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जीवन - साथी

"उनकी सूनी-सूनी आंखें बार बार दरवाजे पर जाकर लौट आती।" मन मैं अजीब सी बैचैनी महसूस कर रहे थे। लेकिन उन्हें यह समझ नही आ रहा था, कि ऐसा क्यों हो रहा है।

बहू जाते - जाते नाश्ता बनाकर रख गई थी। लेकिन उन्होंने उसे देखा तक नही।

वह लगभग 86 वर्ष के बुजुर्ग थे। पूरा चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ था। बाल हिम की तरह सफ़ेद हो गए थे। यहां तक कि भौंहों के बाल भी सिर के बालों से अपना तालमेल बना रहे थे। हाथ-पैर भी कांपने लगे थे। मुंह ‌मे‌ में दांत न होने के कारण होंठ थोड़े अन्दर हो गए थे। परन्तु अभी भी अपने स्वयं के काम वो खुद ही किया करते थे। उनकी पत्नी अब थोड़ा बीमार रहने लगी थी।

उनकी गृहस्थी में कुल मिलाकर तीन बेटे और एक बेटी है। सभी विवाहित व अपने जीवन मे खुश हैं। गुलशन जी ( यही नाम है उनका) का अधिकतर समय अपनी पत्नी के साथ बीतता है। और दोनों एक साथ बहुत खुश रहते हैं। 'इस अवस्था में भी दोनों के बीच का प्यार देखते ही बनता था।'

'आज सुबह अचानक उनकी पत्नी रीमा का सीढ़ियों से पैर फिसल गया, और वो सीधे नीचे आ गिरी।'
और उनके सिर में चोट लगी, जिसके कारण वे बेहोश हो गई। बड़ी बहू रोशनी आवाज सुनते ही दौड़ी आई। और अपने पति को आवाज दी, " हिमांशु, देखो ना मम्मी को क्या हुआ।"

हिमांशु, रोशनी को अपनी मां को देखने का कहकर खुद गाड़ी निकालता है। परन्तु जब तक वो अस्पताल पहुंचते, तब तक उसकी मां के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।

मां के जाने के दुःख के साथ-साथ हिमांशु को अपने पिता की चिंता भी सता रही थी। उन्होंने भी साथ आने के लिए कहा था। परन्तु उनकी उम्र के कारण वह उन्हें साथ नहीं लाया था, कि वह बेकार ही परेशान होंगे। "उसे अहसास था अपने माता-पिता के असीम प्रेम का।" परन्तु होनी को कौन टाल सकता है।

"जैसे तैसे वह रोशनी और अपनी मां का पार्थिव शरीर लेकर घर पहुंचा।" उसकी हिम्मत नहीं हुई कि अपने पिता को यह ख़बर दे। हिमांशु को देखते ही उसके बूढ़े पिता उससे कांपते हुए स्वर में बोले, "हिमांशु, बेटे तेरी मां दिखाई नहीं दे रही, वह ठीक तो है। क्या उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया है? मुझे उसके पास ले चल। नहीं तो बाद में कहेगी, ' आपने तो मुझे सिर्फ बच्चों के सहारे ही छोड़ दिया। एक बार भी देखने नहीं आए।' चल बेटा चलें।"

हिमांशु की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था, कि किस प्रकार अपने पिता को इस अनहोनी के बारे में बताए।

इतनी देर में सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हुई उनकी पत्नी को लाया गया। पीछे-पीछे उनकी बेटी भी रोती हुई आई। और अपने पिता से लिपट कर रोने लगी।

गुलशन जी, आगे बढ़े.... और अपनी पत्नी की तरफ़ देखा। और अपने कमरे में जाकर बंद हो गए।

सब रिश्तेदार आ चुके थे...... रीमा जी के अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हो गई थी। उन्हें नहलाया धुलाया गया। नई साड़ी पहनाई गई। "लेकिन गुलशन जी एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकले थे।"

' जब सभी तैयारियां पूरी हो गई' तो, उनकी बेटी बुलाने आई।' भरे गले से बोली, " चलिए पापा, सिंदूर दान का समय हो गया है।"

वो लड़खड़ाते कदमों से बाहर आए, और बोले, " मैं अपनी पत्नी के साथ कुछ समय अकेले बिताना चाहता हूं।"

यह बात सुनकर, उनकी मंझली बहू अपनी देवरानी को कोहनी मारकर बोली, " बुढ़े को अभी भी चैन नहीं है, जीते जी भी घुट-घुट कर बातें करते रहते थे। और अभी बुढ़िया के मरने के बाद भी साथ रहना है।'

उनकी बेटी यह सुनकर बोली, " भाभी, क्या आपको भाई के साथ समय बिताना पसंद नहीं है? क्या आप उम्र के साथ उन्हें भूल जाएंगी या उनके साथ समय नहीं बिताएंगी?"
"मौके की नजाकत देखकर बात किया करो।"
ये उनकी जेठानी ने कहा, जो रोते हुए उनकी बातें सुन रही थी।

फ़िर गुलशन जी को उनकी बेटी अपनी मां के पास छोड़ गई।
गुलशन जी ने .... पहले अपनी पत्नी की मांग भरी, फ़िर धीरे धीरे उनकी झुर्रियों से भरी कलाइयों में एक एक करके कांच की चूड़ियां पहनाने लगे।

और बोले रीमा, "तुम्हारी पसंद की चूड़ियां है,‌ और तुमने कब से रखी है पहनी ही नही। आज भी मुझे ही पहनानी पड़ेगी।" कहते हुए सारी चूड़ियां उन्होंने अपनी पत्नी को पहना दी।

परन्तु उनकी आंखों से अभी तक एक भी आंसू नहीं गिरा था।

जब बहुत देर हो गई तो उनकी बेटी देखने
आई। परन्तु अन्दर उसके पिता, उसकी मां का हाथ पकड़े एक और लुढ़के पड़े थे.......

कुसुम