hara hua aadmi - 10 in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी(भाग 10)

हारा हुआ आदमी(भाग 10)

"असली है न?"
"एकदम असली माल है"
"गुल्लू पहलवान की दुकान से लाया हूँ।"
रिक्शेवाले शारीरिक श्रम करते है।सवारी बैठाकर रिक्शा खींचना मेहनत का काम है।शारीरिक श्रम करने वालो को पौष्टिक आहार दूध,दही,फल आदि चीजे खानी चाहिए।लेकिन ये लोग शराब,गांजा जैसी नशीली और हानिकारक चीजो का सेवन करते है।
अचानक एक बस उसके सामने आकर रुकी,तो उसकी विचार श्रखला टूटी थी।बस में से कई सवारी उतरी थी।सबसे अंत मे निशा उतरी थी।
लाल रंग के सलवार कुर्ते में निशा बेहद सुंदर लग रही थी।
"लो मैं आ गयी।अब क्या प्रोग्राम है?"निशा,देवेन के करीब आते हुए बोली।
"चलो चलते है।"
देवेन और निशा साथ साथ चलने लगे।
सदर बाजार आगरा का प्रमुख बाजार है।दिन के समय यहाँ ज्यादा रौनक नज़र नही आती।लेकिन शाम होते ही बाजार धीरे धीरे गुलज़ार होने लगता है।रात को इस बाजार की चहल पहल और रौनक देखने लायक होती है।छावनी क्षेत्र में होने के। कारण फ़ौज के अफसर भी अपने परिवार के साथ घूमते और खरीददारी करते हुए नज़र आते है।
देवेन और निशा साथ साथ चल रहे थे।लेकिन उनके बीच मे मौन छाया था।वे ऐसे खमोश थे,मानो उन्होंने एक दूसरे से न बोलने की कसम खा रखी हो।
वे दोनों चलते हुए काफी दूर तक निकल आये थे।चलते हुए देवेन अचानक रुक गया।निशा को भी रुकना पड़ा।उनके बीच छाए मौन को तोड़ते हुए देवेन बोला,"यहाँ बैठते है।"
निशा,देवेन के साथ रेस्तरां के अंदर चली गई।रेस्तरां में काफी भीड़ थी।लेकिन उन्हें एक टेबल खाली मिल गई थी।वे दोनों वहाँ जा बैठे।
रेस्तरां मॉडर्न और सुसज्जित था।रंग बिरंगे रंगों का प्रकाश अंदर फैला था।उनके बैठते ही वेटर पानी का जग और दो गिलाश रख गया था।देवेन ने जग उठाकर दोनो गिलासों में पानी भरा था।वह पानी पीकर मेज पर रखा मीनू पढ़ने लगा।
"क्या लेगी?"
"आप जो भी चाहे।"
देवेन मीनू पढ़ रहा था ,तभी वेटर आकर खड़ा हो गया।
"मसाला डोसा,रसमलाई और फिर आइस क्रीम ले आओ।"
"यस सर्।"वेटर आर्डर लेकर चला गया था।
"आपने तो आगरा पूरा देखा होगा?"
"आपने भी क्या बेतुका प्रश्न पूछा है।"निशा धीरे से हंसी थी।
"बेतुका?बेतुका प्रश्न कैसे है?"
"मेरा आगरा में जन्म हुआ है।यहाँ पली पढ़ी हूँ।यहाँ रहती हूँ।सर्विस करती हूँ।यहाँ रहकर भी अगर शहर नही देझूँगी,तो कब देखूंगी"?
"आप कह तो ठीक रही है लेकिन- - -देवेन कुछ कहते हुए रुक गया।
"रुक क्यो गये।कहो जो कहना चाहते हो।"
"ऐसे तो मैं दिल्ली में रहता हूँ।लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा।दिल्ली मेरी पुरी देखी हुई नही है।"
"आपकी बात से तो एक ही निष्कर्ष निकलता है,"देवेन की बात सुनकर निशा बोली,"आपको घूमने का शौक नही है।"
"ऐसी बात नही है।शौक तो है।लेकिन अकेले घूमने में बोरियत लगती है।घूमने का मज़ा तब है,जब आप सा हसीन साथी साथ हो।"
"बाते बनाने में माहिर हो।"
और तभी वेटर आ गया था।उसने प्लेटे मेज पर रख दी थी
"लीजिए।"देवेन,निशा से बोला था।
रेस्तरां में लगे स्पीकरों पर धीमी आवाज में फिल्मी गाने चल रहे थे।
"परसो संडे है।आपकी कॉलेज की छुट्टी होगी।"
हॉ।क्यो?"निशा ने साथ मे प्रश्न भी किया था।
"आज ज्यादा काम नही हो पाया।कल में काफी व्यस्त रहूँगा।परसो में फ्री हूँ।आप छुट्टी वाले दिन क्या करती है।"
"कुछ नही।ईट एंड स्लीप।खाना और सोना बस ये दो काम।"
"यह दोनो काम आप जैसी सुंदर लड़कज के लिए नुकसानदायक है।"
"कही आपको मेरे सोने और खाने से जलन तो नही हो रही।"

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