो ना हो पायेंगें’ राजेश ने निराश स्वर में कहा
हाँ भैया। हम भी सोच रहे, पहले लाकडाउन में बंद थे सब पैसा खत्म हो गया अब घर पहुँचाने खातिर पैसे ले रहे। जाने कैसे बुड़बक सब बैठें हैं कुर्सी पर इनको मजदूरों का दुख दर्द कुछ नहीं सूझता।‘ मंगल ने कड़वी लेकिन सच्ची बात कही।
देखो ना। हमें तो यही ना समझ आता कि इतना पैसा सब सरकार घोषणा करती है हजार लाख करोड़ सब का होता है। आखिर में हमें मिलता क्या है। ऐसे संकट के समय में भी पैसा से टिकट खरीदें जब भूखे मर रहे हैं।‘ राजेश ने व्यवस्था के गंदे गहरे धब्बे की ओर इशारा करते हुये कहा।
सब बड़े लोगों का खेल है भैया, पैसा जाना कहीं और होता है जाता है कहीं और। हम गरीबों के हिस्से तो बस बातें हैं वादे हैं।‘ मंगल ने बात की पुष्टि करते हुये कहा
दोनों हालात पर चर्चा करते रहे। हालात बद्तर होते रहे। बात कड़वी है लेकिन सच है आज भी सरकारी योजनाओं का बड़ा हिस्सा निचले तबके तक नहीं पहुँच पाता।
राजेश और मंगल बातों में मशगूल थे तभी कोई बगल आकर खड़ा हो गया और पूछा,’ टिकट लेने आये थे भैया’।
हाँ। राजेश ने उसकी ओर नजर घुमाते हुए कहा
मिला।‘ उस पतले दुबले आदमी ने पूछा
नहीं कहाँ, दो जन का चाहिए चौबीस सौ माँग रहे। यहाँ खाने को पैसे नहीं हैं टिकट कहाँ से खरीदें।‘ राजेश ने अपनी व्यथा सुनायी।
कोई नहीं, हमारी भी वही समस्या है। हम तो फैसला कर लिये हैं अब पैदल निकलेगे यहाँ गुजारा न हो पायेगा अब।‘ उस आदमी ने सरकारी व्यवस्था को ठोकर मारते हुये कहा।
अच्छा, कहाँ जाना है।‘ मंगल ने कौतूहलवश पूछा।
बिहार।‘ उस आदमी ने गमछा सर पर बांधते हुये जवाब दिया।
अरे। हमें भी बिहार जाना है। का नाम है आपका? मंगल ने एक और प्रश्न किया।
मोतीलाल भैया। हमारे साथ ही काहें नहीं चलते।‘ आदमी ने प्रस्ताव रखा।
इतना दूर पैदल कैसे जायेंगे? इस बार राजेश ने आश्चर्य से पूछा।
अरे पूरा पैदल नहीं चलना। ट्रक चल रही है मिल जायेगी तो थोड़ा दूर उसपे हो लेगें थोड़ा पैदल। हमारा एक साथी ऐसे ही गया हफ्ता भर लगा लेकिन सकुशल घर पहुँच गया। हम तो फैसला कर लिये है आप लोगों को चलना हो तो बोलो।‘ मोतीलाल ने विवरण देते हुये पूछा
औरतें और बच्चे भी हैं भाई, हमारी बात होती तो चल चलते उनको साथ लेकर कहाँ भटकेगें।‘ राजेश ने चिंता व्यक्त करते हुये कहा
हम कहाँ अकेले जा रहे पूरा परिवार है बीबी तीन ठू बच्चे और एक परिवार भी है।‘ मोतीलाल ने ढाढ़स बँधाया
राजेश सोच में पड़ गया। प्रस्ताव उसे सही लगा वैसे भी यहाँ मौत के सिवा कुछ नहीं भूखे रहकर मरना ही है घर पहुँच गया तो दिक्कतें दूर हो जायेंगी। अब सरकार से भी उम्मीद जाती रही थी। उठकर खड़ा हुआ और मंगल से पूछा,’ का बोलते हो मंगल’ चला जाये।
हाँ भैया हमें लगता है चलना चाहिए। शायद भगवान का यही इशारा है तभी देखो जान न पहचान इ भैया एकदम से आकर इ बात बताये नहीं तो हमारे दिमाग में कहाँ ये बात आयी थी। यहाँ से तो निकलना ही पड़ेगा। किसके भरोसे रुकें इ सरकार के जो घर पहुँचाने के लिये पैसा वसूल रही इनके लिये तो खाली वोट हैं हम सब चुनाव में देवता बना देते हैं बाकी का पाँच साल कीड़ा मकौड़ा समझते है। एसी में बैठकर फैसले लेते हैं धूप की तपन कहाँ महसूस होगी इनको इ तो हमारे हिस्से है। हमारी जिन्दगी यही है साँस चलती रहे तो हैं नहीं तो नहीं इसी जद्दोजहद में गुजर जाती है। महल खड़ा कराना हो तो हम याद आते हैं एक बार अट्टालिका खड़ी हो गयी तो हम उसपर धब्बे सरीखे हैं आसपास दिख गये तो साफ कर दिये जाते हैं। अब जिन्दा रहना है तो हिम्मत करके निकलना ही पड़ेगा।‘ मंगल ने हामी भरते हुये अपनी भड़ास निकाल दी।
मंगल की इतनी लम्बी चौड़ी बात सुनकर राजेश और मोतीलाल मुस्कुरा दिये। मोतीलाल ने राजेश को सुबह निकलने की बात कही। राजेश तैयार हो गया समय और मिलने का स्थान तय कर के दोनों घर को चल दिये।

राजेश घर पहुँच दिन के दो बज गये थे। बच्चे सो रहे थे बिंदिया बैठी इंतजार कर रही थी। देखते ही पूछ पड़ी
क्या हुआ प्रबन्ध हुआ जाने का।
हाँ, टिकट तो नहीं मिली पैसे बहुत लग रहे लेकिन वहीं स्टेशन के बाहर एक मोतीलाल जी मिले थे सब ने मिलकर कल सुबह निकलने का तय किया है। कह रहे थे ट्रक मिल जायेगी कुछ दूर का सफर पैदल चलना होगा सब साथ रहेंगे अच्छा रहेगा। बता रहे थे राह में जगह जगह खाना भी मिल जाता है। अब और कोई रास्ता भी नहीं बचा है। तुम जरूरी सामान बाँध लो।‘ राजेश ने संक्षेप में सारी बात बता दी
ठीक है, वैसे बी दो दिन से चूल्हा नहीं जला है थोड़ा कष्ट भले हो लेकिन घर पहुँच गये तो सब ठीक हो जायेगा।‘ बिंदिया भी मंजूरी देते हुये बोली
हाँ। पहुँच जायेंगे आराम से तुम चिंता मत करो।‘ राजेश ने भरोसा देते हुये कहा।

अगली सुबह तड़के निकलने का प्लान था। रात बैचैनी और भूख के साथ बीती। सुबह राजेश ने जल्दी उठकर बिंदिया और रोहन को उठाया मंगल भी परिवार सहित आ गया प्रीती सोयी हुयी थी तो राजेश ने उसे गोद में उठा लिया और सब निकल पड़े सफर पर हिन्दी वाले, अंग्रेज़ी वाला सफर तो लाकडाउन से ही शुरू हो गया था।
मोतीलाल ने शहर के बाहर बाईपास पर मिलने को कहा था। आधे घंटे का सफर तय करके राजेश सबके साथ वहाँ पहुँच गया। मोतीलाल अपने परिवार के साथ पहले ही खड़े थे साथ एक परिवार और भी था। सबको मिलाकर सोलह लोग थे। मोतीलाल ने राजेश को देखते ही अपने पास बुलाया औरतों बच्चों को सड़क किनारे बैठा दिया गया पुरूष लोग ट्रक का इंतजार करने लगे। घंटे भर इंतजार के बाद एक ट्रक आता दिखा औ से रुकवाया गया। मोतीलाल लीड कर रहे थे चालक के पास बात करने भी वही गये बात तय हो गयी। ट्रक वाला भोपाल जा रहा था वहाँ तक छोड़ देगा। औरतों को ट्रक पर चढ़ाया गया बच्चों को लेकर राजेश मंगल और सुरेश बैठे, मोतीलाल आगे ड्राइवर के बगल बैठे। ट्रक निकल पड़ी।
सुबह का ठण्डा मौसम ऊँचे ऊँचे महल सरीखे घरों को पीछे छोड़ते हुये ट्रक आगे बढ़ चली। साथ ही पेड़ रफ्तार से पीछे छूट रहे थे। राजेश ने बिंदिया को देखा दोनो मुस्कराये। दोनों की आँखो में आशा दिखी जो घर पहुँचने की थी।
दो चार जगह भण्डारों में रूठकर खाते पीते ट्रक लगभग डेढ़ दिन के सफर के बाद भोपाल पहुँची। शहर पार कर के एक जगह रुकी ड्राइवर ने मोतीलाल से कहा अब आप लोग उतर जायें मेरा सफर यहीं तक था। मोतीलाल उतर कर पीछे आये सबको उतारा गया। ट्रक वाला दूसरी तरफ बढ़ गया।
अब आगे कैसे चलना है? राजेश ने मोतीलाल से पूछा
कुछ दूर पैदल चलते हैं देखते हैं कुछ मिल जाये तो।‘ मोतीलाल ने कहकर आगे बढ़ने का इशारा किया
मण्डली आगे बढ़ चली। रास्ते में चल रहे भण्डारों से कुछ खाना बाँध लिया था। पीने का पानी भी भर लिया गया था। अब बस अगले साधन का इंतजार था जो मंजिल के थोड़ा और करीब ले जाये। दो तीन घण्टे चलकर एक बाग के पास डेरा डाला गया यहाँ से कुछ दूर गाँव भी था। रात होने को है तो आज यहीं सो कर थोड़ा आराम कर लें भोर में फिर निकलेगें’ मोतीलाल ने सबको सम्बोधित करते हुये कहा।
सब थके हुये थे प्रस्ताव पूर्ण बहुमत से स्वीकार कर लिया गया जैसे संसद में नेताओं के वेतन बढ़ोत्तरी का बिल ध्वनि मत से निर्बाध रूप से पारित हो जाता है। गठरी खोलकर चादर निकाल ली गयी। बिछा कर सभी आसपास ही बैठ गये। महिलायें बच्चों और पुरूषों के लिये खाना निकालने लगीं। पुरूष मण्डली आगे की यात्रा पर विचार विमर्श करने लगी। सभी ने खाना खाया कुछ खाना कल के लिये भी बचाया गया। अँधेरा गहरा हो गया था सब अपने अपने बिस्तरों पर लेटे और सो गये।

सुबह मंगल की नींद खुली तो देखा मोतीलाल दो चार आदमियों के साथ खड़े कुछ बात कर रहे थे। राजेश को उठाया और दोनों उधर चले गये।पास वाले गाँव के ही आदमी थे।
भैया इधर से अभी कोई गाड़ी जा रही हो तो पकड़ लो यूपी बार्डर पहुँच जाओगे तो वहाँ प्रदेश सरकार ने कई बसें खड़ी कर रखी हैं। उधर राज्य सरकारों से बात चल रही परमिशन मिल गयी तो घर तक पहुँचा देंगे तुम सब को।‘ उन्हीं आदमियों में से एक मोतीलाल को बता रहा था।
राजेश और मंगल को देख मोतीलाल ने उन्हें सारी बात बतायी। गाँव वाले आदमी एक दूसरे से उचित दूरी बनाये हुये दूर खेतों की तरफ चल दिये। राजेश, मंगल और मोतीलाल अपने समूह की ओर। सबको आगे का ब्यौरा दिया गया। गठरी फिर से बँध गयी सुरेश और मोतीलाल सड़क पर आकर किसी गाडी का इंतजार करने लगे। आधे घण्टे तक कुछ नहीं मिला तो पैदल निकलने का फैसला हो गया। बच्चों को गोद में उठा लिया गया सब निकल पड़े।
सड़क सड़क पटरी के किनारे रूकते चलते लगभग दिन भर बीत गया औरतें थक के निहाल हो चुकी थीं कदम जवाब दे रहे थे। राजेश ने बिंदिया को देखा तो कंधे से सहारा दिया और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा।
कुछ दूर और बिंदिया कहीं सही जगह दिखे तो रूका जाय।‘ राजेश बिंदिया को सभ्भालते हुये बोला
वो देखो गाड़ी की लाइट जैसा कुछ दिख रहा।‘ मंगल चिल्लाया
मोतीलाल ने पीछे मुड़ कर देखा तो कोई गाड़ी उनकी ओर बढ़ रही थी।
थोड़ी देर में तस्वीर साफ हो गयी। एक ट्रक थी मोतीलाल ने हाथ देकर रूकाया। मंगल मोतीलाल ट्रकके रूकने पर उसकी ओर बढ़े। ट्रक खड़ी कर ड्राइवर भी नीचे उतर आया।
कहाँ जाना है? ड्राइवर ने मोतीलाल से पूछा
यूपी बार्डर तक छोड़ देते भैया बड़ी कृपा होगीह औरतें और बच्चे भी हैं सब थक चुके हैं।‘ मोतीलाल ने विवशता सुनायी
चलो बैठ जाओ बार्डर तक ही जाऊँगा।‘ ट्रक ड्राइवर ने बैठने को कहा
सबको बैठाया गया, बैठने का विन्यास पिछ्ली बार की तरह ही था। सबके चेहरे पर थकान दिख रही थी। ट्रक आगे बढ़ी औरतें और बच्चे सो गये। राजेश पीछे बैठा छूटती हुयी सड़क को देख रह था साथ ही गाँव के कुछ दृश्य भी मन के पटल पर चल रहे थे।
लो भाई बार्डर आ गया।‘ ड्राइवर ने गाड़ी रोकते हुये कहा।
सभी नीचे उतर गये। कुछ दूर पैदल चलने के बाद बसों की लम्बी कतार दिखी। कुछ बड़ी गाड़ियाँ भी खड़ी थीं लाल बत्तियों वाली। मजमा लगा था। हजारों मजदूर मन में घर पहुँचने का स्वप्न लिये सड़क किनारे डेरा डालकर सरकारों की आपसी सहमति का इंतजार कर रहे थे। राजेश ने भी सड़क किनारे गठरी रख दी औरतों और बच्चों को बैठाकर मोतीलाल के साथ आगे स्थिति का जायजा लेने पहुँच गया।
मंत्री जी। आपकी सरकार क्या कर रही है बसें खड़ी हैं परमिशन क्यों नहीं मिल पा रही? एक घुंघराले बालों वाली लड़की सफेद कुर्ते में खड़े एक अधेड़ नेता से सवाल पूछ रही थी। एक लड़का सब कुछ कैमरे में रिकार्ड कर रहा था, कभी बसें, कभी वहाँ लाचार पड़े मजदूर तो कभी मंत्री जी को।
मोतीलाल को देखते ही लड़की ने माइक उनकी तरफ कर दी।
क्या नाम है आपका? लड़की ने पूछा
मोतीलाल सकपका गये। लड़खड़ाती आवाज में बोले,’ ज जी मोतीलाल।
कहाँ जाना है? लड़की ने दूसरा सवाल पूछा
इस बार मोतीलाल ज्यादा स्थिर थे। जी बिहार जाना है। हम सोलह लोग हैं ट्रक और पैदल चल के मुम्बई से आये हैं सुना कि सरकार यहाँ व्यवस्था की है घर पहुँचाने के लिये।‘मोतीलाल ने बताया।
मोतीलाल की बात पूरी खत्म नहीं हुयी थी तब तक माइक पुनः मंत्री जी की ओर घूम चुका था।
मंत्री जी आखिर इन मजदूरों को कब तक इंतजार करना होगा।‘लड़की ने वाजिब सवाल किया
देखिये दूसरी सरकार से हमारी बात चल रही है जैसे ही परमिशन मिल जाती है हमें बसों को रवाना कर देंगे।‘ मंत्री जी ने विश्वास के साथ उत्तर दिया
राजेश और मोतीलाल कुछ दूर खड़े बातें सुन रहे थे। सवाल जवाब खत़्म हो चुका था। लड़की और वो कैमरामैन पास खड़ी गाड़ी में जाकर बैठ गये।
राजेश और मोतीलाल अपने समूह की तरफ लौट आये।
क्या हुआ भैया। कब निकालेगी बस कुछ पता चला।‘ मंगल ने उत्सुकता में पूछा
देखो अभी कोई परमिशन की बात चल रही बोल तो रहे जल्दी ही पहुँचा देंगे।‘ राजेश पसीना पोछते हुये बोला
परमिशन। अच्छा ट्रक वालों की परमिशन है क्या उ वाला ट्रक तो महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश आ गया। ट्रक से ही काहें नहीं भेंज देते।‘ मंगल ने निश्छल प्रश्न किया।
पता नहीं जी इ सब चोंचला हमें नहीं समझ आता। कह रहें हैं कि आगे बार्डर नहीं पार करने देंगे ऐसे, हमें तो बस इंतजार करना है। आओ कोई जगह देखें आराम के लिये आसपास।‘ राजेश चारों ओर नजर दौड़ाते हुये बोला।
कुछ सौ मीटर की दूरी पर सड़क किनारे बिस्तर बिछा दिया गया। सब बैठ गये, खाने पीने की व्यवस्था की गयी थी। मंगल और सुरेश खाना और ताजा पानी भर लाये।
यहाँ इंतजार करते आज दूसरा दिन है। कब मिलेगा परमिशन।‘ मंगल ने मोतीलाल से झुझंलाहट में पूछा।
आज भर और देखेंगे कल निकलेगें कौनो रास्ता से इहाँ सड़ने के लिये थोड़ी बैठे रहेंगे।‘ मोतीलाल ने आश्वासन दिया
इंतजार करते करते थक गये थे सभी अब मन को समझाना मुश्किल हो गया था। दिन भर की धूप में चेहरे झुलस गये थे। राजेश प्रीति को गोद में लिये खिला रहा था। रोहन बगल ही खेल रहा था। बिंदिया ने राजेश को देखते हुये कहा,’ कब पहुँचगें हम घर?
पहुँच जायेंगे।‘ राजेश प्रीती को दुलारते हुये बोला
पता नहीं परमिशन मिलेगी या नहीं। कुछ अच्छा नहीं लग रहा जी मन घबरा रहा है। मुम्बई से यहाँ तक आ गये। यहाँ आ के फँस गये हैं।‘बिंदिया के आँख से आँसू टपक पड़े।
अरे नाहक परेशान होती हो कितनी दूरी बची ही है अब। मोतीलाल ने कहा है कल तक बसें नहीं निकली तो कोई और रास्ता देखेंगे। दो,चार दिन की बात है पहुँच जायेंगे। रोहन को बुला कर खिला दो तुम भी खा लो और सो जाओ सुबह देखते हैं।‘ राजेश ने यह कहकर बिंदिया के आँसू पोंछे।
सबने खाना खाया कुछ देर तक बातों का दौर चला फिर सब अपने अपने ठिकाने सोने चले गये। प्रीती को मंगल की बीबी खिला रही थी वो उसी के पास सो गयी। राजेश, बिंदिया और रोहन उससे थोड़ा हटकर सड़क की तरफ।
राजेश ने बिंदिया को तो सांत्वना दे दी लेकिन उसका हृदय भी व्यथित था। यहाँ के इंतजार से ऊब चुका था। रात के दो बज गये होंगे नींद नहीं आ रही थी। मन में तरह तरह के विचार चल रहे थे। रह रह के गर नजर आता। उसने तय कर लिया था कल तक परमिशन नहीं मिली तो पैदल ही निकल पड़ेगा।
चारों ओर सन्नाटा था। हर कोई सो रहा था। खर्राटों की आवाजें भी सुनाई पड़ रहीं थी। राजेश करवट लिये सड़क को निहार रहा था। तभी दूर एक पीली रोशनी चमकी। धीरे धीरे रोशनी और पास आ गयी। नजदीक होते उसकी रफ्तार बढ़ती गयी। अचानक एक लहराती हुयी अनियंत्रित ट्रक अपनी ओर आते हुयी दिखी। राजेश चिल्लाया लेकिन उठकर सम्भल पाता इतना वक्त नहीं था। ट्रक ऊपर से गुजर गयी। एक धमाके की आवाज हुयी आसपास सभी उठ गये।
आँखे खुलीं तो सबकुछ धुँधला सा दिखायी दिया। उसका शरीर रक्त से बना हुआ था। चारों तरफ भीड़ लगी थी। लोग एम्बुलेंस एम्बुलेंस चिल्ला रहे थे। उसने सर घुमा कर बिंदिया और बच्चों को देखना चाह पर गर्दन नहीं हिली। मंगल सिरहाने खड़ा भैया भैया पुकार रहा था। आँखो के सामने अचानक गाँव आ गया जो धीरे धीरे दूर जा रहा था। चन्द सेकेंड में नजरों से ओझल हो गया। उसने एक लम्बी साँस ली और साँसें थम गयीं।
चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। एम्बुलेंस से सभी को अस्पताल लाया गया लेकिन देर हो चुकी थी। राजेश बिंदिया रोहन तीनों अचेत निष्प्राण थे। लेकिन चेहरे पर सुकून था घर पहुँचने की चिंता नहीं थी।
पूरे देश में बात फैल गयी। टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चली। स्थानीय अधिकारियों ने शासन से बात की सरकारों ने आपसी सहमति से शवों को घर पहुँचाने के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था की जिसे सभी राज्यों में जाने की परमिशन थी। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।
एम्बुलेंस राजेश बिंदिया और रोहन के शव को लेकर उसके गाँव पहुँच गयी साथ में मंगल उसका परिवार और प्रीती भी जिस अबोध को मालूम ही नहीं था कि उसके माँ बाप उसे अकेला छोड़कर चले गये हैं।
शवों को देखकर गाँव भर में मातम मच गया। राजेश अपने परिवार का अकेला कमाने वाला था। घर में बूढ़े माँ बाप और दो बहनें हैं। माँ बेटे की हालत देखकर अचेत पड़ी है। बहनों का रो रो कर बुरा हाल है। बाप बेटे की अंतिम क्रिया की तैयारी में लगा है।
देश में गुस्से का माहौल है। सोशल मीडिया पर हर जगह यही ट्रेडिंग है। सरकारों की जमकर बुराई हो रही है। न्यूज चैनलों पर बहस का मुद्दा यही है। बड़े बड़े नेताओं को बुलाकर सवाल पूछे जा रहें हैं। ऐसे ही एक बड़े न्यूज चैनल पर प्राइम टाइम शो जंग आपकी में बहस का मुद्दा है,’ मजदूरों की मौत का जिम्मेदार कौन’
न्यूज़ एंकर सवाल कर रही आरोप प्रत्यारोप चल रहा है। विपक्ष के नेता का कहना है कि सरकार की गलती है बसों की परमिशन मिल जाती तो ये घटना ना होती।
रूलिंग पार्टी के प्रवक्ता विपक्ष पर आरोप लगा रहे बीच बीच मे यह भी गिनाना नहीं भूलते कि सरकार ने मृतक परिवारों को पाँच और घायलों को दो लाख मुवाअजा देने की घोषणा की है।
लाकडाउन की वजह से सभी अपने घरों से बहस में हिस्सा ले रहे।

कुछ समय माहौल रहेगा फिर लोग भूल जायेंगे। राजेश का क्या है उसे तो सफर करना ही है हर रूप में, हिन्दी वाला नहीं अंग्रेजी वाला।