Yaarbaaz - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

यारबाज़ - 3

यारबाज़

विक्रम सिंह

(3)

फिर राकेश ने श्याम से कहना शुरू किया," श्याम! नेता राहुल आया था। कह रहा था कि कुछ राजपूत लड़कों ने हमारे पार्टी के मोहन यादव भाई को घेर कर मारा है। उन्होंने हम सब को बुलाया है। हमें भी इसका बदला लेना है।"

श्याम दबंगई से बोला, "हां ,तो ठीक है मार का बदला मार होगा।"

राकेश भी बोला, "ठीक कहे तुम यार!"

फिर श्याम एकदम से बात को पलटते हुए बोला था,"दौरी के लिए मजदूर मिले कि नहीं। मां मजदूर के लिए चिल्ला रही थी।"

"उसी के लिए जा रहा हूं। अच्छा मित्र!अब मैं जाता हूं "उसने मेरी तरफ नजर कर के कहा।

मैंने भी सिर हिलाकर जाने के लिए जैसे कह दिया हो। उसके जाते ही मै सोचने लगा राहुल जिसका नाम मैं कई दफा सुन चुका था। कोई इलाके का बहुत बड़ा दादा होगा।

स्टाप से श्याम लाल का घर करीब 2 किलोमीटर दूरी पर था।। अभी तो बस मैंने 1 किलोमीटर का ही सफर तय किया था। एक तो आसमान से चिलचिलाती धूप आ रही थीं और ऊपर से तारकोल का रोड भी तप रहा था। चारों तरफ खेतों में बोझे फेके हुए थे। और चारों तरफ बस गेहूं की खुट्टियां ही दिखाई दे रही थी। उसी रास्ते में गांव के कुछ लड़के लड़कियां और औरतें सिर पर गेहूं का बोझा लेकर नंगे पैर आ जा रही थीं। और मैं जूते पहन कर भी चलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। गर्मी से बुरी तरह से शरीर तपने लगा था। ना ही मेरे सिर पर कोई बोझा था। मेरा बैग भी श्यामलाल ने टांग रखा था, मगर मैं गांव के लोगों को देख कर चलने की हिम्मत कर चलता चला जा रहा था। उसी वक्त एक लड़की हाथों में कुछ किताबें लेकर सामने से गुजरी है और श्याम को देख कर मुस्कुराते हुए निकल गई। मेरे पूछने के पहले ही श्याम ने कहा कि यही राधिका है। मैं समझ गया था कि राधिका उर्फ श्याम की प्रेमिका है। मैंने राधिका के बारे में कुछ न पूछ कर श्यामलाल से पूछा,"श्याम क्या अब क्रिकेट की प्रैक्टिस करते हो? यहां आकर क्रिकेट खेलते हो या नहीं "

"कभी जीवन में आप अपनी सोच से चलते हैं और कभी जीवन अपनी सोच से आपको चलाता है।" श्यामलाल का यह फिलोसॉफी भरा जवाब था। जो मेरे सिर से बाउंस हो गया था "मैं कुछ समझा नहीं?"

श्याम ने अपनी आपबीती सुनानी शुरू की थी।

बड़ा ही सुनहरा दिन था। दिन सुहरा से अर्थं यही था कि मौसम के साथ साथ लोग भी मेरे अनुकूल मेरे पछ में थे। ग्राउंड के बीचोबीच में बैटिंग कर रहा था। चारों तरफ से बांस से घेराव किया गया था। चारों तरफ लड़कों की भीड़ थी। कोई पान चबा रहा था,कोई खैनी मल रहा था, कोई चने चबा रहा था। सभी के चेहरों पर पूरा उत्साह था। बॉलर अपने अंदाज से बॉलिंग करने की तैयारी कर रहा था और मैं शॉट लगाने की पूरी तैयारी में था। कमेंटेटर हाथ में माइक लेकर बोल रहा था चोंगा से आवाज चारों तरफ गूंज रही थी। "जीतने के लिए 4 बॉल में ,17 रन बड़ा एक चैलेंज है। विकेट भी कोई बचा नहीं है मगर जिस तरह से श्याम आज प्रदर्शन कर रहा है उस तरह तो लगता है आज वह यह बाजी पलट सकता है।" कमेंटेटर की आवाज से मेरा भी उत्साह बहुत बढ़ रहा था और लग रहा था कि वह जो कह रहा है वह मैं कर के दिखा ही दूंगा।

बॉलर ने अपना बॉल फेंकी थी। मैंने चौका लगाया था। फिल्डर ने दौड़ लगाई थी और कूद के बॉल को रोक लिया था। मैंने दौड़कर 2 रन बना लिए। कमेंटेटर उत्साह से बोले जा रहा था रंजीत चौधरी ने बहुत अच्छी फील्डिंग की। अब जीतने के लिए बचे 15 रन देखते हैं यह चैलेंज श्यामलाल पूरा कर पाता है कि नहीं। इस बात से मेरा और भी उत्साह बढ़ गया था कि साला इज्जत की बात आ गई है। वही अहीर का खून मैं भी कहां हार मानता। बॉलर ने फिर बॉलिंग की। दर्शक आपस में उस दिन फुसफुसा रहे थे ,बहुत मुश्किल है जीतना श्याम की टीम का। मैंने आगे बढ़कर फिर चौका लगाया था। बॉल बाउंड्री में जा लगी थी चारों ओर खूब तालियां और सीटी बजने लगी थी। उन तालियों और सीटियों ने मेरा मनोबल बढ़ाया था। ऐसा लग रहा था कि साक्षात ईश्वर मेरे अंदर प्रवेश कर गया हो। जैसे अब मुझे कोई हरा नहीं सकता। सही मायने में ऐसा भी लगने लगा था कि अब मैं इन तालियों और सीटीओ की आवाजों के बिना जी नहीं सकूंगा। मुझे हर समय ऐसी पिच में बने रहना है और तालियों और सीटियों की गूंज को सुनते रहना है। मेरे लिए यह ताली और सीटी की आवाज ऐसी लग रही थी जैसे यही मेरा संगीत है और यही मेरा प्यार। और सही मायने में मेरा तो क्या कमेंटेटर का उत्साह मुझसे भी 10 गुना ऊपर था। कभी -कभी आप जो खुद से नहीं कर पाते पर दूसरे के उत्साह से आप भी उत्साहित होकर कर देते है। अपनी कुर्सी से उठकर जोर- जोर से बोलने लगा था ,"अब श्यामलाल का जबरदस्त चौका । अगर कुछ ठान लो तो उसे करने से कोई नहीं रोक सकता। अब मैच का पल्ला दूसरी तरफ जाते हुए देख रहा हूं। जीतने के लिए बचे हैं ग्यारह रन और दो बॉल।" कमेंटेटर की बात से मेरा भी उत्साह सही मायने में 10 गुना हो गया था। बॉलर ने फिर बॉल फेंका था मैंने आगे बढ़कर खूब जोर से छक्का लगाया। बॉल बाहर एक गन्ने के खेत में जाकर गिरी। कुछ लड़के गन्ने के खेत की तरह भागे थे। कमेंटेटर का उत्साह अब दस से भी ज्यादा गुना हो गया था। वो कुर्सी के ऊपर चढ़ गया था। पहले से ज्यादा जोश में बोलने लगा था ,"बॉल तो गई गन्ने के खेत में। पहली बार किसी ने बॉल को गन्ने के खेत में पहुंचाया है। इसके पहले बहुत से मैच देखे कोई रोड तक भी बॉल नहीं पहुंचा पाया था " अब 1 बॉल 6 रन। बॉलर आखिरी बॉल फेंकी थी मैंने आगे बढ़कर जबरदस्त शॉट अर्थात छक्का लगाया था। सारी पब्लिक वहां से कूद कूद कर मैदान में आ गई थी और मुझे गोद में उठा लिया था। साथ में राकेश भी था। उस दिन तो फिर कमेंटेटर बोले ही जा रहा था चुप ही नहीं हो रहा था। ना जाने कितनी बातें उसने बोली और चोगे से वह चारों तरफ घूमती रही।

अगले दिन से मेरे घर के बाहर हर दिन दो चार लड़के पहुंचने लगे थे। मुझे अपनी टीम में खेलने के लिए हायर करने के लिए। इसी तरह एक लड़का मेरे पास आया था आकर मुझसे कहा,"आप हमारी टीम की तरफ से खेलिये । हमारी टीम को आपके जैसे बल्लेबाज की जरूरत है।" फिर उसने मेरी तरफ पैसे बढ़ा दिए थे। मैंने पैसे लेने से इनकार करते हुए कहा,क्रिकेट मेरे लिए जुनून है कमाई का जरिया नहीं।"

उसने मुझसे कहा,"अगर जुनून से पैसा आने लगे तो बुरा क्या है?"

"बात तुम्हारी सही है दोस्त! अपनों से कैसा पैसा लेना? फिर तो तुम खुद खिलाड़ी हो। खिलाड़ी से कैसे लूं?"

मेरी बात सुन कर लड़का मुस्कुराया था। चलो कम से कम फ्री में ही काम हो गया। हम से हाथ मिला कर चला गया था।

मगर अगले दिन ही उसके विपरीत टीम का लड़का भी मुझे हायर करने आ गया। आते ही मेरे हाथ में एक लिफाफा थमा दिया। लिफाफा थमाते हुए मुझे बोला,"आप हमारे टीम से खेलेंगे उनकी टीम से नहीं।"

"मैं तो उसे हां कर चुका हूं।"

"तो ना भी कर सकते हैं।"

इतना कह कर वह निकल गया।

अगले दिन तो अनहोनी ही हो गई । मैं एक पेड़ के नीचे खटिया पर बैठा हुआ था और कई लड़के आते रहे और मेरे पास लिफाफा रखकर जाते रहे।

उसके बाद मुझे लगा कि या तो मैं अब इन सब से पिटूंगा या इन सब को आपस में ही लड़ा कर एक दूसरे को पिटवा दूंगा। मैंने समझ लिया कि बेटा अब इन सब से निपटने का एक ही रास्ता है चला जा डॉक्टर साहब के पास। मेडिकल सर्टिफिकेट ही मुझे इन सब से बचा सकता था। मैं डॉक्टर के पास चला गया। डॉक्टर क्या था। समझिए हमारे गांव का झोला छाप डॉक्टर ही था। भाई एम. बी .बी.एस तो नहीं था पर बी.ए.एम.स तो जरूर था। मगर वह बड़े से बड़े कारनामे कर देता था। बीमारी चाहे जो भी हो वह इलाज से पीछे नहीं हटता था। चाहे इंसान की जान ही क्यों ना चली जाए? उसके हाथो तो गांव की कई महिलाओं लड़कियों की डिलीवरी तक भी हो गई थी। लगे हाथ इसके उल्टा कई बिन-ब्याही लड़कियों का अबॉर्शन भी। ऐसी भी शादी शुदा महिलाए थी जो चार बच्चो की मां बनने के बाद लापरवाही की वजह से फिर से प्रेग्नेंट हो जा रही थी। ऐसी महिलाओं का भी आना जाना डॉक्टर साहब के पास लगा रहता था। मैंने डॉक्टर साहब से कहा कि सर लूज मोशन है।

"ठीक है दवाई लिख कर दे रहे हैं। तुम ठीक हो जाओगे।"

"नहीं सर एडमिट कर लीजिए। नहीं तो कोई और लोग एडमिट करा देंगे।"

"क्या?"

"नहीं सर ,आप एडमिट कर लीजिए। तबीयत ठीक नहीं है ।"

"ठीक है आप को एडमिट कर लेते हैं"

और मैं उस दिन एडमिट हो गया।

जैसे सब मुझे पैसे देने आए थे वैसे ही सब पैसे लेने आ गए और राकेश उसी पेड़ के नीचे खटिया पर बैठकर सारे लड़कों को उनके लिफाफे वापस करता रहा।

फिर शाम को मैं डॉक्टर से छुट्टी ले वापस आ गया।

मुझे श्याम की बात सुनकर बहुत जोर- जोर से हंसी आने लगी। मेरे साथ श्याम भी हंसने लगा।

हम घर पहुंच गए थे। घर के अंदर में लकड़ी की चौकी में बैठ गया। जिसके चारों पावे इट्टो से उच्चे कर रखे थे। मैं घर के चारों ओर नजर घुमा कर घर को देखने लगा।

मैंने देखा कि घर का प्लास्टर कच्चा ही था और फर्श पर गोबर मिट्टी का लेप किया हुआ था। कहीं कहीं लेप उखड़ भी गया था। घर की दीवार की इट्ट भी धुएं से काली पढ़ गई थी। एक दो रूम में अनाज की बोरियां भरी हुई थी। एक दीवार के कोने में बैट विकेट,नेट,लेग पेड इत्यादि क्रिकेट का सामान रखा हुआ था। जिसके ऊपर बहुत सारी धूल जम गई थी। देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे अब इन सामानों को कोई छूता ही नहीं है। तब तक श्याम एक प्लेट में गुड़ की भेली और पानी ले कर आया। पानी का गिलास लेते हुए मैंने श्याम से पूछा, "घर पर कोई नहीं है?"

"सब दौरी करने गए हैं।"

"तुम तो अपने चाचा के यहां रह रहे थे ना?"

"हमारे चाचा बाबू जी से काफी नाराज हैं। जब हम गांव आकर रहने लगे तो उन सबका व्यवहार हम सब के साथ अच्छा नहीं रहा।"

फिर श्याम ने अपने गांव की कहानी मुझे बताई थी।

मेरे बाबूजी मिथिलेश्वर यादव के दो भाई हैं। कालीचरण यादव और दूधनाथ यादव।दूधनाथ चाचा भी स्वदेशी कॉटन मिल में नौकरी करते हैं। दूधनाथ चाचा के चार लड़के और दो लड़कियां हैं। सबसे बड़ा लड़का सहारा में एजेंट है । गांव के ज्यादातर बेरोजगार युवक सहारा या ऎसी ही किसी चिटफंड कंपनी के एजेंड बन गए है। एक लड़का शहर में मेडिकल दुकान चलाता है। दो लड़के अभी पढ़ रहे हैं। एक बेटी की शादी हो गई है। अभी एक कुंवारी है,वह भी पढ़ रही है। कालीचरण चाचा पूरी तरह खेती पर निर्भर है। उनके भी तीन लड़कियां दो लड़के हैं। उनका लड़का भी मेडिकल का काम सीख रहा है और आगे चलकर मेडिकल दुकान खोलने की सोच रहा है। छोटा वाला भी पढ़ता है। एक लड़की की शादी हुई है,बाकी दोनों पढ़ रही हैं। कुल मिलाकर फैमिली संयुक्त हैं और फैमिली बड़ी है,पर मेरे दादाजी के पास सिर्फ और सिर्फ 9 बीघा खेत था और जिसमें दोनों भाइयों में बंटवारा हुआ कुछ पापा को भी मिला था। घर से पापा ने कोई भी हिस्सा नहीं लिया था। आगे-आगे जेसे ही बच्चे बड़े हो रहे हैं खेत की कमी होती जा रही है। उनके भी बच्चे होंगे। फिर और जमीन कम हो जाएगी। अब ज्यादातर लोग यही सोचते हैं कि भाई हम घर में लोग ज्यादा हैं और बंटवारे में आकर किसके हिस्से में क्या आएगा? यह सोच ही लोगों को दिमाग में इस गलत ख्यालात को बढ़ा रही है कि किसी भी तरह अपने खेत को बढ़ाओ। दूसरे के भी खेत को कब्जे में ले लो। गांव तो गांव शहरों का भी यही हाल है। शहर में भी जमीन कम हो रही है जनसंख्या बढ़ रही है और वहां भी लोग जमीनों के रेट कितना बढ़ा-बढ़ा के दे रहे हैं कि लोगों के पसीने छूट जाते हैं। सरकार ने तो जमीन के रेट बांधे हैं पर उस जमीनी रेट में कहां जमीन बेची खरीदी जाती है? हर चौथा बेचने वाला जमीन के दाम बढ़ा कर ही बेचता है। अब मुंह मांगी रकम वसूलता है और देने वाला भी देता है, क्योंकि उसे भी पता है कि आगे मैं भी तो वसूल लूंगा किसी से। हमारे देश में आधे लोगों के पास घर है तो आधे बेघर हैं। इसलिए आधे लोग उन आधे लोगो के बनाए हुए घरों में किराए पर रहते हैं।

मेरे आते ही इन सब की नीयत में खोट पड़ गया। पड़ क्या गया वह तो पहले ही से ही था। मेरे आने से कीड़ा जल्दी कुलबुला गया। वह यही सोचते थे कि 10 साल से जमीन हम संभाल रहे हैं और अब यह लड़का यहां अा गया। मैं खेती कम करता और क्रिकेट ज्यादा खेलता था तो उन सब की शिकायत रहती थी कि यह तो खेत देखता ही नहीं है। सिर्फ बल्ला लेकर घूमता रहता है। वो सोचते थे कि हम सब खेत में मेहनत करें और आधा यह ले लेगा। फिर दोनों भाइयों ने आपस में बस यही विचार किया तो ठीक है फिर हम सब अपना खेत देखें। एक दिन मैं सुबह बैट लेकर अभ्यास के लिए निकल रहा था कि कालीचरण चाचा हैंड पंप के पास नीम का दातुन कर रहे थे। हैंड पंप के पास ही नीम का पेड़ था।मुझे देख कर बोले -" बेटा कहां चल दिए? ऐसा लग रहा था कि जैसे वह हैंड पंप के पास बैठकर मेरा ही इंतजार कर रहे थे?

"जी प्रेक्टिस के लिए जा रहा हूं।"

"क्या होगा इ प्रेक्टिस कर के।"

"बस सुबह खेलने से सेहत सही रहता है।"

"अरे बुड़बक! खेत में कुदाल लेकर जाओ। खेत का भी काम होगा और तुम्हारी सेहत भी बनेगी। इ बल्ला वगैरह चलाना बड़े लोगों का काम है। फिर तुम्हें यहां तुम्हारे पिताजी बल्ला खेलने के लिए थोड़े ही भेजे हैं।"

फिर उन्होंने कुदाल की तरफ इशारा करते हुए कहा,"वह देखो वहां कुदाल रखा हुआ है।

मैंने "जी" कहते हुए अपना सिर हिला दिया था।"

मैंने गुस्से से बेट रख दिया और कुदाल उठा लिया। फिर उस दिन जो हाथ में कुदाल पकड़ा तो उसके बाद छूटा ही नहीं। मुझे तो क्या मेरी मां को भी दोनों चाची किसी ना किसी बात पर टोकने लगी थी। मां ने भी हाथ में हसुवा पकड़ लिया।

.....