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आसमान में डायनासौर - 1

आसमान में डायनासौर 1

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

यकायक हड़कंप सा मच गया था।

उड़नतश्तरियां ही उड़नतश्तरियां!!

आसमान भरा हुआ था उड़नतश्तरियों से।

उड़नतश्तरी यानी कि आसमान में उड़ने वाली वे अंजान चीजें जो दिखने में नाश्ते की तश्तरी की तरह दिखाई देती हैं जो आसमान में घुमती हुई दिखती है। सारा संसार उनके कारण परेशान है, लेकिन आज तक पता नही लगा पाया कि क्या चीजे हैं, और कहा से आती है। एक बार वे दिखीं तो अमेरिका के हवाई जहाजो ने उनका पीछा किया लेकिन देखते ही देखते वे गायब हो गई। विश्व के हर देश में वे दिखती है मगर कोई नही जान पाया कि ये अजनबी वस्तुऐ क्या हैं।

एक बार फिर कई देशों के अंतरिक्ष वैज्ञानिक परेशान थे, क्योंकि सब देशों के आसमान में एक साथ बहुंत सारी उड़नतश्तरियां तैरती हुई देखी गई थी। सारी दुनिया में यही अंन्दाजा लगाया जाने लगा था कि यह उड़नतश्तरी शुक्र ग्रह के निवासी भेज रहे हैं। अमेरिका, जर्मनी और चीन तक के वैज्ञानिक समझ नही पा रहे थे कि उड़नतश्तरी भेजने वाले शुक्र ग्रह और दूसरे अजनबी ग्रहों में रहने वाले एलियन के मनसूबे जाने क्या थे ?

बहुत से वैज्ञानिक यह मानते थे कि हमारे सूर्य और उसके आसपास चक्कर लगाने वाले ग्रहों की जो आकाश गंगा है उसके किसी भी ग्रह पर जीवन नही है क्योंकि कितने साल हो चुके तब सोवियत रूस ने हमारे सूर्य के आसपास चक्कर लगा रहे दूसरें ग्रहों पर जीवन है या नही यानि कि वहां आदमी जैसा कोई प्राणी रहता है या नही, यह पता लगाने के लिए एक अंतरिक्ष यान भेजा था- ““पायोनियर”! पायोनियर का काम सुरक्षा डॉग की तरह था, वह ज्यों ही किसी ग्रह को देखता था उसके चक्कर लगाने लगता था और वहां के फोटो धरती पर सोवियत रूस को भेज देता था जिससे पता लगता था कि वहां कोई चलता फिरता प्राणी दिख रहा है या नही। पायनियर से पता लगा कि इस सूर्य की आकाशगंगा में कोई ऐसा ग्रह नहीं जहां मनुश्य की तरह कोई रहता हो तो पायनियर को वहीं सेे आकाशगंगा से बाहर जाकर नयी आकाश गंगा तलाशने के लिए भेज दिया गया था। बाद में ““पायोनियर”” से सोवितय रूस का सम्पर्क ही टूट गया था जिससे कि उससे कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी।

भारत वर्ष के वैज्ञानिकों ने विश्व में सबसे ज्यादा हिम्मत दिखाई और यह तय किया था कि हमारे वैज्ञानिक एक लम्बे समय तक के लिए अंतरिक्ष में सैर करने को निकलेंगे और आखिर में उस ग्रह को खोज निकालेंगे जहां से यह उड़नतश्तरी भेजी जाती है। इस बात पर भी खूब विचार किया गया कि किसको अंतरिक्ष भेजा जायेगा।

भारत के प्रोफेसर दयाल का नाम सर्वसम्मति से उन वैज्ञानिको में से चुने गये जिनकी बहादुरी पर हर देशवासी को गर्व है । दयाल ने यह हिम्मत दिखाई है कि वे अपने चेले अजय व अभय के साथ अपने अंतरिक्ष यान में बैठकर हमारे सूर्य के आसपास घूमने वाले ग्रहों की आकाश गंगा से बाहर जाकर दूसरी आकाश गंगा की यात्रा करेंगे और यह जानने का प्रयास करेंगे कि पृथ्वी के अलावा दुसरे किस देश पर जीवन है, जहां से उड़न तश्तरी आती हैं। इस यात्रा में उनके साथ अजय और अभय को भी जाने की इजाजत भारत सरकार और अजय व अभय के पापा फौजीजासूस केदार सिंह से मिल गई थी।

भारत के वैज्ञानिक ने मिलकर एक अंतरिक्ष यान बनाया था- “ग ग न”। इस यान को ढ़ोकर आसमान में ले जाने वाले राकेट का नाम था ““गगनरथ””।