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किराए के टीचर

"अरे! नाश्ता तो कर लेती..." सास की बात अनसुनी करते हुए सीमा बाहर निकल गई।
"आज फिर लेट हो गई।" बुदबुदाते हुए बाएं कंधे से सरकते बैग को संभालती और दाईं कलाई पर बंधी छोटे से डायल की घड़ी को बार-बार देखते हुए, बड़े-बड़े कदमों से टैक्सी स्टैंड की तरफ बढ़ती जा रही थी।
"आराम से बिटिया.." पीछे से किसी ने आवाज दी।
"अंकल जी आप..."रुककर पीछे देखते ही सीमा ने कहा।
"चलो मैं छोड़ दूँ।" सुनकर सीमा बिन कुछ कहे या सोचे उनके साथ बैठ गई या ये कहो उसके पास कुछ भी सोचने का समय ही नही था।
"लो बिटिया! आ गया तुम्हारा स्टॉप।"
"थैंक्यू अंकल" कहकर वो जल्दी से रोड की दूसरी ओर भागी जहाँ उसके स्कूल की वैन खड़ी होती थी।
"अभी तक नहीं आई या फिर आकर निकल गई।" खुद से बात करती हुई उसकी निगाहें उसकी इधर-उधर अपने स्कूल की वैन खोजने लगीं तभी-
"पीं-पीं" करते हुए सफेद रंग की वैन सीमा के सामने आकर रुकी।
"मुझे लगा आप लोग निकल गये।" सीमा वैन में बैठते हुए बोली।
"घर से निकरैं मा देर हुई गई हती, न दिखती तो हम निकर जाते।" स्कूल की सीनियर टीचर राधा मैडम और वैन की मालकिन ने रूढ़ता से कहा जिसे सुनकर सीमा खिड़की के बाहर देखने लगी।
"हमें घंटे-घंटे खड़ा रखा तो कुछ नहीं और खुद 10 मिनिट्स भी नहीं रुक सकतीं।" मन में सीमा ने कहा ही था तभी-
"अइस है, इस बार सब लोग दो-दो महीने का किराया दे देना, अउर सीमा! अबकी बार तो तुम्हायी सैलरी भी तो आएगी, तो पिछले महीने का बाकी भी दे देना।
"सात के हिसाब से तीन महीने की इक्कीस हज़ार सैलरी मिलेगी। नौ इनको दे देंगे तो भी बारह हज़ार बचेगी। फिर तीन महीने की फुर्सत। ये शिक्षा विभाग वाले अनुदेशकों से काम तो टीचरों के बराबर करवाते हैं और सैलरी के नाम पर देते क्या हैं? वो भी तीन-तीन महीने में एक बार....अच्छा मज़ाक है।"
"सीमा??" राधा मैडम की आवाज सुनकर सीमा चेतना में लौटी।
"जी मैम!"
"अबकी बार हिसाब किलियर कर देहो, वो का कि इस बार हमाये साहब स्कार्पियो खरीदें का मन बनाये हैं।"
"जी मैडम!" बोलकर सीमा चुप हो गई।
"2-2 फैक्ट्री, गाँव की खेती का लाखों रुपया आता है, ये भी सरकारी टीचर, 80 हज़ार महीना पाती हैं। मेरे साढ़े सात हजार से इनका कितना भला.... खैर, मुझे क्या? देना है तो दे देंगे।" खुद से बातें करते हुए वो स्कूल पहुँच गई।
"लागत है, बीआरसी (ब्लॉक रिसोर्स क्वार्डिनेटर, बेसिक शिक्षा अधिकारी का कोऑर्डिनेटर ऑफिस) से सुपरवाइजर आये हैं।" वैन से उतरते हुए राधा मैम बोलीं।
"राजन जी, आज बड़े दिनों बाद दर्शन दिए।" राधा मैडम ने राजन के सामने खाली पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
"हाँ मैडम, दूसरे स्कूलों के कुछ इश्यू थे उसी में व्यस्त थे। और आप बताओ, वो छुट्टियों का पैसा..."
"हाँ हाँ वो तो आ गया था। वैसे बताइये नाश्ता क्या करेंगे?" दूसरी टीचर्स को पास आता देख राधा मैडम ने राजन को बीच मे टोकते हुए बात बदली।
"नहीं मैडम! बीएसए ऑफिस में कुछ काम है। आज थोड़ा जल्दी में हूँ तो निकलूंगा।" कहकर राजन ने अपना बैग उठाया और निकल गया। स्कूल की सारी टीचर्स भी अपनी-अपनी क्लास में चली गयीं।

"मैडम! राजन से पता करिए कि सारे अनुदेशकों की सैलरी रुकी है या..." दूसरे दिन सीमा ने लंच के बाद राधा मैडम से कहा जिसे सुनकर वो फ़ोन मिलाते हुए एक ओर चली गयीं।
"सीमा! सारे अनुदेशकों की 2 महीने की सैलरी डाल दी गई है।" फ़ोन पर बात करने के बाद राधा मैडम ने बताया।
"फिर मेरी सैलरी...??" सीमा ने धीरे धीमी आवाज से कहकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
"का हुआ?? तुम्हायी सैलरी नही आई का? छूट गई होयगी, कल बीआरसी चली जाओ और सुनो, ये हज़ार रुपये, राजन का दई देहो।" पैसे देते हुए राधा मैडम बोलीं।
"तीन महीने हो गए, 2 दिन बाद चौथा भी पूरा हो जायेगा फिर भी 2 महीने की सैलरी डाली। सात-सात, चौदह हज़ार में नौ हजार तो राधा मैडम गाड़ी के ले लेगी। चलो फिर भी पांच हज़ार तो बच जायेगा। अगली सैलरी तो दो महीने बाद...." खुद से बात करती हुई सीमा ने पैसे लिए और चुपचाप अपनी क्लास में चली गई।

"मैम! आज थोड़ा जल्दी निकल जाऊं, बीआरसी जाना है, पता नहीं क्यों मेरी सैलरी होल्ड कर दी।" अगले दिन सीमा ने प्रिंसिपल मैम से पूछा।
"हाँ चली जाना। अच्छा सुनो!" कहकर वो बुदबुदाने लगीं 'पांच छुट्टी के हिसाब से...ढाई..'
"राजन को ये पैसे दे देना।"
"जी मैम।" कहकर उसने पैसे लिए और बीआरसी के लिए निकल पड़ी।
"ऐसा क्या है जो हरकोई राजन सर को पैसा देता है? अब मुझे क्या पता, अभी आठ महीने ही तो हुए हैं स्कूल ज्वाइन किये।" खुद से सवाल-जवाब करते हुए सीमा ऑफिस पहुँच गई।
"सर! वो मेरी सैलरी..."
"कौन सा स्कूल?" सीमा की पूरी बात सुने बिना ही बाबू ने सवाल दाग दिया।
"अर्मापुर।"
"अच्छा! वहां जाकर बैठो।" कहकर बाबू अपने काम में लग गया। सीमा अपने बैग को संभालते हुए ऑफिस के कोने पर रखी बेंच पर बैठ गई।
"बड़े बाबू! साहब फ्री हुए क्या?" सीमा के बगल में बैठी एक महिला ने पूछा।
"कहा ना कि जब साहब फ्री होंगे तो खुद बुलाएंगे। आपको ज्यादा जल्दी हो तो कल आना।" बाबू ने रूखे स्वर में कहा।
" कल, कल करके पिछले 20 दिन से परेशान कर दिया।" महिला ने धीरे से कहा और अपने दुपट्टे से माथा पोछकर बोतल से पानी पीने लगी।
"आप पिछले 20 दिन से यहाँ, रोज.... आप भी टीचर हैं?" सीमा ने उसकी ओर देखकर पूछा।
"हाँ! शाहगंज के स्कूल में अनुदेशक हूँ। मेरी 6 महीने की सैलरी रुकी है। पिछले 20 दिन से कभी बीआरसी, कभी बीएसए के चक्कर लगवा रहे हैं। कुल बयालीस हज़ार आने हैं उसमें बीस, हजार मांग रहे, वो भी एडवांस।
मेरे एक जानने वाले हैं शिक्षा विभाग में, उनसे सिफारिश लगवाई तो पंद्रह हजार में बात फाइनल हुई पर शायद साहब को बात बुरी लग गई। पिछले एक हफ्ते से रोज़ सुबह नौ से शाम पांच बजे तक और इंतजार करवाते हैं।" महिला एक सांस में बोलती चली गई।
"आप साहब से मिल लो।" राजन ने ऑफिक में घुसते ही अपने साथ आई एक टीचर से कहा।
"राजन सर!" राजन को देखते ही सीमा उसके पास आई।
"आप.....???"
"सर मैं सीमा, अर्मापुर स्कूल से..."
"ओह हाँ, याद आया।"
"सर प्रिंसिपल मैम ने ये ढाई हजार और राधा मैडम ने एक हज़ार..."
"हाँ ठीक।" सीमा की बात पूरी होने के पहले ही राजन ने झटके से पैसे लेकर जेब में डाले और बोला-
"आप इसीलिए आये थे या कुछ और..."
"सर मेरी सैलरी नहीं आई।"
"अच्छा! आप बैठो, मैं बाबूजी से पता करके आता हूँ।" कहकर राजन साहब के कमरे की ओर चले गए और सीमा वापस आकर बेंच पर बैठ गई।
"ये जो राजन के साथ आई है, जानती हो उसे?" सीमा के बैठते ही उसके बगल में बैठी टीचर ने पूछा।
"नहीं।"
"अरे तुम्हारे अर्मापुर स्कूल में ही तो है। दो साल पहले हम दोनों ने साथ मे ज्वाइन किया था। मैं शाहगंज में रखी गई और राखी अर्मापुर में।"
"पिछले आठ महीने में तो मैंने कभी नही देखा।" सीमा कुछ सोचते हुए बोली।
"ओह! वो उसने ...."
"क्या????" सीमा ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं कुछ नहीं। जब हम दोनों की ज्वाइनिंग हुई तो फिफ्टी-फिफ्टी की बात हुई। लगता है उसने मान लिया।"
"मतलब?? कैसा 50-50???"
"50-50 में स्कूल नहीं जाना पड़ता। जब सैलरी आये तो यहाँ आकर आधी सैलरी का चेक देदो और आधी आप रख लो।"
"लेकिन कभी चैकिंग हुई तो??"
"चैकिंग करने जायेगा कौन??, इन्हीं में से, और वैसे भी आधी सैलरी में सबका हिस्सा होता है। यहाँ से लेकर बीएसए तक।"
"हाहाहा..." राजन के साथ राखी हँसते हुए साहब के कमरे से निकली।
"तो राखी जी, अब अगली मुलाकात कब होगी?" राजन के पूछते ही राखी बोली-
"जब अगली सैलरी आयेगी... हाहाहा..."
"सर मेरी सैलरी???" राजन को देखते ही सीमा उठकर उसके पास आकर बोली।
"अरे हाँ! मेरी बात हुई है, वो क्या है ना सीमा जी, ऑफिस में इधर-उधर थोड़ा बहुत खर्च आयेगा, व्व देख लो तो इस महीने आपकी सारी सैलरी एक साथ आ जायेगी।"
"सर! कितना खर्च होगा?"
"ज्यादा नहीं बस थोड़ा बहुत। आपकी दो महीने की सैलरी रुकी है ना।"
"जी सर!"
"दो महीने....यही कोई पांच हजार...देख लो, जैसा हो बड़े बाबू को बता देना।" कहकर राजन राखी के साथ बाहर जाने लगा। सीमा चुपचाप खड़ी जाती हुई राखी को देखती तो कभी बेंच पर बैठकर पसीना पोछती हुई अनुदेशक टीचर को.....