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सुरक्षा

सुरक्षा

प्लेटफार्म नंबर एक के यात्रियों के लिये बनी बेंच पर वह बैठी है | उम्र कोई पच्चीस से अट्ठाईस के आस पास | आखें बड़ी और भाव प्रवण | नाक लम्बी, होठ पतले, रंग मटमैला किन्तु पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि अगर साबुन से रगड़-रगड़ कर नहला दिया जाये तो इस मटमैले रंग के नीचे से झक गुलाबी गोरा रंग निकल कर सबको विस्मित कर देगा | बेतरतीब ढंग से पहनी गई मैली साड़ी का लगभग आधा हिस्सा नीचे लटक रहा है | बाल कंधो पर बिखरें हैं, जिसे देख कर ये तो नहीं लगता की सौन्दर्य-बोध के कारण उसने जान –बूझ कर बालो को कंधो पे फैलाया होगा, किन्तु कंधे पर फैले बाल उसकी सुन्दरता को बढ़ा जरूर रहे हैं | दोनों हाथ की कलाइयाँ कांच की चूड़ियों से भरी हैं| चूड़ियों के माप और रंग में कोई समानता नहीं है | कोई बड़ी, कोई छोटी, कोई हरी, कोई लाल | ऐसा लगता है कि चूड़ी की दुकान पर जा कर चूड़ियाँ मांग लेती होगी, दुकानदार भी अधिक ध्यान न देते हुए एकाध चूड़ी दे देता होगा और लम्बे समय तक ये सिलसिला चलते रहने के कारण आज उसकी कलाई नई -पुरानी रंग-बिरंगी चूड़ियों से भरी है |

अब उसने अपने दोनों पैर ऊपर उठा लिये और बेंच पर ही पालथी मार कर बैठ गई | उसके पास एक थैला है, वह थैले को ऊपर उठा कर अपनी गोद में रख लेती है, बार बार उसमें कुछ देखती है, हाथ से उसे छूती है, कुछ बोलती भी है फिर बड़ी मोहक अदा से मुस्कुराकर शर्मा जाती है |

रेलवे प्लेटफार्म जीवन का क्षणिक ठहराव है | मंजिल पर पहुचने के मार्ग का एक पड़ाव मात्र | किन्तु सरपट भागती जिंदगी के बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो जन्म से मृत्यु पर्यंत यहीं ठहर कर रह जाते हैं | प्लेटफार्म पर बैठ कर भी किसी ट्रेन के आने का इंतजार उन्हें नहीं रहता | शायद उस महिला को भी कहीं नहीं जाना है | यही प्लेटफार्म ही उसका निवास है | यहाँ के शोर-शराबे से बिलकुल अनभिज्ञ-सी अपनी ही दुनिया में खोई है वह | उसके बैठने के बाद भी उस बड़ी-सी बेंच पर बहुत-सी जगह खाली है | उसकी एक निष्ठ नीरव मुस्कान से प्रभावित हो कर कुछ पुरुष मुसाफिर उसके पास बैठने के इरादे से वहां आते भी हैं | किन्तु महिला को ध्यान से देखते ही वे बैठने की इच्छा त्याग कर आगे बढ़ जाते हैं | उसे कोई परवाह भी नहीं है | लोग आएँ, जाएं, बैठें, कुछ भी फर्क नहीं पड़ता उसे | उसने ध्यान ही कब दिया कि लोग वहां बैठने आ रहे हैं या फिर बिना बैठे ही आगे बढ़ जा रहे हैं | वह स्वयं में संतुष्ट एकाग्र तनमयता से सुखानुभूति में डूबी है |

अब उसने अपने पैर फिर नीचे लटका लिए हैं | पैर लटकाते समय बड़े ध्यान से वह नीचे देखती है | जमीन पर लथड रही साड़ी को थोड़ा सा उठाती है फिर उसी हालत में छोड़ कर मुस्कुरा देती है | हृदय में उठ रही तरंगों की गति के भावनात्मक पक्ष को नापने का कोई यंत्र होता तो यह कहना आसान होता कि भीड़ भरी इस जगह पर बैठ कर भी वह किसी गहरे अलौकिक सुख में किस हद तक डूब चुकी है | बीच-बीच में मुस्कुराकर वह अपनी उस ख़ुशी को थोड़ा-बहुत व्यक्त कर रही है |

एक अधेड़-सा पुरुष उस बेंच की तरफ बढ़ता है | गहरा काला रंग, सामान्य-सा चेहरा, किन्तु आखों में चमक | पुरुष के पास भी एक मटमैला सा थैला है | बेंच के पास जा कर वह इधर-उधर देखता है, फिर थैला नीचे रख कर बेंच पर बैठ जाता है | इसे भी किसी ट्रेन का इंतजार नहीं है | लगता है यह भी इसी प्लेटफार्म का नियमित वाशिंदा है |

पुरुष ने अपना थैला उठाया, उसमें से कुछ निकाल कर महिला की तरफ बढ़ाया और इसी बीच वह महिला के थोड़ा नजदीक सरक आया | महिला अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को उठा कर गहरे आश्चर्य से उस पुरुष को देखती है फिर उस सामान को जो वह उसे देना चाह रहा है और अंत में दूसरी तरफ मुंह कर के पुनः अपने में ही व्यस्त हो जाती है | हाथ में ली हुई उस वस्तु को वहीं बेंच पर रख पुरुष ने महिला की नीचे लथड रही साड़ी को उठा कर बड़ी आत्मीयता से उसके शरीर पर डाल दिया | महिला ने फिर उस पुरुष की तरफ नज़र उठाई | पुरुष मुस्कुरा दिया , महिला शांत रही | अब वह पुरुष उस महिला के थोड़ा और नजदीक खिसक आया | जब महिला ने कोई प्रतिकार नहीं किया तब पुरुष ने महिला के एक हाथ को अपने हाथो में लेकर उसकी चूड़ियों की प्रशंसा करने लगा | अपनी चूड़ियों को देख कर महिला एक बार फिर मुस्कुरा दी | यद्यपि उसकी मुस्कान में उस पुरुष की उपास्थिति की ख़ुशी का भाव तनिक भी नहीं था, किन्तु पुरुष की हिम्मत बढ़ गई | अब वह उस महिला से कुछ कह रहा है जिसे अनसुना कर वह इधर-उधर देखने लगी | पुरुष थोड़ी देर शांत बैठा रहा फिर महिला का हाथ पकड़ कर बड़ी मीठी आवाज में बोला – “चलो” |

महिला ने उसे प्रश्न भरी नज़र से देखा जैसे पूछना चाह रही हो – “कहाँ “

पुरुष हाथ से इशारा करते हुए बोला – “वहाँ ...पीछे |”

महिला अपना सिर खुजलाने लगी | पुरुष का हाथ महिला के कंधे पर था जिसे हटा कर वह वहीँ खड़े ठेले के पास आ गई | पास खड़े मूंगफली वाले ने एक कागज में लपेट कर थोड़ी से मूंगफली उसकी तरफ बढाई | महिला निर्विकार भाव से मूंगफली देने वाले की तरफ देखने लगी |

“ले, पकड़ न “ मूंगफली वाले ने आग्रह किया | महिला बिना मूंगफली लिये ही वहां से थोड़ा हट कर खाली पड़ी ट्रेन की पटरियों को देखने लगी | फिर सिग्नल की तरफ नज़र दौड़ाई |

“गाडी आने का इंतजार कर रही है क्या?” मूंगफली वाले ने पूछा | अब तक वह भी उसके पास पहुँच गया था |

“इसका कोई आने वाला होगा” चने चुरमुरे वाले ने चुटकी ली |

मालगाड़ी से उतारे गये सामानों के बड़े-बड़े बक्से प्लेटफार्म पर रखे थे | रेलवे कर्मचारी उन बक्सों को हाथ गाडियों में लाद कर ले जाने लगे जिससे पूरे प्लेटफार्म पर धड़-धड़ की आवाज फ़ैल गई | महिला को इन हाथ गाडियों के शोर से थोड़ी राहत मिली | वह फिर से ठेले के पास आकर खड़ी हो गई | ठेला तेल, कंघी, पाउडर, ब्रश, पेस्ट आदि यात्रा में उपयोग में आने वाले सामानों से भरा था | प्लास्टिक के कुछ खिलौने भी थे | महिला एक गुड़िया उठा लेती है | ठेले वाला जो अब तक चुप बैठा सब के क्रिया-कलापों को देख रहा था,एकदम चिल्ला कर महिला को डाटा – “ रख,...जल्दी रख, उसे लेकर नहीं जाना|”

महिला बड़े आश्चर्य से उसे देखने लगी फिर कुछ प्रसन्न हो कर गुड़िया रख दी | वह पुरुष जो बेंच पर उसके पास बैठा था, आगे बढ़ कर उस ठेले वाले से बोला – “क्या बात करता है यार, पैसे ले लेना... मैं दे दूंगा पैसे” |

“रख दो... मैंने कहा रक्खो...मुझे बेचना नहीं है” ठेले वाले ने क्रोध भरी आवाज में कहा | पुरुष ने भी नाराज होते हुए गुड़िया रख दी |महिला अब भी ठेले के पास ही खड़ी है | उसके बगल में एक चाय वाला खड़ा है, उसने महिला से पूछा- ‘चाय पिएगी ?’महिला कुछ बुदबुदाई | अब वह पुरुष भी चाय वाले के पास आ गया है | चाय वाले ने बड़ी शरारत भरी मुस्कान के साथ धीरे से उस पुरुष से कहा –पगली है ...पट जाएगी | फिर दोनों हँसने लगे | आस –पास खड़े चने –चुरमुरे ,बड़ा –पाव, चाय काफी आदि बेचने वाले भी ठठाकर हँसने लगे | इस समय प्लेटफार्म पर कोई ट्रेन नहीं है, इसलिए सब फुर्सत का समय मजे से बिता रहे हैं |

महिला फिर से आकर उसी बेंच पर बैठ गई | अब वह अपने थैले में कुछ खोज रही है | पुरुष भी उसकी बगल में बैठ गया | आस-पास खड़े उसके इष्ट –मित्रों की टोली उसे प्रोत्साहित करते हुए खिलखिला रही है | पुरुष फिर से महिला के एकदम करीब आ गया और उसकी चूड़ियों को सहलाने लगा | महिला ने अपना हाथ खींच लिया | पुरुष थोड़ा हताश हुआ, लेकिन थोड़ी देर बाद ही वह फिर से महिला को खुश करने में जुट गया | अब उसने चाय वाले से दो कप चाय ली | एक कप चाय उसने महिला को पकड़ा दी और बड़ी अर्थपूर्ण नज़रों से पीने का आग्रह करने लगा | महिला ने गंभीरता से उसे देखा | ऐसा लगा मानो ऊपर से शांत प्रतीत हो रहे समुद्र में तूफान आने वाला हो | चाय का कप अब भी महिला के हाथ में है, पुरुष पुन: अश्लील इशारे से उसे चाय पीने के लिये कहता है | महिला पुरुष की ओर देखते हुए कप होठों तक लाई और एक झटके में चाय को पुरुष के मुंह पर उछालते हुए उसे एक करारा थप्पड़ जड़ दी | गरम चाय से पुरुष की आंखे जल गईं, वह छटपटाने लगा है | महिला का चेहरा क्रोध से लाल हो गया है | अब वह पुरुष का बाल पकड़ कर अपनी पूरी ताकत से खींचने लगी | इस अप्रत्याशित घटना से स्तब्ध आस –पास खड़ीं उसकी मित्र मंडली नजदीक पहुँच कर उस पुरुष को महिला की पकड़ से छुड़ाने का प्रयास करने लगी | महिला का क्रोध भयंकर रूप ले चुका है | वह चंडी बन चुकी है | पुरुष दर्द से छटपटा रहा है | लोगों ने बड़ी मुश्किल से उस महिला को अलग किया | थोड़ी देर तो वह क्रोध में कांपती हुई वहीं खड़ी रही फिर अपना थैला उठाई और ठेले के पास आकर नीचे बैठ गई | ठेले वाले से उसे कोई डर नहीं है | वह जगह उसे सुरक्षित लग रही है |

वह पुरुष कुछ देर तो औंधे मुंह जमीन पर पड़ा रहा फिर हिम्मत करके उठा ,अपने थैले को उठाया ,थैले में से निकल कर बिखर गई चीजों को समेटा तथा चने चुरमुरे वाले की सहायता से स्वयं को घसीटता हुआ बेंच पर आकर बैठ गया | नोचे गये अंगों से खून रिस रहा है | कुछ देर तक तो वह दर्द से कराहता रहा फिर अपनी गर्दन उठाकर महिला की तरफ देखने लगा | इस बार उसकी आंखे महिला पर स्थिर हो गईं, चेहरा विद्रूप हो उठा ,आखें फ़ैल कर चौड़ी होने लगीं, पता नहीं भय से या क्रोध से | वह हांफने लगा फिर अचानक नाग की तरह फुफकारते हुए चिल्ला-चिल्ला कर महिला को गालियां देने लगा | एक लड़का दौड़ कर पास की दुकान से ठंडा पानी ले आया तथा पानी में रुमाल गीला कर उसकी आँखों पर रखने लगा | चेहरे से होते हुए चाय गरदन ,सीने तथा पेट तक फ़ैल गई है | वह बुरी तरह जल गया है, किंतु जलने से भी अधिक पीड़ा उसे अपने अपमान से हो रही है| एक मामूली –सी पागल औरत उसका इस तरह अपमान करे ! आस-पास खड़े पुरुष आंखे तरेर कर महिला को इस अपराध के लिये सजा देना चाहते हैं, लेकिन उससे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं | पागल है,क्या पता फिर से टूट पड़े | सब उस पुरुष को ही शांत कराने में लगे हैं | महिला पर उसकी गालियों का कुछ भी असर नहीं हो रहा है | वह शांत भाव से पुरुष को छटपटाते हुए देख रही है | पुरुष बार–बार अपनी आँखों को हाथ से ढंक रहा है ,लगता है जलन तेज हो रही है | वह लड़का रुमाल गीला करके उसकी आँखों को पोछ रहा है ,साथ ही उसे चुप भी करा रहा है |

‘जाने भी दो यार, पगली है ,मुंह लगना ही नहीं चाहिए था’|

‘पुलिस से शिकायत करनी पड़ेगी | इस पगली को यहाँ से हटाएं ,नहीं तो हम सभी को खतरा है |...आज उसकी आँख में गर्म चाय उड़ेल दी, कल हमारे उपर कुछ फेक देगी | और तो और अब यात्रियों की भी खैर नहीं |’ चना चुरमुरा बेचने वाले ने चिंता व्यक्त की |

‘ इसका दिमाग कुछ अधिक ख़राब हो गया है ...ऐसे खतरनाक पागल को तो पागल खाने में होना चाहिए | लेकिन क्या कहें इस देश को ...खुलेआम घूम रही है | देश दुनिया के प्रति चिंतित (!) एक व्यक्ति ने अपनी पीड़ा को अभिव्यक्ति दी |

‘अरे मैं तो ऐसी एक पागल को जानता हूँ जो पागल खाने के अधिकारियों को चकमा देकर वहाँ से भाग निकली और अब खुलेआम शहर में घूमती है तथा पत्थर फेक-फेक कर रोज दो –चार के सिर फोड़ती है |’ भीड़ में से किसी ने कहा|

‘मुझे तो कुछ और ही लग रहा है | देखो न, कैसे चुपचाप बैठी है ,मैं तो कहता हूँ कि यह पागल है ही नहीं बल्कि किसी माफिया या आतंकवादी गिरोह की सदस्य है |’ आदमी की आँखों पर ठंडे पानी की पट्टी रखते हुए एक व्यक्ति ने धीमी आवाज में कहा

‘सच कहते हो अभी पिछ्ले साल की तो बात है, चौक में जो बम-विस्फोट हुआ था, जिसमें बहुत से लोग मारे गये थे, याद है न ?...बम –विस्फोट के पंद्रह दिन पहले वहां एक पागल घूमता हुआ दिखता था, बम–विस्फोट के दो दिन पहले से ही वह वहाँ से कहाँ गायब हो गया, पता नहीं चला | बाद में तो समाचार में भी आया था कि शायद वह आतंकवादियों के लिये जासूसी कर रहा था |’

‘जो भी हो,हमारे लिये यह हर तरह से खतरनाक है | हमें मिल कर कुछ करना होगा ...इसे यहाँ से हटाना ही होगा|’

‘हाँ, हाँ, सच में इसे प्लेटफार्म से हटाना ही पड़ेगा| हमारी सुरक्षा का सवाल है |’ सबका समवेत स्वर प्लेटफार्म पर गूंजा |

पुरुष अब भी जलन से छटपटा रहा है | ठंडे पानी की पट्टियां रखी जा रही हैं| थोड़ी देर पहले चंडी बनी महिला अब पूरी तरह शांत होकर ठेले के पास बैठी है | चेहरे पर न तो कटुता के भाव हैं न क्षोभ और न अंतर्द्वंद के ही | वहाँ एकत्र पुरुष इस अप्रत्याशित घटना से चिंतित हैं | शाम होने वाली है,अपनी सुरक्षा के लिये परेशान पुरुष मंडली को देखकर महिला थोड़ा मुस्कराती है,फिर उठ कर आवेशहीन आंतरिक संतुष्टि तथा दृढ़ता के साथ आगे बढ़ जाती है, जैसे प्लेटफार्म पर बड़ी देर से रुकी कोई ट्रेन चल पड़ी हो |

आशा पाण्डेय

कैंप, अमरावती