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कर्म पथ पर - 67


कर्म पथ पर
Chapter 67


वृंदा और जय हर एक चीज़ से बेखबर कुछ देर तक एक दूसरे के आलिंगन में बंधे खड़े रहे। सूरज डूब चुका था। सर्दियों का मौसम था। अंधेरा जल्दी गहरा जाता था। ठंड भी बढ़ गई थी। जय ने सुझाव दिया कि आज दोनों अलग अलग जाने की जगह एक साथ ही जाएंगे। वह उसे उसके घर छोड़कर अपने घर चला जाएगा। पर वृंदा ने मना कर दिया।
वृंदा नहीं चाहती थी कि जब वह दोनों गांव में घुसें तो लोग उन्हें साथ में देखें। गांव वाले उन दोनों का शाम ढलने के बाद एक साथ होना पसंद नहीं करेंगे। इसलिए जय के ज़ोर देने के बावजूद उसने उसे समझाते हुए कहा,
"जय हमें बहुत संभल कर रहना पड़ेगा। अगर हमें गांव में रहकर इन लोगों की भलाई के लिए काम करना है तो आवश्यक है कि हम कुछ भी ऐसा ना करें जो उन्हें बुरा लगे।"
"पर वृंदा अंधेरा अधिक हो गया है। इसलिए तुम्हारा अकेले जाना ठीक नहीं।"
"जय मैं मानती हूँ कि तुम्हें मेरी फिक्र है। पर मैं अपनी रक्षा कर सकती हूँ। अंधेरा है पर इसमें डरने की क्या बात है। रास्ता मेरे लिए अंजान तो है नहीं।"
जय का मन नहीं मान रहा था। उसने कहा,
"तुम्हारी सारी बातें ठीक हैं। पर ना जाने क्यों मेरा मन अचानक ही घबराने लगा है।"
वृंदा तिरछी नज़र से उसकी तरफ देखकर मुस्कुराई। वह बोली,
"प्यार का इज़हार करते ही एकदम प्रेमियों की तरह बर्ताव करने लगे।"
"ऐसी बात नहीं है वृंदा। बस मन घबरा रहा है।"
"ठीक है तो ऐसा करते हैं कि गांव की सरहद तक साथ चलते हैं। उसके बाद तुम अपने घर की तरफ चले जाना और मैं अपने घर की तरफ।"
"ठीक है...."
वृंदा और जय एक दूसरे से कुछ फासला बना कर चलने लगे। गांव की सरहद पर पहुँच कर वृंदा ने कहा,
"अब कोई खतरा नहीं है। तुम जाओ।"
जय नवल किशोर के मकान की तरफ बढ़ गया। वृंदा अपने घर की तरफ। आज सर्दी कुछ अधिक ही थी। इसलिए अधिकांश लोग घरों में ही थे। वृंदा तेज़ कदमों से चली जा रही थी।
वह जिस जगह से गुज़र रही थी वहाँ पेड़ों का एक झुरमुट था। इसे पार करने के बाद कुछ ही दूर पर वृंदा का घर था।
वृंदा आगे बढ़ रही थी कि पेड़ के झुरमुट से निकल कर इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर और उसके दो साथी उसके सामने आकर खड़े हो गए। अचानक कुछ लोगों को अपने सामने देखकर वृंदा घबरा गई। अंधेरे में उसे कुछ स्पष्ट नहीं दिख रहा था। उसने पूँछा,
"कौन हो तुम ? इस तरह मेरा रास्ता क्यों रोका।"
उसके सामने खड़ा व्यक्ति हंसने लगा। उसने माचिस निकाल कर दियासलाई जलाई। उसकी रौशनी में वृंदा के सामने इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर का चेहरा उभरा। उसे देखकर वृंदा कुछ कदम पीछे हटी। वह लड़खड़ा कर गिर गई। इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर के एक साथी ने उसे कुछ सुंघाकर बेहोश कर दिया।

भुवनदा परेशानी से कमरे में चक्कर लगा रहे थे। वृंदा रोज़ शाम टहलने जाती थी। भुवनदा ने कहा भी था कि अब सर्दियां आ गई हैं इसलिए शाम को टहलने ना जाया करे‌। पर वृंदा ने कहा कि उसे अच्छा लगता है। भुवनदा फिक्र ना करें वह समय पर आ जाया करेगी।
रोज़ वह समय पर आ जाती थी। लेकिन आज उसने लौटने में बहुत देर कर दी थी। इससे भुवनदा चिंतित थे। वह बंसी के आने की राह देख रहे थे। वह सरपंच के घर किसी काम से गया था।
बंसी लौटा तो उसने भुवनदा को परेशानी में टहलते हुए पाया। उसने पूँछा,
"क्या बात है दादा ?"
"बंसी वृंदा अभी तक नहीं लौटी है।"
यह सुनकर बंसी भी चिंतित हो गया। वह जानता था कि वृंदा टहलने की बात कहकर गांव के बाहर वाले टीले पर जय से मिलने जाती है। उसे लगा आज लौटने में देर हो गई होगी। उसने भुवनदा से कहा,
"आप बैठिए। मैं जाकर देखता हूँ।"
बंसी टीले की तरफ जा रहा था। रास्ते में वह यह भी देख रहा था कि शायद वृंदा आती दिख जाए। वह टीले पर पहुँचा तो वहाँ कोई नहीं था। उसने वृंदा और जय का नाम लेकर पुकारा भी। वृंदा की कोई खबर ना मिलने से बंसी घबरा गया। उसे लगा कि जय को अवश्य कुछ पता होगा। वह नवल किशोर के घर की तरफ चल दिया।

जय बहुत खुश था। उसने मदन को बता दिया था कि उसने आज वृंदा से अपने प्यार का इज़हार कर दिया है। सब सुनकर मदन ने उसे गले लगाकर कहा,
"मैं बहुत खुश हूँ मेरे भाई। वृंदा के प्यार के लिए तुम सब कुछ छोड़कर यहाँ इस गांव में रह रहे हो। अब तुम्हें वह प्यार मिल गया है। मुझे बहुत खुशी है।"
"तुमने भी तो एक भाई की तरह सदा मेरा साथ निभाया है। मुझे संभाला है। मेरा उत्साह बढ़ाया है। मुझे सिर्फ वृंदा का प्यार ही नहीं तुम्हारे जैसा भाई भी मिला है।"
जय ने उसकी पीठ थपथपा कर कहा। मदन बोला,
"वृंदा ने बहुत कुछ सहा है। उस हैमिल्टन की दरिंदगी ने उसे बहुत घाव दिए हैं। अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है कि तुम उसके सारे दुख भुलाने में मदद करो।"
"करूँगा.... मैं अब हर मुश्किल में उसके साथ रहूँगा। उसका हर दर्द मेरा है। मेरी हर खुशी उसकी है। तुम मुझे कभी अपने वादे से मुकरने नहीं पाओगे।"
मदन ने झूठमूठ धमकाते हुए कहा,
"याद रखना वृंदा मेरी बहन है। उसे कोई तकलीफ दी...."
"ना बाबा कभी सोचूँगा भी नहीं। ऐसे पहलवान भाई से कौन भिड़ेगा।"
दोनों ने एक ज़ोरदार ठहाका लगाया। तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। बंसी ने पुकारा,
"भइया दरवाज़ा खोलो।"
मदन ने दरवाज़ा खोला। बंसी भीतर आ गया। उसने खुद ही कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। वह परेशान था। जय ने पूँछा,
"क्या हुआ बंसी ? ऐसे घबराए हुए क्यों हो ?"
बंसी रोने लगा। मदन ने कहा,
"क्या बात है ? भुवनदा तो ठीक हैं ना ?"
बंसी ने रोते हुए कहा,
"वृंदा दीदी अभी तक घर नहीं पहुँचीं। मैं सब तरफ देख आया। कहीं नहीं मिलीं।"
बंसी की बात सुनकर जय और मदन परेशान हो गए। जय को एक धक्का सा लगा। जय ने उसे संभाला और बिस्तर पर बैठा दिया।
जय को ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसके दिल को मुठ्ठी में लेकर भींच दिया हो। वह रोने लगा। मदन ने समझाया,
"जय हिम्मत रखो। वृंदा शायद गांव में किसी के घर चली गई हो ? शायद लता के घर पर ?"
"इस समय कहीं जाने की संभावना तो नहीं है। पर चलकर देख लेते हैं।"
मदन ने बंसी से कहा कि वह भुवनदा के पास जाकर उन्हें संभाले। उनसे कहे कि परेशान ना हों। हम दोनों वृंदा को ढूंढ़ कर ले आएंगे। बंसी चला गया। जय और मदन ने नवल किशोर को बताया कि आवश्यक काम से जाना है। शायद रात में ना लौटें।
दोनों लता के घर पहुँचे। सारे गांव में बात ना फैले इसलिए उन्होंने पूँछा कि क्या वृंदा शाम को उनके घर आई थी। दरवाज़ा चंदर ने खोला था उसने कहा कि नहीं दीदी तो दोपहर को आई थीं।
वहाँ से भी निराश होने के बाद दोनों भुवनदा के घर चले गए। उन्हें बिना वृंदा के आया हुआ देख भुवनदा घबरा गए। अब सबको लगने लगा था कि मामला गंभीर है। वृंदा किसी बड़ी मुसीबत में पड़ गई है।
जय समझ गया था कि वृंदा एक बार फिर हैमिल्टन के जाल में फंस गई है। उसे पछतावा हो रहा था कि उसने अपने दिल की चेतावनी क्यों नहीं सुनी थी। अगर वह वृंदा को गांव की सरहद पर ना छोड़ता। वृंदा को यहाँ तक छोड़ जाता तो ऐसा ना होता।
वह वृंदा के लापता होने के लिए खुद को दोषी मान रहा था।

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