Hara hua aadmi - 6 in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी(भाग 6)

हारा हुआ आदमी(भाग 6)

और कुछ देर बाद,इंजन की सिटी के साथ ट्रेन प्लेटफार्म से सरकने लगी थी।धीरे धीरे स्टेशन पीछे छूट गया।ट्रेन की रफ्तार बढ़ने लगी थी।
देवेन खिड़की के पास बैठा था।वह बाहर की तरफ झांकने लगा।तभी कंंडक्टर आ गया।उसने टिकट निकाल कर दिया।वह टीकट चेक करके चला गया था।
देवेन फिर खििड़की के बाहर देखने लगा। ट्रेन गति पकड़ चुकी थी।शहर पीछे छूट गया ।ट्रेेेन नदी नालो को पार करती,आगे बढ़ी जा रही थी।देवेंन कि आंखे बाहर का दृश्य देख रही थी।लेकिन उसके कानों में निशा के शब्द ही गूंज रहे थे।
"तुम्हे पत्नी नहीं सिर्फ एक अदद नारी शरीर चाहिए।तुम प्यार के नहीं, वासना के भूखे हो।तन की आग बुुझाने के लिए इतने नीचे गिर सकते हो
---- --मुझे यह कहने मे कोई संकोच नही तुम आदमी नहीं।नाली के गन्दे कीड़े हो।जानवर हो।जानवर ही ऐसी हरकत करते है---- ----गुस्से में निशा न जाने उससे क्या क्या कह गईं थी।
निशा ने गुस्से में चाहे ,जो कहा हो।लेकिन सौ फीसदी सच कहा था।
देवेन आज तक नही समझ पाया,ऐसा हो कैसे गया?पढ़ा लिखा,समझदार होकर भी वह यह क्या कर बैठा।जो कुछ हुआ उसके लिए वह माया को दोषी नही मानता।दोषी वह स्वंय था।गुनहगार माया नही थी।उस पर तो वासना का भूत सवार था।लेकिन उसने तो--- ---?
वह कोई दूध पीता बच्चा नही था,जो गलती करता। फिर वह गलती नही थी।जाने अनजाने मे कोई काम भूल से हो जाना गलती कहलाती है।लेकिन एक ही गलती को बार बार दोहराना गलती नही कहलाती।वह अपराध हो जाता है।अगर अपराध नैतिकता से सम्बन्ध रखता हो,तो वह पाप कहलाता है।
देवेन ने पाप किया था।वह पापी नही महापापी था।क्योंकि एक ही पाप को बार बार दोहराता रहा जब तक कि---- ---/
देवेन अपने अतीत को याद नही करना चाहता।भुला देना चाहता है,अतीत के उस अध्याय को जिसने उसकी पत्नी को उससे अलग कर दिया।वह अतीत को भुलाने का प्रयास कर रहा था।लेकिन अतीत गीले कपड़े की तरह उससे चिपटा ही जा रहा था।
दिल्ली हिंदुस्तान की राजधानी।न जाने कितनी बार उजड़ी,कितनी बार बसी है।न जाने कितने आक्रांता आये और इसे लूट पीटकर चले गए।कुछ यंहा राज करने आये और यही के होकर रह गए।कुछ सदियों तक राज करके भी लौट गए।
देश की आज़ादी के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधनी।
इसी दिल्ली में मेगा ड्रग्स कम्पनी मे देवेन मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव था।उसका काम कम्पनी की बनाई दवा का प्रचार करके आर्डर प्राप्त करना था।इस काम के लिए उसे देश के विभिन्न स्थानों पर जाना पड़ता था।एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए उसे बस या ट्रेन से सफर करना पड़ता था।
यात्रा के दौरान परेशानियां भी आती थी।लेकिन फायदा भी होता था।नए नए लीगो से मिलने का अवसर भी मिलता था।सफर के दौरान उसके अनेक मित्र भी बने थे।निशा भी उनमें से एक थी।
हसीन,खूबसूरत,चुलबुली निशा से उसकी दोस्ती महज इत्तफाक थी।उससे मुलाकात के दिन को वह अभी तक नही भुला था।भूल भी कैसे सकता है।वह दिन उसकी जिंदगी का सबसे अहम दिन था।
उस दिन की याद आज भी उसके दिल मे ऐसे बसी थी।मानो कल की ही बात हो।
उस दिन वह आगरा गया था।अपना कसम खत्म करके वह शाम को होटल लौट आया था।वह कभी भी सात आठ बजे से पहले फ्री नही हो पाता था।जल्दी लौट आया इसलिए उसके मन मे पिक्चर देखने का विचार आया।उसने काफी दिनों से पिक्चर देखी भी नही थी।पिक्चर का विचार बनते ही वह तैयार होकर काउंटर पर जा पहुंचा।
"मिस रीता आज का पेपर देना।"वह रिसेप्निस्ट से बोला था।रीता सांवले रंग की तीखे नेंन नक्श की सुंदर युवती थी।

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