Purn-Viram se pahle - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 6

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

6.

घर आकर समीर शिखा से बोले..

“बहुत सरल और सहज व्यक्ति है प्रखर| बहुत दिल से जुड़ी बातें करता है| इतने बड़े पद पर रहने के बाद भी कोई अहम नहीं| मुझे तो प्रखर बहुत स्ट्रेट और मिलनसार व्यक्ति लगा| मुझे ऐसे ही लोग अच्छे लगते है| प्रखर का नेचर बिल्कुल हमारे जैसा ही है| शायद इसलिए मिलकर बहुत अच्छा लगा| अच्छा शिखा अब मेरी दवाई निकाल दो .....मैं भी दवाई लेकर सोऊँगा|”

शिखा ने समीर को दवाइयाँ दी और वो दवाई लेकर लेटते ही सो गया| पर शिखा की आँखों में नींद नहीं थी| उसने मोबाइल उठाया तो उसमे प्रखर का मैसेज था..

आज अपने परिवार की बातें बताते-बताते मैंने तुमको कहीं चोट पहुंचाई हो तो मुझे माफ़ कर देना शिखा| मुझे नहीं पता था तुम दोनों इतने बड़े दु:ख से गुज़रे हो| पर आज मैं बहुत खुश हूँ इतने सालों बात ईश्वर ने हमको मिलवाया|..

शिखा तुम खाने की टेबल पर मेरे साथ थी.....मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा| आज एक अरसे बाद तुम दोनों के साथ खाना खाकर बहुत अच्छा लगा| वरना पिछले दो साल से अकेले खाना खा-खाकर बहुत खालीपन लगता था| समीर की बात पर शिखा तुमसे कहना चाहूँगा..मेरे लिए तुम वो जरूरी सप्लीमेंट हो जिसका जिक्र समीर ने किया था|

शिखा को प्रखर की लिखी हुई बातों पर बहुत प्यार उमड़ा| साथ ही बहुत दर्द भी महसूस हुआ| प्रखर ने आगे एक और मैसेज लिख कर भेजा था...

अब अरसे बाद मिली हो तो.. मेरे अकेलेपन की साथी हमेशा बनी रहना| अब कहीं वापस खो न जाना शिखा| एक बार तुमको खो चुका हूँ अब वापस खोने की हिम्मत नहीं| तुम्हारी गरिमा मेरी गरिमा है हमेशा ध्यान रखूँगा|

तब शिखा ने लिखा..

मैं भी तुम्हें कभी भूली नहीं प्रखर| मेरा पहला प्यार थे तुम| तुमने मुझे एहसास करवाया प्यार क्या होता है| हमारे प्यार में शरीर कभी आया ही नहीं| सो रूह से रूह का रिश्ता कब खत्म हुआ ही नहीं| तुम्हारी कई कविताएं आज भी मेरे पास महफ़ूस हैं| जब भी तुम्हारी बहुत याद आती थी तुम्हारी कविताओं को निकाल कर पढ़ लेती थी......और घंटों तुम्हारे खयालों में खोई रहती| तुमको याद है अपनी कविता ‘स्पर्श तुम्हारा’..

क्यों नहीं याद होगी शिखा| मेरा एक काम करोगी कल जब समीर बाजार या कहीं जाए तो प्लीज फोन पर मुझे वो कविता सुनाना| इतने समय बाद तुमसे अपनी ज़िद कर सकता हूँ न..|

जरूर सुनाऊँगी प्रखर| तुम आज भी मुझ से ज़िद कर सकते हो| तरस गई हूँ मैं भी.....कोई मुझ से ज़िद करे| एक बात पूँछु प्रखर ऐसा करके हम कुछ गलत तो नहीं करेंगे ....मैं समीर को धोखा तो नहीं दूँगी|

बिल्कुल धोखा नहीं दे रही तुम शिखा| मैं तुमसे कभी भी ऐसा कुछ नहीं चाहूँगा जो समीर को कष्ट दे| अब समीर भी मेरा मित्र है| तुम बिल्कुल निश्चिंत रहो| मेरी ख्वाहिश तुमको अपने अन्त तक.....बस साथ महसूस करने की है| मैने तुमको बेहद चाहा था| साथ रहना लिखा नहीं था तभी नहीं शादी कर पाए| अब ईश्वर ने अगर मिलवाया है तो कुछ सोच कर ही मिलवाया होगा|

बहुत प्यार करता हूँ तुमको| प्यार का मायना बहुत कुछ होता है|.. मैं अब समीर से भी बहुत प्यार करूंगा क्यों कि वो तुमसे जुड़ा है| उसके लिए भी मेरी जान हाजिर है| मैंने कभी ज़िंदगी में नहीं सोचा था इतनी जल्दी कोई मेरा इतना अभिन्न मित्र बन जाएगा| समीर बहुत साफ़ दिल का लगा मुझे .. मुझे ऐसे ही लोग पसंद है|.. बिल्कुल तुम्हारी तरह|

तुम भी तो बहुत अच्छे हो प्रखर| हम हमेशा मिलते रहेंगे| समीर भी तुम्हारी तारीफ़ कर रहे थे| वो भी तुम्हारे बहुत निकट आ चुके हैं| अब सोने जाती हूँ| गुड नाइट प्रखर|

दूसरी तरफ से प्रखर ने भी गुड नाइट लिखकर चैट करना बंद कर दिया|

जब दोनों स्टूडेंट लाइफ में मिले थे तब मोबाईल ही नहीं हुआ करते थे| और आज उम्र के उस पड़ाव पर मिले हैं....जहां मोबाईल का गलत उपयोग बगैर चाहे नहीं हो सकता था| रात बहुत मुश्किल से शिखा को नींद आई| बार-बार प्रखर की बातें शिखा को उसके करीब ले जाती|

दोनों ने सुबह का बेसब्री से इंतजार किया क्यों कि आज वो तीनों वापस मिलने वाले थे|

रात दोनों ने एक और वादा किया था कि रोज जब सवेरे-सवेरे दोनों अपने-अपने छोटे से बगीचे को पानी लगाएंगे एक दूसरे को सामने से गुड मॉर्निंग कहगे| प्रखर अब अपने सवेरे की शुरुवात शिखा को देखकर करना चाहता था|

जब समीर घर का सामान खरीदने गया तब शिखा ने जल्दी से प्रखर को फोन लगाया..प्रखर के आग्रह पर उसको वो कविता सुनानी थी|.. जैसे ही प्रखर ने फोन उठाया..शिखा ने कहा..

“तुम चाहते थे तुम्हारी लिखी हुई कविता सुनाऊँ पहले कविता सुन लो| मुझे फिर बहुत सारे काम करने हैं|..प्रखर किसी दिन मैं तुम्हारी पसंद का भी खाना बनाना चाहती हूँ| जो तुम मुझे अक्सर कॉलेज में बताया करते थे..कि तुमको पूरी-आलू की सब्जी,दही-बड़े,और छोले बहुत पसंद हैं| यही न..या फिर तुम्हारी पसंद बदल गई हो तो वो भी बना दूँगी| मुझे तुम्हें खाना बनाकर खिलाने का सुख भी महसूस करना है| समीर को भी यही सब बेहद पसंद है| जब भी उसके लिए बनाती तुमको याद कर लेती थी|”

शिखा की बातों को सुनकर प्रखर बोल पड़ा..

“कितनी पागल हो तुम भी मेरी तरह शिखा| मैंने भी तुमको अपनी ज़िंदगी से कभी अलग नहीं किया| ऐसा नहीं है मैंने प्रीति को प्यार नहीं किया| बस तुमको नहीं छोड़ पाया| मेरी जान थी तुम.. और भला कोई अपनी जान को छोड़ कर जिंदा रह सकता है| अब वो कविता सुनाओ न प्लीज..”

सुनाती हूँ प्रखर.....

‘आँखों को बन्द करते ही/ये जो तुम मुझको छूती हो/जाने कितने मुझ से जुड़े तुम्हारे तारों में/झंकार–सी भर देती हो/एक नमी बनकर/ठहर जाती हो/नयनों की कोरों में कहीं/एकाकी होता हूँ/जब भी कभी,/उतर आती हो/पलकों की कोरों से/मेरा साथ निभाने को तभी/पलकों की कोरों में सिमटे तेरी कमी के एहसास/मेरे बहुत करीबी है/अक्सर छूकर मुझे गीले से/ कुछ एहसास दे जाते है/ मानो --मरूस्थल में मेरी मरीचिका बनकर ही/तेरे हमेशा मेरे साथ होने की/ एक आस जगा जाते है.....’

जैसे ही कविता पूरी हुई दोनों के बीच एक गहरी चुप्पी ठहर गई| कुछ देर को शब्द गुम हो गए| ऐसा महसूस हो रहा था.. दोनों वही बीस-इक्कीस की उम्र में पहुँच गए हो| अब कुछ भी बोलने की कोई आवश्यकता थी ही नहीं| इस कविता के साथ-साथ शिखा के जहन से प्रखर की लिखी हुई वो पंक्तियाँ भी बार-बार गुजरने लगी....जिसमें खामोशियों के असल मायने क्या होते है| आज फिर बहुत अच्छे से महसूस हुए..

“पसरी हुई खामोशी/क्या कुछ नहीं कह गई/तब कहीं चुपके से तुझे/छू कर आई हवा/मुझे यूं सहरा गई/कुछ बतला गई/खामोशियां भी जरूरी हैं/बहुत कुछ महसूस करने को/ कुछ थोड़ा सा जीने को/जीने को महसूस करने को....”

दस पंद्रह मिनट तक दोनों बिल्कुल खामोश ही बैठे रहे| न कोई आवाज बस एक दूसरे की बातों और अहसासों में गुम| तब प्रखर ने कहा..

“कितने खूबसूरत लहजे में कविता सुनाती हो तुम| आज पहली बार तुमने मेरी कविता सुनाई| मैं ही हमेशा तुमको सुनाता आया था| अब तुमको मुझे वचन देना होगा कविता मेरी हो या तुम्हारी.....तुम ही मुझे सुनाओगी| मैं तुमको भेज दिया करूंगा|.. वादा करो शिखा|”..

“ठीक है वचन देती हूँ| अब जाऊँगी काफ़ी काम करने है मुझे| समीर भी आते होंगे| उनके साथ भी वापस चाय पीनी है| तुम भी अपने काम करो प्रखर|”

बाई बोलकर शिखा ने फोन रख दिया|

प्रखर से मिलने या बात करने के बाद सारा दिन काम करते-करते शिखा के दिलों-दिमाग में प्रखर की बातें ही घूमती रहती थी| समीर और शिखा भी जब साथ में बैठे होते तो समीर भी अक्सर बात करते-करते प्रखर की कोई न कोई बात को दोहरा लेता|

समीर के मुंह से प्रखर का नाम व बातें सुनना शिखा को बहुत अच्छा लगने लगा था| प्रखर का कोई भी टॉपिक छिड़ते ही शिखा भी समीर को कॉलेज से जुड़ा कोई न कोई वाकया सुना देती| समीर शिखा कि बातें सुनकर कहता भी था..

“तुमको अपने कॉलेज का काफ़ी याद है शिखा| सच तो यही है कि हममें से कोई भी कॉलेज लाइफ को भूलना ही नहीं चाहता| शायद वहाँ की ज़िंदगी हर इंसान को जिंदादिली और जीवंतता महसूस करवाती है|”

“तो फिर आप भी अपने कॉलेज की बातें शेयर किया करो न| मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा| वैसे भी हमारे पास बात करने के टॉपिक नहीं होते आप शेयर करेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा|.. समीर मुझे तो बहुत आश्चर्य होता है जब आप प्रखर से इतनी बातें करते हो| सच कहूँ तो जलन भी होती है|”

आज एक अरसे बाद शिखा ने शादी के एकदम बाद की स्मृतियों को मन ही मन दोहराया.. कैसे समीर उस समय बहुत कम बोला करते थे और जब शिखा उनसे बहुत सारी बातें करने की कोशिश करती थी तो वो चिढ़ कर बोलते थे..

“क्या बचपना है शिखा| मुझे बहुत सारी बातें करने की आदत नहीं| प्लीज तुम खुद को बिजी रखो| मुझ से उम्मीद मत करना.. मैं बहुत सारी बातें कर पाऊँगा”..

शिखा ने जैसे ही पुरानी स्मृतियाँ समीर के सामने दोहराई समीर ने कहा..

“क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ती हो शिखा| तब जीवन की उलझनों में व्यस्त था| अब फ्री हूँ....तो कर लेता हूँ| वैसे भी तुमको पता ही है मुझे बहुत सारी बातें करना नहीं आता|”

शिखा अब कुछ नहीं बोलना चाहती थी क्यों कहने को उसके पास भी बहुत कुछ था| समीर की कुछ भी साझा न करने की आदत ही बस उसे बहुत दुखी करती थी| घर का बड़ा बेटा होने के कारण शायद उसने कुछ ज़्यादा ही गांभीर्य ओढ़ लिया था| शिखा को समीर से बाकी कोई शिकायत नहीं थी|

नौकरी के साथ वो घर भी संभालती थी| आने-जाने वाले रिश्तेदारों को भी संभालना होता था| साथ ही जब सार्थक को गोद लिया तो उसे भी शिखा ही देखती थी| पर गुजरी बातें हमेशा मन को खालीपन ही देती हैं| अगर समीर उसके अकेलेपन को समझ जाता तो वो आत्मीय को मन ही मन क्यों आकार लेने देती| क्यों अदृश्य आत्मीय के साथ अपनी अनकही साझा करती|

प्रखर को आत्मीय के रूप में हमेशा साथ रखना शिखा की मजबूरी थी| जिसके सहारे वैवाहिक जीवन के इतने साल बहुत आराम से कट गए| अगर इसको कोई मर्यादाओं का उल्लंघन कहना चाहे तो आराम से कह सकता है| पर शिखा की दृष्टि में यह सिर्फ़ उसके लिए जीने की कला थी| जिसके सहारे वो सारे रिश्तों में संतुलन बना कर चल पाई| अपनी परेशानियों अपनी बातों को कहने-सुनने के लिए हर इंसान को किसी न किसी की जरूरत होती ही है| शिखा का लेखन भी शायद अनकहे की अभिव्यक्ति था.....क्यों कि उसको लगता था.....‘कुछ चाहतें कुछ ख्वाब/वक़्त मांगा करते हैं/वक़्त गुज़रने पर/यह सब कमी बनकर दौड़ा करते हैं.....’

अब तीनों एक दूसरे से लगभग रोज ही मिलने लगे थे| समीर और प्रखर तो पार्क में रोज ही वॉक के लिए जाते थे| लौटते में कभी मन हो जाता तो किसी के भी घर पर बैठ लेते|

एक रोज शाम को जब सभी पार्क में इककठे हुए तो समीर आग्रह करके प्रखर को चाय पर घर लेकर आ गए| शिखा पार्क में बैठने नहीं गई थी क्यों की उसको घर में कई काम थे| डोर बेल बजने पर शिखा ने जैसे ही घर का दरवाजा खोला तो समीर के साथ प्रखर नज़र आया| शिखा की मुस्कुराहट से बाँछे खिल गई|

अब तो शिखा के मन में जब भी कुछ कड़वाहट जन्म लेती वो प्रखर की बातें दोहरा-दोहराकर मन को खुश कर लेती| कोई उससे आज भी बेपनाह मोहब्बत करता है....यह सोचना ही शिखा को जिंदा कर देता और वो दोगनी खुशी व ऊर्जा के साथ घर के सभी काम करती| शिखा का यह सच प्रखर को बहुत अच्छे से पता था क्यों कि शिखा की आँखों को पढ़ना प्रखर का शुरू से ही जूनून था|

शिखा ने प्रखर और समीर को अंदर आने के लिए हँसते हुए बोला..

“अरे! वाह तुम भी समीर के साथ आ गए बहुत अच्छा किया| वैसे भी मैं चाय का पानी चढ़ाने जा रही थी| अब हम तीनों बैठकर गप्पे लगाते हुए चाय पीयेंगे|”

प्रखर और समीर दोनों ही वॉशरूम में जाकर बारी-बारी फ्रेश हुए| फिर आकर सोफ़े पर बैठ गए| लगभग दो घंटे से पार्क में बैठे हुए गप्पे लगा रहे थे| पार्क में कॉमन टोपिक्स पर गप्पे होती थी पर प्रखर या समीर जब अकेले बैठते तो सिर्फ अपने परिवारों की बातें करते|

समीर पार्क से लौटने के बाद प्रीति से जुड़ी अधूरी बात सुनना चाहता था| प्रखर ने जब कहा कि आज तक उसने प्रीति के साथ गुज़रे विषम समय को किसी से साझा नहीं किया....तब से समीर को न जाने क्यों लग रहा था प्रखर को हल्का कर दे| सो उसने प्रखर से कहा..

“प्रखर! आज अगर तुम्हारा मन ठीक हो तो उस बात को पूरा करो जो तुम प्रीति के बारे में बता रहे थे| तुम्हारा कानपुर से लखनऊ का वो ट्रिप जिसमे प्रीति तुम्हारे साथ थी| फिर क्या हुआ|”

उस रोज प्रखर ने समीर की बात का मान रखते हुए कहा था कि एक अरसे बाद वो अपना अतीत खोल रहा है| अगर समीर या शिखा को कहीं पर भी लगे ठहरना है...तो उसे रोक देना| प्रीति ने बहुत कष्ट देखे हैं| उसके हर कष्ट की पीड़ाएं उसने भी खुद महसूस की है| अगर कहीं वो बहुत भावुक हो जाए तो माफ कर देना|

प्रखर के बात शुरू करने से पहले समीर ने उससे कहा..

“कैसी बातें करते हो तुम प्रखर| हम चाहते हैं तुम भी अपना दर्द साझा करके हल्के हो जाओ|...और फिर अपनों के आगे भावुक होना गलत भी नहीं| हमको भी अपने मित्र के परिवार के बारे में जानकर आत्मीयता का अनुभव होगा| पर हाँ एक बात है..अगर तुमको बताने में कोई कष्ट महसूस हो तो हम नहीं सुनेगे|”

समीर ने कहा....

“नहीं ऐसा कुछ भी नहीं समीर| वैसे भी आज प्रीति का बहुत ख्याल आ रहा था| आज हमारी शादी की वर्षगांठ है न| आज सवेरे से ही प्रीति की बातें मेरे आस-पास घूम रही थी| विवाह के सालों-साल साथ गुज़ारने के बाद पति-पत्नी एक दूसरे की आदतों में ढल जाते है| एक दूसरे की बातें बोलने से पहले ही पता चलने लगती हैं| ऐसे में ईश्वर का उसको इतना बड़ा कष्ट देना....बहुत चोटिल करता था| बीमारी भी ऐसी थी.....जिसने पूरे परिवार के मुस्कुराने पर मानो रोक लगा दी हो| समीर मेरे जीवन में इससे बड़ी परीक्षा की घड़ी कभी नहीं आई|”

प्रखर की कही हुई हर पंक्ति उसकी व्यथा से सराबोर थी..उसकी हर बात उसके अंतर्मन को छूती हुई बाहर आ रही थी| प्रखर का बात-बात पर भावुक होना शिखा को भीतर-भीतर रुला रहा था|

शिखा को हमेशा ही लगता था कुछ लोग रूह से बंधे होते हैं| उनकी बातें यादें शरीर संग भस्म हो जाती हैं| पर शायद ऐसा नहीं होता| भावों का अनंत असीम जोड़ फिर कहीं न कहीं किसी वक़्त में रूहों को जोड़ता है| शायद यही वजह है हर मनुष्य अपने नए जन्म के साथ कुछ लोगों से बहुत करीब तो कुछ से कम करीब भावनाओं के साथ जुड़ता है|

प्रखर का एक-एक शब्द शिखा को अपना ही लगता था और प्रखर को शिखा अपना ही हिस्सा....| तभी जब वो शिखा की फोन पर आवाज़ सुनता तो कुछ सेकंड के बाद उसकी तरफ से आवाज आती..और बोलता

“तुम्हारी आवाज को महसूस करना कितना सुखद और जीए-सा है शिखा| मेरा बस चले तो किसी रोज सारा दिन तुमको ही सुनूँ और तुम्हारी आवाज में खोया रहूँ..तुम्हारी अनकही भी मुझ तक तुम्हारे मौन के साथ पहुंचे| वैसे भी तुम हमेशा साथ ही रहती हो|”

शिखा के विचारों की श्रंखला प्रखर की बातों से टूटी| वो प्रीति के बारे में बताना शुरू कर चुका था| शिखा को मन ही मन अफसोस भी हुआ..कि उसको प्रखर की बातों के आस-पास ही होना चाहिए था..पर मन का क्या|

क्रमश..