Yaarbaaz - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

यारबाज़ - 6

यारबाज़

विक्रम सिंह

(6)

"किस बात के लिए वकील? जो जमीन हमारी है उसमें वह जबरदस्ती घुसने की कोशिश कर रहा है। अपनी जमीन को लेने के लिए क्या वकील करू? मैं भी जबरदस्ती उसे निकाल दूंगा।"

बोलते -बोलते श्याम जैसे गुस्से से भर गया श्याम उठ कर चलने लगा था।

घर आकर श्यामलाल ने लाठी उठा ली थी। गुस्से से पलटन के घर की तरफ निकल गया था। मैंने श्याम को जाते हुए देखा। इसी श्याम के हाथ में कभी बैट हुआ करता था। मैं सब से कहता था कि श्याम एक दिन बड़ा बैट्समैन बनेगा । जो गणित के बड़े -बड़े सवाल हल कर दिया करता था। मैं सब को कहता था कि एक दिन बहुत बड़ा ऑफिसर बनेगा । आज उसके हाथों में लाठी लेकर बहुत चिंतित था। पता नहीं लाठी उसे क्या बनाएगी ? अचानक श्याम की मां दौड़ी हुई आई और श्याम का हाथ पकड़ उसे मना करने लगी। मगर श्याम रोकने के बजाय मां को भी साथ में खींचता चला जा रहा था। मां के साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया था। मां ने नीचे गिर के उसके पैरों को दोनों हाथों से पकड़ लिया था। श्याम बिना रुके मां को घसीटता चला जा रहा था। मैं भी श्याम को समझाने लगा था। श्याम रुक गया था।

ना जाने कैसे उसका गुस्सा धीरे-धीरे उतर गया था और आकर चुपचाप घर में बैठ गया था ना मुझसे कुछ कह रहा था ना मां से ही कुछ कह रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह अपनी करनी पर पछतावा कर रहा था। ना फिर मैंने कुछ श्याम से कहा और ना ही चाची ने कुछ कहा। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई गुजर गया हो घर पर मातम सा छा गया था।

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पलटन यादव का दक्षिण दिशा में घर था। पलटन दो भाई थे। पलटन के छोटे भाई रामचरित यादव बहुत ही सीधा साधा और साधारण व्यक्ति था। सिर्फ व्यक्तित्व से नहीं कद -काठी का भी साधारण था। गांव के लोग उसे गऊ कहते थे। उसके विपरीत पलटन की जैसे व्यक्तित्व था उसके अनुरूप ही कद- काठी भी थी। चौड़ी छाती के साथ उसका तोंद भी निकला हुआ था। पलटन रानीपुर बिजली विभाग में लालमैन थे। रामचरित खेती-बाड़ी करते थे। पलटन के तीन लड़के थे । रामबदन गिरीश और विनय। रामबदन फौज में था। साल भर में कभी एक या दो बार आता था कभी-कभी तो साल भर भी नहीं आता था। । दूसरा वाला बेटा गिरीश घर का काम और खेती-बाड़ी देखता था। तीसरा बेटा विनय बी. ए पास होने के बाद बच्चों को ट्यूशन पढ़ा अपना खर्चा चला रहा था। कुल मिला जुलाकर पलटन का घर की अवस्था ठीक थी। और घर पूरी तरह से प्लास्टर था। मगर कहते हैं कि सब कुछ होते हुए भी कभी ना कभी कुछ कमी रह जाती है और उसको आप पूरा करने के लिए दुनिया भर का बवंडर मचा देते हैं खुद की जिंदगी में और दूसरो की जिंदगी में भी। पलटन दरवाजे से चार लठ के बाद श्याम का चक लगता था। सो उन्हें बोझा पशु रखने के लिए द्वार की कमी महसूस होती रहती थी। अब उस चक को आबादी में लाकर अपना द्वार बनाना चाहता था। पलटन के दिमाग में बार बार एक ही बात रहती कि चक की वजह से द्वार नहीं बन पा रहा है। पलटन ने लेखपाल को पैसे खिला कर फर्जी नक्शा बनाया और उसे श्याम के जमीन के क्षेत्रफल से 72 कड़ी अर्थात 4 लठा चौड़ा और 18 लठा लंबा हटा दिया। और वहां अचानक एक दिन श्याम को खेती-बाड़ी और वहां कुछ भी करने से मना करने लगा।

"देखो श्याम तुम्हें काफी लंबे समय तक यहां खेती करने दिए जब की यह जमीन तुम्हारे क्षेत्रफल में नहीं आता है। आबादी वाली जमीन में तुम खेत जो रहे हो।"

श्याम को लगा कि पलटन काका पगला गए है या भाग की गोली खा कर आए है। "क्या बतिया रहे हैं।"

"सही तो बातिया रहे है बेटा! विश्वास नहीं होता तो यह रहा कागज़।"

अब तक श्याम पलटन को पागल समझ रहा था अब खुद पगला गया। "बहुत अच्छा फर्जी बड़ा है। कोई इतना भी गिर सकता है कभी सपने में भी नहीं सोचे थे।"

श्याम इतना कह कुदाल को जमीन में दे मारा।

श्याम के ना मानने पर दीवानी में चले गए। दीवानी की तरफ से रकबा( क्षेत्रफल ) नापा गया। पलटन ने लेखपाल कानूनगो को पैसे दे अपने साथ मिला लिया था और वहां यह साबित करने की कोशिश की कि उसके जमीन क्षेत्रफल में नहीं आता है। लेकिन श्याम किसी की बात को मानने के लिए तैयार नहीं हुआ। क्योंकि वह जानता था कि यह जो कुछ भी कर रहा है फर्जीवाड़ा है। जब देखा पलटन की दाल गल नहीं रही है तो वह एक कदम और आगे बढ़ गए। जिला अधिकारी को पैसे खिला कर धारा 145 के अंतर्गत जमीन की कुर्क करवा दिया। मगर श्याम की अहीर बुद्धि वह फिर भी उस जमीन में खेती बाड़ी करना नहीं छोड़ा रहा था। पलटन पुलिस वाले को पैसा खिलाने लगा एक दिन अचानक पुलिस गांव में आई और श्याम को 107, 151 धारा के अंतर्गत चालान कर दिया और उसे साथ लेकर चली गई। और श्याम के चाचा के लड़के राम दरस उसकी जमानत करा ले आते। यह यह सिलसिला काफी बार हुआ। मिथलेश मिथिलेश्वर चाचा गांव आते हैं और श्याम को समझाते दीवानी की लड़ाई दीवानी में ही सुलझेगी । मिथिलेश्वर चाचा ने अपना वकील वैसे तो पहले ही कर रखा था। श्याम फिर भी अपने काम से बाज नहीं आ रहा था।

....

गांव आने के रास्ते में ही एक बगीचा पड़ता था उसी बगीचे के सामने एक छोटी सी दुकान थी। गांव के ही एक लड़के कन्हैया ने ने एक छोटी सी दुकान खोल रखी थी। उनके पिता का स्वर्गवास तभी हो गया था जब वह पांचवीं में था। वह दो भाई थे। बड़ा भाई खेती बाड़ी के साथ फौज में भर्ती की कोशिश कर रहा था। दुकान में बस नाम मात्र के समान थे जैसे कि चॉकलेट, चूसता, क्रीम रोल,चाय पत्ती, चीनी,शैंपू की पुड़िया, चिप्स कुरकुरे के पैकेट, बच्चों की रंग बिरंगी चॉकलेट , खैनी गुटखा और सिगरेट भी रखता था। कन्हैया भी श्याम लाल का मित्र था। पर जब श्याम दुकान में आकर बैठ जाए तब तक ही। इस दुकान पर गांव के कई लड़के आकर बैठा करते थे। सही भी यह था कि यह था क्या बूढ़े, क्या जवान, क्या बच्चे, सभी दिन में एक आध बार इस दुकान की परिक्रमा करने आ ही जाते थे। इस दुकान के बारे में कहना था कि गांव की हर छोटी बड़ी खराब घटनाओं का खुलासा यहां होकर रहता था। रामायण के प्रसंग तो लोग कभी-कभी बुजुर्गों की जुबान से सुनी लेते थे। मगर किसकी बेटी दीवार फादने वाली है किससे किसका चक्कर चल रहा है किस के घर चोरी हुई चोर कौन थे आदि। अति संवेदनशील बातें गांव में पता लगाकर बात को ना पचा सकने वाले लोग यहीं बात की जुगाली से लेकर उल्टी और दस्त तक कर देते थे। यह दुकान परीक्षण केंद्र था जहां लोग बीड़ी का दम खींचने से लेकर गांजे का दम लागने तक की कला सीखते थे आज सिद्धहस्त बीड़ी बाज, गंजेड़ी जुगाड़ी बनते । घरों को तोड़ने और अलग- गुजरी करने का बीजरोपण यही से शुरू होता था।। ऐसे करतबी लोग यहां घंटों बैठकर बरतस में समय गंवाते थे। इस वजह से कन्हैया को लोग नारद मुनि भी कहते थे। कन्हैया अपने नाम का सीधे उल्टे काम करता था। गांव के लोग कहते थे कि कन्हैया के कान में अगर कोई बात चली गई तो पूरे गांव में फैल जाएगी। इस वजह से गांव के कई लोग एक दूसरे से बात करते हुए कहते ई बतिया कन्हैया को मत बताना यार। इस वक्त पलटन और श्याम की भी बात जोर-शोर से चलने लगी थी। जब गांव के लोग दुकान में बैठते हैं तो वह यही कहते कि श्याम पलटन से पार पा नहीं सकेगा। वह पैसे खिला खिला कर इसके चक को अपने कब्जे में ले ही लेगा। मगर कन्हैया श्याम की तारीफ होते हुए कहता कि वह श्याम नहीं है कि जो इतनी आसानी से हार मान जाएगा कुर्क होने के बाद भी खेत जोत रहा है। फिर इसी बात को कन्हैया इस तरह कहता कि जो भी हो गलत तो पलटन ही कर रहा है। उसने पूरे गांव के लोगों के बीच यह ढिंढोरा कर दिया की पलटन बेईमान आदमी है। अब कभी भी पुलिस की गाड़ी या बाइक आते हुए देखता वह हल्ला मचाने लगता है कि पुलिस आ गई पुलिस आ गई इसी तरह गांव की और महिलाएं पुरुष हल्ला मचाने लगते कि पुलिस आ गई पुलिस आ गई और यह बात श्याम के कानों तक पहुंच जाती चाहे वह घर में हो या खेत में फिर वहां से फरार हो जाता। पुलिस गांव में आकर श्याम को नापा करो दुकान पर ही आकर बैठ जाती थी कन्हैया पुलिस वालों से कहता कि साहब यह सब गड़बड़ पलटा कर रहा है आप लोग खामखाह श्याम को लेकर परेशान हो रहे हैं पुलिस को भी यह लगता था इस सही में पलटन गड़बड़ आदमी है। पर वह भी मजबूर थे कि पलटन साहब को पैसे खिला रहा था।

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मेरी वापसी का समय हो गया था। मैंने रात में ही सारा सामान पैक कर लिया था। चाची ने भी रात में ही मेरे खाने पीने की तैयारी कर दी थी। उन्होंने मेरे रास्ते में खाने के लिए लिट्टी बनाने का सारा सामान जुगाड़ कर लिया था। अगले दिन मेरे निकलने के ठीक एक घंटे पहले चाची ने लिट्टिया भी सेंक दी। मुझे पैक कर देते हुए कहा कि बेटा रास्ते में भूख लगेगी तो लिट्टी खा लेना। मैंने उत्तर में अपना सिर हिला दिया था। दरवाजे से बाहर निकलते ही राकेश मेरे पास आ गया। उसने वही बात दोहराई जो मेरे आते वक्त कही थी कि दौरी हो रही है इसीलिए हम आपको छोड़ने स्टेशन तक नहीं जा पा रहे हैं। मैंने आखिरी बार चाची के पैर छुए। चाची ने मुझे आशीर्वाद देते हुए कहा-" बेटा खूब पढ़ो लिखो और बड़ा अफसर बनो।" राकेश मेरे और श्याम के साथ गांव के स्टॉप तक तो आया ही था। राकेश को देखकर कभी भी ऐसा नहीं लगता था कि इससे श्याम की अभी कुछ ही दिनों पहले दोस्ती हुई है उसे देखकर ऐसा लगता था कि जैसे श्याम का लंगोटिया यार है। और राकेश पका यार बाज है।

कमांडर के आते ही मुझे उसी तरह पीछे बिठा दिया था जैसे आते वक्त बिठाया था और श्याम भी उसी तरह पीछे लटक गया था जैसे आते वक्त लटका था।

उस दिन जैसे ही कमांडर से उतरे तो ना ही मैंने अपना पर्स निकाला और ना ही कमांडर वाले ने पैसे मांगे। मैं भी बिना पैसे दिए ही चुपचाप स्टेशन पर आ गया।

इस बार मैं और श्याम सीधे चाय की दुकान में बबलू के पास गए। बबलू ने श्याम को देखते ही कहा आइए ,आइए नेता जी आइए आइए।

मैं यह अच्छी तरह समझ गया था कि बबलू श्याम को नेता बोलकर फिरकी लेता है अर्थात अपने व्यंग वाण छोड़ता रहता है। यह बोलते हुए उसने मेरी तरफ नजर घुमा कर सिर हिलाते हुए नमस्कार किया। मैंने भी फिरकी लेने के लिए बबलू से कहा-" लगता है तुम श्याम को नेता बना कर ही मानोगे। मेरी बात से जैसे बबलू गंभीर हो गया और कहा,"हां जी , अब देखिए एक वक्त आएगा जब जिला का विधायक होगा। आप क्या सोच रहे हैं। "उसकी बात से ऐसा लगा कि जैसे उसने मेरी फिरकी ले ली। खैर मैंने भी कह दिया तुम्हारे मुंह में घी और शक्कर। फिर उसने श्याम से कहा "नेताजी क्या बनाएं चाय कि कॉफी।" फिर उसने बबलू से कहा अबे बहन चो*** तुझे जब पता है कि मैं...

"नेताजी तुम्हारी बहन कुंवारी रह जाएगी क्या?"

मैंने बात को काटते हुए बबलू से पूछा," ट्रेन का अनाउसमेंट हो गया है क्या?"

"नहीं अभी नहीं हुआ अभी आधा घंटा समय है। ट्रेन वैसे राइट टाइम ही है,आ जाएगी। "

फिर उसने मिट्टी के प्याले में चाय डाल कर हम दोनों को दे दिया।

ट्रेन आने के बाद मैं ट्रेन के डब्बे में अपने बर्थ पर बैठ गया। श्याम मुझे जब तक ट्रेन खड़ी थी -बस यही कहता रहा" ठीक से जाना संभलकर जाना और पहुंचने के बाद फोन कर देना मुझे।"

इंजन ने जोरदार हॉर्न दिया ,पटरी से धीरे-धीरे ट्रेन सरकने लगी। मैं खिड़की से हाथ निकालकर श्याम को बाय-बाय करता रहा और श्याम भी मुझे हाथ हिला बाय-बाय करता रहा। मैं श्याम को बाय-बाय करते हुए बस यही सोच रहा था -क्या मैं वाकई उसी अपने लंगोटिया यार श्याम से मिल कर वापस जा रहा हूं जिससे मैं मिलने की ख्वाहिश लेकर आया था। क्या यह वही श्याम है जो क्रिकेट के प्रति पूरा जुनून रखता था?क्या वही श्याम है जो मैथमेटिक्स के बड़े से बड़े सवाल हल कर दिया करता था? मैं यह सोचते सोचते जैसे मन ही मन में अपने से पुराने श्याम को ढूंढने लगता हूं अपने दिलो दिमाग में।

*****

उन दिनों की बात है जब मेरी उम्र 14 साल की थी उन दिनों मेरा मित्र श्याम हुआ करता था। श्याम मेरा लंगोटिया यार था। मैंने जैसे ही कॉलोनी में होश संभाला था श्याम से मेरी दोस्ती हो गई थी। सही मायने में जब मैं 14 साल का हुआ और तब मुझे एहसास हुआ कि श्याम मेरा लंगोटिया यार है। मैं और श्याम एक ही उम्र के थे बस फर्क इतना था कि श्याम मुझसे उम्र में बड़ा दिखता था। दरअसल उसका शरीर पहलवानों जैसा था । कॉलोनी में लड़के पीठ पीछे उसे हनुमान जी कहते थे। सामने किसी की कहने की हिम्मत नहीं थी। एक बार स्कूल में एक लड़के ने श्याम को हनुमानजी उसके सामने कह दिया था। श्याम ने उस लड़के से कहा," हनुमान जी की कितनी ताकत है तुम्हें पता है?"वह बोला ,नहीं ,तुम्हें पता है"

" हनुमान जी ने पूरा पहाड़ अपने हाथ में उठा लिया था"यह कहते हुए उस लड़के को उसने उठा लिया और उठा के नीचे पटक दिया। उस दिन पूरे क्लास में सनसनी फैल गई। उस दिन के बाद से किसी ने भी श्याम को हनुमान बोलकर कभी नहीं पुकारा। यही बात उस के बड़े भाई नंदलाल में भी थी बस फर्क इतना था कि उसका पेट निकला हुआ था कालोनी के लड़के पीठ पीछे उसे गणेशजी कहते थे पर वह हम सब से उम्र में बड़ा भी था। दरअसल दोनों भाइयों का पहलवान जैसा शरीर होने के कारण यह था कि उनके पिता मिथिलेश्वर यादव ने घर पर दो गाय पाल रखी थी। दोनों भाई प्रतिदिन किलो-किलो भर दूध पीते थे। श्यामलाल शरीर से तो बलवान था यह पढ़ने लिखने में उसकी बुद्धि भी हम सभी दोस्तों से अच्छी थी खासकर वह गणित में काफी होशियार था। यूं तो बाकी के विषय में भी होशियार था पर हर कोई उसे गणित का पंडित कहता था क्योंकि जब वह आठवीं में था तभी नौवीं और दसवीं के सवाल हल कर देता था तब लोग बाग यह अनुमान लगाते थे कि श्यामलाल इंजीनियर या गणित का टीचर बनेगा कुछ तो ऐसा भी कहते थे कि यह आईएएस या आईपीएस बनेगा। लेकिन जब श्याम क्रिकेट खेलता था तो लोग उसकी बैटिंग को देखकर यह कहने से भी नहीं चूकते थे कि चलो अच्छा बैट्समैन बनेगा जब वह मैच में जाता तो छह बॉल अर्थात एक ओवर में तीन चार चौके तो लगा ही देता था सामने का बॉलर चाहे जैसा भी होता था। उन दिनों श्यामलाल का सही में बल्ला बोलता था। बल्ले के प्रति श्यामलाल का जुनून भी बहुत था। गणित की परीक्षा के ठीक एक दिन पहले भी श्यामलाल क्रिकेट खेलने ही गया हुआ था। उस दिन पूरी कॉलोनी में एक अजीब सा डर फैला हुआ था सिर्फ विद्यार्थियों में ही नहीं। विद्यार्थियों के मां -बाप में भी डर फैला हुआ था। खासकर वह मां बाप तो और भी डरे हुए थे जिनकी संतान का यह दूसरी या तीसरी बार गणित का इम्तिहान था। कुछ तो ऐसे भी थे कि मां अपने बच्चे के मुंह में निवाला डाल रही थी और लड़का मैथ्स के सवाल हल कर रहा था। एक मिनट के लिए भी अपना सिर हिलाना नहीं चाहते थे। कुछ अपना सिर खुजला रहे थे और उन सब के बाल भी कॉपी में गिर रहे थे वो बाल उठाकर देखने लगते थे । एक पिता अपने बेटे को मैथ्स पढ़ा रहा था और खिसियाते हुए उसके माथे चांटा रसीद करते हुए कहा था यह तीसरी बार है इस बार भी फेल होने का विचार है क्या?