Hara hua aadmi - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

हारा हुआ आदमी - (भाग 8)

ठंडा पीकर वे हाल में वापस आ गए थे।पर्दे पर पिक्चर शुरू हो गई।उस दौरान दोनों के बीच कोई बात नही हुई थी।
पिक्चर समाप्त होनेे पर वे हाल से बाहर आ गए।देवेन की नज़र रेस्टोरेंट पर पड़ी।वह अपने साथ चल रही लड़की से बोला,"अगर आपको ऐतराज न हो,तो कॉफी पी जाएं।"
और वह देवेंंन के साथ आ गयी थी।देेेवेेेन ने कॉफी का आर्डर दे दिया था।
" मेरा नाम देवेन है,"अपना परिचय देते हुए वह बोला,"आपका नाम जान सकता हूँ।"
" निशा।"
"आप क्या करती है?"
"मैं टीचर हूँ।"
"सच मे?"
"आपको शक क्यो है"?
"देेखने में आप कॉलेज गर्ल लग रही है।"
"लेेकिन में टीचर ही हूँ।"
"रहती कन्हा है?"
" खंदारी।"
"घर में कौन कौन है?"
"मैं और मेरी मम्मी।"
और बहुत देेेर तक वे बाते करते रहे। फिर निशा बोली,"देेेर हो गई चलना चाहिए।"
बाहर आकर देेेवेन बोला,"फिर मिलेंंगे।"
देवेन एम आर था।उसे अपने जॉब की वजह से जगह जगह जाना पड़ता था।सफर के दौरा न वह कई लड़कियों से अब तक मिल चुका था।लेकिन किसी भी लडकी ने उसे प्रभावित नही किया था
निशा से पहले जितनी भी लड़कियों से वह मिला था।उनमे से कई निशा से भी ज्यादा खूबसूरत थी।खूबसूरती ही सब कुछ नहीं होती।उन लड़कियों में ऐसा कुछ नही था,जो देवेन को आकर्षित कर सके
किसी मे भी स्वाभाविक आकर्षण या अल्हड़पन जो कुंवारी लड़की में होना चाहिए नही था।
आज के युग मे हर लड़की मॉडर्न बनने का प्रयास करती है।तंग या कम से कम कपड़े पहनकर शरीर की नुमाईश करना आधुनिकता नही है।केवल शरीर दिखाकर किसी को अपना बनाना शायद संभव नही है।देवेन नारी स्वतन्त्रता का हिमायती था।लेकिन स्त्री शरीर की नुमाईश उसे पसंद नही थी।
निशा अभी तक मिली सभी लड़कियों से भिन्न थी।निशा पहली नज़र मे ही उसे भा गई थी।निशा का रंग गोरा था।गाल कश्मीरी सेब से थे।उसके होंठ गुलाब की पंखड़ियों की तरह पतले और गुकबी थे।लंबे बाल और बड़ी आंखे।वह सूंदर और आकर्षक थी।वह अप्सरा सी लगती थी।
निशा शिक्षित थी।वह टीचर थी।लेकिन शालीन लड़की थी।
देव का जॉब ही इस तरह का था कि सुबह कहा, तो रात कन्हा।
निशा ने उसके दिल मे ऐसी जगह बना ली थी कि वह चाहे जन्हा रहे।निशा को नही भूलता था।निशा के साथ गुज़ारे कुछ घण्टो ने ही न जाने क्या जादू कर दिया था।
और धीरे धीरे करके दो महीने गुज़र गए।दो महीने बाद उसका आगरा जाने का प्रोग्राम बना।वह आगरा जाने के विचार से बहुत खुश था।वैसे तो वह दो साल से आगरा आ रहा था।लेकिन इतनी खुशी कभी नही हुई।जितनी इस बार महसूस कर रहा था।
देवेन तो निशा को हर पल याद करता था।लेकिन क्या निशा भी उसे याद करती है?यह प्रश्न ऐसा था जिसका उत्तर उसके पास नही था।
फिर उसके मन मे विचार आता।निशा का उससे रिश्ता क्या है?जब रिश्ता ही नही है,टी वह उसे याद क्यो करेगी?
यह दुनिया मुसाफिरखाना है।लोग मिलते है और बिछुड़ जाते हैं।
देवेन का दिल यह मानने के लिए तैयार नही था।यसकु और नशा की मुलाकात मुसाफिरखाने जैसी नही थी।जब वह उसे नही भुला तो वह भी उसे क्यो भूली होगी।वह भी उसे ज़रूर याद करती होगी।और उसने यह जानने के लिए एक तरकीब निकाल ली