Ek bund ishq - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

एक बूँद इश्क - 21

एक बूँद इश्क

(21)

परेश रीमा को एकटक देख रहा है अचानक से उसके अन्दर आये बदलाव से परेश चूरचूर हो गया। उसके अन्दर का प्रेमरस छिटक कर दूर जा गिरा।

रीमा के फोन की लाइट चमक उठी, दिव्या का फोन है। यूँ तो वह रीमा का फोन उसके पीछे नही छूता..सो बजने दिया...घण्टी लगातार बज रही है.....परेश ने अपना फोन उठा कर देखा दिव्या की आठ मिसकॉल पड़ी हैं........"ओहहह..शायद वह चिन्तित है,,,,, गलती उसकी नही हमारी है, कल से रीमा और मैंने एक भी बार बात नही की"

परेश ने कॉल बैक किया और दिव्या का गुस्सा भी सहा...उसका गुस्सा जायज़ है। वह चाहती है उसे रीमा की पल-पल की खबर मिलती रहे...तो इसमें गलत भी क्या है?? आखिर वोह ही लापरवाह हो गया था। दिव्या का लगाव और स्नेह इस बात का प्रमाण है कि आज भी सच्चे दोस्तों की कमी नही। जब परेश ने उसे कल वाली घटना के बारे में बताया कि- ' कैसे वह बैजू को लेकर इर्ष्यालु हो गया था?' तो वह विफर पड़ी और उसे धमकी भी दे डाली- 'परेश अगर मेरी रीमा को कुछ हो गया न तो मैं तुम्हें जिन्दा नही छोड़ूँगी..जान से मार डालूँगी...गला दबा दूँगी तुम्हारा।'

उसको इतना धैर्यहीन होते देख कर परेश हँस पड़ा- 'ठीक है मैं मरने को तैयार हूँ..पर यह बता दो कि कौन सा तरीका सही रहेगा मारने के लिये?'

उसकी घिसियाट में गंभीरता है जो अथाह प्यार की सूचक है। परेश समझ रहा है, उसने दिव्या को शान्त किया और वायदा किया कि 'वह उसकी सखि को एकदम सही सलामत वापस लायेगा और उसे सौंप देगा...ठीक है? लेकिन फिर मेरा क्या होगा? क्या कोई है तुम्हारी नजर में?'

"सावधान परेश, अगर तुम सामने होते तो मैं तुम्हारा खून पी जाती... " वह चिल्लाई।

"दिव्या तुम देखने -भालने में तो भली लगती हो भई यह खून कब से पीने लगीं???" अब परेश उसे और परेशान करने में लगा है।

"ध्यान रखना चुडैलें हमेशा खूबसूरत भेश में ही आती हैं जैसे सूर्पणखा आई थी सुन्दरी बन लक्ष्मण को रिझाने।"

"तुम किसे रिझा रही हो बालिके? " परेश ने फिर नहले पे दहला मारा।

"तुम्हे तो मैं कभी न रिझाऊँ...सूरत देखी है आइने में..एकदम रुखे हो... सूखी हुई रोटी की तरह कड़क।"

"अब तुमने सही कहा...वास्तव में दिव्या मैं सूखी रोटी ही था...रीमा के इस अबोध रूप ने मुझे बदल दिया...अब मैं , मैं न रहा....दिव्या जैसा ही बन गया हूँ...उसी की तरह सोचने में जीवन का आनन्द है...और फिर यहाँ आकर तो सोच ने अपना आकार ही बदल लिया है।"

दोनों काफी देर यूँ ही गिले-शिकवे, ठिठोली और फिर यथार्थ को स्वीकारते रहे...दिव्या की शिकायतों से परेश को हौसला मिला और रास्ता भी...दिव्या भी परेश को धमका कर रीमा के मित्रता के धागे को मजबूत करती रही...दर असल वे जानते हैं न तो दिव्या क्रूर है और न ही परेश लापरवाह...रीमा के जिन्दगी का तूफान थमेगा....बस यह मौसम की तपिश है...जो हमेशा न रहेगी...फिर से बरसात होगी.....रीमा अतीत को छोड़ेगी,, उसे छोड़ना ही होगा...नव अंकुर फूटने को आतुर जो हैं......प्रेम पराग से पूरित कहानी लिखी जायेगी...जो बैजू-चन्दा से ज्यादा मधुर होगी...उसमें एक पति का साहस और धैर्य भी अंकित होगा।

बालकनी में रीमा की आहट न पाकर परेश उस तरफ दौड़ पड़ा। रीमा वहाँ नही थी।

"कहाँ गयी रीमा??? " परेश पसीने-पसीने हो गया। उसने बालकनी से नीचे की तरफ झाँका..दायें-बायें सब तरफ देखा मगर रीमा कहीं नही है,,,,, 'अभी दस मिनट पहले तो गयी है बालकनी में...अचानक कहाँ गयी....कोई रास्ता भी नही है जाने का.....ओहहहह.. मैं क्या करुँ?? कहाँ ढूँढूँ रीमा?? तुम कहाँ हो??' वह बुरी तरह घबराया हुआ है.....हड़बड़ाहट में बाथरुम से लेकर बैड के नीचे..सोफे के पीछे हर जगह तलाश रहा है..मगर रीमा का नामोनिशान नही है...वह स्लीपर पहन कर बाहर की तरफ भागने लगा....कारीडोर भी बिल्कुल खाली पड़ा है....सुबह-सुबह कहाँ जा सकती है वोह भी बगैर बताये? नही....नही...रीमा ने ऐसा कभी नही किया....वह तो बाँसुरी की आवाज़ सुन कर बालकनी में गयी थी, इधर दिव्या का फोन आया ...बस,,, इतनी देर में ...??

"रीमा.........कहाँ हो तुम??? "परेश चिल्ला उठा। रिजार्ट के दूसरे कमरों के आस-पास के लोग बाहर निकल आये...वह सब उसे अवाक हो देखने लगे...किसी की पत्नी का खोना लोगों के लिये विस्मयकारक तो है ही....सबकी निगाहें अलग-अलग....कोई आश्चर्यचकित है ..कोई प्रश्नवाचक द्रष्टि से घूर रहा है....कोई सोते से जागने के कारण अलसाया हुआ है...सबके लिये अजूबा है ....और परेश के लिये जान निकालने वाली मुश्किल घड़ी।

उसे याद आया गणेश दादा.......हाँ वही मद्द कर सकते हैं,,,, फिर , उनका आना भी एक और एक ग्यारह से कम न होगा। झटपट ही गणेश को फोन लगा लिया...इस वक्त तो वह घर पर ही होगें,,,, रिजार्ट तो वह बारह बजे के बाद ही आते हैं......

"हैलो,,,, गणेश दादा, रीमा का कुछ पता नही लग रहा ....पता नही कहाँ गयी? आप प्लीज आ सकते हैं तो रिजार्ट आ जाइये..." परेश के स्वर में कंपन है।

"बिटिया....??? कहाँ जा शकती है?? आप चिन्ता न करो शाब हम शंकर को लेकर तुरन्त आ रहे हैं..." गणेश ने कह कर फोन तो रख दिया मगर घबराया तो वह भी है।

जब तक गणेश आया , परेश नीचे आकर आस-पास की सब जगह खंगाल चुका है..अब वह बुरी तरह हताश है...

गणेश को देखते ही उसमें जान आ गयी है- "कहाँ ढूँढ़ें दादा अब? वोह कहाँ गयी होगी? बाँसुरी की आवाज सुन कर बालकनी में गयी थी...उसके बाद न जाने........" कहते -कहते गला भर गया उसका।

"आइये, हम सब चलते हैं...वोह ज्यादा दूर नही गयी होगी...शंकर तू बाईं तरफ की बस्ती की तरफ देख कर आ...हम सामने वाली पहाड़ी की तरफ जाते हैं...पहले भी उन्हें इसी पहाड़ी के पीछे से ही बाँसुरी सुनाई पड़ी थी...."

अभी वोह लोग रणनीति बना ही रहे हैं कि एक चिड़िया ची..ची..करती हुई उनके इर्दगिर्द मंडराने लगी। किसी को कुछ भी समझ में नही आ रहा है,,,, वह सामने की तरफ उड़ती और फिर वापस आकर ची..ची..करने लगती...उसका ऐसा करना अदभुत है...सब उसे ही देख रहे हैं किसी की समझ में कुछ नही आ रहा। अब वही चिड़िया शंकर के कंधे पर बैठ गयी...शंकर एकदम शान्त खड़ा है ताकि वह डर कर उड़ न जाये....फिर उसने सामने की तरफ उड़ान भरी...।।

शंकर समझ गया माजरा क्या है? - "गणेश , ध्यान से देख जरा....ऐसा लग रहा है जैसे यह हमें रास्ता बता रही है...। कहाँ ले जाना चाहती है??"

परेश भी उसके इस व्यवहार से आश्चर्यचकित है...सब खामोशी से समझ रहे हैं। फिर यही तय हुआ कि इसके इशारे पर चल कर देखते हैं....

सब उसके पीछे हो लिये....यह एक जादुई नजारा है बिल्कुल पौराणिक कथाओं जैसा...जहाँ राक्षस, परियाँ, देव, अपसरायें और जादूगर हुआ करते थे। कभी पक्षी के भेश में राक्षस तो कभी तोते में राजा की जान...ऐसी हजारों कहानियों से भरा पड़ा है भारतिये हिन्दी साहित्य कोष का खजाना। बेशक आज उस पर ठहाका लगाना ..उपहास करना या अन्ध विश्वास कहना आम बात है...लेकिन इस वक्त इस छोटी सी चिड़िया ने सबको भ्रमित कर दिया है.....बार-बार एक ही चिड़िया का कमरे में आना और अब उसका अजीबोगरीब व्यवहार .....आधुनिकता की खोजों को धता बताता है....

अब यह तय हो चुका है वाकई वह रास्ता ही बता रही है..कुछ दूर उड़ कर गरदन मटकाती..जैसे उनको आता हुआ देख रही हो ...फिर उड़ कर अगले पेड़ पर बैठ जाती....यह सब पाँच-छ:मिनट तक ही चला कि एक जगह जाकर वह नीचे जाने वाली ढलान पर रूक गयी और जोर-जोर से ची..चीं..चीं.. करने लगी........साँसो को नियन्त्रित करते हुये परेश आगे बढ़ा ही है कि उसने देखा एक पेड़ के ठूंठ पर रीमा बेहोश पड़ी है।

काटो तो खून नही...सबकी जान सूख गयी...आनन-फानन में गणेश ने उसे उठा कर पीठ पर लाद लिया...अब चिड़िया आसमान में उड़ कर विलीन हो चुकी है...वह जिस मकसद से आई थी वोह पूरा हो गया...।

रिजार्ट की जीप से शहर के डा. के पास ले जाया गया। रीमा को लेकर रिजार्ट का स्टॉफ भी काफी संजीदा है,,, पहले भी उसके बेहोश हो जाने पर अफरा-तफरी मच गयी थी। सो इस बार वह एकदम सक्रिय हो गये।

नब्ज, आँखें, बी.पी., धड़कन और टैम्परेचर सब सामान्य...डा. ने बेहोशी का करण कमजोरी बताया। अब सवाल उठता है कि ऐसी हालत में किया तो क्या किया जाये? आमतौर पर शारीरिक अवचेतना या बीमारी का मापक डॉ ही होता है.... अब इस असामान्य कहानी का क्या?

कुशाग्र..?? कुशाग्र का ख्याल आते ही परेश ने जेब से मोबाइल निकाला और कुशाग्र का नंबर मिलाया... कुशाग्र को स्थिति से अवगत कराना बेहद जरूरी है वही इस समस्या का कुछ निदान बता सकते हैं......

क्रमशः