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दर्द.

दर्द

एक शहर में एक छोटा

सा मोहल्ला था। जहाँ लगभग सब धर्मों और जातियों के लोग रहते थे। उन में एक परिवार था जिनके सदस्य लिलिपुट जैसे दिखते थे। उस परिवार में पति

पत्नी और उनका एक लड़का था। उनके लड़के का नाम शम्मी था। शम्मी उच्च विद्यालय में आठवीं कक्षा में था। उसी मोहल्ले में एक लड़का था मिर्ज़ा। मिर्ज़ा दिखने में हट्टा-कट्टा था। मिर्ज़ा के पिता की मोहल्ले के मोड़ पर चाय की दुकान थी। मिर्ज़ा भी आठवीं में पढ़ता था पर किसी दूसरे विद्यालय में। मिर्ज़ा हर किसी से मज़ाक करता था और आते-जाते लोगों को तंग करता था। मिर्ज़ा के पिता उसे बहुत समझाते थे कि ऐसा मत किया कर बेटा, पर मिर्ज़ा मानने वाला नहीं था। उधर शम्मी के माता-पिता ने उसे अच्छे संस्कार दिए थे। शम्मी सबका आदर करता था जब भी कोई उसके घर आता, शम्मी सबसे पहले उनके चरण-स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेता और अगर बड़ों के बीच बात चल रही हो तो बीच में कभी नहीं बोलता था। शम्मी हर शाम मंदिर जाता था। जहाँ एक और शम्मी में अच्छे संस्कार से वहीं दूसरी तरफ मिर्ज़ा में बुरी आदतें थी।

शम्मी अपनी दिनचर्या के अनुसार शाम को मंदिर जाने के लिए निकला। शम्मी ने जाते-जाते मिर्ज़ा के पिता को प्रणाम किया। उधर से मिर्ज़ा भी दुकान पर बैठा था। शम्मी मिर्ज़ा की दुकान से थोड़ा ही आगे निकला था कि पीछे से आवाज़ आई “बौने”। शम्मी ने पीछे मुड़कर देखा तो मिर्ज़ा ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। शम्मी चुपचाप मंदिर की तरफ़ चल दिया। शम्मी ने मंदिर में माथा टेका और प्रसाद लेकर घर की तरफ़ बढने लगा। शम्मी के घर के रास्तें में ही मिर्ज़ा का घर और दुकान थी। मिर्ज़ा की दुकान उसके घर के नीचे ही थी। शम्मी जब मंदिर से घर वापिस जा रहा था तो रास्ते में मिर्ज़ा के पिता ने शम्मी से प्रसाद माँगा। शम्मी ने मुस्कुराते हुए उन्हें प्रसाद दिया और घर की तरफ़ जाने लगा जैसे ही वो आगे बढ़ा फिर आवाज़ आई “बौने ओए”। इस बार आवाज़ एक नहीं दो थी। एक मिर्ज़ा की और एक उसके चचेरे भाई की। शम्मी घर चला गया। घर जाकर शम्मी ने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया। शम्मी की माता तुरंत मिर्ज़ा के घर गयी और उसके माता-पिता से बात की। शम्मी की माता के सामने मिर्ज़ा के माता-पिता ने मिर्ज़ा को डांटा। शम्मी की माता घर वापिस लौट आई। इधर शम्मी के मन में एक हीन भावना ने जन्म लेना शुरू कर दिया। शम्मी ने अपनी माँ से पूछा कि माँ मिर्ज़ा ने बौना क्यूँ कहा। शम्मी की माँ ने उसे बताया कि वो तो पागल है बेटा उसकी बात मत सुनों। शम्मी ने अपनी माँ का कहा मान लिया। थोड़े समय बाद शम्मी उस बात को भूल गया और अपना खेलने लगा। अगले दिन फिर शम्मी मंदिर के लिए निकला तो मिर्ज़ा ने फ़िर आवाज़ लगाई “ऐ बौने कहाँ जा रहा है”? शम्मी ने पीछे मूडकर देखा तो मिर्ज़ा झटसे घर के अंदर चला गया। उस समय मिर्ज़ा के पिता दुकान पर नहीं थे। शम्मी ने मिर्ज़ा को कुछ नहीं कहा। शम्मी के चुप रहने से मिर्ज़ा को लगने लगा कि ये क्या करेगा। उसने हरदिन शम्मी को ऐसे ही तंग करना शुरूकर दिया था। मिर्ज़ा के पिता उसे बहुत समझाते थे कि हमें इसकी मदद करनी है तंग नहीं करना, पर मिर्ज़ा है के समझने को तैयार नहीं था।

एक शाम जब शम्मी मंदिर के लिए निकला तो मिर्ज़ा के घर उसके रिश्तेदार आए हुए थे। मंदिर जाते हुए तो पता नहीं मिर्ज़ा ने शम्मी को शायद नहीं देखा पर वापिस आते देख लिया। मिर्ज़ा के घर जो रिश्तेदार आए थे उनमें दो बच्चे भी थे। मिर्ज़ा ने शम्मी की तरफ़ इशारा किया और उन बच्चों से कहा जब वो पास आए तो “बौना” कहना। बच्चे इतने समझदार नहीं थे। मिर्ज़ा ने बच्चों को जैसा सिखाया उन्होंने वैसे ही बोल दिया। शम्मी उस समय कुछ नहीं बोला और सीधा घर चला गया। रोज़-रोज़ “बौना” शब्द सुन-सुनकर शम्मी के अन्दर गुस्सा भरने लगा था। शम्मी कर कुछ नहीं सकता था इसीलिए शम्मी ने घर पर ही जब गुस्सा आता तो कोई न कोई चीज़ उठाकर जमीन पर मारता। समय बीतता चला गया। मिर्ज़ा के साथ मोहल्ले के अन्य बच्चों ने भी कभी-कभी शम्मी को बौना कहकर बुलाना शुरू कर दिया था। शम्मी के अंदर आत्मबल की कमी होने लगी थी। शम्मी दुखी रहने लगा था। विद्यालय में भी कुछ लोग शम्मी को बौना कहकर बुलाने लगे थे। पहले तो शम्मी ऑटो में विद्यालय जाया करता था। पर फिर जब पैदल जाने लगा तो कई लोग उसे देखकर सड़क पर ही हँसने लगते थे। पहले तो केवल मिर्ज़ा ही शम्मी का मज़ाक उड़ाता था पर अब समाज के कई लोग शम्मी का मज़ाक उड़ाने और उसपर हँसने लगे थे। शम्मी इन सब बातों को सहन नहीं कर पाता था और कभी-कभी ख़ुद को कमरे में बंद करके रोने लगता था।

समय का चक्र चलता चला गया। शम्मी ने दसवीं कक्षा पास कर ली थी। शम्मी को अब दूसरे विद्यालय में दाखिला लेना था। शम्मी ने दुसरे विद्यालय में दाखिला लिया। जब दाखिला लिया तो शम्मी को पता चला कि मिर्ज़ा भी उसी विद्यालय में पढ़ता है। शम्मी हर शाम की तरह फ़िर मंदिर जाने के लिए घर से निकला तो मिर्ज़ा के पिता ने शम्मी से एक प्रश्न किया “और बेटा कौन से विद्यालय में दाखिला दिया”? तब शम्मी ने अपने विद्यालय का नाम बताया। मिर्ज़ा के पिता ने कहा कि “बेटा उसी विद्यालय में तो मिर्ज़ा भी पढ़ता है”। फ़िर मिर्ज़ा के पिता ने शम्मी से प्रश्न किया कि “बेटा कैसे जाते हो विद्यालय तक”? तब शम्मी ने उत्तर दिया कि “जी कुछ दूर तक पैदल जाता हूँ और फ़िर ऑटो से आगे जाता हूँ”। मिर्ज़ा के पिता ने कहा कि “बेटा तुम मिर्ज़ा के साथ ही विद्यालय चले जाया करो वो स्कूटर से जाता है तेल का खर्चा आधा-आधा कर लिया करो”। शम्मी ने अपने घर आकर सारी बात बताई। तो शम्मी के माता-पिता ने कहा “चले जाया करो मिर्ज़ा के साथ ही”। अगले दिन से मिर्ज़ा और शम्मी साथ-साथ विद्यालय जाने लगे। दोनों ने साथ ही में एक अध्यापिका के घर पढ़ना भी शुरू किया। मिर्ज़ा का एक दोस्त भी वहाँ पढ़ने आने लगा। सब कुछ ठीक चल रहा था कि मिर्ज़ा ने फिर शम्मी को छेड़ना शुरूकर दिया। शम्मी को पुरानी सब बातें याद थी कि कैसे मिर्ज़ा उसे चिढाया करता था। अगले दिन मिर्ज़ा ने कहा कि कहीं घुमने चलते हैं। मिर्ज़ा के दोस्त ने अपना स्कूटर उस अध्यापिका के घर के नीचें छोड़ दिया और घुमने जाने लगे। मिर्ज़ा ने स्कूटर खुद चलाने का निर्णय किया। मिर्ज़ा के दोस्त ने कहा कि वो बीच में बैठेगा। शम्मी को मजबूरन स्कूटर के पीछें बैठना पड़ा। शम्मी की पीठ पर स्टेपनी के नट चुभ रहे थे। जब शम्मी ने मिर्ज़ा से कहा कि उसकी पीठ पर स्टेपनी के नट चुभ रहे हैं तो मिर्ज़ा ने मज़ाक करना शुरूकर दिया और जानबूझकर गड्ढों से स्कूटर निकलने लगा जिसे शम्मी की पीठ में सूजन आ गयी।

शम्मी ने उस दिन के बाद से मिर्ज़ा के साथ जाना बंदकर दिया।शम्मी बहुत दुखी रहने लगा था। शम्मी ने अब मंदिर जाना भी बंदकर दिया था। शम्मी रिक्शा पर उन अध्यापिका के घर पढ़ने जाता था। रास्तें में मिर्ज़ा और उसका दोस्त रिक्शा चालक से कहता कि “इसे उतार दो रिक्शे से हम तुम्हें इसके दोगुने पैसे देंगे”। अगले दिन से शम्मी ने घर से पैदल ही जाना शुरूकर दिया। शम्मी लगभग पैदल ही तीन किलोमीटर तक चलता था। रास्तें में फ़िर भी मिर्ज़ा और उसका दोस्त जाते जाते “बौने” शब्द का प्रयोग करके जाते। किसी तरह शम्मी ने इन बातों को सहन करते हुए। अपनी बाहरवीं तक की पढ़ाई पूरी कर ली। अब शम्मी ने सरकारी कॉलेज में दाखिला ले लिया और मिर्ज़ा अपने पिता के काम में उनका साथ देने लगा। मिर्ज़ा के पिता को कैंसर हो गया जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गयी। दूसरी तरफ़ शम्मी का मोहल्ले वालों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनने शुरू हो गए। मोहल्ले के कुछ परिवारों के साथ उठाना बैठना शुरू हो गया। मिर्ज़ा कभी कभी शम्मी को छेड़ता था पर शम्मी उसे अनसुना कर देता था। हाँ जवाब न देने के कारण शम्मी में गुस्सा बहुत भरने लगा था।

मोहल्ले के एक घर से शम्मी का बहुत ज्यादा प्यार बढ़ गया था। शम्मी हर शाम उनके घर चाय पीने जाता और उनके साथ बातें करता। उस परिवार में जो लोग थे उनका शम्मी अपने माता-पिता जितना आदर करता था वो परिवार भी शम्मी से प्यार करता था और अपने बेटे की तरह मानता था। उस घर के मुखिए का नाम शिव कुमार था। शम्मी ने हर तरह से शिव कुमार और उसके परिवार की मदद करनी शुरूकर दी थी। बहुत अच्छे दिन बीत रहे थे शम्मी के दिन। शम्मी ने पढ़ाई के साथ साथ अपना खुद का मोबाइल में पैसे डालने का काम शुरूकर दिया था। शम्मी सामाजिक मीडिया पर भी सक्रिय रहने लगा था। मोहल्ले के कुछ लोग शम्मी से ही मोबाइल लैपटॉप के बारे में सब बातें पूछते थे। ऐसे ही बहुत समय तक चलता रहा। शम्मी को इस काम में इतना फ़ायदा नहीं हुआ जिसकी वजह से शम्मी को काम बंद करना पड़ा। शम्मी अब बस अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान देने लगा था। एक दिन शम्मी फेसबुक चला रहा था तो शम्मी को एक अश्लील सन्देश आया। सन्देश एक लड़की के नाम से था। जिस नाम से सन्देश आया था वो मिर्ज़ा की बहन थी। पर शम्मी को पता था कि मिर्ज़ा की बहन की शादी हो चुकी है और वो कभी गलत सन्देश नहीं भेजेंगे। शम्मी सारी बात समझ गया कि ये मिर्ज़ा ही है जो उसे परेशान करना चाहता है। शम्मी ने उस सन्देश का कोई जवाब नहीं दिया।

एक दिन रविवार का दिन था। शम्मी अपने घर पर ही बैठा किताब पढ़ रहा था तभी शम्मी को एक फ़ोन आया। फ़ोन शिव कुमार का था जिनके यहाँ शम्मी अक्सर चाय पीने जाया करता था। शम्मी ने फ़ोन उठाया तो सामने से शिव कुमार ने कहा कि “बेटा क्या कर रहे हो”? शम्मी ने उत्तर दिया कि “कुछ नहीं बताइए कोई काम था”? तब शिव कुमार ने कहा कि “हम सभी बाहर खड़े थे तो हमने सोचा की तुम्हें भी बुला ले बाहर”। शम्मी ने इस बात का उत्तर दिया कि “ठीक है मैं आता हूँ बाहर”। शम्मी बाहर गया। सभी मिर्ज़ा की दुकान के आगे खड़े थे। शम्मी ने सबको प्रणाम किया और उनके पास खड़ा हो गया। उन में से एक बलबीर नाम का महोदय, अपने घर के कुत्ते को घुमाने लाये थे वो भी सबके पास खड़े हो गए। एक महोदय ने शम्मी से कहा “ मिर्ज़ा की दुकान के आगे बनी सीडी पर बैठ जाओ खड़े खड़े थकान हो जाएगी”। शम्मी उनकी बात मान वहाँ बैठ गया। बातें शुरू हुई बातों बातों में एक सज्जन जिनका नाम विवेक था। उन्होंने शम्मी से कहा “तुम पढ़ाई कर रहे हो तो विश्वविद्यालय की परीक्षा के बारे में कुछ जानकारी आये तो हमें बता देना कि कब होने हैं हमारा बेटा प्राइवेट पढ़ रहा है”। शम्मी ने कहा ठीक हैं विवेक जी मैं बता दूंगा आपको। अभी बात चल ही रही थी कि मिर्ज़ा ने अपने घर की बाल्कुनी से देखा कि शम्मी उसके घर के नीचे बैठा है और उसके सामने एक कुत्ता बैठा है। मिर्ज़ा ने अपने घर की बाल्कुनी से बिस्कुट शम्मी के उपर फैंकने शुरूकर दिए ताकि वो कुत्ता शम्मी के पास आये और शम्मी उससे डरे। शम्मी ने उस समय भी कोई जवाब नहीं दिया और चुप-चाप घर लौट आया।

वत्सएप्प समूह में मोहल्ले के कई लोग और मोहल्ले के बाहर के कई लोग जुड़े हुए थे। उसी समूह में एक सन्देश आता है कि एक टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम आएगा जिसमें रात 10 बजे पर्यावरण में बारे में ज्ञान की बातें बताई जायेंगी। शम्मी को जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा थी। जिस व्यक्ति ने वो सन्देश भेजा था समूह में उसे शम्मी ठीक से नहीं जानता था। रात के 10 बजे शम्मी ने वोहि टीवी चैनल लगाया। टीवी चैनल पर कुछ और ही आ रहा था पर्यावरण के बारे में नहीं था। शम्मी ने उसी समूह में एक सन्देश लिखा कि “भाई जी टीवी चैनल पर वो प्रोग्राम नहीं आ रहा है जिसके बारे में अपने सन्देश भेजा था। उसी समूह में मिर्ज़ा भी था उसने झट से सन्देश भेजा “सो जा फिर”। इतना पढ़ते ही शम्मी को समझ आ गया कि वो फिर से मज़ाक कर रहा है और तंग करना चाहता है। शम्मी ने हाथ जोड़कर एक संदेश भेजा कि “मिर्ज़ा भाई हर समय मज़ाक उचित नहीं होता। कई बार मज़ाक उल्टा भी पड़ जाता है”। शम्मी के इस संदेश को पढ़ते ही मिर्ज़ा और उसके भाई ने उसी समूह में सन्देश भेजना शुरूकर दिया कि “क्या मज़ाक किया है हमने”? बात बिगड़ने लगी, बहस बढ़ने लगी मिर्ज़ा को आस थी कि शम्मी हर बार की तरह चुप हो जायेगा। तभी समूह ने व्यक्ति ने शिव कुमार को फ़ोन करके बताया कि समूह में बहस हो रही है। शिव कुमार ने बिना समूह की वार्तालाप को पढ़े शम्मी को फ़ोन किया और कहा जो तुम कर रहे हो वो ठीक नहीं कर रहे हो। हमारे मोहल्ले की बदनामी हो रही हैं इस बहस को बंद कर दो। शम्मी उनका आदर करता था इसीलिए उसने कहा कि मैं माफ़ी मांग लेता हूँ। शम्मी ने फ़ोन काटा और समूह में माफ़ी मांग ली। तब मिर्ज़ा के भाई ने पलट कर फिर सन्देश भेजा कि माफ़ी तुम पहले ही मांग लेते।

अगले दिन सुबह शम्मी सब कुछ भूल गया कि कोई बहस हुई थी। उसने सोचा कि होता रहता है थोडा बहुत कोई बात नहीं। तीसरे दिन शम्मी सामाजिक मीडिया पर सक्रिय था तो उसके वत्सएप्प पर एक बहुत ही अच्छा सन्देश आया कि “मुर्ख व्यक्ति से कभी बहस नहीं करनी चाहिये, उनसे क्षमा मांग लेनी चाहिये, इससे आपके समय कि बचत होगी”। शम्मी ने यही उठाकर वत्सएप्प के स्टेटस पर लगा दी। लगभग पांच मिन्ट बाद शम्मी को याद आया कि दो दिन पहले उसने यही किया था और अभी ये स्टेटस लगाना ठीक नहीं होगा। उसने तुरंत उस स्टेटस को हटा दिया। इतने में मोहल्ले के दो तीन लोगों ने उस स्टेटस को देख लिया था। शम्मी के फ़ोन पर एक अनजान नंबर से सन्देश आया जिसमें लिखा था कि “हिम्मत है तो सबके सामने चरण छुकर माफ़ी मांग”। शम्मी ने सारी बात अपने पिता को बताई शम्मी के पिता ने कहा कि सबके नंबर अपने फ़ोन में से मिटा दो ताकि न कोई तुम्हारा स्टेटस देखे और न ही कोई उसे देखकर तुम्हें बोले। शम्मी सोच ही रहा था कि मोहल्ले के एक अन्य व्यक्ति का शम्मी को फ़ोन आया और वो कहने लगा “जो तू ये कर रहा है ये गलत कर रहा है”। शम्मी पहले तो उनसे भाई जी भाई जी करके बात करने लगा जब उन्होंने बात सुनने से मनाकर दिया तो शम्मी गुस्से में आकर उन्हें बोलने लगा। अंत में शम्मी ने फ़ोन काट दिया। शम्मी ने सोचा कि उसने गलत कर दिया है। शम्मी ने एक एक करके सब मोहल्ले वालों के नंबर हटाने शुरूकर दिए। तभी उसके सामने विवेक जी का नंबर आया। उसे वो बात याद आ गयी कि अगर विश्व विद्यालय से परीक्षा के सम्बंधित जानकारी आये तो बता देना। जब शम्मी सारे मोहल्ले वालों के नंबर अपने फ़ोन से हटा रहा था तो विवेक जी का नंबर भी हटाने वाला था तो शम्मी ने सोचा कि क्यूँ ना उन्हें वो माध्यम बता दे जिसपर जानकारी आती है। जब विवेक जी को शम्मी ने फ़ोन किया तो सामने से विवेक जी ने शम्मी को बोलना शुरूकर दिया और कहा कि तुमने जो किया गलत किया।

शम्मी अब दुखी रहने लगा था क्यूंकि कोई भी उसकी भावनाओं को नहीं समझ पा रहा था। सब शम्मी को ही गलत ठहरा रहे थे। शम्मी अंदर से टूट गया। शिव कुमार जिनके घर में शम्मी का आना जाना था। उन्होंने भी कहा कि शम्मी ने गलत किया। किसी ने भी शम्मी से ये नहीं पुछा कि तुमने ये क्यूँ किया। पूरा मोहल्ला शम्मी के खिलाफ़ खड़ा हो गया। शम्मी अकेला हो गया था। शम्मी ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। शम्मी ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिसे वो अपने माता पिता जितना प्यार करता है उनका आदर करता है उन्होंने भी उसे गलत ठहरा दिया। शम्मी को और गुस्सा आने लगा। शम्मी कर क्या सकता था। क्यूंकि सच्चाई तो यही थी कि वो “बौना है” और बौना व्यक्ति कहाँ किसी से लड़ सकता है।

समय का चक्र अपनी गति से चलता जा रहा था।लगभग ३ माह बीत गए। शम्मी को लग रहा था जैसे वो बिलकुल अकेला रह गया है। शम्मी उन बातों को भूलने का बहुत प्रयास करता पर वो बातें उनके मन से नहीं निकल रही थी। उसने सबको बुलाना बंदकर दिया था। बाज़ार में भी जब शम्मी किसी मोहल्ले वाले से मिलता तो ना शम्मी बात करने की हिम्मत कर पाता और ना मोहल्ले वालों की हिम्मत होती उसे बुलाने की। घर में अकेले रह-रह कर शम्मी में गुस्सा भरने लगा। शिव कुमार की पत्नी अक्सर शम्मी के घर आया करती थी। शम्मी की माता जी से मिलने। जब भी वो आते तो शम्मी चुप-चाप अपने कमरे में चला जाता। उसे इस बात का दुःख था कि शिव कुमार ने एक बार भी उससे बात नहीं की और ना पुछा कि तुमने ऐसा क्यूँ किया। शम्मी जब भी कुछ काम करने लगता तो उसकी आँखों के सामने वोहि घटना आ जाती और शम्मी का गुस्सा तीव्र हो जाता पर वो किसी से कुछ नहीं कहता बस अपने गुस्से पर नियंत्रण करने का प्रयास किया करता परन्तु बहुत बार ऐसा होता कि वो गुस्से में अपना घर का सामान फेंकने लगता। एक ही पल में शम्मी को गुस्सा आ जाता और एक ही पल में शांत हो जाता। शम्मी को समझ नहीं आता आता कि उसके साथ ये क्यूँ हो रहा था। उसने कई बार सोचा कि वो किसी अच्छे मनोचाकित्स्क को दिखा ले पर उसे समय ही नहीं मिलता।

एक दिन शम्मी किसी काम से बाहर गया था और जब वो घर लौटा तो उसने देखा की शिव कुमार की पत्नी उसके घर में बैठी थी। शम्मी की माँ ने शम्मी से कहा कि उन्हें प्रणाम करो। शम्मी ने उन्हें प्रणाम किया तो शिव कुमार की पत्नी ने उसे घर आने का निमंत्रण दिया कि घर में गणपति स्थापित करने है तो आप जरूर आना। शम्मी का गुस्सा बढ़ गया और उसने कहा की वो उस घर में कभी नहीं आएगा क्यूंकि जब जरूरत थी तब उसका साथ नहीं दिया। इतना कहकर वो अपने कमरे में चला गया। शम्मी की माँ और शिव की पत्नी बातें करने लगे। वो बातें कर ही रहे थे कि इतने में शम्मी के कमरे से उसके रोने की आवाज़ आने लगी सब उठकर उसके कमरे में आ गए। शम्मी ने जो बनावटी गुस्सा दिखाया था उसके पीछे का दर्द उसकी आँखों से झलकने लगा। उसके मन के आवेग आँसू का रूप बनकर उसकी आँखों से टपकने लगे। उसने अपने मन का दर्द शिव की पत्नी के आगे उजागर किया और जो भी गलतफ़हमी उनके मन में थी उसे सुना और उन्हें सारी बात बताई। शिव की पत्नी ने जब सारी बातें अपने पति से की तब शिव कुमार ने शम्मी को फ़ोन करके अपने घर भुलाया और सारी गलतफ़हमी दूर की। शम्मी गणेश चतुर्थी की पूजा में शिव कुमार के घर पर गया और गणपति भगवान की पूजा की। शम्मी और शिव कुमार के रिश्ते फिर मजबूत हो गए। उसे बाकि किसी मोहल्ले वाले से कुछ काम नहीं था। शम्मी खुश था कि शिव कुमार ने उसे अपने बेटे की तरह फिर प्यार देना शुरूकर दिया। सारी बातों का जब शिव कुमार को पता चल गया तो शम्मी के मन में पनपा गुस्सा भी थोड़ा शांत होने लगा और उसका मानसिक तनाव भी घटने लगा।

रचयिता-सुमित विग

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