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कण कण उनका शस्त्र है

1. रामचरित मानस में कथा है कि भगवान श्री राम माँ सीता जी के साथ चित्रकूट में एक शिला पर बैठे थे और तभी जयंत नामक कौए ने माँ सीता के कोमल चरणों मे चोंच मार गया । माँ के चरण कमल में चोट लगी । श्री राम ने उस काक को सबक सिखाने के लिए एक तिनका उठा कर उसकी ओर संधान कर छोड़ दिया । वो तिनका उस काक के पीछे पड़ गया ।
वो कौआ जहाँ जहाँ भी जाता तिनका उसके पीछे रहता। वो उससे भयभीत होकर जितना बचने की कोशिश करता वो तिनका उतनी ही तेजी से उसकी ओर बढ़ता । मानो वो एक प्राणघातक अस्त्र बन गया था ।
जयंत उससे बचने के लिए सभी देवी देवताओं के पास गया पर सबने उसे बचाने में असमर्थता जताई । वो भागते भागते थकने लगा था, उसे लगने लगा कि अब अंत निकट है वो तिनका अब उसका शरीर बेधने ही वाला है ।

उसे इस संकट से बचने की कोई राह नजर नही आ रही थी तब उसने व्याकुल होकर शिव जी से प्रार्थना की । आदि गुरु भगवान शिव ने उसे बचने की राह बताई
उन्होंने कहा कि जिन्होंने तुम पर तिनका छोड़ा है तुम उन्ही की शरण मे जाओ ।
जयंत को गुरु कृपा से राह मिल गई, उसने नाम स्मरण करते हुए प्रभु श्री राम की ओर चला, ज्यों ज्यों वो उनके पास आता गया उसके भयभीत ओर अशांत मन को निर्भयता मिलने लगी । वो थका हारा, पश्चाताप में डूबा भगवान की शरणागति में आ गया । उसके ग्लानि , पश्चात्ताप और शरणागति के भाव से द्रवित होकर भगवान ने उसे अभय कर दिया लेकिन कर्म के विधान के अनुरूप उसे उसके किये की सजा मिली । उसके प्राण बच गए पर उस तिनके ने उसकी एक आंख फोड़ दी ,उसके प्राण नही लिए ।

2. महाभारत में युद्ध में एक समय भीष्म पितामह के भीषण बाण प्रहार से क्रोधित हो भगवान श्री कृष्ण ने भीष्म पर प्रहार करने के लिए वहीं से रथ का एक टूटा हुआ चक्का उठा लिया । उनके युद्ध मे शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा को भीष्म ने अपने पराक्रम से तोड़ने की कोशिश की, पर अर्जुन ने भगवान को उनपर प्रहार करने से रोक दिया । उसने उनके चरण पकड़कर आर्त स्वर में प्रार्थना की,हे केशव,हे माधव आप शांत हों ,,आपके क्रोधाग्नि से यहाँ कोई नही बचेगा,, मैं जान गया हूँ कि आप की अनंत और विराट शक्ति है और आप अपने भक्तों के लिए सारी सीमा लांघ जाते हैं,,,उनके इस रूप को देखकर भीष्म भी उनकी स्तुति करते हैं, और उनकी इच्छा होती है कि उनकी मृत्यु हो तो प्रभु के हाथों ।

इस कथा से कुछ बातें जो समझने की है ।

1.जब हम ये सोचने लगते हैं कि हम सब कुछ करने में समर्थ हैं, हमारा पुरुषार्थ ही सब कुछ है और जब उस विराट सत्ता के प्रति संशय आ जाए और लगने लगे कि कहीं कुछ नही है । तब हमसे मनमानी होने लगती है । ये जो भीतर बैठा मनीराम है वो तर्क देकर दैवी शक्ति के प्रति संदेह जगा देता है । तब हमारा अहंकार,संशय और तर्क हमे नीच ओर अनुचित कामो में लगा देता है । और तब हम ऐसी दुर्गति में पड़ जाते हैं कि वो बहुत व्याकुल करने वाली होती है । तब सद्गुरु का आश्रय,शरणागति और नाम स्मरण ही उस ताप से, उस कष्ट से बचा सकता है।
2. दैवी शक्ति इतनी समर्थ वान है कि प्रकृति का कण कण उनका ही रूप है और उनकी इच्छा मात्र से एक तिनका भी समूचे अस्तित्व को क्षण में भस्म कर सकता है । उनके लिए किसी शस्त्र की आवश्यकता नही,,, उनके लिए एक टूटा चक्का हो या एक तिनका सब उनकी इच्छा से सर्वशक्तिशाली विनाशक अस्त्र बन जाते हैं ।
भगवान के उस चक्के के प्रहार से भीष्म तो क्या समूची कौरव सेना पल भर में कुचल कर खत्म हो जाती । उस तिनके से जयंत नामक उस कौए को मरने में क्षण भर भी नही लगता । वे जब तक नही चाहते तब तक कोई भी कण मात्र अपनी जगह से नही हिल सकता ।