Ek muththi ishq - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

एक मुट्ठी इश्क़--भाग (६)


शाहीन का नाम सुनकर सबको तसल्ली हो गई और सब अपनी तलवारों के साथ वहाँ से चले गए,तब मौलवी साहब बोले,बहुत बचें मियाँ, ये सब तो खून के प्यासे थें,चलो चुपचाप जाकर लेट जाओ लेकिन गहरी नींद में मत सोना,क्या पता दूसरी आफत कब आ जाए?
जी,सही कह रहे हैं आप,चलिए आप भी आराम कर लीजिए और इतना कहकर इख़लाक़ लेट गया पर आंखों में नींद कहाँ, अपनी मरहूम वीबी को याद करके उसकी आंखे भर आई,अभी चार साल पहले ही तो उसका निकाह हुआ था,बड़ी बहन के ससुराल से उनके किसी रिश्तेदार के यहाँ से रिश्ता आया था,हम बहन भाई अनाथ थे,जैसे तैसे बहन का निकाह हो गया, मैं गरीब अकेला,ना कोई जागीर ना कोई जमीन,एक साहूकार के खेतों मे सब्जियों की खेतीं करता था,जो भी मिल जाता उसी मे खुश रहता,फिर बहन के ससुराल के रिश्तेदार एक अनाथ लड़की का रिश्ता लेकर आए,बहन राजी हो गई कि चलो भाई को रोटी पानी का सहारा हो जाएगा,एक दूसरे से ना मिले ना देखा और हमारा निकाह पढ़वा दिया गया।।
इससे क्या फरक पड़ रहा था कि वो मुझे पसंद करती थी या नहीं, या मैं उसे पसंद करता था या नहीं,बस अब हम दोनों अनाथ ही एकदूसरे के सहारा थे,मैं दिनभर खेंतों में काम करता वो हमारा घर सम्भालती,घर तो क्या कहों,घर के नाम पर एक छोटी सी कोठरी थीं, बस चल रही थीं जिन्दगी, फिर शाहीन ने हमारी जिन्दगी में कदम रखें, उसके साथ हम दोनों अपना बचपन जीने लगें, बाद मे इम्तियाज हुआ,हमारा समझौते वाला निकाह अब मौहब्बत में तब्दील होने लगा था कि तभी ये हादसा हो गया, तुम हमेशा के लिए मुझे छोड़कर चली गई, अल्लाह् तुम्हें जन्नत बख्श़े और यही सोचते सोचते इख़लाक की आंख लग गई।।
सुबह हो चुकी थीं, जिस पेड़ के नीचे पूरा परिवार सो रहा था,उस पेड़ पर चिडियाँ चहचहा रहीं थीं, अभी सूरज की लालिमा धरती पर नहीं फैली थी,आश्विन का मास चल रहा था,हवाओं ना ठंडक महसूस हो रही और ना गर्मी,मौसम सुहाना सा था ।।
तभी मौलवी साहब,इख़लाक के पास आकर बोले___
उठो मियाँ!यही मौका हैं, तुम अपने परिवार के साथ अपनी बहन के गांव निकल जाओ,दो तीन घंटों मे पहुंच जाओगे।।
ठीक है मौलवी साहब और इतना कहकर इख़लाक ने गुरप्रीत को जगाया,बोला अब हमें निकलना होगा और तभी गुरप्रीत बोली, बस मुझे आधे घटे का वक्त दे दीजिए,मै दो चार रोटियां सेंक लेतीं हूँ, बच्चों को बीच मे भूख लग आई तो क्या करेंगे?
तब मौलवी जी बोले,आपकी बेग़म साहिबा ठीक कह रहीं हैं जनाब!
तब गुरप्रीत ने जल्दी जल्दी हाथ मुँह धुले और दो चार रोटियां सेंकीं कुछ आलू भूने,और सारा समान बांधकर, मौलवीं साहब का शुक्रिया अदा कर रुख़सत हो चले,इख़लाक सामान लिए था और शाहीन को भी और गुरप्रीत ने इम्तियाज को सम्भाल रखा था।।
अब पूरी तरह से सुबह हो चुकी थी,वे सब एक कच्चे रास्तें से होते हुए चले जा रहे थे,अगल बगल बहुत ही घने पेड़ और झाडियां थीं,कभी कहीं कोई गिरगिट दिख जाता या रास्ते से गुजरती हुई कोई गोह दिख जाती,रंग बिरंगी तितलियों को देखकर शाहीन भी खुश हो रही थीं,कभी मोर दिख जाती तो भी तोते बसंती हवा बह रही थीं,बस दिल मे ये डर समाया था कि कहीं कोई मिल ना जाए।।
चलते चलते रास्तें में एक बड़ा सा पोखर मिला,तब गुरप्रीत बोली, यही बैठकर खाना खिला देते हैं बच्चों को और आप भी खा लीजिए,
इख़लाक बोला,आप ठीक कह रहीं हैं मोहतरमा!
और सबने मिलकर पहले पोखर मे हाथ पैर धुले फिर सब खाना खाने लगे,गुरप्रीत बड़े प्यार से इम्तियाज को रोटी को पानी से मुलायम करके छोटे छोटे निवाले खिला रही थीं और वो खुश भी था उसे लग रहा था कि गुरप्रीत उसकी अम्मी हैं, शाहीन भी गुरप्रीत से घुल मिल गई थीँ।।
और दोनों बच्चों को खुश देखकर इख़लाक को भी सुकून मिल रहा था,उसे लगा बाप चाहें जितना भी कर ले लेकिन बच्चे मां के ही साथ खुश रह सकते हैं, सब खाना खाकर थोड़ी देर के लिए पेड़ के नीचे आराम करने लगें तभी अचानक पता नहीं क्या हुआ,गुरप्रीत को उल्लटियाँ होने लगी,जो खाया था सब बाहर निकल गया, अब इख़लाक परेशान हो उठा,उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या हो रहा हैं।।
उसने कहा, मोहतरमा लगता हैं थकान और ना सोने से आपको गर्मी हो गई हैं इसलिए शायद ऐसा हो रहा हैं और रही खाने की बात तो वहीं खाना तो हम सबने भी खाया हैं कुछ होता तो हम सबको भी होता।।
जी,आप शायद ठीक कह रहे हैं जनाब! मुझे भी यही लग रहा है शायद थकान की वजह से ही ऐसा हो रहा है आप ऐसा किजिए कहीं ईमली का पेड़ देख लीजिए, उसकी पत्तियाँ ले आइए,वो खट्टी होती हैं, उनको खाने से शायद मेरा जी अच्छा हो जाए,गुरप्रीत ने इख़लाक़ से कहा।।
वो लोग तो वैसे भी जंगल वाले रास्तें मे थे तो इमली का पेड़ आसानी से मिल गया,इख़लाक ने इमली के पेड़ से कुछ पत्तियाँ तोड़ी और गुरप्रीत को थमा दीं,गुरप्रीत ने वहीं पेड़ के नीचे बैठकर इमली की पत्तियाँ खाईं, वो अब खुद को बेहतर महसूस कर रही थी, थोड़ी देर आराम करने के बाद बोली, अब मैं ठीक हूँ, चलिए आगें चलते हैं, अब तो खाना भी खत्म हो गया,बच्चे फिर कुछ देर मे भूखे हो जाएगें।।
इख़लाक ने कहा,इतनी जल्दी नहीं है मोहतरमा, आप पहले ठीक हो जाइए फिर चलते हैं।।
नहीं मैं ठीक हूँ, जनाब! अब आगे बढ़ते हैं,गुरप्रीत बोली।।
ठीक है लेकिन आपको लगे कि आप की तबियत ठीट नहीं हैं तो बता दीजिएगा।।
हां..हां..बिल्कुल, गुरप्रीत बोली।।
और फिर सब आगे बढ़ चले।।
एक दो घंटे मे वो सब इख़लाक की बहन फात़िमा के घर पहुंच गए लेकिन इख़लाक ने वहां जाकर देखा कि वहाँ भी मातम पसरा हैं, फात़िमा के शौहर भी दंगाइयों की भेंट चढ़ गए थे और फात़िमा के घर को आग लगा दी गई थी जिससे सब जलकर खाक़ हो गया था किसी तरह से फात़िमा और उसका बेटा असलम बच गए थे,फात़िमा भाई को देखकर फूट फूटकर रो पड़ी,भाई भी बहन का दु:ख ना देख पाया और रोते हुए बहन को गले लगा लिया।।
जब रो रोकर दोनों का दु:ख कम हुआ,तब फात़िमा को इख़लाक के बच्चों और बीवी का ध्यान आया, तब इख़लाक ने बताया कि वो भी दंगाईयों की भेंट चढ़ गई।।
तो ये दुपट्टे के पर्दे मे कौन हैं? फात़िमा ने पूछा।।
आपा!ये गुरप्रीत हैं, इनके शौहर इन दंगों मे ना जाने कहाँ खो गए, बेचारी रास्ते में बेहोश पड़ी थी,मुझे मिल गई तो मैने कहा कि जब तक दंगे खत्म नहीं हो जाते,आप हमारे परिवार मे शामिल हो जाइए और देखिए ना बच्चे भी तो इनसे कितना घुल मिल गए हैं, इख़लाक बोला।।
लेकिन ये तो हिंदू परिवार से है, ये हमारे साथ कभी नहीं रह सकती, फात़िमा बोली।
लेकिन, आपा! इन बुरे हालातों में कहाँ जाएगी बेचारी, इसे तो ये भी नहीं पता कि अपने इससे बिछड़ कर कहाँ गए, इख़लाक बोला।।
वो तो ठीक है, इख़लाक! लेकिन समाज से क्या कहोगे कि एक हिन्दू लड़की को हमने अपने यहाँ पनाह दी हैं तो हमें सब जिंदा नहीं छोड़ेगा, अपने शौहर को तो खो चुकी हूँ, अब अपने भाई और बेटे को नहीं खोना चाहती,फात़िमा रोते हुए बोली।।
लेकिन आपा!हम किसी से नहीं कहेंगे कि ये गुरप्रीत हैं हम इसका नाम जीनत़ बताऐंगे, इख़लाक बोला।।
और जो तुम्हारी बीवी को जानते थे उनसे क्या कहोगे, फात़िमा बोली।।
उनसे कह देगें कि वो तो अल्लाह् को प्यारी हो गई थी बीमारी से,तब कुछ महीनों पहले ही मैने दूसरा निकाह कर लिया हैं, इख़लाक बोला।।
तो सबसे झूठ बोलोगे, इस हिन्दू लड़की के लिए,फात़िमा बोली।।
झूठ कहाँ हैं आपा! ये तो सही हैं ना कि मेरी बीवी नहीं रहीं और एक झूठ बोलने से किसी की जान बचती हैं तो मेरे ख्याल से ये गलत नहीं होगा,इंसानियत भी तो कुछ होती हैं ,इख़लाक़ ने फात़िमा से कहा।।
ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्जी, फात़िमा ने गुस्से से कहा।।
शाम होते होते बगल वाली दर्जिन सहेली से एक जोड़ी सलवार कमीज और दुपट्टा उधार लाकर गुरप्रीत को देते हुए बोली, लो बदल लो,तुम्हारे कपड़े बहुत मैले हो चुके हैं।।
शुक्रिया आपा,गुरप्रीत खुश होकर बोली।।
हां..हां..रहने दे..रहने दे..ज्यादा प्यार मत दिखा और झूठा मूठा गुस्सा दिखाकर फात़िमा चली गई।।
और अब गुरप्रीत ,जीनत़ बनकर इख़लाक और फात़िमा के परिवार के साथ रहने लगी,फातिमा का घर तो जलकर खाक़ हो चुका था,अभी उसके खेत सही सलामत थे,खुद़ा के फज़ल से बच गए थे,खेतों मे ही कच्ची छोटी सी झोपड़ी पहले से ही बनी थी क्योंकि खेतों की रखवाली के लिए फात़िमा के शौहर रात को ज्यादातर खेतों मे बनी झोपड़ी मे ही रूकते थे,इसलिए वहां जरूरत का सामान भी मौजूद था,तब सबने खेतों मे रहने के लिए सोचा क्योंकि खेंतों की फसल अभी सही सलामत थी,इससे खेतो की रखवाली भी जाएगी और कम से कम बच्चे झोपड़ी के अंदर रह लेगें।।
और सब खेतों मे रहने के लिए पहुंच गए,वहाँ कुआँ भी तो पानी की भी परेशानी नहीं थीं लेकिन इतने छोटे झोपड़ी मे सब कैसे आएगें क्योंकि अब सर्दियां शुरु होने वाली थीं तो इख़लाक बोला,आपा! हम सब मिलकर एक कोठरी और बना लेते हैं कल से ही मै जमीन से मिट्टी खोदने का काम शुरू करता हूँ,मिट्टी की दीवारें थोड़ी मोटी बनाएगें ताकि बारिश मे जल्दी घुल ना सकें।।
कोटरी बनाने का काम शुरू हो गया, इख़लाक ने मिट्टी खोद डाली,अब उसमे पानी डालकर उसे गीला किया गया,इस काम मे बहुत मेहनत थी,इख़लाक गुरप्रीत से मना करता लेकिन वो ना मानती और मिट्टी के बड़ बड़े लौदें लेकर दीवार बनाने मे लग जाती।।
अभी दो चार दिन ही हुए थे घर बनाने का काम करते हुए कि एक सुबह जीनत़ मिट्टी लेकर उठी ही थी कि चक्कर खाकर गिर पड़ी,जब उसे इस तरह इख़लाक ने देखख तो फौरन फात़िमा को आवाज़ देकर बुलाया, फात़िमा ने जीनत़ के मुँह पर पानी के छींटे मारे तो जीनत़ को होश आ गया।
फात़िमा बोली, जा हकीम साहब को बुलाकर ला,इसकी तबियत ठीक नहीं,मैने कल इसे उल्टियाँ करते भी देखा था,मैने कहा भी था कि तू आराम कर लेकिन आज ये फिर काम में लग गई हैं।।
हांँ, आपा !दो चार दिन पहले जब हम यहाँ आ रहे थे,तब भी इन्हें उल्टियाँ हुई थीं, इख़लाक बोला।।
अच्छा, जा हकीम साहब को जल्दी से बुलाकर ला फात़िमा फिर से बोली और इख़लाक़ कीम साहब को अपने साथ लेकर आया।।
हकीम साहब ने फात़िमा की नब्ज टटोली और बोले___
मुबारक हो बरखुरदार! आप फिर से बाप बनने वाले हैं।।
ये सुनकर सबके चेहरों का रंग उड़ गया।।

क्रमशः__
सरोज वर्मा___