Aadhi duniya ka pura sach - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

आधी दुनिया का पूरा सच - 20

आधी दुनिया का पूरा सच

(उपन्यास)

20.

पुजारी जी के साथ रानी क्रमशः रिक्शा-बस-रिक्शा में यात्रा करते हुए लगभग एक घंटा पश्चात् जिस गंतव्य स्थान पर पहुँची, वह एक छोटा-सा अस्पताल था । पुजारी जी ने अस्पताल के भवन में अपने साथ प्रवेश करने का संकेत किया, तो रानी ने पुजारी जी की ओर एक बार प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। पुजारी जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चुपचाप चलते रहे । रिसेप्शन टेबल के निकट पहुँचकर पुजारी जी ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा -

"डॉक्टर मैडम हैं ?"

"डॉक्टर वंदना है ! लेकिन, इस समय उनसे मिलने के लिए इमरजेंसी फीस लगेगी !"

पुजारी जी ने रिसेप्शनिस्ट के निर्देशानुसार फीस जमा कर दी और आगे बढ़ गये । कुछ कदम चलने के पश्चात् प्रतीक्षा-कक्ष में बिछी कुर्सियों की ओर संकेत करके रानी से बोले -

"बिटिया, तू दो मिनट यहाँ बैठ, मैं अभी आता हूँ !" यह कहकर पुजारी जी अस्पताल भवन की एक संकरी गैलरी में प्रवेश कर गये ।

आदेश का पालन करते हुए रानी चुपचाप एक कुर्सी पर बैठ गयी और दूर जाते हुए पुजारी जी को तब तक देखती रही, जब तक वे उसकी दृष्टि से ओझल नहीं हो गये ।

डॉक्टर वंदना के परामर्श-कक्ष में पहुँचते ही पुजारी जी ने सर्वप्रथम शुल्क प्राप्ति-रसीद उनकी ओर बढ़ायी -

"मैडम जी, आपसे अभी मिलना आवश्यक था, इसलिए दोगुना शुल्क भुगतान किया है !"

"मरीज कहाँ है ?" डॉक्टर ने पुजारी जी से पूछा ।

डॉक्टर के प्रश्न के उत्तरस्वरूप पुजारी जी ने डॉक्टर भारती एवं डॉक्टर मधुलिका सिन्हा द्वारा बनाये गये रानी के पेपर डॉक्टर वंदना की ओर बढ़ा दिये और बोले -

"मैडम जी, मेरी कुँवारी बेटी दुर्भाग्य से एक दुर्घटना का शिकार होकर गर्भवती हो गयी है ! मेरी बेटी को इस कलंक से मुक्ति दिला दीजिए, मैं जीवन-भर आपका आभारी रहूँगा !"

कहते-कहते पुजारी जी डॉक्टर के कदमों में गिर पड़े। उस समय पुजारी जी की आँखों से आँसू बह रहे थे और क्षणभर में ही डॉक्टर के पैर पर कई बूंद आँसू टपक पड़े। डॉक्टर वन्दना ने पुजारी जी को बाँह पकड़कर उठाया और कुर्सी पर बैठने का संकेत करके उनके द्वारा दिए गये पेपर्स को पढ़ने लगी । कुछ क्षणों तक पेपर्स पढ़ने के पश्चात् सहानुभूति पूर्वक वंदना ने कहा -

"आपको डॉक्टर मधुलिका ने बताया नहीं ? बच्ची का अबॉर्शन कराने का अर्थ होगा, उसकी हत्या का प्रयास ! जोकि किसी भी सामान्य डॉक्टर को नहीं करना चाहिए !"

"बताया था, मैडम जी ! लेकिन आप डॉक्टर लोग शायद यह नहीं समझ पाती है कि किसी साधारण परिवार की लड़की जब कुँवारी माँ बनती है, क्या-क्या समस्याएँ होती हैं !"

"अंकल, हम डॉक्टर लोग किसी की जान बचाने के लिए हैं ! सब-कुछ जानते-बूझते किसी को मौत के कुएँ में गिराने के लिए नहीं !"

पुजारी जी चुप बैठे डॉक्टर वंदना का तर्क सुनते रहे। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे । उनकी पीड़ा को अनुभव करके डॉ वंदना ने पुनः समझाते हुए कहा -

"आपके लिए आपकी बेटी अधिक महत्व रखती है या आपका समाज ? जैसाकि आपने अभी-अभी बताया था कि आपकी बेटी किसी दुर्घटना का शिकार होकर गर्भवती हुई है ! ऐसी स्थिति में आपको सबसे पहले अपनी बेटी के लिए सोचना चाहिए, न कि समाज के बारे में ! आप अपनी बेटी की दशा को किसी भी डॉक्टर से बेहतर समझ सकते हैं कि पहले से ही वह बेचारी किस मन:स्थिति से गुजर रही है ! आपको चाहिए कि बेटी को मानसिक रूप से न टूटने दें और उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखें ! बच्ची के अंग अभी इतने परिपक्व नहीं है कि ... !"

"ठीक है, मैडम जी ! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !"

धन्यवाद देकर पुजारी जी डॉ वंदना के परामर्श-कक्ष से बाहर आ गये । प्रतीक्षा-कक्ष में रानी बेसब्री से पुजारी जी की प्रतीक्षा कर रही थी । उन्हें देखते ही वह उठ खड़ी हुई -

"काका अब घर चलें !"

"हाँ, बेटी ! अब घर चलते हैं !" तू थक गयी होगी ! मैं भी बहुत थक गया हूँ आज !"

घर लौट कर रानी ने पुजारी जी से ऐसे प्रश्नों की झड़ी लगा दी, जिनके उत्तर पुजारी जी के पास नहीं थे । या उन प्रश्नों का उत्तर वे उस अबोध बच्ची को दे नहीं सकते थे । लेकिन, पुजारी जी ने रानी को समझाया -

"बिटिया, इस दुनिया में सबसे गौरवमय स्थान माँ का होता है ! चूँकि माँ एक जीव को अपने रक्त से सींचती है, इसलिए ईश्वर के पश्चात दूसरे स्थान पर माँ का स्थान होता है ! और इसलिए माँ बनना एक स्त्री के लिए बड़ा सौभाग्य होता है !"

"काका, आप सही कह रहे हैं ! माँ बहुत अच्छी होती है !"

"हमारी रानी री बिटिया भी अब एक अच्छी माँ बनेगी !"

"कैसे ?"

" बिटिया, तू माँ बनने वाली है ! तुझे तेरे पेट में जो कुछ अजीब-सी अनुभूति होती है, वह तेरे गर्भस्थ शिशु की सामान्य हलचल है ! जोकि बच्चे के स्वस्थ होने की सूचना है !

"पर काका अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई है ! मैं मम्मी कैसे बन सकती हूँ ? कोई बच्चा होता है, तो उनके मम्मी-पापा होते हैं ! मेरे इस बच्चे की मम्मीमैं हूँगी, पापा कौन होगा ?"

पुजारी जी बड़े सहज ढंग से रानी को इतना समझाने में सफल हो गये कि वह गर्भवती है और वह अपनी अल्पायु में माँ बनने के कष्टप्रद गुरु-भार को वहन करने के लिए तैयार रहे । किन्तु रानी के इस प्रश्न को सुनकर क्षण-भर के लिए पुजारी जी पाषाण बन गये । अगले ही क्षण उन्होंने बहुत ही संभलकर सरल-सहज शैली में उत्तर दिया -

"भगवान !"

"भगवान ? भगवान भी किसी के पापा होते हैं भला ! वे तो मूर्तियों में होते हैं ! भगवान उसको चॉकलेट भी लाकर खिला देंगे ?" रानी खिलखिला कर हँस पड़ी ।

चूँकि रानी के मनःमस्तिक से अब कैंसर का भय दूर हो चुका था, इसलिए उसकी समझ में सब-कुछ ठीक चल रहा था । रानी को सामान्य अवस्था में देखकर पुजारी जी के मन को कुछ शांति मिली । उसको सामान्य रखने के उद्देश्य से पुजारी जी ने आश्वासन देने की शैली में कहा-

"चॉकलेट लाने के लिए भगवान ने पहले ही तुझे तेरे काका के पास भेज दिया है न ! चल, अब खाना खा ले ! भूख लगी होगी !"

"नहीं काका, मुझे भूख नहीं लगी है !"

"तुझे न लगी हो, तेरे पेट में पलने वाला नन्हा-सा जीव भूख से तड़प रहा होगा ! जा, उसके लिए खा ले !"

यह कहकर पुजारी जी उठकर मन्दिर में चले गये और भगवान की मूर्ति के चरणों से लिपटकर खूब रोये । भगवान की मूर्ति के चरणों में बैठ कर रोते-रोते जब रात का अंधेरा हो आया, तब पुजारी को यह देखने की सुध आयी कि रानी ने खाना खाया या नहीं ? वे उदास मन से उठकर कोठरी की ओर चल दिये। कोठरी में जाकर पुजारी जी ने देखा रानी बिस्तर पर लेटी नींद में खोयी हुई थी। बिस्तर के पास ही झूठे बर्तन रखे हुए थे, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता था कि वह खाना खाकर सोयी है। नींद में बेसुध रानी को देखकर पुजारी के को कुछ संतोष हुआ । वे उसको चादर ओढ़ाने लगे, तो अनायास ही उनकी आँखों से दो बूंद आँसू के साथ मुख से फूट पड़ा-

"बहुत भोली है बिटिया तू ! सड़ी हुई मलिन सोच वाले इस समाज में निर्मल-पवित्र हृदय वाली एकदम निश्छल तू यहाँ क्यों आयी ?"

रानी को चादर ओढ़ाकर पुजारी जी पुन: मन्दिर में लौट गये और अगले दिन के लिए योजना बनाने लगे। सारी रात उन्होंने जागकर बितायी। प्रात: सूर्योदय होते ही पुजारी जी ने अब तक सभी डॉक्टर्स द्वारा रानी का परीक्षण करके बनाए गये पेपर लिये और अति आवश्यक कार्य हेतु घर से बाहर जाने की सूचना देते हुए एक स्वहस्तलिखित पत्र रानी के सिरहाने रख कर बाहर निकल गये ।

उस दिन घर से निकलकर पुजारी जी ने दिल्ली की एक-से-प्रसिद्ध-एक कई स्त्री-रोग-विशेषज्ञों से भेंट की और रानी के पेपर दिखाकर उसके विषय में परामर्श किया । किन्तु, उन सभी ने इतनी छोटी आयु में गर्भपात कराने के संबंध में अपना नकारात्मक मत ही दिया। उन्होंने बताया कि सरकार के स्वास्थ्य विभाग से पूर्व अनुमति लेकर गर्भपात संभव है । अनुमति मिल जाए, फिर भी ऐसा करना दस-ग्यारह वर्षीय बालिका के स्वास्थ्य एवं प्राणों के साथ खिलवाड़ होगा ! उनमें से किसी ने भी पूर्ण आशा और विश्वास से यह नहीं स्वीकारा कि किसी भी दृष्टिकोण से गर्भपात कराना रानी के हित में रहेगा !

क्रमश..