paraye sprash ka ahsas - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

पराये स्पर्श का एहसास(भाग 1)

सब सहकर्मियों के जाने के बाद सुमित्रा ने राहत की सांस ली थी।वह अभी भी अपने को यहाँ के वातावरण के अनुसार नही ढाल पायी थी।सब लोगो की उपस्थिति में उसे आफिस का माहौल बोझिल सा लगता था।मर्दों के बीच उसे परायेपन का एहसास होता।ऐसा महसूस करती मानो अनजान,अजनबी लोगो के बीच आ फसी हो।मर्दो के सामने स्वंय को उपेक्षित सा महसूस करती।इसलिए ऑफिस खाली हो जाने के बाद वह सकून सा महसूस कर रही थी।
ऑफिस के लोगों ने नियम बना रखा था।10 बजे के बाद आना और 5 बजे से पहले चले जाना।और लोग चाहे जब आये, वह 10 बजे आ जाती थी।आज उसका कुछ काम बाकी रह गया था इसलिए 5 बजे बाद भी रुकी थी।
"अरे तुम गई नही।"बॉस लंच के बाद कहीं चले गए थे।अचानक लौट आये थे।उनकी नज़र सुमित्रा पर पड़ी थी।
"बॉस को सामने खड़ा देखकर सुमित्रा उठते हुए बोली,"सर् कुछ काम रह गया था।
"रहने दो कल हो जाएगा।चलो मेरे साथ।"बॉस बोले
"कन्हा सर्?"
"तुम्हे घुमाकर लाता हूँ।"
सुमित्रा ने सोचा भी नही था कि बॉस की तरफ से कभी ऐसा प्रस्ताव भी आ सकता है।इसलिए अचानक आये प्रस्ताव को सुनकर अचकचा गसी थी,"सर् मुझे घर पहुचने में देर हो जाएगी।"
"डोन्ट वरी,"बॉस बोले,"तुम्हे अपनी गाड़ी से घर छोड़ देंगे।"
सुमित्रा ने बॉस के चुंगल से बचने के लिए एक बहाना बनाया था।लेकिन उस बहाने के असफ़स्ल होने पर दूसरा बहाना बनाना पड़ा,"सर् मेरी तबियत भी ठीक नही है।कही जाने का मन नही है।"
"डोंट ट्राय टू बी स्मार्ट,"बॉस सुमित्रा की बाते सुनकर ताड गए कि वह उनसे बचने का प्रयास कर रही है।इसलिए चिढ़कर बोले,"तुम्हे नौकरी नही करनी?"
बॉस की घुड़की सुनकर सुमित्रा के अतीत के पन्ने फड़फड़ाकर खुल गए थे।
सुमित्रा की शादी उसकी विधवा भाभी ने राघवन से की थी।शादी से पहले उसने सुना था।राघवन बहुत अच्छा लड़का है।उसमें कोई ऐब नही है।सभी अवगुणों से दूर है।शादी से पहले सुमित्रा ने सुना था।शादी के बाद ठीक विपरीत उसके पाया था।
राघवन शराब पीता है।इसका पता तो उसे सुहाग रात को ही चल गया था।सिर्फ शराबी ही नही,गुटके सिगरेट के अलावा उसे जुए का शौक भी था।पति की बुराइयों अवगुणों से परिचित होने पर भी वह नही घबराई।उसे विश्वास था।प्यार और पति सेवा से वह राघवन की सारी बुरी आदतें छुड़वा देगी।
राघवन काम से घर लौटता तो शराब के नशे में झूमता लड़खड़ाता।वह पतिव्रता नारी की तरह उसे सहारा देती।उसके कपड़े बदलती।खाना खिलाती।और रात को इच्छा न होने पर भी पुर्णतया समर्पित होकर पतिव्रता धर्म निभाती।
सुबह जगने पर जब पति का नशा उतर चुका होता,तब उसे प्यार से समझाती।वह पत्नी की बातें ध्यान से सुनता और उन पर अमल करने का वादा करता।लेकिन शाम होते ही अपना वादा भूल जाता।
पहले वह घर खर्च को पैसे देता था,।अब देना बंद कर दिया।सुमित्रा के समझाने पर उससे लड़ने झगडने लगता।
रोज रोज पति का शराब के नशे में गिरते पड़ते आना उसे अच्छा नही लगता था।एक दिन सुमित्रा के सब्र का बांध टूट गया और उसने पति को बुरी तरह डाट दिया।राघवन पति था।मर्द को औरत जलील करे।यह उसे बर्दास्त नही हुआ।राघवन ने उसे धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया।और उसे मारने लगा।सार्वजनिक रूप से हुई बेइज़्ज़ती को सुमित्रा बरदास्त नही कर पाई।और पति का घर छोड़ आयी।


(क्रमश---